श्राद्ध पक्ष की प्रासंगिकता / सुशील कुमार शर्मा

SHARE:

श्राद्ध पक्ष की प्रासंगिकता सुशील कुमार शर्मा यह शब्द "श्रद्धा" से बना है। ब्रह्मपुराण (उपर्युक्त उद्धृत), मरीचि एवं बृहस्पति की ...

श्राद्ध पक्ष की प्रासंगिकता

सुशील कुमार शर्मा

यह शब्द "श्रद्धा" से बना है। ब्रह्मपुराण (उपर्युक्त उद्धृत), मरीचि एवं बृहस्पति की परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि श्राद्ध एवं श्रद्धा में घनिष्ठ सम्बन्ध है। श्राद्ध में श्राद्धकर्ता का यह अटल विश्वास रहता है कि मृत या पितरों के कल्याण के लिए ब्राह्मणों को जो कुछ भी दिया जाता है वह उसे या उन्हें किसी प्रकार अवश्य ही मिलता है। स्कन्द पुराण का कथन है कि 'श्राद्ध' नाम इसलिए पड़ा है कि उस कृत्य में श्रद्धा मूल (मूल स्रोत) है। इसका तात्पर्य यह है कि इसमें न केवल विश्वास है, प्रत्युत एक अटल धारणा है कि व्यक्ति को यह करना ही है। ॠग्वेद में श्रद्धा को देवत्व दिया गया है मनु व याज्ञवल्क्य ऋषियों ने धर्मशास्त्र में नित्य व नैमित्तिक श्राद्धों की अनिवार्यता को रेखांकित करते हुए कहा कि श्राद्ध करने से कर्ता पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है तथा पितर संतुष्ट रहते हैं जिससे श्राद्धकर्ता व उसके परिवार का कल्याण होता है।

श्राद्ध महिमा में कहा गया है - आयुः पूजां धनं विद्यां स्वर्ग मोक्ष सुखानि च। प्रयच्छति तथा राज्यं पितरः श्राद्ध तर्पिता।। जो लोग अपने पितरों का श्राद्ध श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके पितर संतुष्ट होकर उन्हें आयु, संतान, धन, स्वर्ग, राज्य मोक्ष व अन्य सौभाग्य प्रदान करते हैं।

हमारी संस्कृति में माता-पिता व गुरु को विशेष श्रद्धा व आदर दिया जाता है, उन्हें देव तुल्य माना जाता है। ”पितरं प्रीतिमापन्ने प्रियन्ते सर्वदेवताः“ अर्थात पितरों के प्रसन्न होने पर सारे ही देवता प्रसन्न हो जाते हैं।

आत्मिक प्रगति के लिए सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है- “श्रद्धा।” श्रद्धा में शक्ति भी है। वह पत्थर को देवता बना देती है और मनुष्य को नर नारायण स्तर तक उठा ले जाती है। किन्तु श्रद्धा मात्र चिन्तन या कल्पना का नाम नहीं है। उसके प्रत्यक्ष प्रमाण भी होना चाहिए। यह उदारता, सेवा, सहायता, करुणा आदि के रूप में ही हो सकती है। इन्हें चिन्तन तक सीमित न रखकर कार्यरूप में, परमार्थ परक कार्यों में ही परिणत करना होता है। यही सच्चे अर्थों में श्राद्ध है।

संसार के सभी देशों में, सभी धर्मों में सभी जातियों में किसी न किसी रूप में मृतकों का श्राद्ध होता है। मृतकों के स्मारक, कवच, मकबरे संसार भर में देखे जाते हैं। पूर्वजों के नाम पर नगर, मुहल्ले, संस्थाएं, मकान, कुएं, तालाब, मन्दिर, मीनार आदि बनाकर उनके नाम तथा यश को चिरस्थायी रखने का प्रयत्न किया जाता है। उनकी स्मृति में पर्वों एवं जयंतियों का आयोजन किया जाता है। यह अपने-अपने ढंग के श्राद्ध ही हैं। ‘क्या फायदा?’ वाला तर्क केवल हिन्दू श्राद्ध पर ही नहीं समस्त संसार की मानव प्रवृत्ति पर लागू होता है। असल बात यह है कि प्रेम, उपकार, आत्मीयता एवं महानता के लिए मनुष्य स्वभावतः कृतज्ञ होता है और जब तक उस कृतज्ञता के प्रकट करने का, प्रत्युपकार स्वरूप कुछ प्रदर्शन न कर ले तब तक उसे आन्तरिक बेचैनी रहती है, इस बेचैनी को वह श्राद्ध द्वारा ही पूरी करता है।

उपकारी के प्रति कृतज्ञता का प्रत्युपकार का भाव रखना भावना क्षेत्र की पवित्रता एवं उत्कृष्टता का प्राणवान चिन्ह है। इसके लिए धनदान आवश्यक नहीं, समय, धन, श्रम दान, भाव दान भी असमर्थता की स्थिति में इसी प्रयोजन की पूर्ति करते हैं। उन्हीं सब बातों पर विचार करते हुए भारतीय धर्म परम्परा में श्राद्ध कर्म की महत्ता बताई गई है। सत्पात्र न मिलने या अपनी आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की स्थिति में इसे जलांजलि देकर तर्पण के रूप में भी सम्पन्न किया जा सकता है।

यह सोचना उचित नहीं कि जो मर गए उन तक हमारी दी हुई वस्तु कैसे पहुँचेगी। पहुँचती तो केवल श्रद्धा है।मरे हुए व्यक्तियों को श्राद्ध कर्म से कुछ लाभ होता है कि नहीं? इसके उत्तर में यही कहा जा सकता है कि-होता है, अवश्य होता है।

संसार एक समुद्र के समान है जिसमें जल कणों की भाँति हर एक जीव है। विश्व एक शिला है तो व्यक्ति उसका एक परमाणु। हर एक आत्मा जो जीवित या मृत रूप से इस विश्व में मौजूद है अन्य समस्त आत्माओं से सम्बद्ध है। संसार में कहीं भी अनीति, युद्ध, कष्ट, अनाचार, अत्याचार हो रहे हैं तो सुदूर देशों के निवासियों के मन में भी उद्वेग उत्पन्न होता है। जब जाड़े का प्रवाह आता है तो हर चीज ठण्डी होने लगती है और गर्मी की ऋतु में हर चीज की उष्णता बढ़ जाती है, छोटा सा यज्ञ करने से उसकी दिव्यागन्ध तथा दिव्य भावना समस्त संसार के प्राणियों को लाभ पहुँचाती है। इसी प्रकार कृतज्ञता की भावना प्रकट करने के लिए किया हुआ श्राद्ध समस्त प्राणियों में शाँतिमयी सद्भावना की लहरें पहुँचाता है। यह सूक्ष्म भाव तरंगें सुगंधित पुष्पों की सुगंध की तरह तृप्ति कारक आनन्द और उल्लासवर्धक होती हैं, सद्भावना की सुगंध जीवित और मृतक सभी को तृप्त करती है। इन सभी में अपने स्वर्गीय पितर भी आ जाते हैं। उन्हें भी श्राद्ध यज्ञ की दिव्य तरंगें आत्मशाँति प्रदान करती हैं।  

श्राद्ध करना चाहिये जीवितों का भी, मृतकों का भी। जिन्होंने अपने साथ में किसी भी प्रकार की कोई भलाई की है उसे बार-बार प्रकट करना चाहिये क्योंकि इससे उपकार करने वालों को संतोष तथा प्रोत्साहन प्राप्त होता है। वे अपने ऊपर अधिक प्रेम करते हैं और अधिक घनिष्ठ बनते हैं, साथ-साथ अहसान स्वीकार करने से अपनी नम्रता एवं मधुरता बढ़ती है। उपकारों का बदला चुकाने के लिये किसी न किसी रूप में सदा ही प्रयत्न करते रहना चाहिये।

श्राद्ध क्या है?

पितरों का उद्देश्य करके (उनके कल्याण के लिए) श्रद्धापूर्वक किसी वस्तु का या उससे सम्बन्धित किसी द्रव्य का त्याग श्राद्ध है।'

उचित समय पर शास्त्रसम्मत विधि द्वारा पितरों के लिए श्रद्धा भाव से मन्त्रों के साथ जो दान-दक्षिणा आदि, दिया जाय, वही श्राद्ध कहलाता है। 20 अंश रेतस (सोम) को 'पितृॠण' कहते हैं। 28 अंश रेतस के रूप में 'श्रद्धा' नामक मार्ग से भेजे जाने वाले 'पिण्ड' तथा 'जल' आदि के दान को श्राद्ध कहते हैं।  मनुष्य के तीन पूर्वज, यथा–पिता, पितामह एवं प्रपितामह क्रम से पितृ-देवों, अर्थात् वसुओं, रुद्रों एवं आदित्य के समान हैं और श्राद्ध करते समय उनकों पूर्वजों का प्रतिनिधि मानना चाहिए। कुछ लोगों के मत से श्राद्ध से इन बातों का निर्देश होता है; होम, पिण्डदान एवं ब्राह्मण तर्पण (ब्राह्मण संतुष्टि भोजन आदि से); किन्तु श्राद्ध शब्द का प्रयोग इन तीनों के साथ गौण अर्थ में उपयुक्त समझा जा सकता है।

पितरों के लिए कृष्ण पक्ष उत्तम होता है। कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उनके दिनों का उदय होता है। अमावस्या उनका मध्याह्न है तथा शुक्ल पक्ष की अष्टमी अंतिम दिन होता है। धार्मिक मान्यता है कि अमावस्या को किया गया श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान उन्हें संतुष्टि व ऊर्जा प्रदान करते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पृथ्वी लोक में देवता उत्तर गोल में विचरण करते हैं और दक्षिण गोल भाद्रपद मास की पूर्णिमा को चंद्रलोक के साथ-साथ पृथ्वी के नज़दीक से गुजरता है। इस मास की प्रतीक्षा हमारे पूर्वज पूरे वर्ष भर करते हैं। वे चंद्रलोक के माध्यम से दक्षिण दिशा में अपनी मृत्यु तिथि पर अपने घर के दरवाज़े पर पहुँच जाते है और वहाँ अपना सम्मान पाकर प्रसन्नतापूर्वक अपनी नई पीढ़ी को आर्शीवाद देकर चले जाते हैं।

तर्पण क्यों

जो पितृ गण दिवंगत हो चुके हैं उनके लिये तर्पण श्राद्ध का विधान है। श्रद्धाँजलि पूजा उपचार का सरलतम प्रयोग है अन्य उपचारों में वस्तुओं की जरूरत पड़ती है। वे कभी उपलब्ध होती हैं कभी नहीं। किन्तु जल ऐसी वस्तु है जिसे हम दैनिक जीवन में अनिवार्यतः प्रयोग करते हैं। वह सर्वत्र सुविधापूर्वक मिल भी जाता है। इसलिए पुष्पाँजलि आदि श्रमसाध्य श्रद्धाँजलियों में जलाँजलि को सर्वसुलभ माना गया है। उसके प्रयोग में आलस्य और अश्रद्धा के अतिरिक्त और कोई व्यवधान नहीं हो सकता। इसलिए सूर्य नारायण को अर्घ, तुलसी वृक्ष में जलदान, अतिथियों को अर्घ तथा पितर गणों को तर्पण का विधान है। प्रश्न यह नहीं कि इस पानी की उन्हें आवश्यकता है या नहीं। प्रश्न केवल अपनी अभिव्यक्ति भर का है। उसे निर्धारित मन्त्र बोलते हुए, गायत्री महामंत्र में अथवा बिना मन्त्र के भी जलाँजलि दी जा सकती है। यही है उनकी प्रति पूजा अर्चा का सुगमतम विधान। शास्त्रीय भाषा में इसे ‘तर्पण’ कहा जाता है। इसमें यह तर्क करने की गुंजाइश नहीं है कि यह पानी उन पूर्वजों तक या सूर्य तक पहुँचा या नहीं।

1.इसके पीछे अपनी कृतज्ञता भरी भावनाओं को सींचते रहने की अभिव्यक्ति की ही प्रमुखता है।

2.  पितृ ऋण को चुकाने के लिए दूसरा कृत्य आता है- ‘श्राद्ध’। श्राद्ध का प्रचलित रूप तो ‘ब्राह्मण भोजन’ मात्र रह गया है पर बात ऐसी है नहीं। अपने साधनों का एक अंश पितृ प्रयोजनों के निमित्त ऐसे कार्यों में लगाया जाना चाहिए जिससे लोक कल्याण का प्रयोजन भी सधता हो।

ऐसे श्राद्ध कृत्यों में समय की आवश्यकता को देखते हुए वृक्षारोपण ऐसा कार्य हो सकता है जिसे ब्रह्मभोज से भी कहीं अधिक महत्व का माना जा सके। किसी व्यक्ति को भोजन करा देने से उसकी एक समय की भूख बुझती है। दूसरा समय आते ही फिर वह आवश्यकता जाग पड़ती है। उसे कोई दूसरा व्यक्ति कहाँ तक कब तक पूरा करता रहे। फिर यदि कोई व्यक्ति अपंग, मुसीबत ग्रस्त या लोकसेवी नहीं है तो उसे मुफ्त में भोजन कराते रहने के पीछे किसी उच्च उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती।

3. वृक्ष वायु शोधन करते हैं। छाया देते हैं। फल-फूल भी मिलते हैं। हरे पत्ते पशुओं का भोजन बन सकते हैं। सूखे पत्तों से जमीन को खाद मिलती है। लकड़ी के अनेकों उपयोग हैं। वृक्षों से बादल बरसते हैं। भूमि का कटाव रुकता है। पक्षी घोंसले बनाते हैं उनकी छाया में मनुष्यों पशुओं को विश्राम मिलता है। इस प्रकार वृक्षारोपण भी एक उपयोगी प्राणी के पोषण के समान है। श्राद्ध रूप में ऐसे वृक्ष लगाये जायें जो किसी न किसी रूप में प्राणियों की आवश्यकता पूरी करते हों। अपने पास कृषि योग्य भूमि से थोड़ी भी जमीन बचती हो, कम उपयोगी हो तो उसमें आम, पीपल, महुआ आदि के वृक्ष लगा देने चाहिए। केवल सींचने, रखवाली करने आदि की जिम्मेदारी अपने कन्धे पर लेकर दूसरों की जमीन में वृक्ष लगा देने में भी पुण्यफल की प्राप्ति हो सकती है।

4.वृक्षों की भाँति ही जलाशयों के निर्माण का भी उपयोग है। तालाबों में हर साल वर्षा के पानी के साथ मिट्टी भर जाती है और उनकी सतह ऊँची हो जाने से कम पानी समाता है जो जल्दी ही सूख जाता है। इन्हें यदि हर साल श्रमदान से गहरे करते रहा जाय तो पशुओं को पानी, सिंघाड़ा, कमल जैसी बेलें तथा तल में जमने वाली चिकनी मिट्टी से मकानों की मरम्मत हो सकती है।

श्राद्ध पक्ष की वर्तमान में प्रासंगिकता

हम लोग हमेशा बदलाव चाहते हैं। हमारी सोच ,दशा समय के साथ बदल जाती है। लेकिन कुछ वस्तुएं हमेशा प्रासंगिक होती हैं। पितृपक्ष हमारे परिवार से जुडी एक परम्परा हैं ,अपनों को याद करने का एक अवसर है। जो हम से जुड़े हैं या जुड़े थे वो हम सबके लिए हमेशा प्रासंगिक होते हैं। श्राद्ध पक्ष के वर्तमान में प्रासंगिक होने के कई कारण हैं

1. हमारा समाज अत्यंत भौतिक वादी होता जा रहा है। बगैर स्वार्थ के कोई किसी की सहायता नहीं करना चाहता है। पितृपक्ष में अपने पूर्वजों केलिए जो भी दान या भोजन दूसरों को देते हैं उससे समाज के गरीब एवम जरूरत मंदों की सहायता होती है तथा समाज में सहयोग एवम समन्वय की भावना जाग्रत होती है।

2. जो कभी हमारे परिवार का हिस्सा रहे है जिनका खून हमारी रगों में दौड़ रहा है ,कम से कम एक पखवाड़ा हम उन्हें याद करते हैं। इस बहाने हम अपने पूर्वजों को याद करके अपने परिवार समाज एवम धर्म में अपनी आस्था व्यक्त करतें हैं।

3. हमारे पूर्वज एवम बुजुर्ग हमारी धरोहर हैं। वर्तमान में बुजुर्ग समाज की मुख्य धारा से कटते जा रहे हैं। इस एक पखवाड़े में हम सभी उनके प्रति सम्मान एवम सद्भाव व्यक्त करतें हैं।

5. परम्पराओं से समाज एवम परिवार में एकनिष्ठा पनपती है। पितृपक्षको मनाने से हमारी नई पीढ़ी में सांस्कृतिक सोच के साथ बुजुर्गों के सम्मान की भावना का जागरण होता है।

श्राद्ध से श्रद्धा जीवित रहती है। श्रद्धा को प्रकट करने का जो प्रदर्शन होता है वह श्राद्ध कहा जाता है। जीवित पितरों-गुरुजनों के लिए श्रद्धा प्रकट करने-श्रद्धा करने के लिए उनकी अनेक प्रकार से सेवा, पूजा तथा संतुष्टि की जा सकती है। परन्तु स्वर्गीय पितरों के लिए श्रद्धा प्रकट करने का अपनी कृतज्ञता को प्रकट करने का कोई निमित्त निर्माण करना पड़ता है। यह निर्मित श्राद्ध है। स्वर्गीय गुरुजनों के कार्यों, उपकारों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने से ही छुटकारा नहीं मिल जाता। हम अपने अवतारों देवताओं, ऋषियों, महापुरुषों और पूजनीय पूर्वजों की जयन्तियाँ धूमधाम से मनाते हैं, उनके गुणों का वर्णन करते हैं उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके चरित्रों एवं विचारों से प्रेरणा ग्रहण करते हैं। यदि कहा जाय कि मृत व्यक्तियों ने तो दूसरी जगह जन्म ले लिया होगा उनकी जयंतियाँ मनाने से क्या लाभ? तो यह तर्क बहुत अविवेक पूर्ण होगा। श्राद्ध और तर्पण का मूल आधार अपनी कृतज्ञता और आत्मीयता का सात्विक वृत्तियों को जागृत रखना है। इन प्रवृत्तियों का जीवित, जागृत रहना संसार की सुख शाँति के लिए नितान्त आवश्यक है।इसलिए आपसे  आग्रह करता है  कि आप उपरोक्त कारणों में से कम से कम एक के लिए पितृ पक्ष को जरूर माने ।

इससे  आपको  और आपके  परिवार को  और अधिक शांति और खुशी पाने में लिए मदद मिलेगी। अब है कि आप इन दिनों के महत्व को जानते हैं तो यह सुनिश्चित करें कि आप इस वर्ष पितृपक्ष में पितरों की पूजा करेंगे  और अपने पूर्वजों का  आशीर्वाद  प्राप्त करेंगें। यह आशीर्वाद निश्चित रूप से आपके जीवन को  प्रभावशाली एवं सुखमय बना देगा।

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. "श्राद्ध पक्ष की प्रासंगिकता" एक विशिष्ट ज्ञानवर्धक लेख जिसके द्वारा हमें सपने पितरों के मोक्ष प्राप्ति व अपने पूर्वजों के लिए अवश्य कर्तव्यों का ज्ञान करता है। शर्मा जी की कलम को नमन

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: श्राद्ध पक्ष की प्रासंगिकता / सुशील कुमार शर्मा
श्राद्ध पक्ष की प्रासंगिकता / सुशील कुमार शर्मा
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhvs9Bi2JlLLCBmA90PKXGFFg7HKDf_q2dRdgTsV3L6PjpusR4c5X_pD_N9aV8AXY44BXbGYpuNyhi-bRBXMf8LZZTrUe1M8o-DQXSynP91rN1AfamCc4qe1P1T95syD5juj5QZ/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhvs9Bi2JlLLCBmA90PKXGFFg7HKDf_q2dRdgTsV3L6PjpusR4c5X_pD_N9aV8AXY44BXbGYpuNyhi-bRBXMf8LZZTrUe1M8o-DQXSynP91rN1AfamCc4qe1P1T95syD5juj5QZ/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/09/blog-post_17.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/09/blog-post_17.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content