( परसाई व्यंग्य पखवाड़ा - 10 - 21 अगस्त के दौरान विशेष रूप से हास्य-व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन किया जा रहा है. आपकी सक्रिय भागीदारी अपेक...
(परसाई व्यंग्य पखवाड़ा - 10 - 21 अगस्त के दौरान विशेष रूप से हास्य-व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन किया जा रहा है. आपकी सक्रिय भागीदारी अपेक्षित है. )
तीन हास्य - व्यंग्य
अशोक जैन पोरवाल
(1)
" मंदिर -मस्जिद की तलाश में "
-"राम-राम नमस्ते..." 70-75 वर्षीय एक मुस्लिम आदमी ने अपने दोनों हाथों को जोडते हुए कहा.
-" सलाम..." एक हिंदु व्यक्ति ने अपना एक हाथ ऊपर उठाकर उसका अभिवादन करते हूए उत्तर दिया.
-" मेरा नाम अब्दुल रहमान है,"
-" मेरा नाम रामलाल शर्मा है."
-" मैं कल अपने बेटे-बहू के साथ दूर के एक प्रदेश से यहां आया हूं . मेरे बेटे का नौकरी में यहां ट्रांसफर हुआ है. अभी हम लोग बेटे की कंपनी के गेस्ट हाऊस में रूके हुए हैं. मैं रोजाना कम से कम एक वक्त की नमाज तो मस्जिद जाकर पढ़ता हूं . यहां आसपास कोई मस्जिद है क्या? " रहमान ने शर्माजी से पूछा.
- " लगता है आपकी और मेरी यानी कि हम दोनों की उम्र ही एक नहीं है बल्कि हम दोनों की परिस्थितियां एवं मनोस्थितियां भी एक हैं. मैं भी यहां नया आया हूं . मैं भी आसपास में किसी मंदिर की तलाश में हूं , ताकि वहां जाकर भगवान के दर्शन कर सकू. ऐसा करते हैं, हम दोनों एक साथ चलते हैं , मंदिर और मस्जिद की तलाश में . रास्ते में हम दोनों का परिचय भी हो जाएगा. " शर्माजी रहमान साहब से बोले.
रास्ते में उन दोनों ने देखा-किराने की एवं खाने-पीने की चीजों की दुकानों पर बहुत अधिक भीड़ लगी है. सभी लोग जमकर खरीदारी कर रहे हैं. वे दोनों एक दुकान पर पहुंचे. दुकानदार एक परिचित गरीब-मजदूर से पूछ रहा था.
-" क्यों, तूने कल से होने वाले भारत बंद की तैयारी करते हुए कुछ नहीं खरीदा है क्या?
- "सेठजी! गरीब मजदूर बोला एक गरीब-मजदूर से क्यों मजाक करते हो?-" मैं तो रोजाना कमाने-खाने वाला हूं ..." मुझे तो बस आज की चिंता है. कल के लिए मैं कहां खरीद पाता हूं" -"गरीब मजदूर बोला. उसकी बातें सुनकर शर्माजी और रहमानजी दोनों के मुख से एक साथ निकल पड़ा , " तुम सही कह रहे हो भैया."
और फिर दोनों बेफिक्री से चल पड़े. एक दूसरे की मंदिर-मस्जिद की तलाश में.
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(2)
''घूर-घूर के न देख, घूर-घूर के.....''
शहर के एक थाने से सुबह से ही अपने 'वर्किंग-ऑवर्स' में थानेदार सा'ब लापता थे। हो सकता है, वे किसी नेता के पास 'जी-हुजूरी' करने गये हों ? अथवा हो सकता है किसी आरोपी की हालिया बड़े अपराध की बड़ी कानूनी धाराओं को अपनी चार्जशीट में छोटी/मामूली लगाने (बदलने) के संबंध में उससे 'सेटिंग' करने गये हों ? या फिर हो सकता है, वे अपने ऐरिये में अपनी बीवी को 'फ्री वाली' शॉपिंग कराने ले गये हों ? सच्चाई क्या है ? थाने में किसी को कुछ नहीं मालूम था। हॉ, कड़क थानेदार के लापता हो जाने के कारण मिली थोड़ी सी आजादी के कारण पूरे थाने में जश्ननुमा माहौल था। सभी छोटे-बड़े हवलदार बैठे-बैठे चने चबा रहे थे। जो कि थाने के बाहर खड़े हुए एक खोमचे वाले से 'फ्री' में उठाकर लाये गये थे। एक सीनियर हवलदार जिसे सभी लोग 'हैड सा'ब' पुकारते थे। उसके मोबाइल के एफ.एम. रेडियो पर एक पुराना फिल्मी गीत बज रहा था, ''मुड़-मुड़ के न देख, मुड़-मुड़के....।'' वहीं दूसरी ओर थाने के बाहर से एक गीत की आवाज सुनाई दे रही थी ''तेरा पीछा न छोड़ूंगा सोणिये....भेज दे चाहे जेल में...।''
अचानक एक बालिग सुन्दर एवं तेज तर्राट कन्या जिसका नाम मिस. नयनी था। एक मनचले बालिग लड़के का एक हाथ पकड़कर खींचते हुए लेकर आई और हैड सा'ब से बोली ''कुछ दिनों पहले ही मुझे मालूम पड़ा कि अभी हालही में पास हुए'' 'एन्टीरेप (दुष्कर्म विरोधी कानून) एक्ट के अंतर्गत किसी लड़के अथवा आदमी द्वारा किसी लड़की को घूर-घूर कर देखने अथवा उसका पीछा करने पर सजा का प्रावधान किया गया है। ये साला मुझे कुछ दिनों से घूर-घूर कर देख भी रहा था और मेरा पीछा भी कर रहा था। (फिर धीमे से मुस्काते हुए मन ही मन बोली एक बार भी मुस्कुराकर मुझे नहीं देखा)' इसलिये मैं इसे पकड़कर आपके पास लेकर आई हूँ। ताकि आप इसे उक्त कानून के अंतर्गत इसकी नानी और 'छटी' का दूध (जो कि इसने अपने बचपन में पिया था) दोनों याद दिला सकें।''
ऽ क्यों वे साले, क्या नाम है तेरा ?
ऽ सर, एन.एस. 'घूरे'
ऽ अंग्रेज की औलाद हिन्दी में पूरा नाम बता अपना ?
ऽ श्रीमान, मेरा पूरा नाम है, नयनसुख 'घूरे'
ऽ वाह क्या बात है ?.....जैसा नाम है, वैसा काम किया तूने। पूरी बाते सच-सच बता नहीं तो....
ऽ हुजूर, मैंने इस मिस को कभी-भी घूर-घूर के नहीं देखा। वो तो मेरी आंखें ही 'कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना' वाली स्टाईल की है। माय-बाप मैं सच कह रहा हूँ मेंने इस बाला को कभी-भी धरमेंदर पाँजी की फिल्मी स्टाइल में न तो कभी पीछा किया और न ही कभी उनका वो गाना गाया ''तेरा पीछा न छोडूंगा सोणिये....भेज दे चाहे जेल में''
ऽ देख तेरी वो मिस अब मोबाईल पर किसी से बातें करती हुइ थाने से बाहर निकल गइ हैं। तूभी जल्दी से निकल ले। किन्तु निकलने से पहले तुझे कोने में बैठे छोटे हैड सा'ब से मिलना पड़ेगा....निपटना-सुलझना पड़ेगा। हमारे थाने के कानून की विशेष धारा आर.. टी. आर. के अंतर्गत (आर.फॉर रिश्वत/टी. फॉर 'टेक' यानी लेना/आर. फॉर राईट यानि अधिकार) क्योंकि 'आर' विटामिन लेना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।''
तदानुसार नयनसुख ने अपने सरनेम 'घूरे सहित अपना सबकुछ वहॉ अर्पण कर दिया जो कि उसके पास था। फिर जमीन पर अपने नयन भिगाये....नयन बिछाये...चौकन्ना होकर थाने से बाहर निकल पड़ा कि फिर कभी कोई सुन्दरी उस पर घूर-घूर कर देखने और पीछा करने का आरोप न लगा सके।
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(3)
आईये, 'योगा-योगा' खेलें और बेचें
'दि इन्स्टीट्यूट आफॅ गेम ऑफ योगा एण्ड मार्केटिंग ऑफ योगा' के मालिक स्वामी योगीनंद 'देवा' जी 'योग से लेकर योगा' तक के सफर की सम्पूर्ण जानकारियॉ रखते है. वे अपनी सहज एवं व्यंग्यात्मक भाषा-शैली के माध्यम से योग से सम्भावित वर्तमान में प्रचलित अज्ञानता भरे विवादों का अपनी इस इन्स्टीट्यूट में एक कम्पनी विशेष के अडंर गारमेन्ट पहने हुए ''बड़े ही आराम से'' समाधान कर देते है. उदाहरणतः मास्को टाइम्स की एक रिर्पोट (28 जून 2015) को ही लीजिये. उस रिपोर्ट के अनुसार रूस ने योग को 'जादु-टोना' बतलाते हुए इस पर पूर्णतः रोक लगा दी है. इस संबंध में स्वामी जी का कहना है, कि
''हॉ योग चमत्कार रूपी एक जादु है. जिससे कि तन और मन दोनों की चमत्कारी ढंग से शुद्धि होती है. चॅूकि रूस की मानसिकता टोना-टोटका जैसे अधंविश्वासों से भरी हुई है. इसलिए उन्हें योग भी वैसा ही दिखता और लगता है.''
वे अपने इस इन्स्टीट्यूट में योगा-योगाा' खिलाते हुए उसे सिखाते है. ताकि 'सूर्य नमस्कार' करने वाले भी खुश और 'चन्द्र-सलाम' करने वाले भी खुश. 'जादु' कहने वाले भी खुश और 'चमत्कार' कहने वाले भी खुश. यानि 'तू' भी खूश और 'मैं भी खुश. तन-मन भी खुश और धन भी खुश.
विशाल स्टुडियोंनुमा बने उक्त इन्स्टीट्यूट का आज उद्घाटन था, लिहाजा, वहॉ आमंत्रित और बिना आमंत्रित नवयुवको से लेकर वृद्धो तक की भीड़ लगी हुई थी. पंडित जी द्वारा किये गए पूजा-पाठ एवं हवन के पश्चात कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा सभी लोगों को प्रसाद स्वरूप थोड़ा सा नाश्ता दिया गया. तद्पश्चात स्वामीजी के आग्रह पर योगा से सम्बंधित निम्न प्रश्न लोगों द्वारा क्रमशः पूछे जाने लगे. जिनका वे उत्तर भी देते जा रहे थे.
योग में 'सूर्यनमस्कार' और उसके इतिहास के संबंध में स्वामीजी बतलाने लगे, '' ऋग्वेद, पंतजलि एवं गोरखनाथ की हठयोग परम्पराओं में भी सूर्य-नमस्कार वाली योग क्रिया को पूजा के रूप में मान्यता नही दी गई थी. यानि कि सूर्य-नमस्कार को किसी भी धर्म की धार्मिक क्रिया नही माना गया. हॉ उसे करते हुए 'ऊॅ' की ध्वनि निकालना अवश्य ही एक मांगलिक एवं धार्मिक उपचारण होता है. वर्तमान में प्रायः अधिकांश स्थानों पर सूर्यनमस्कार खुले आसमान के नीचे कराने की अपेक्षा बंद कमरों/हॉलों (यहॉ तक कि एयर कंडीशनल स्टुडियों) में किया अथवा करवाया जाता है. जहॉ पर कि 'सूर्य' के दर्शन ही नहीं होते हैं. फिर क्यों आप इसे 'सूर्य-नमस्कार' का नाम देते है? भईया मुझे तो अपनी इंस्टीट्यूट चलानी है, इसलिए मैनें इस विवाद से बचने के लिए 'सूर्य' और 'चन्द्रमा' दोनों की छवि काले कृत्रिम ग्रह डिजाइन करवा कर बनवा लिए हैं. अब जिसे बेचारे सूर्य ग्रह से एलर्जी है......जलन है......दुश्मनी है. उनके लिए मैंने 'चंद्र-नमस्कार' नायक एक अलग ही कक्ष बनवा लिया है. ताकि दोनों तरह के नमस्कार करने वाले खुश होकर उक्त यौगिक क्रिया करके उसका लाभ ले सकें.''
प्राचीन भारतीय संस्कृति का 'योग' विदेश जाकर 'योगा' कैसे बन गया? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए स्वामीजी बोले,
''भईया, इस संबंध में जहॉ तक मेरा मानना है. पाश्चात्य-संस्कृति एवं सभ्यता में बहुत सी धारणाऍ एवं बातें हमारी संस्कृतियों एवं धारणाओं की उल्टी-सीधी नकल करते हुए...........उसे अपने हिसाब से एडजेस्ट करते हुए........उसमें जर्बदस्ती 'अ' का डंडा (मात्रा) लगाते हुए......टांगे अड़ाते हुए उसमें विदेशी-सभ्यता का ठप्पा भी लगा देते है. जैसे-अशोक की जगह 'अशोका', देव की जगह 'देवा' इसी तरह योग को 'योगा' बना दिया गया.''
समान्यतः योगा किया जाता है, किंतु, आपकी इस इंस्टीट्यूट में एक गेम की तरह 'योगा-योगा' खेला और खिलाया जाता है, ऐसा क्यों? इस संबंध में स्वामीजी मुस्कुराते हुए उत्तर देने लगे, ''जहॉ एक ओर तन की अग्नि को शांत करने के लिए 'काम-भौगियों' द्वारा 'काम-कला' को गॉड-गिफ्टेड, इंटरनेशनल, एवरग्रीन कम एवर-ब्लू एवं एनीटाईम खेले जाने वाला गेम समझा जाता है. वहीं दूसरी और तन और मन को एक दूसरे से जौड़ने के लिए......मन को पूर्णतः नियंत्रित करने के लिए योगकत्ताओं (योगियों) द्वारा अंतराष्ट्रीय स्तर पर योग किया जाता है. चॅूकि, अमेरिका सहित अनेक देशों में योगा बंद स्टुडियों (ए.सी.) में मधुर संगीमतय वातावरण में........मनोरंजनात्मक क्रियाओं सहित एक प्रकार से खिलाया ही जाता है. इसलिए मेरे इंस्टीट्यूट में भी 'योगा-योगा' खिलाने के साथ ही साथ इसकी मार्केटिंग भी सिखाई एवं करवाई जाती है. ताकि योगियों का तन और मन ही नहीं बल्कि धन भी खिल उठे. चमक उठे.''
'योगा' की 'मार्केटिंग' अथवा इक्का 'बाजारीकरण' कैसे किया जा सकता है? इस संबंध में स्वामीजी एक सेल्समेन की स्टाइल में समझाते हुए लगातार (बिना रूके) बोलने लगे, ''देखिये 'योगा- के क्षेत्र में हमारे देश में भी इसके व्यापार-व्यवसाय (मार्केटिंग) करने की असीमित सम्भावनाऍ है. यानिकि इससे अपार धन कमाया जा सकता है. सिर्फ अमेरिका में ही योग परिधानों (योग के समय पहनें जाने वाले वस्त्र) का सलाना बाजार 13 बिलियन डॉलर के लगभग है.
हमारे देश में भोपाल (म.प्र.) शहर में प्रथम अतंराष्ट्रीय योग दिवस (21 जून 2015) को 'गिनीज वर्ड बुक' में रिकार्ड बनाने के चक्कर में एक साथ एक ही स्थान पर लगभग 35 हजार देशी-विदेशी योगक्ताओं के लिए उतनी ही चटाईयॉ चाईना से आयातकर खरीदी गई. लगभग 35 मिनिट के योग कार्यक्रम के पश्चात् उन चटाईयों का क्या हुआ? इस संबंध में लोगों में काफी विरोधाभास रहा है, कोई कहता है, कि अधिकांश चटाईयॉ योग कार्यक्रम के छोटे से लेकर बड़े आयोजन कर्ताओं तक के घरों में पहॅुच गई? तो कोई कहता है, सरकारी कर्मचारियों के घरों में? तो कोई कहता है, कि योग करने के बाद अधिकांश योग कर्ता ही अपनी अपनी चटाईयों को अपनी निजी सम्पत्ति समझते हुए उसे उठाकर अपने-अपने घरों में ले गये. ताकि भविष्य में भी काम आती रहे. खैर साब में तो उस घड़ी का इंतजार कर रहा हॅू जब कोई व्यक्ति आर टी आई के अंतर्गत जनहित याचिका दायर करके चटाईयों की वास्तविक कीमत और उसे दिन का कुल खर्च जानने की कौशिश करेगा?''
इससे पहले कि स्वामीजी से अगला प्रश्न पूछा जाता. समयाभाव (स्थानाभाव) को देखते हुए स्वामीजी बोले, ''आपके शेष रहे प्रश्नों के उत्तर इस इन्स्टीट्यूट में प्रवेश लेने के बाद दिये जायेंगे. इसलिए आईये, ''योगा-योगा खेलम् और बेचम्'' के लिए और बोलिये, ''योगम् शरणम् गच्छामि''
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संपर्क:
अशोक जैन 'पोरवाल' ई-8/298 आश्रय अपार्टमेंट त्रिलोचन-सिंह नगर
(त्रिलंगा/शाहपुरा) भोपाल-462039 (मो.) 09098379074 (दूरभाष) (नि.) (0755) 4076446
साहित्यिक परिचय इस लिंक पर देखें - http://www.rachanakar.org/2016/07/blog-post_59.html
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