( परसाई व्यंग्य पखवाड़ा - 10 - 21 अगस्त के दौरान विशेष रूप से हास्य-व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन किया जा रहा है. आपकी सक्रिय भागीदारी अपेक्...
(परसाई व्यंग्य पखवाड़ा - 10 - 21 अगस्त के दौरान विशेष रूप से हास्य-व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन किया जा रहा है. आपकी सक्रिय भागीदारी अपेक्षित है. )
'रिश्वतखोरी' मेरी सगी बहिन हैं 'काला धन' मेरा सगा भाई हैं। 'दलाली' और मिलावटखोरी' मेरी दो बेटियाँ हैं। 'कालाबाजार' और 'कमीशनबाज' मेरे दो बेटे हैं। 'चाटुकारिता' मेरा इकलौता साला हैं। नेता, अफसर, ठेकेदार, उद्योगपति और बड़े व्यपारी पाँचों मेरे जिगरी-दोस्त हैं। माया मेरी माँ हैं। 'लालच' मेरा बाप हैं। 'चाहत' मेरी पत्नी हैं, 'अभिलाषा' मेरी साली। मलाईदार कुर्सी मेरी ससुराल है। शोषण करना मेरा धर्म हैं। भ्रष्टेश्वरनाथ बनना , मोक्ष प्राप्त करने के समान मेरी मरी हुई आत्मा की अंतिम मंजिल हैं। भ्रष्ट होना हमारी नियति हैं।
स्वर्गलोक में बिराजे सभी देवी-देवताओं को यूँ तो करीब सौ-सवा सौ सालों से पृथ्वीलोक के कुछ देशों में एक नए ईश्वर के अवतार लेने की जानकारी मिल चुकी थी। जिसे पृथ्वीलोक के भक्तगण 'भ्रष्टेश्वरनाथ'.......'भ्रष्टेश्वर-महाराज'....'भगवान-भ्रष्टेश्वर' आदि नामों से पुकारते हैं। किंतु, पिछले 64 सालो से पृथ्वीलोक में भक्तों की आबादी के हिसाब से दूसरे नम्बर पर आने वाले सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देश भारतवर्ष में जब चारो ओर......दिन-रात सिर्फ भगवान भ्रष्टेश्वरनाथजी के ही गुण-गान होने की जानकारी मिली तो स्वर्गलोक के सभी देवी-देवताओं की रातों की नींद और दिन का चैन गायब हो गया और उन्हें यह डर सताने लगा कि कहीं पृथ्वीलोक पर सदियों से चला आ रहा उनका प्रभुत्व......उनका आस्तित्व भी समाप्त न हो जाये? 'स्वर्गलोक के देवी-देवताओं ने नागवेश्वर...........रामेश्वर.........महेश्वर...........राजेश्वर आदि 'वरों' के नामों के बारे में तो सून रखा था किन्तु भ्रष्टेश्वरनाथों के बारे में अंजान होने के कारण उसे जानने की जिज्ञासा हुई। लिहाजा, सभी ने मिलकर नारदजी को पृथ्वीलोक में भारतवर्ष जाने का आदेश दिया। ताकि वे वहाँ जाकर भ्रष्टेश्वरनाथों का पूरा कच्चा-पक्का चिट्ठा लाकर दे सके। तद्नुसार नारदजी चल पड़े हिन्दुस्तान की ओर।
नारदजी ने सबसे पहले उत्तर-भारत..... उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया। वहाँ उन्होंने देखा कि यहाँ तो मृत लोगों की नहीं बल्कि, जिंदा नर-नारियों की मूर्तियाँ भी स्थापित कर दी गई हैं। संसारिक माया कि जिंदा नारी मायादेवी की......मायाचारी अम्मा की भी। नारदजी अपने अर्न्तमन से तुरंत ही समझ गए कि जरूर संसारिक माया-मोह ने ही भ्रष्टेश्वरनाथों को जन्म दिया होगा ? नारदजी वहाँ से सीधे देश की राजधानी दिल्ली के एक बड़े से भव्य और भयंकर 'भ्रष्टेश्वरनाथोंजी' के मंदिर में पहुँचे। उन्होंने वहाँ देखा कई भ्रष्टेश्वरनाथों की भव्य मूर्तियाँ विराजमान थी......कई छोटी-बड़ी मूर्तियाँ मंदिर में विराजमान होने में स्थानाभाव होने के कारण कतार में लगी हुई थी....तो कई मूर्तियाँ विपक्षों की तरह यहाँ-वहाँ बिखरी हुई पड़ी हुई थी। सभी मूर्तियाँ एक-दूसरे से भिन्न थी। और भिन्नता का कारण था, उस 'भ्रष्टेश्वरनाथ' की अपनी पोजिशन। जिससे क्षैत्रियता....भाषावाद...जातिवाद......वेशभूषा.....अमीरी आदि का महत्वपूर्ण योगदान था। किंतु, उन सभी मूर्तियों में एक बात समान थी। और वो थी, सभी मूर्तियों में अपने भ्रष्टपने के कारण भरी हुई सी उनकी आत्माएँ। यानिकि सभी की आत्माएँ भ्रष्टाचार की एक ही थाली की चट्टी-बट्टी थी। चोर-चोर मोसेले भाई वाली स्टाईल में ।
नारदजी ने एक बड़ी सी लम्बी-चोड़ी एवं काली-कलूटी आत्मा को अपना पूरा-परिचय दिया। साथ ही स्वर्गलोक से यहाँ भारतवर्ष में आने का अपना मकसद भी बतलाया। जिसे सुनकर उस मरी हुई आत्मा की जान में जान आई और फिर निर्भिक होकर नारदजी के प्रश्नों का उत्तर देने लगी। कुछ इस तरह से -
नारद : तुम्हारे भारतवर्ष में सभी भ्रष्टेश्वरनाथों जी के मंदिर इतने अधिक.....इतने भव्य और उतने ही भंयकर क्यों और कैसे बनते हैं ?
भ्रष्टेश्वर की आत्मा : चूंकि ऐसे मन्दिरों में सभी लोगों की आस्था होती हैं इसलिए सभी लोग खूब सारा चंदा देते हैं। यही नही कुछ ईमानदार किस्म के नास्तिक प्राणी जो श्रद्धा नहीं रखते हैं, उनसे जबरदस्ती डरा धमकाकर चंदा वसूल कर लिया जाता हैं।
नारद : भ्रष्टेश्वरनाथजी की मरी हुई आत्मा जी। कृपया अपने परिवार.....कुनबे के बारे में बतलाईये ?
..... नारद : आपकी कौम-बिरादरी.......वंशज पृथ्वीलोक में कहाँ-कहाँ हैं ?
......आत्मा : किसी भी देश की सरहदें हमें नहीं बाँध सकती हैं, इसलिए हमारे वंशज....... हमारी बिरादरी मुख्यतः एशिया, यूरोप, अफ्रिका, अमेरिका आदि के सभी देशों में हैं। यानिकी हमारी पूरी बिरादरी पूरे पृथ्वी लोक में हैं।
नारदः इतनी महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद भ्रष्टेश्वरनाथ की मरी हुई आत्माजी
थोड़ी देर बाद स्वर्ग लोक में पहुंचने के पश्चात् उन्होंनं कलयुगी भगवान भ्रष्टेश्वरनाथों का पूरा कच्चा-पक्का चिट्ठा देवों को सौंप दिया। और नारायण......नारायण कहते हुए गायब हो गये।
संपर्क:
अशोक जैन 'पोरवाल' ई-8/298 आश्रय अपार्टमेंट त्रिलोचन-सिंह नगर
(त्रिलंगा/शाहपुरा) भोपाल-462039 (मो.) 09098379074 (दूरभाष) (नि.) (0755) 4076446
साहित्यिक परिचय इस लिंक पर देखें - http://www.rachanakar.org/2016/07/blog-post_59.html
अशोक जी
जवाब देंहटाएंआपके व्यंग्य पढ़े।बधाई।एक अनोखी विधा के अनौखे लेखक।धन्यवाद।