सदी के महान आचार्य थे ‌‌- डा. राधाकृष्णन / 5 सितंबर शिक्षक दिवस विशेष आलेख / गजानंद प्रसाद देवांगन

SHARE:

  “ प्रत्येक सत्यशोधक को अपने हृदय में एक मठ बनाना चाहिए । और दिन में एक बार उसमें बैठकर , विश्राम करना चाहिए । सत्य विवाद पटु लोगों का खिल...

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

 

“ प्रत्येक सत्यशोधक को अपने हृदय में एक मठ बनाना चाहिए । और दिन में एक बार उसमें बैठकर , विश्राम करना चाहिए । सत्य विवाद पटु लोगों का खिलौना नहीं है । जिस व्यक्ति ने आत्म ज्योति नहीं जगायी , वह अध्यात्मजगत का दर्शन भी नहीं कर सकता । अध्यात्म , सत्यान्वेषक के जीवन के कला-सौंदर्य , धर्म दर्शन और पूर्णता को प्रगट करता है । “

इन विचारों को रचने वाले थे – भारत के महान दार्शनिक डा. राधाकृष्णन , जिनके अनुभूत सत्य और अध्यात्मिकता के झलक , उनके जीवन में मृदुता और दृढ़ कर्तव्यनिष्ठा के समन्वय के रूप में प्रतीत किया गया । उसके लिए प्रकृति आज भी कह रही है कि डा.राधाकृष्णन एक महा मानव , युग ऋषि और बींसवी सदी के महान आचार्य थे । अमेरिका के प्रेसीडेंट – उडरो विल्सन , चेकोस्लोवाकिया के प्रेसीडेंट –जान मसारिक और आयर्लैंड के प्रेसीडेंट – डीलेबरा भी पहले शिक्षक थे । भारत का भी एक शिक्षक , जो विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक और राजनीतिज्ञ थे , जिन्होंने 12 मई 1962 को राष्ट्रपति पद की शपथ लेकर गुरूता को महिमामंडित किया , वे महामहिम डा. राधाकृष्णन इस श्रृंखला में सर्वोपरि हैं ।

सन 1908 से 1948 अर्थात 40 वर्षों तक आपके शिकषकीय जीवन का लाभ न केवल भारत , बल्कि विश्व के अधिकांश देशों ने निर्बाध रूप से प्राप्त किया , वह उल्लेखनीय है । सन 1908 से 1927 तक प्रेसीडेंसी कालेज मद्रास में व्याख्याता , सन 1918 से 1921 तक मैसूर के महाराजा कालेज में दर्शन के प्रोफेसर ,1922 से 1930 तक पोस्ट ग्रेजुएट कौंसिल इन आर्ट्स के अध्यक्ष , सन 1931 से 1935 तक आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति , सन 1936 से 1938 तक कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और्र ब्रिटिश साम्राज्य के विश्व विद्यालयों के कांफ्रेंस के प्रतिनिधि , सन 1939 से 1948 तक हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति का गुरूतर भार आपने सहज निर्वाह किया ।

एक ही व्यक्ति, एक ही समय में दुनिया के दो महादेशों के दो विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर हों , यह अपूर्व बात थी । सन 1932 से 1940 तक आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के स्पालडिंग चेयर आव ईस्टर्न रिलीजन एंड एथिक्स के प्रोफेसर थे , इसके साथ ही साथ कलकत्ता वि.वि. में भी आप दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर के रूप में व्याख्यान देते थे । प्रायः प्रत्येक वर्ष जनवरी से जून तक इग्लैंड जाकर और शेष महीने भारत में रहकर अध्यापन करते थे । भारत के इस महान आचार्य की विशिष्ट गरिमा तब और अधिक चर्चित हुई , जब आप पश्चिम के चकाचौंध से बिना आक्रांत हुए , विदेश पढ‌़ने नहीं , पढ़ाने जाने के अपने संकल्प को आपने पूर्ण कर दिखाया । दार्शनिक डा. राधाकृष्णन ने भारत का निर्माण , भारतीयतत्वों द्वारा किए जाने पर विश्वास व्यक्त किया । आपने यह प्रमाणित कर दिखाया कि भारत अतीत में ही नहीं , वर्तमान में भी विश्व को मार्गदर्शन देने की अप्रतिम क्षमता रखता है । विश्व गुरू पद के सम्मान को भारत के सम्मान के रूप में स्वीकार करते हुए , भारत के भविष्य निर्माता शिक्षकों के लिए आपने आदर व्यक्त किया। भारत के महामहिम राष्ट्रपति पद पर आरूढ़ डा. राधाकृष्णन से जब निवेदन किया गया कि राष्ट्र आपका जन्मदिन मनाना चाहता है , तब आपने तत्काल कहा कि मैं चाहता हूं कि वे एक शिक्षक के रूप में याद किये जावें । उन्होंने अपना जन्मदिन 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की स्वीकृति प्रदान की । शिक्षा और शिक्षकों का वे स्वयं कितना आदर करते थे , इस प्रसंग से उजागर होता है ।

डा. राधाकृष्णन को संत दीक्षिसार से अध्ययन और अध्यापन की अच्छी प्रेरणा मिली । सनातन धर्म के उन्नायक स्वामी विवेकानंद के अद्भुत साहस और वाग्मिता से भी आप विशेष प्रभावित रहे । उनमें अपनी कुशाग्रता और विलक्षणता तो थी ही , ऋषियों की तरह मंत्र दृष्टा उनके अपने चिंतन ने उन्हें विश्वविख्यात दार्शनिक , पूर्व – पश्चिम का समन्वयक और विश्व संस्कृति का शिक्षक बना दिया ।

विश्वविद्यालयोंके दीक्षांत समारोहों में जब वे भाषण देने के लिए बुलाये जाते थे तब वे स्नातकों से कहा करते थे – “ सम्प्रति यथेच्छसि तथा कुरू यथेस्ट बरतो: “ सामाजिक दर्शन को , अध्यात्म के सार्वभौमिक सत्य और मानवीय मूल्य के रूप में ग्रहण कर , इसी रूप में अपने छात्रों को आप शिक्षा देते थे । डा. राधाकृष्णन के व्याख्यानों को सुनने के बाद शिष्यगण कहा करते थे कि , हमारा प्रोफेसर सर्वाधिक विलक्षण है । गवर्नमेंट आर्ट कालेज राजमहेंद्रम के स्नातक छात्र लोग “ मोस्ट वंडरफूल” कहते थे , अपने इस प्रोफेसर को । मैसूर के छात्रगण आपको शुचिता और पवित्रता की प्रतिमूर्ति मानते थे । डा. राधाकृष्णन जी , भागवत धर्म स्वरूप लगते थे सभी को ।

डा. राधाकृष्णन जी सर्व सुलभ और छात्रप्रिय शिक्षक थे । आपके व्यवहार से शिष्यगण मुग्ध हो जाते थे । अपने पूज्य गुरू के प्रति उनके शिष्यों द्वारा व्यक्त किए गये अद्वितीय सम्मान का उल्लेख आज के संदर्भ में अत्यंत उपयोगी , प्रासंगिक और प्रेरणास्पद होगा ।

गुरू शिष्यों के मध्य आत्मिक सम्बंध था । जब प्रोफेसर डा.राधाकृष्णन ने मैसूर से कलकत्ता जाने का निश्चय किया और छात्रों को इसका पता लगा तो उन्होंने अपने आपको अनाथ अनुभव किया । युवा विद्वान प्रोफेसर के प्रति , छात्रों की अगाध श्रद्धा व प्रेम का सागर उमड़ पड़ा । विदा होने गाड़ी में बैठे प्रोफेसर की गाड़ी को खींचने के लिए छात्रों में होड़ लग गई । गुरू के लिए भी यह अपूर्व क्षण था । गुरू की बिदाई के दुख से दुखी छात्र श्रद्धायुक्त अश्रुपूरित नयनों से निहारते , उनकी गाड़ी को खींचते स्टेशन तक पहुंचाया । इस अदभुत और अपूर्व दृश्य को देखकर युवा प्रोफेसर के साथी और दर्शक गण सभी विस्मित रह गए । यह एक अकल्पनीय दृष्य था । छात्रगण जोरों से अपने गुरूदेव डा. राधाकृष्णन की जय कहना चाहते थे , किंतु रूंन्धे कंठ के कारण जयघोष उच्चारित नहीं कर पा रहे थे ।

उन दिनों विश्व के राष्ट्र नायकों द्वारा की जाने वाली सैनिक , राजनैतिक और आर्थिक कार्यवाहियों के कारण विश्व मानव समुदाय में बढ़ रही उदासीनता , भय , संसय और अशांति को देखकर , चिंतित होकर समाधान की पहल करने कराने वालों में केम्ब्रिज वि.वि. के भूतपूर्व कुलपति केनन से.ई. रेवन के साथ एक प्रमुख व्यक्ति डा. राधाकृष्णन भी थे । इस समय आप आक्सफोर्ड वि.वि. में प्राच्य धर्मों और आचार शास्त्र के स्पालडिंग प्रोफेसर और संयुक्त राष्ट्र शिक्षा विज्ञान एवं संस्कृति संस्था ( यूनेस्को) के उपप्रधान भी थे ।

“ प्राणी मात्र की रक्षा और विश्व संस्कृति की विकास के साथ , मानवीय महान लक्ष्यों की सिद्धि के लिए आवश्यक है –पूर्व पश्चिम सूदूरपूर्व की , मध्य पूर्व की , प्राचीन भारत और ग्रीस के , स्लाव , लेटिन ,नार्डिक – यूरोप , उत्तरी और लेटिन अमेरिका और इस प्रकार सारे विश्व की महान संस्कृतियों का निष्पक्ष भाव से अध्ययन किया जावे , उनकी फलप्रद व उपयोगी विभिन्नताओं की रक्षा करते हुए समान्वित निष्कर्षों को विश्वभरके छात्रों के लिए स्तरके अनुसार शैक्षिक पाठ्यक्रमों में समाहित किया जाना चाहिए । नैतिक शिक्षा के द्वारा चरित्रवान व्यक्ति और योग्य नागरिकों के निर्माण होने पर , राजनीति के अपराधीकरण के दुष्परिणाम से , विश्व संस्कृति को बचाया जा सकता है “ – आक्सफोर्ड में विश्वहित चिंतकों के समक्ष 18 जनवरी 1951 को डा राधाकृष्णन ने यह विचार व्यक्त किया था ।

काहिरा के प्रेसीडेंट नजीब से बिदा लेते हुए डा. साहब ने कहा था- शक्ति और अधिकार स्थायी नहीं है । उसे अथायित्व तभी प्राप्त होता है जब उसका नैतिक आधार हो ।

धर्म के सम्बंध में वे कहा करते थे – कि धर्म वास्तव में वायलिन के तार के समान है । यदि इस तार को हटा दिए जाए तो इसकी ध्वनि अंग से क्या स्वर निकलेगा ? डा. साहब ने जिस धर्म को स्वीकार व प्रचार किया है वह – सार्वभौम मानव धर्म । वे कहा करते थे कि भारत अमर राष्ट्र है । राम , कृष्ण , महावीर , गौतम और गांधी जैसे महान व्यक्तियों का देश “ भारत “ , रोम ग्रीस मिश्र के समान यह कभी विलुप्त नहीं हो सकता ।

आबेरिलीन कालेज में इनके स्वागत के समय बताया गया कि आप महान गणराज्य भारत के प्रसिद्ध नागरिक , विश्व प्रसिद्ध तत्वज्ञानी – शिक्षक , विश्व के राष्ट्रों में शांति स्थापित कराने वालों में अग्रणी , अंतर संस्कृति विनिमय के महान प्रचारक , अनुपम और अतुलनीय व्यक्ति हैं ।

भारत में ईसाई मिशनरी भेजने के प्रस्ताव के उत्तर में इंग्लैड के एक पादरी ने कहा था कि भारत में डा. राधाकृष्णन जैसे धर्म के सच्चे ज्ञाता हैं तब हमें अपने धर्म प्रचार के लिए मिशनरियों को भेजने की आवश्यकता ही नहीं है ।

उत्तर पश्चिम रेडियो जरमनी से बोलते हुए डा. युंग ने कहा था कि डा. साहब उन महान पुल निर्माताओं में से एक हैं जिनकी युग को सर्वाधिक आवश्यकता है । 1939 में लंदन के टाइम्स लिटरेरी सप्लीमेंट के सम्पादक ने लिखा था – कि डा. साहब ने उच्चतर बौद्धिक सिद्धि प्राप्त कर ली है । वे आत्मा के अधिक परिस्कृत गुणों से युक्त हैं । मार्शल सटालिन का मत था – कि डा. साहब निडर और निर्भय व्यक्ति हैं । वे महान वक्ता , आदर्श लेखक और श्रेष्ठतम विचारक भी हैं । साधारण लोगों के लिए यह विस्मय जनक जरूर है , किंतु यह सब निर्विवाद है ।

एक बार गांधी जी ने , इनसे आदर्पूरवक कहा था कि मैं आपसे कुछ प्रश्न , अर्जुन के रूप में कर रहा हूं । आप मेरे कृष्ण हैं , मैं आपका अर्जुन , धर्मसमूढ़चेता हूं । कबिबर रविंद्र जी ने लिखा है – 20 वीं सदी का यह महान आचार्य सार्वभौम धर्म के प्रचारक हैं । महामना मालवीय जी ने डा. राधाकृष्णन जी को मूरतिमान मानव धर्म निरूपित किया । उनकी बहन श्रीमति कृष्णामूर्ति जी ने कहा करती थीं कि मेरे भाई डा. राधाकृष्णन , केवल दार्शनिक नहीं वरन कला मर्मज्ञ , साहित्य सर्जक और कला साहित्य को सक्रिय प्रोत्साहन देने वाले विश्व मानव संस्कृति के प्रचारक भी हैं । भवभूति ने ऐसी ही प्रकृति के पुरूषों के लिए लिखा है -

ब्रजादपि कठोराणि , मृदूनि कुसुमादपि ।

लोकोत्तराणां चेतासि , को हि विज्ञातुमर्हति ॥

गीता के ज्ञान कर्म और भक्ति तीनों का समन्वय यदि एक ही जगह देखना हो तो डा. राधाकृष्णन का दर्शन चाहिए ।

गजानंद प्रसाद देवांगन ,छुरा

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: सदी के महान आचार्य थे ‌‌- डा. राधाकृष्णन / 5 सितंबर शिक्षक दिवस विशेष आलेख / गजानंद प्रसाद देवांगन
सदी के महान आचार्य थे ‌‌- डा. राधाकृष्णन / 5 सितंबर शिक्षक दिवस विशेष आलेख / गजानंद प्रसाद देवांगन
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghdYcHLupYr3BgkUJK_qH2HG9IY4Oel-kIVcdaTJGUp-QEZitk0iHUCGfX6L3B1txBFixvwMN8tvY4B8rNLtToPNneabngE3dvVh3U3FpFW2wIBJVFH2tL5PFTKawzDBON-uWk/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghdYcHLupYr3BgkUJK_qH2HG9IY4Oel-kIVcdaTJGUp-QEZitk0iHUCGfX6L3B1txBFixvwMN8tvY4B8rNLtToPNneabngE3dvVh3U3FpFW2wIBJVFH2tL5PFTKawzDBON-uWk/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/09/5_51.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/09/5_51.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content