परसाई हास्य-व्यंग्य पखवाड़ा / काये सुनीता / व्यंग्य / पल्लवी त्रिवेदी

SHARE:

( परसाई हास्य-व्यंग्य पखवाड़ा - 10 - 21 अगस्त के दौरान विशेष रूप से हास्य-व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन किया गया. पल्लवी त्रिवेदी की शानदार व...

image

(परसाई हास्य-व्यंग्य पखवाड़ा - 10 - 21 अगस्त के दौरान विशेष रूप से हास्य-व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन किया गया. पल्लवी त्रिवेदी की शानदार व्यंग्य रचना के साथ इस श्रृंखला का समापन होता है. पाठकों रचनाकारों के सक्रिय सहयोग के लिए हार्दिक  धन्यवाद - सं.  )

(पल्लवी त्रिवेदी)

 

काये सुनीता

सुनीता अपने भरे-पूरे परिवार के साथ मध्य प्रदेश और उत्तरप्रदेश की सीमा पर स्थित एक ग्राम में निवास करती है । सुनीता के पिता कृषक हैं । परिवार के लिए रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा फल, दवाइयां और कभी-कभी मेले ठेले का खर्च भी आराम से उठा लेते हैं । पिताजी बच्चे पैदा करने में मास्टर हैं और आज घर में टी .वी. होते हुए भी ऐसा लगता है कि उनके पास मनोरंजन के साधनों का अभाव है । बच्चों को ईश्वर का उपहार समझते हैं और इसी समझ के कारण ईश्वर के दिए सात उपहार घर में धमाचौकड़ी मचाते नजर आते हैं, दो-चार उपहार ईश्वर के कोरियर सेवा के कारिंदे रिबन-विबन लगाकर गिफ्ट पैक करते रहते हैं और एक उपहार हमेशा 'ऑन द वे' रहता आया है । वो दीगर बात है कि अगर हर गिफ्ट पैकेट में लड्‌कियां न निकलती होती तो मनोरंजन के दूसरे साधनों पर भी दृष्टि डाली जा सकती थी। पुत्र सबसे आखिरी उपहार के रूप में डिलीवर किया गया इस कारण भी सात संतानें इस आंगन को प्राप्त हुई ।

सुनीता बारह वर्ष की है और उससे छोटे छह भाई-बहनों की संख्या देखते हुए सुनीता का माता की प्रकृति का औसत लगभग दो वर्ष से भी कम है । दो-तीन इशू ऐसे भी थे जो इशू बनते बनते रह गए । तो इस प्रकार सुनीता की माता का ज्यादातर समय जच्चा कहलाने में ही व्यतीत हो रहा है । मोहल्ले-पड़ोस की महिलाओं के लिए सुनीता की चिर-प्रसूता माता मुन्ने के होने के पहले मजाक का विषय थी पर अब घोर ईर्ष्या का कारण है । एक बार स्वास्थ्य विभाग वाले घर पर 'हम दो-हमारे दो ' का फ्लैक्स टांग गए थे जो घर की छत पर बिछाकर बड़ी, पापड़ सुखाने के काम में आता है ।

वर्ष 1997

बारह वर्षीय कुमारी सुनीता अभी आठवीं कक्षा में पढ़ती है । वह पाँच छोटी बहनों पिंकी, गुड्डी, बिन्नी, बबली, छुट्टन और एक नवजात भाई मुन्ना की सबसे बड़ी बहन है । सुनीता चार वर्ष की आयु से ही बच्चा एक्सपर्ट हो गयी और दस वर्ष तक पहुँचते-पहुँचते जच्चा एक्सपर्ट भी हो गयी । महतारी के सर पर कपड़ा बाँधने से लेकर जापे के लड्डू बनाना उसे भली प्रकार आता है । दस दिन के बच्चे को नहलाने से लेकर लंगोट बनियान बदलने, उसकी सरसों के तेल से मालिश करने और आँखों से लेकर कान के पीछे तक तानकर काजल लगाने में उसका कोई सानी नहीं । बच्चा जब दहाड़ मार-मार कर रोये तो सुनीता जानती है कि इस मोहल्ले में किस जलनखोर की नजर उसे लगी है और राई-नमक लाकर कैसे उसकी नजर उतारी जाती है । नींद में रोते-हँसते मुन्ने को देखकर वो सयानियों की तरह अपनी छोटी बहनों को बताती है, बेमाता सपने में हंसाती-रुलाती हैं । '

उसका कौशल देख कई बार तो माताराम डर जाती है कि अगले जापे में कहीं ये नर्स को हटाकर खुद ही अपने भाई बहन को न निकाल ले । सुनीता की माता एक न एक बच्चे को सदा दूध पिलाती रहती है और खाट पर पड़े पड़े चिल्लाती है ।

काये सुनीता...!'

सुनीता घर के किसी कोने से दूसरे किसी बच्चे को खिलाती, पिलाती, हगाती, मुताती वहीं से जोर से चिल्लाती है

'का है मम्मी! '

सुनीता की माता के पास बीस से पच्चीस कार्यों की सूची है जिनमे से उपयुक्त कार्य उसे चिल्ला कर आवंटित कर दिया जाता है । यथा- 'पापा को खाना परस दे', 'छोटी को बाहर युमा ला' 'मुन्ने की लँगोटियाँ धोकर डाल दे' 'दो कप चाय बना ला', 'मेरे सर पर बाम मल दे' बिन्नी की कॉपी पर कवर चढ़ा दे' 'दूध गैस पर चढ़ा दे' 'बगल की दुकान से चायपत्ती का पुड़ा ले आ' 'मुन्नी को दाल-चावल दे दे' आदि-आदि

सुनीता, हओ मम्मी' कहकर अपने कार्य में लग जाती है । सुनीता भाई-बहनों को

संभालते-संभालते आधी अम्मां बन बैठी है । कभी-कभी रोब भी गाँठ लेती है छोटी बहनों की मरम्मत भी कर देती है और ब्लैकमेल तो अक्सर ही करा करती है ।

पढ़ाई में सुनीता का मन कम ही रमता है । पिताजी की दिलचस्पी भी लड़की जात को पड़ाने में इतनी भर है कि अनपढ़ न कहलायें और ठीक-ठाक घर में सेट हो जाए । इसलिए कम नंबर आने या कभी-कभार चेंज के लिए फेल हो जाने से परिवार में किसी के माथे पर शिकन नहीं आती । सुनीता के माता-पिता जानते हैं हैं कि कर्क और मकर रेखा की जानकारी होने से दाल-बाटी-बूरमा बनाना नहीं आएगा या पौधों में क्लोरोफिल का कार्य अगर नहीं जान पाए तो उससे अच्छी बहू और बीवी बनने में कोई बाधा नहीं आएगी इसलिए मीडियों की पढ़ाई उतने भर काम की है कि जब लड़के वाले देखने आयें तो कह सकें, गहमाई मौड़ी हायर सेकंडरी पास है । ''

सुनीता तीन साल पहले तक भाई-बहनों को पालने के सारे कार्य खुशी-खुशी करती थी । पर अब उसकी सहेलियाँ उसका मजाक उडाने लगी हैं । उसकी सहेलियां जब सड़क पर खेलती-कूदती हैं तब सुनीता मुन्ने को कैयाँ लटकाए रहती है । जब उसकी सहेलियाँ इतवार की सुबह ठंडी रेत पर घर बनाती हैं तब सुनीता बिन्नी को दूध गरम करके दे रही होती है या बबली को ए बी सी डी' लिखना सिखा रही होती है ।

अब सुनीता माँ को गच्चा दे कर भाग उठती है और दो घर छोड़ बबीता के घर जाकर खेलने लगती है । सुनीता के एक घंटे ही घर से बाहर जाने पर घर में कोहराम मच उठा है । सारे बच्चे मिलकर घर में ऐसी दीदापेली मचाये हैं कि माँ को यकीन नहीं आ रहा है कि इस महा उत्पाती पलटन की निर्मात्री वह स्वयं है । छुट्टन को भूख लगी है और वह ऐसे पैर पटक रही है मानो इसी क्षण खाना न मिला तो धरती के दोफाड़ कर देगी, मुन्ने ने लैट्रिन कर रखी है और उसी अवस्था में बार बार बिस्तर पर खिलखिलाता हुआ लोटपोट हो रहा है । सूखी लंगोटियां कहीं रखी हैं, यह सिर्फ सुनीता जानती है । बबली ने सूखे कपड़ों पर एक जग पानी उलट दिया है जिससे अति आनंदित होकर वह अन्य सूखे कपड़ों की तलाश में अलमारी के हैंडल को खोलने की कोशिश में जी जान से भिड़ी है और बिन्नी रो-रो कर अपनी मम्मी के प्राण खा रही है क्योंकि ड्राइंग की कॉपी में उससे हाथी की सूँड सही से नहीं बन पा रही है । दो कमरों का घर भिन्डी बाजार में तब्दील हो चुका है । इस धमैये से परेशान माता सारे धर में सुनीता को न पा गले की पूरी नसें फुलाकर चिल्लाती है,

काये सुनीता, कहाँ मर गयी?'

माता की दहाड़ दो घर की दीवारों को लीयती हुई बबीता के घर पहुँचकर सुनीता के कानों में बम की तरह फूटती और सुनीता भी अपने घर की ओर फूट लेती ।

सुनीता को कभी-कभी अपने भाई बहनों से बहुत चिढ़ होती है । खासकर जब पिंकी उसकी क्लास में धूल सनी और नाक पोंछती बिन्नी या बबली को यह कहकर छोड्‌कर चली जाती है कि 'मम्मी ने पहुंचाया है, इसे भी बिठा लो, घर में परेशान कर रही है । '

सुनीता को स्कूल में भी चैन नहीं है । सिर्फ वही जानती है कि वह स्कूल पढ़ने नहीं बल्कि इस सर्कस से कुछ घंटों के लिए निजात पाने आती है और यहीं भी ये कमबख्त भाई बहन उसे चैन नहीं लेने देते । मास्टरनी ने बस हाजिरी रजिस्टर में सुनीता की बहनों के नाम नहीं चढ़ाये हैं वरना वे भी उन बहनों को अपनी क्लास का एक खेलता खाता हिस्सा स्वीकार कर चुकी हैं । उन बहनों को मास्टरनी एक चॉक पकड़ा देती हैं और बिन्नी या बबली उस से कमरे के एक ओर पत्थर के फर्श पर गोदागादी करा करती हैं । सुनीता को बीच में एकाध बार उन्हें सूसू कराने जाना पड़ता है । दो या तीन भाई बहनों के छोटे परिवार वाली सखियाँ सुनीता का बहुत मजाक उड़ाती हैं । एक लड़की मंजुला तो यहाँ तक कहती है कि

बिन्नी और बबली पहले आठवीं पड़ेंगी उसके बाद पहली क्लास में एडमिशन कराएंगी'

कुल मिलाकर सुनीता अपने इस कार्य को अत्यधिक नापसंद करती है या जब-जब सुनीता की कोई सहेली घर पर आती है और दोनों छत पर बैठी गप्पें मार रही होती हैं तब मम्मी पिनपिनाते मुन्ने को उसकी गोद में जबरदस्ती पटक कर चली जाती हैं कि 'ले! तू ही चुप करा, तुझसे ही चुप होगा । ' तब सुनीता को मुन्ने से बड़ा दुश्मन कोई नजर नहीं आता ।

जब सुनीता इस बच्चा संभालने के काम से बुरी तरह चिढ़ जाती है तब गुस्से में आकर मुन्ने को नोच लेती है और रोते चीखते मुन्ने को माँ के पास बिस्तर पर पटक जाती है । कभी गुस्से में छोटी बहनों को सूत देती है । कभी मुन्ने की गन्दी लँगोट बिन्नी के सर पर फेंक कर भाग जाती है । सुनीता बदतमीज होती जा रही है ।

माँ सुनीता की हरकतें देखकर सुनीता की शिकायत पापा से करते हुए कहती है, 'जे

सुनीता जैसे-जैसे बड़ी हो रई, बैसे-बैसे ढीठ हो रई'

रोज-रोज की शिकायतों से तंग आकर पापा भी गुस्से में चिल्लाते हैं,

काये सुनीता...!'

और जब सुनीता सर झुकाए सामने आकर खडी हो जाती है तब पापा उसे फुसलाते हुए कहते हैं –

'सुनीता! तू तो समझदार है न । समझा कर थोड़ा । मम्मी थोड़े दिन बाद सब काम कर लेगी । थोड़े दिन और देख ले बस । '

सुनीता मन ही मन कहती है, 'हे भगवान! अब मेरी मम्मी को सारे मरे बच्चे देना' और सर हिलाते हुए वहाँ से चली जाती है ।

वह अपनी सबसे पक्की सहेली राशि से एक दिन कहती है,

'मुन्ने के बाद मेरा और कोई भाई-बहन हुआ तो क्या होगा राशि? '

राशि उसे बड़ी दृष्टियों की तरह समझाती हुई कहती है,

'नहीं अब नहीं होगा । मुन्ना लड़का है ना! सबको एक लड़का ही चाहिए होता

सुनकर सुनीता कुछ राहत की साँस लेती हैं । मगर उसकी राहत की ऐसी-तैसी दो ही दिन बाद हो जाती हैं जब वह अपनी दादी को माँ से कहते सुनती हैं, 'अब एक बार और चांस ले लेना, दो लड़के हो जायेंगे तो अच्छा रहेगा । ' सुनीता की मम्मी जिसकी अब बच्चे पैदा करना हॉबी बन चुकी है, लजाते हुए ही में सर हिलाती हैं ।

सुनीता को उस दिन जीवन में पहली बार चक्कर आता है ।

सुनीता वह रात जागते हुए बिताती हैं और निश्चय करती हैं कि वह कभी भी दो से ज्यादा बच्चे पैदा नहीं करेगी । दो सेकण्ड बाद ही वह और भी दृढ़ निश्चय करती हैं कि वह एक भी बच्चा पैदा नहीं करेगी । बचपन से ही छह बच्चे पाल-पाल कर उसे बच्चा पालन से खासी नफरत हो गयी है ।

वर्ष 2002

अब सुनीता बड़ी होने लगी है । सत्रह साल की हो गयी है । मुन्ने के बाद माँ दो बार गर्भवती हुई मगर सुनीता की दुआ रंग लायी और दोनों बार उपहार बिना डिलीवर हुए वापस ऊपर चले गए । अब बाकी की बहनें भी थोड़ी बड़ी हो गयी हैं । सबसे छोटी बहन और मुन्ना को छोड़ सभी अपने काम स्वयं कर लेती हैं मगर अभी भी वे अपनी ँनुरूरतों के लिए सुनीता का ही मुँह ताकती हैं, चाहे ड्रेस पर प्रेस करनी हो, चाहे स्कृल की फीस भरनी हो या चाहे खजूर चोटी करवानी हो ।

माँ को भी अब मजबूरी में जच्चा सीट छोड़कर काम में लगना पड़ा है । माँ रसोई का काम देख लेती है मगर जब भी बच्चे संभालने की बारी आती है तो माँ चिल्लाती है काये सुनीता!'

और जवाब में सुनीता खीजकर कहती हैं,

हओ मम्मी'

सुनीता ने दसवीं कर लिया हैं । गाँव का स्कूल बारहवीं तक हैं । अभी वह दो साल और पढ सकती हैं, ऐसा पिताजी कहते हैं । इसके बाद वे लड़कियों को कॉलेज भेजने के पक्ष में नहीं हैं और सुनीता को तो सरकार से यही एक शिकायत है कि दसवीं तक ही स्कूल भला था, क्या जरुरत थी उसे बारहवीं तक बढ़ाने की । कौन सा तीर मार लेना है दो क्लास और पढ़ के । सुनीता अब सजने सँवरने लगी है । मुहब्बत वाला हार्मोन भी सही समय पर सक्रिय हो गया है ।

वर्ष 2008

सुनीता के विवाह की बात जोरों पर चल रही है । इन छ: वर्षो में सुनीता अनचाहे ही मुन्ने और सबसे छोटी छुट्टन की माँ बन गयी है । पैदा करने और स्तनपान कराने के अलावा मुन्ने और छुट्टन की परवरिश उसी के हाथों हुई है । मगर अब भी उसे अपने बच्चे पैदा करने से सख्त चिढ़ है और वह इस निश्चय पर कायम है कि खुद के बच्चे पैदा नहीं करेगी । उसके पहले और दूसरे प्रेमी को उसके इस निश्चय और बच्चा पालन से नफरत के विषय में कुछ नहीं पता था और इसी अज्ञानता के चलते ही असमय ही उनका प्रेम काल कवलित हुआ।

हुआ यूं कि जब सुनीता अठारह की हुई तब उसे धर्मेन्द्र से मुहब्बत हो गयी । धर्मेन्द्र भी सुनीता को दिल-ओ-जान से चाहता था। मुलाकातों के सिलसिले के दौरान एक दिन पार्क में धर्मेन्द्र दूसरे प्रेमियों की देखा-देखी बच्चों की तरह सुनीता की गोद में सर रखकर लडियाने लगा और तुतलाकर बात करने लगा । सुनीता ने जैसे ही इतने बड़े घोड़े के मुँह से सुना मेली छुनीता वह उसका यह शिशु-रूप देख गुस्से से फुफकार उठी और फिर जो उसका सर अपनी गोद से लुढ़काकर वहीं से भागी कि फिर धर्मेन्द्र के लाख पौरुष दिखाने पर भी वापस नहीं लौटी। इस प्रकार उसी पार्क की बेंच पर बैठे बैठे ही धर्मेन्द्र की मुहब्बत की ठठरी बँध गयी ।

बीस वर्ष की उम्र में सुनीता को दूसरी बार चंदू से मुहब्बत हुई। चंदू हर लिहाज से अच्छा था और ठीक-ठाक कमाता भी था। सुनीता उसके साथ शादी कर घर बसाने के सपने देखने लगी थी पर वह निपट मूर्ख, अज्ञानी, अबोध... नहीं जानता था कि सुनीता के घर बसाने के सपने में बाल-गोपाल शामिल नहीं थे। एक दिन समय ने पलटा खाया और वह भावावेश में सुनीता से कह बैठा,

'सुनीता! अपने ढेर सारे नन्हे-नन्हे बच्चे होंगे और उनकी किलकारियों से हमारा गन गूँज उठेगा'

एक तो बच्चे, ऊपर से ढेर सारे! सुनते ही सुनीता का दिमाग सटक गया। उसके दिमाग में पिछले बीस साल की लंगोटियां, दूध की बोतलें, दिन-रात की कीय-कीय और बच्चों की मुतरांध से सनी अपनी फ्रोके ताजा हो गयी। वह बिना कुछ कहे चंदू का हाथ छुडाकर जो सरपट भागी तो चंदू आज तक नहीं समझ पाया कि आखिर उससे क्या भूल हुई?

फिर सुनीता को किसी से मुहब्बत नहीं हुई। वह शान्ति से घरबार और भाई-बहनों को संभालती अपने लिए योग्य-वर का इंतजार करने लगी। अब जैसा कि पहले बताया कि सुनीता के विवाह की चर्चा बहुत जोर-शोर से घर में चल रही है।

वर्ष 2०16

अब सुनीता तैंतीस वर्ष की हो गयी है। उसका विवाह हुए नौ वर्ष हो गए हैं। सुनीता अपने तीसरे बच्चे को लिए जच्चा-वार्ड से अभी-अभी घर लौटी है। घर पहुँचते ही बिस्तर पर सबसे छोटे बेटे को दूध पिलाते हुए उसने आवाज लगाई है –

'काये तपस्या. ..'

'क्या है मम्मी. .?' अपनी पतली सी आवाज में चिल्लाती हुई छह साल की तपस्या अपनी गोदी में दो वर्ष की चिंकी को लादे हुए सामने आकर खड़ी हो गयी है। इधर सुनीता अपनी ननद से खुश होकर कह रही है, 'मौड़ा हमेशा दूसरे या तीसरे नंबर पर ही होना चाहिए। पहली मौड़ी हो तो एकदम माँ की तरह बच्चे संभाल लेती है। '

--

पल्लवी त्रिवेदी के हास्य-व्यंग्य संकलन - अंजाम ए गुलिस्तां क्या होगा से साभार

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: परसाई हास्य-व्यंग्य पखवाड़ा / काये सुनीता / व्यंग्य / पल्लवी त्रिवेदी
परसाई हास्य-व्यंग्य पखवाड़ा / काये सुनीता / व्यंग्य / पल्लवी त्रिवेदी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEidqdV8FXesk-EhsGrzPdu5eAitmlKFg1CC3PuTOZEuAt2hfAVr6R7FIuRV01XRuVl3iVrDpwSFRnCffIbg_31fM8z2TIofv3gh-DtSHQr_e6QMjS4maWVWckOMgTXB_-j3ie7C/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEidqdV8FXesk-EhsGrzPdu5eAitmlKFg1CC3PuTOZEuAt2hfAVr6R7FIuRV01XRuVl3iVrDpwSFRnCffIbg_31fM8z2TIofv3gh-DtSHQr_e6QMjS4maWVWckOMgTXB_-j3ie7C/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/08/blog-post_84.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/08/blog-post_84.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content