० प्रतिभाओं को तराशने वाले को बना दिया गया है मजदूरों से भी निकृष्ट हमारे देश के द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने शिक्षकों के ...
० प्रतिभाओं को तराशने वाले को बना दिया गया है मजदूरों से भी निकृष्ट
हमारे देश के द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने शिक्षकों के सम्मान को सर्वोपरि मानते हुए अपने जन्म दिवस को ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाये जाने घोषणा कर शिक्षकवृंद को बड़ा उपहार दे दिया। प्रति वर्ष 5 सितंबर को हम शिक्षकों के सम्मान में आयोजन करते हुए राधाकृष्णन जी की मंशा को पूरा करने का प्रयास करते आ रहे है। अब कुछ वर्षों से मुझे इस दिवस की सार्थकता में औपचारिकता की बू आने लगी है। आज से 6-7 दशक पहले शिक्षक का पर्याय गुरू ही माना जाता था, किंतु अब वही शिक्षक शासकीय कार्यों के अनुपालन में किसी मजदूर से अधिक हैसियत नहीं रखता है। मजदूर भी एक शिक्षक से अच्छी स्थिति में अपना जीवन यापन करता है, जब कि एक शिक्षक अपने परिजनों से दूर ग्रामीण और वनांचल क्षेत्रों में ‘कर्मी’ बनकर रह गया है। एक पति-पत्नी को साथ में न रहने देने की त्रासदी भी एक शिक्षाकर्मी के भाग्य में ही आ पड़ी है। ऐसा कोई काम नहीं जो एक शिक्षक के जिम्मे न डाला गया हो। पल्स पोलियों से लेकर कुत्तों और मवेशियों की जनगणना भी शिक्षक के कर्तव्यों में जोड़ दी गयी है।
हमारे देश में देश को स्वच्छता के चादर में लपेटने स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत की गई है। मैं नहीं कहता कि यह अच्छा कदम नहीं है किंतु एक शिक्षक जो गुरूकुल पद्धति काल में शिष्यों द्वारा साफ-सफाई के बाद अध्ययन अध्यापन के लिए पहुंचा करता था, आज वही शिक्षक अपने शिष्यों के लिए विद्यालयों की सफाई करता दिख रहा है। हाथों में किताब और कलम थामने वाले शिक्षक को चाक और डस्टर की जगह झाडू और पोंछा पकड़ा दिया गया है। गांधी जी के विचारों को आत्मसात करते हुए मैदानों की शौच व्यवस्था को खत्म करने घर-घर शौचालय की योजना को अंजाम दिया गया है। यह एक अच्छी सोच ही है कि हम अपने वातावरण को प्रदूषित होने से बचायें। साथ ही बीमारियों पर नियंत्रण कर सकें। भारतीय संस्कृति में मुंह से आवाज निकालने अथवा सीटी बजाने को अच्छा नहीं माना जाता है। परंतु इससे भी आगे बढ़ते हुए अब स्वच्छ भारत मिशन की सफलता का प्रतीक शिक्षक को बनाने के लिए एक अनोखा भयावह किस्म का प्रयोग कर डाला गया है। राजस्थान में अब शिक्षक सुबह 5 बजे से उठकर ऐसे स्थान पर ड्यूटी बजा रहे हैं, जहां लोग शौच के लिए जाते हैं। रेल्वे पटरी से लेकर खुले मैदानों और झाडिय़ों के आसपास शिक्षक सुबह से सीटी बजा बजाकर ऐसा करने से लोगों को रोक रहे हैं।
मैं भी पिछले लगभग तीन दशक से शिक्षकीय कार्य कर रहा हूं। जब मैंने इस सेवा को चुना था तब ईश्वर का धन्यवाद करते नहीं थकता कि हे ईश्वर तूने मुझे दुनिया का सबसे अच्छा काम करने का अवसर दिया है। मैं तुझसे बार-बार इस जन्म की याचना करता हूं। अब मुझे ओडीएफ जैसे काम में लगाये जाने के बाद मैं महसूस कर रहा हूं कि कहीं न कहीं किसी जन्म में मैंने कुछ तो गलत किया ही होगा जिसकी सजा सूर्योदय से पूर्व ईश्वरीय आराधना के स्थान पर खुले में शौचमुक्त योजना को सफल बनाने किसी और के दर्शन कर रहा हूं।
अपनी और अपने शिक्षक साथियों की ऐसी दुर्गति को देख अब मेरा मन वेदना से भर उठा है, और मैं उसी ईश्वर से प्रार्थना करना चाहता हूं कि हे भगवान ‘अगले जनम मोहे शिक्षक न कीजो’।
मैं इस शिक्षक दिवस उन सभी शिक्षक बिरादरी का सम्मान करना चाहता हूं जिन्होंने हर सरकारी ऐसे फर्मानों को सहर्ष स्वीकार किया है, जिसे समाज का कोई भी वर्ग शायद न कर सके। अपने घर-परिवार से दूर अपनी योग्यता को कूड़े में डाल अपने मान सम्मान की होली जलाकर समाज के इसी वर्ग ने एक ऐसे भारत वर्ष को गढऩे का काम किया है, जो पूरे विश्व में भारतीय प्रतिभाओं का लोहा मनवा दे।
मैंने पहले पढ़ा और सुना था कि शिक्षक की गोद में उत्थान अथवा विकास पलता और बढ़ता है। यही कारण है कि पूरा विश्व शिक्षक के पीछे ही चलता है अर्थात उसका अनुसरण करता है। शिक्षक ही एक वटवृक्ष को जन्म देता है या ये कहे कि शिक्षक ही बच्चों को अपने सान्निध्य में बड़ा करते हुए लायक इंसान बनाता है। एक शिक्षक में वह शक्ति विद्यमान होती है जो धरती से आकाश को जोड़ सकता है और काल की दिशा को भी परिवर्तित कर सकता है। शिक्षक में इतनी महान महिमा होती हे कि उसके बिना धरती भी खुद को अधूरा ही महसूस करती है। क्या हम अपने इतिहास को फिर से याद कर सकते हैं जिसमें चाणक्य ने क्रूर मगध राजा को जमीन दिखा दी थी। इतना ही नहीं एक छोटे से बालक चंद्रगुप्त को चक्रवर्ती सम्राट बना डाला था। एक शिक्षक की महान तपस्या ने ही हमें अर्जुन और युधिष्ठिर जैसे योद्धा भी दिये हैं। हमने यह भी देखा कि अपने गुरू की निंदा करने वाला दुर्योधन स्वयं कैसे मिट गया था। अपने गुरू का सम्मान करने वाला बालक यदि राम बन गया तो गुरू की अवहेलना करने वाला दशानन बनकर रह गया। हमें ईश्वर ने शिक्षक बनने का सु-अवसर दिया है। यह समाज की सबसे बड़ी जिम्मेदारी भरा सेवा कार्य है। देश की सरकार को यह बात समझनी होगी कि शिक्षक से केवल अध्यापन कार्य ही लिया जाए ताकि वह अपनी पूरी ज्ञान से भरी गागर को अपने शिष्यों पर उड़ेल कर उन्हें एक अच्छा नागरिक और देश को पुन: जगतगुरू बनाने के मार्ग पर अग्रसर हो सके।
(डा. सूर्यकांत मिश्रा)
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