( परसाई व्यंग्य पखवाड़ा - 10 - 21 अगस्त के दौरान विशेष रूप से हास्य-व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन किया जा रहा है. आपकी सक्रिय भागीदारी अपेक...
(परसाई व्यंग्य पखवाड़ा - 10 - 21 अगस्त के दौरान विशेष रूप से हास्य-व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन किया जा रहा है. आपकी सक्रिय भागीदारी अपेक्षित है. )
आईये, मि0 घूसखोर से घूसखोरी की कला सीखें।
व्यंग्य
अशोक जैन पोरवाल
{आईये, घूसखोरी (रिश्वतखोरी) की कला के कदरदानों ! जैसा कि हम-आप सभी जानते हैं, कि वर्तमान में यह कला सबसे महत्वपूर्ण एवं सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस कला का हमारे देश में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व मं जितनी तेजी से विकास हुआ है, उतना और किसी कला का नहीं हुआ। इस कला के बारे में विस्तार से समझने के लिए अभी हाल ही में एक आम - आदमी द्वारा झूठ-मूठ का घूसखोर बनकर मि0 घूसखोर जी से लिए गए निम्न साक्षात्कार को पढ़ना होगा। तभी हम घूसखोरी की महिमा..... इस की गरिमा को समझकर उसे नमन कर सकेंगे।}
(झूठ-मूठ घूसखोर बना आम-आदमी):- नमस्कार घूसखोर जी सर! मैं एक असफल घूसखोर हूँ। प्लीज बुरा मत मानियेगा। मैं भी आपकी तरह एक सफल घूसखोर बनना चाहता हूँ। मैं आपको अपना गुरू बनाना चाहता हूँ। मुझे अपनी शरण में ले लीजिये। कृपया इंकार मत कीजिये। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपके द्वारा मुझे इस संबंध में बतलाई गई सभी बातों को मैं पूर्णतः गुप्त रखूंगा।
मि0 घूसखोर :- ठीक है अच्छा चलो पूछो क्या पूछना चाहते हो ?
आम-आदमी :- प्रायः अन्य सभी तरह के कलाकारों को उनके सहज एवं स्वाभाविक व्यक्तित्व से आसानी से पहचाना जा सकता है। क्योंकि वे सभी मुखौटा नहीं लगाते हैं। घूस खोरों को कैसे पहचाना जा सकता है ?
मि0 घूसखोर :- घूसखोरों को पहचानना बड़ा ही मुश्किल काम है। क्योंकि वो जैसा है, वैसा तो दिखता ही नहीं है। बल्कि उसके विपरीत दिखता है.....वो हमेशा मुखौटा लगाकर ही रहता है।
आम-आदमी :- प्रायः सभी कलाकारों की कलायें उनके नियमित अभ्यास पर टिकी रहती हैं अर्थात् कला से ही 'कलाकारी' जुड़ी होती है। आपकी इस घूसखोरी की कला किस से जुड़ी हुई है ?
मि0 घूसखोर :- घूसखोरी की कला घूसखोरों की 'कलाबाजी'से जुड़ी होती है। यह एक प्रदर्शनकारी कला होती है। जो कि घूसखोरों के अपने-अपने परफॉमेंस पर टिकी होती है।
आम-आदमी :- क्या इस कला को सीखने के लिये किसी गुरू की आवश्यकता होती हैं ?
मि0 घूसखोर :- नहीं, इसे सीखने के लिये किसी गुरू की आवश्यकता नहीं पड़ती है बल्कि किसी मलाईदार सरकारी विभाग की एक मलाईदार कुर्सी (पद) की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि वो कुर्सी ही उसकी 'गुरू'...उसकी 'माई-बाप'....उसकी 'बधुं'... उसकी सखा उसका भगवान होती है।
आम-आदमी :- इस कला को सीखने के लिये घूसखोरों को किन-किन विषयों (सब्जेक्ट्स) की जानकारी होना आवश्यक हो जाता है ?
मि0 घूसखोर :- इस कला को सीखने के लिये कई विषयों की जानकारी होना आवश्यक हो जाता है। जैसे - घूस देने वाला व्यक्ति समाजिक प्राणी है ? या गुण्डा- मवाली है ?....तिकड़म बाज है या उठाई गिरा ? इस प्रकार की जानकारी के लिये 'समाज शास्त्र' का अध्ययन काम आता है। घूसखोरी में मिलने वाली राशि (नोटों की गड्डियां) बिना छुए मन ही मन देखकर उसकी गणना कर जो अंदाज लगाया जाता है वो 'अर्थशास्त्र' से ही सीखा जाता है। घूस देने वाले व्यक्ति के हाव-भाव को...उसकी औकात का अंदाजा 'मनोविज्ञान' विषय से सीखा जाता है। 'राजनीति शास्त्र' के माध्यम से यह जाना जा सकता है कि घूस देने वाले व्यक्ति की राजनीतिक क्षेत्र में क्या औकात है ? यानि कि वो सत्ता पार्टी का है ? अथवा विपक्ष का ? छुट भईया नेता है ? अथवा किसी का चमचा ? कला-संकाय के इन विषयों के अतिरिक्त 'कैमिस्ट्री' (रसायन शास्त्र) की जानकारी होना भी तब आवश्यक हो जाता है। जबकि घूस देने वाले ने कहीं नोटों की गड्डियों मे रसायन पाउडर तो लगा नहीं दिया ? जिसके कारण वो घूस लेते समय रंगे हांथों पकड़ा जाये।
आम-आदमी :- घूसखोरी की 'उपाधि' में और कला संकाय (आर्टस्) की डिग्री (एम. ए.) दोनों में कौन-कौन सी समानताएं होती हैं ?
मि0 घूसखोर :- जिस प्रकार की कला संकाय की उक्त डिग्री लेने में भी छुरा-चाकू निकालकर नकल करने में हिम्मत की जरूरत होती है। ठीक उसी प्रकार इस घूसखोरी की उपाधि में भी घूस मांगने की हिम्मत होनी चाहिये। जिस प्रकार नकल की पर्चियों को पकड़े जाने पर उन पर्चियों को अपने मुख में डालकर निगलना आना चाहिये। ठीक उसी प्रकार घूसखोरी में मिली रकम को भी बिना डकार लिये निगलना आना चाहिये। बस ये दो मुख्य समानताएं होती है दोनों में।
आम-आदमी :- अपवाद स्वरूप घूस लेते हुए कुछ मूर्ख लोग पकड़े भी जाते हैं। इस संबंध में आपका क्या कहना है ?
मि0 घूसखोर :- माना कि कुछ अनाड़ी किस्म के लोग घूस लेते समय पकड़े भी जाते हैं तो क्या हुआ ? वो घूस में मिली रकम से कई गुना अधिक रकम देकर छूट भी तो जाते हैं। ओर फिर आम आदमी को दिखलाने के लिये कुछ को तो पकड़ना ही पड़ेगा। नहीं तो पकड़ने वालों का सरकारी विभाग बंद न हो जायेगा ?
आम-आदमी :- घूसखोर जी अंत में आप घूसखोरों के लिये क्या संदेश देना चाहते हैं ?
मि0 घूसखोर :- भई मैं तो तमाम उन घूसखोरों को यही संदेश देना चाहता हूँ कि किसी भी देश के विकास की नींव चार प्रमुख खम्बों पर टिकी रहती है। नेता, अफसर, ठेकेदार और दलाल। अपवाद स्वरूप इनमें से कुछ लोगों को छोड़कर प्रायः सभी लोग रोटी की जगह घूस ही खाते हैं और पानी की जगह घूस ही पीते हैं। अतःजब तक ये चारों ऐसा ही करते रहेंगे तब तक घूसखोरी भी ऐसी ही चलती रहेगी। इसलिये हम सभी घूसखोरों का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि इस कला को कभी भी आंच न आने दें और इसे निरंतर विकास की राह पर ले जायें। फिर भले ही क्यों ना इसके मार्ग में कई तरह के सरकारी कानून रूकावट बन कर सामने आयें।
आम-आदमी :- प्रथम, तो मैं तो आपको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूँ कि आपने इस घूसखोरी की कला के संबंध में इतनी महत्वपूर्ण जानकारी दी। द्वितीय, मैं तुझे बतलाना चाहता हूँ कि मैं कोई असफल घूसखोर नहीं बल्कि एक जिम्मेदार आम आदमी हूँ और मैंनें तेरी यह सभी बातें 'हाईटेक-टैक्नोलॉजी' के माध्यम से 'भ्रष्टाचार उन्मूलन कार्यालय' में संबंधित सबसे बड़े अधिकारी को ऑटोमैटिक टेप के माध्यम से उन्हें रिकॉर्ड भी करवा दी है। बस, अब इंतजार है तेरे खिलाफ घूसखोरी (रिश्वतखोरी) के नये पुराने सबूत मिलने की। जैसे ही वे सबूत मिले वैसे ही जेल में सड़ने के तेरे दिन आये, मि. घूसखोर।
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संपर्क:
अशोक जैन 'पोरवाल' ई-8/298 आश्रय अपार्टमेंट त्रिलोचन-सिंह नगर
(त्रिलंगा/शाहपुरा) भोपाल-462039 (मो.) 09098379074 (दूरभाष) (नि.) (0755) 4076446
साहित्यिक परिचय इस लिंक पर देखें - http://www.rachanakar.org/2016/07/blog-post_59.html
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