परसाई हास्य-व्यंग्य पखवाड़ा / मेरा तिरंगा कब ऊंचा होगा / व्यंग्य / हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन

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( परसाई हास्य-व्यंग्य पखवाड़ा - 10 - 21 अगस्त के दौरान विशेष रूप से हास्य-व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन किया जा रहा है. आपकी  सक्रिय भागीदारी...

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(परसाई हास्य-व्यंग्य पखवाड़ा - 10 - 21 अगस्त के दौरान विशेष रूप से हास्य-व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन किया जा रहा है. आपकी  सक्रिय भागीदारी अपेक्षित है.  )

मेरा तिरंगा कब ऊंचा होगा ?

व्यंग्य

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन

चारों ओर झालर की लाइट से जगमगा रहा था मेरा शहर । श्रावण का महीना । झूम झूम कर गिर रहे बारिश का मजा लेने शंकर जी कैलाश पर्वत से हमारे शहर की पसरी सड़कों पर , माता पारवती के संग विहार में लगे थे । इतनी चकाचौंध का कारण जानना चाहते थे भगवान । भारत की आजादी की वर्षगांठ का जश्न मनाने की तैयारी चल रही है भगवान , इस दिन लोग अपने देश का झंडा फहराते हैं , मिठाईयां बांटते हैं , नाचते गाते खुशी मनाते हैं । भगवान बोले – आजाद होने पर खुश होना , खाना पीना समझ में तो आता है , परंतु झंडा फहराने का क्या मतलब ? ये झंडा फहराकर अपनी समृद्धि दिखाते हैं । दुनिया को बताते हैं , हम आजाद हैं और हमारा झंडा , हमारी हरियाली , हमारे सुख , हमारी एकता , हमारी शांति और शौर्य का प्रतीक है । अरे वाह ! तब तो यह झंडा मजेदार होगा । उसे देखना चाहिए । अरे भगवान आप भी कहां लगे हो , श्रावण का मजा लो , उन्हे अपना काम करने दो ।

भगवान के दिमाग में झंडे घुस गया । वे सोचने लगे , एक झंडा कितना काम करता है । हमारे स्वर्ग में अनेक देवता मिलकर जितना काम करते हैं , कपड़े का एक झंडा यहां अकेले करता है । क्या यह किसी टेक्नालाजी का कमाल है या यहां के मनुष्यों ने इतनी तपोबल पैदा कर ली है कि किसी भी निर्जीव वस्तु से , कुछ भी काम करा सकते हैं । कौतूहल और आश्चर्य में डूबे शंकरजी , आजादी का जश्न देखने के लिए व्यग्र थे । दूसरे दिन सुबह से ही तैयार होने लगे । माता ने पूछा , तब बताया कि आजादी का जश्न देखने जा रहे हैं । भगवान से अपना हुलिया बदलने को कहते हुए समझाया कि वहां मजा लेना है तो आम जनता बनकर जाना , कोई काम उल्टा सीधा मत करना , जादा भीड़ भड़क्का में मत घुसना , अपने असली रूप में मत आना , खतरा लगे तो अदृष्य हो जाना । सारी समझाइस रटते रटते भगवान दन से पहुंच गए । एक स्थान पर बड़ी संख्या में भीड़ दिखी । सूटेड बूटेड लोगों को देखकर मन मे हीन भावना पनपने लगी । बैठने के लिए कहीं दूर पर जगह बनाने के लिए सोचने लगे । खोजते खोजते बड़े से मंच में एक भव्य कुर्सी पर नजर पड़ गई । थोड़ी देर के लिए भूल गए कि वे यहां जनता बनकर आये हैं , उन्हे लगा “ भगवान शंकर आ रहे हैं सोचकर लोगों ने इतना भव्य आसन लगाया होगा । दौड़कर धम्म से बैठ गए । जैसे ही बैठे , बंदूकधारी चार लोग पहुंच गए । भगवान को लगा पूजा करने आए होंगे , उन्होंने आंख मूंद ली और ध्यानस्थ हो गए । आंख खुली , तो अपने शरीर पर अनगिनत चोटों के निसान , फटे हुए कपड़े देखा । किसी काल कोठरी में बंद थे । अपने आप को सम्हाला , कपड़े बदल लिया , फिर वहीं हाजिर हो गए , पर अबकी बार कुर्सी पर नहीं बैठे , बल्कि छिपकर देखने लगे कि क्या क्या करते हैं लोग ? थोड़ी देर में एक सभ्य मनुष्य हाजिर हुआ , उसी के लगभग साथ में दूसरा भी तेजी से मंच पर चढ़ा । कुर्सी पर बैठने के लिए आपस में लड़ने लगे । थोड़ी देर लड़ने के बाद , चुपके से आपस में समझौता कर लिया । दोनों के बीच यह तय हुआ कि कुछ समय एक बैठेगा , फिर कुछ समय के लिए दूसरा बैठेगा , जब दोनों चूकने लगेंगे तब उनके परिवार के किसी भी सदस्य को ही यह सौभाग्य मिले , इसी का पूरा पूरा ध्यान रखना है । बिक गई कुर्सी ।

अपने भगवानपन को त्याग मनुष्य रूप को पूरी तरह अंगीकार कर लिया था उन्होंने । अब ये क्या करेंगे ? सोचने लगे भगवान । तभी कुर्सी पर विराजित मनुष्य उठा और पता नहीं क्या किया आकाश में एक काला सा झंडा लहराने लगा । भगवान सोचने लगे , थोड़ी देर पहले तक तो उसके हाथ में कुछ कलरफूल झंडा देखा था , क्या जादू किया कि वह ऊपर जाते ही काला हो गया । उन्हें लगा कि झंडा फहराने के तुरंत पश्चात लोगों के भजन गाने की आवाज से घबराकर उसका रंग उड़ गया होगा । माजरा समझ नहीं आया । एक दो लोगों से पूछा – कोई हिन्दी समझता नहीं था , उन्हें अंगरेजी आती नहीं थी । एक बार तो उन्हें शंका हो गई कि वे भारत में ही जश्न देखने आये हैं या गलती से कहीं विदेश चले गए । नारद को याद किया । नारद ने शंका दूर की । फिर झंडे की बात चली तब नारद ने बताया कि जो झंडा कुर्सीधारी ने फहराया है वही फहर रहा है आकाश में । शंकर जी बोले , अरे मैंने कलरफूल झंडा देखा था उसके हाथ में । नारद ने कहा – भगवान , आप भी कुछ नहीं समझते , वह कलरफूल झंडा तिरंगा है और तिरंगा पुराना फैशन हो चला है इस देश में । वह तो सिर्फ आजादी पाते तक ही फहराया गया था । अजादी के बाद तो अलग अलग प्रकार के लोग अपना अपना अलग अलग झंडा फहराने लगे हैं । जनता को बेवकूफ बनाने के लिए , फहराने के समय तिरंगा दिखाते हैं किंतु वास्तव में ये , वह झंडा फहराते हैं जो उनके जीवन में समृद्धि लाता है । भगवान समझे नहीं । नारद ने कहा – भगवान यह ओ झंडा नहीं है जिसके लिए इतने बड़े जलसे का आयोजन हो रहा है । यह राजनीति का झंडा है । इस झंडे की खासियत यह है कि जो भी इसके नीचे आता है वह भ्रस्टाचारी , अन्यायी , धोखेबाजी और मक्कारी में माहिर हो जाता है । इनके जीवन की सुख समृद्धि इसी की देन है , इसलिए ये चाहकर भी दूसरा झंडा नहीं फहरा सकते । इस झंडे की इतनी खासियत है कि दूर से भी इसकी हवा लगने वाले को भी यह सुख और समृद्धि प्रदान करता है ।

तो यह जलसा तिरंगा के नाम से क्यों मनाते हैं ? इसे कौन फहराता होगा ? तिरंगे के नाम से जलसा जिस दिन बंद हो जायेगा , इनकी कुर्सी छिन जायेगी , फिर न सुख रहेगा न समृद्धि । मजबूरी है तिरंगा .....। वहां से खिसक लिये दोनों । दूर से एक खम्बे के ऊपर रंग बिरंगा झंडा लहराते हुए दिखने लगा । पास जाकर देखने की इच्छा जागृत हो गई । नारद ने मना किया । भगवान ने जिद पकड़ ली । पास पहुंच गए । परंतु यह क्या तीन की जगह दो रंग का झंडा लहरा रहा था वहां , वह भी अलग अलग कपड़े का । ध्यान से देखने पर पता चला एक केसरिया रंग का था , दूसरा हरा । भगवान को फिर समझ नहीं आया । वे चाहते तो , समझ और जान सकते थे किंतु एक बार अपने भगवान होने के एहसास का फल भुगत चुके थे , इसलिए पूरी तरह से मनुष्य होकर जानना , समझना और देखना चाहते थे । नारद से पूछा । यह साम्प्रदायिकता का झंडा है भगवान । इस खम्बे में कभी केसरिया ऊंचा होता है कभी हरा ...... । इस झंडे के नीचे कुछ मेरे जैसे आम जनता भी तो दिख रहे हैं नारद , क्या ये भी .....? नहीं भगवान ये साम्प्रदायिक नहीं हैं , पर इस केसरिया और हरे झंडे के लम्बरदारों ने इन्हें बरगलाया है , फुसलाया है और लालच भी दिया है । अपना उल्लू सीधा करने अपने झंडे के नीचे सुख मिलने का सपना बेचा है इनको .......।

आखिर तिरंगा होता कैसे है ? जिसको फहराने के नाम पर इतना तामझाम । पर कोई फहराता भी नहीं ? शंकरजी की इच्छा बलवती होती गई । नारद ने आगे कहीं तिरंगा मिलने की बात कह चलने की सलाह दी । थोड़ी दूर में ऊपर आकाश में एक और झंडे को लहराते देखा । यह सफेद झंडा था । नारद ने बताया कि यह झूठ बोलकर अपना मतलब साधने वालों का झंडा है । बेईमान फरेबी लोग इस झंडे के नीचे खूब फलते फूलते हैं । इस झंडे की खासियत यह है कि इसे सार्वजनिक रूप से नहीं फहराया जा सकता । इसे अपने परिवार के साथ मिलकर घरों में फहराते हैं कुछ लोग । इसकी छाया अपने निवास के अलावा कहीं और न पड़े इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है , अन्यथा पड़ोसी के भी भाग्य में बैठे बिठाये सुख प्राप्त हो जाने का अंदेशा बना रहता है ।

थोड़ी दूरी और नाप लिया दोनों ने । जमीन पर लाल लाल खून के निसान । झंडे के नीचे खड़े रहने वालों के कपड़ों पर कई जगह से खून के धब्बे दिखाई दे रहे थे । नारद ने उधर जाने से मना किया , भगवान को उत्सुकता हो गई । समीप जाने पर देखते हैं कि , एक बड़े से बंदूक पर लाल रंग का झंडा लहरा रहा था । यह आतंक का झंडा था , जिसे कभी उग्रवादी , कभी अलगाववादी तो कभी नक्सलवादी ऊंचा करते रहते थे । इस झंडे की अपनी अलग विशेषता थी । इसके नीचे स्वेच्छा से कोई आना नहीं चाहता , जो आ गया वह जिंदा जा नहीं पाता था । बंदूक के बल पर , आतंक का राज्य स्थापित करने वालों की , भटके हुए लोगों की टीम , इसके नीचे पता नहीं कितना सुकून पाती है , पर यहां आने वाला अपनी इच्छा से कभी नहीं ंआता । अपनी मजबूरी बेंच , या किसी के प्रति आक्रोश भुनाने , तो कभी अपनी पीड़ा घटाने , तो कभी स्वार्थ के चलते इसके छांव तले चले आते हैं लोग ।

अरे भई , वह जगह भी तो दिखाओ , जहां तिरंगा फहरता है । नारद जी कहने लगे – उस जगह को आप देख नहीं पायेंगे भगवन । आप इतनी व्यग्रता मत करिए । मुझे लगता है कि आपको वह जगह नहीं देखना चाहिए । पर क्यों नारद ? आप स्वयं जान जायेंगे जब वहां पहुंचेंगे । अरे यहां पर तो नीले रंग का झंडा लहरा रहा है , देखिए इस झंडे का रंग ... यह पीला हो गया , देखते ही देखते गुलाबी रंग चढ़ गया झंडे पर । यह रंग बदलने वाले स्वार्थी लोगों का झंडा है । इसके छांव तले अपना स्वार्थ सिद्ध करने वालों को सुख और समृद्धि यदा कदा मिलते रहती है ।

थोड़ा और चले । अरे यह किसका झंडा है नारद , कुछ दिखता ही नहीं । भगवान , यहां केवल डंडा भर जमीन में आरोपित है , इसमें वास्तव में कोई झंडा नहीं है । पर इसे किन लोगों ने लगा रखा है नारद । यह सरकारी कर्मचारियों का झंडा है । इनके अकर्मण्यता का प्रतीक है यह । कभी किसी झंडे को , कभी किसी झंडे को अपने डंडे में फहराने के लिए अपना डंडा खाली रखते हैं ये लोग । जिसका राज चलता है उसी का झंडा लगा लेते हैं अपने डंडे पर । परंतु इसकी खासियत यह होती है कि वे इसे दिखने नहीं देते । इसलिये किसी को पता नहीं चलता कि किसका झंडा इनके डंडे में लहरा रहा है । इस झंडे की खासियत यह है कि इसके नीचे खड़े होने वाले को कुछ नहीं करने से भी समृद्धि मिल जाती है ।

भगवान चलते चलते थकने लगे । नारद ने भगवान से निवेदन किया अपने असली रूप में प्रकट होने , ताकि किसी तरह का बोझ न महसूस करें । बहुत देर हो गई नारद , वास्तव में तिरंगा फहरता भी है या नहीं , मुझे अभी तक सिर्फ शंका ही थी , अब तो एक तरह से विश्वास भी हो चला है कि तिरंगे का अस्तित्व है ही नहीं । तभी ........ कीचड़ में पैर गंदे होने लगे । रोटी मांगते , भूख से बिलखते उघरा नंगरा बच्चे दिखने लगे । मेहनत को कौड़ियों में बिकते देखा , खांसते खखारते बुढ़ापे को इलाज के अभाव में दम तोड़ते देखा । जवान बेटी की इज्जत सरेआम नीलाम होते शर्म से झुक आईं इनकी भी आंखें । कहीं नयी बहू को सिर पर बासी रख खेत जाते देखा , तो कहीं पर माटी संग जूझते बलकरहा जवान ....। अभावों में पलते बचपन को , जवानी में उमड़ते घुमड़ते टूटते सपनों को खपरा खदर छानी के बीच सरकते देख बहुत आहत थे भगवान । उनके चेहरे पर दर्द और विषाद आने जाने लगे । नारद जी कहने लगे – इसलिए , मैंने आपको यहां आने से मना किया था भगवान । मैं जानता था , आप नहीं देख पायेंगे ये सब । अब जब देख ही लिया है तो उसका हल भी आपको ही निकालना है । हल तो मैं निकाल ही लूंगा नारद , परंतु क्या यही वो जगह है जहां तिरंगा फहरता है । हां भगवन । जो लोग अपने आप को नहीं सम्हाल पा रहे हैं वे , अपने झंडे के बोझ को क्या सम्हालते होंगे । कहीं ऐसा तो नहीं कि इनका झंडा जमीन पर पड़ा धूल खा रहा है । वैसे भी मुझे इनका झंडा कहीं नजर ही नहीं आ रहा है । इतनी दूर से कहां दिखेगा भगवान । जरा नजदीक तो चलिए । समीप पहुंचते गए । खूब रेलम पेल । पहले कभी नहीं देखी थी अथाह आस्था की भीड़ को । जो समीप से गुजरता था वह झंडे की ठंडी छांव पाकर , सुख और शांति का अनुभव महसूसता था । भगवान की पूरी थकावट इस झंडे के छांव तले जाने से पूरी तरह दूर हो गई । परंतु भगवान ने , यहां पर भी एक विचित्रता देखी । झंडे की इतनी कम ऊंचाई के बाद भी छांव का इतना विस्तार ....। सुख की इतनी वर्षा ......। शांति का इतना संदेश ......। एकता की प्रगाढ़ गहराई .....। नहीं था तो सिर्फ समृद्धि ....। पर यह इनके लिए कोई मायने नहीं रखता था । तिरंगे की महानता देख भगवान इतने प्रसन्न हो गए कि वे भूल गए कि वे कौन हैं और यहां क्यों आये हैं ? कब असली रूप धारण कर लिये । सारे लोग भगवान की ओर दौड़े , भगवान की पूजा अर्चना करने लगे । प्रसन्न भगवान से जनता ने वर मांगने का फैसला किया । भगवान , आज के दिन हम लोग आजाद हुए थे । हमारे झंडे को इतना विशाल बनाकर , इतनी ऊंचाई दो कि दुनिया का हरेक प्राणी इसके छांव तले हो । भगवान ने कहा – यह काम तुम्हारा है किसी देव का नहीं । हां , मैं उपाय जरूर बता सकता हूं । जनता की मांग पर उपाय बताते हुए कहा कि बाकी झंडे के लम्बरदारों की वजह से तुम्हारे झंडे की ऊंचाई दब रही है । जागरूक बनकर इन लबरों को पहचानों , तभी इनका काला झंडा अपने आप तुम्हारे कदमों पर आ गिरेगा और जिस दिन काला झंडा गिरा , बाकी सारे झंडों के निसान खुद बखुद मिट जायेंगे । तब सिर्फ एक झंडा होगा और वह होगा तुम्हारा प्यारा तिरंगा ....... । फिर वही फहरेगा हरेक जगह , वही लहरायेगा सभी दिशाओं में , वही तुम्हारी धरती को नापेगा , वही तुम्हारे आकाश को चूमेगा । तब समस्त ब्रम्हाण्ड तुम्हारे झंडे तले सुख सुकून और शांति की तलाश में जगह ढ़ूंढ़ेगा , उस दिन तुम दुनिया के सबसे समृद्धशाली और भाग्यशाली होगे । भगवान , नारद समेत अंतर्ध्यान हो गए । जनता ने झंडे को ऊंचा करने का उपाय जान लिया , किंतु इसे कब आजमाएगी , कब मेरा तिरंगा ऊंचा होगा , अनुत्तरित है .......?

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हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन ,

मुख्य नियंत्रक , द. पू. म.रे. रायपुर .

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रचनाकार: परसाई हास्य-व्यंग्य पखवाड़ा / मेरा तिरंगा कब ऊंचा होगा / व्यंग्य / हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन
परसाई हास्य-व्यंग्य पखवाड़ा / मेरा तिरंगा कब ऊंचा होगा / व्यंग्य / हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन
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