साहित्य समाचार ‘जागरण साहित्य समिति’ की मासिक गोष्ठी जबलपुरः 10 जुलाई को ‘जागरण साहित्य समिति’ संस्था की मासिक काव्य गोष्ठी आर्यसमाज ...
साहित्य समाचार
‘जागरण साहित्य समिति’ की मासिक गोष्ठी
जबलपुरः 10 जुलाई को ‘जागरण साहित्य समिति’ संस्था की मासिक काव्य गोष्ठी आर्यसमाज गोरखपुर के सभाकक्ष में डॉ. हरिशंकर दुबे की अध्यक्षता में रायपुर से पधारे छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य मंडल के सचिव श्री तेजपाल सोनी एवं ए.के. शुक्ल के विशेष आतिथ्य में संम्पन्न हुआ. संस्था द्वारा राष्ट्रीय गीत प्रतियोगिता के परिणामों की घोषणा हुई, जिसमें बीस प्रविष्ठियां आई थीं. उनमें प्रथम पुरस्कार श्री मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’, द्वितीय पुरस्कार श्रीमती प्रभा विश्वकर्मा ‘शील’, तृतीय पुरस्कार श्री सुभाष मणि ‘वैरागी’ को प्रदान किया गया. दो सांत्वना पुरस्कार भी प्रदान किये गए, जो श्रीमती सलमा जमाल एवं श्री इन्द्रबहादुर को दिये गये. इस माह में पड़ने वाले सभी कवि मित्रों को जिनमें संध्या शुक्ल मृदुल, अशोक सिफर, श्रीमती जे. के. गुजराल, श्री सुभाष ‘शलभ’, जे. एम. कुमार को संस्था द्वारा पुष्पहार, चन्दन एवं उपहार प्रदान किये गए. संस्था के संस्थापक श्री सुभाष ‘शलभ’ को विशेष रूप से जन्मदिन की बधाई दी गई. श्री राजेश पाठक प्रवीण द्वारा उन्हें शाल श्रीफल से अभिनन्दन किया गया. काव्यगोष्ठी में श्री बसंत ठाकुर जाहिल, एम.पी. सिंह, संध्या शुक्ल मृदुल, निकुम्भ, मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’, श्रीमती प्रभा विश्वकर्मा ‘शील’, शिवशंकर द्विवेदी, राजेंद्रसिंह, सुशील श्रीवास्तव, डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे, इंद्रबहादुर श्रीवास्तव, ए. के. शुक्ल, बी. के. मिश्रा, कृष्णकान्त अग्रवाल, सुभाष मणि ‘वैरागी’, श्रीमती राजकुमारी नायक श्रीमती जे.के. गुजराल, अनंतराम चौबे, श्रीमती सलमा जमाल, सलपनाथ यादव, दुर्गेश ब्यौहार, नीलम श्रीवास्तव, रजनी श्रीवास्तव, अशोक सिफर, आलू चमन आदि कवियों ने काव्य पाठ किया. सबने एक से एक बढ़कर रचनाएं सुनाईं. जिसे सभी ने सराहा.
प्रस्तुतिः मनोज कुमार शुक्ल, जबलपुर
नेहरू युवा केन्द्र संगठन सरगुजा द्वारा 2004-05 में बेस्ट युवा मंडल अवार्ड से सम्मानित
लखनपुर सरगुजाः सरगुजा के कलेक्टर श्रीमती रितु सेन एवं जिला कार्यक्रम अधिकारी श्री चन्द्रवेश सिंह सिसोदिया के मार्गदर्शन में छत्तीसगढ़ शबरी सेवा संस्थान के सचिव सुरेन्द्र साहू द्वारा पिछले 2 वर्ष से वाल अधिकार पर किये गये कार्य के आधार पर छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सुरेन्द्र साहू को बाल गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
सुरेन्द्र साहू को पुरस्कार बालकों के हित में कार्य करने के आधार पर प्रदान किया गया. सुरेन्द्र साहू ने बालक कल्याण समिति सरगुजा के सदस्य रहते हुए 444 बच्चों को सुरक्षित एवं सरंक्षित किया. ग्रामीण क्षेत्रों में अनेकों बाल विवाह को समझाईस देकर रोकवाया गया. सरगुजा जिला में झूला घर के माध्यम से 525 बच्चों को सुपोषित कराया गया. सुरेन्द्र साहू द्वारा 3 बच्चों को रक्त दान कर उनकी जान बचाई.
यह पुरस्कार उन्हें छत्तीसगढ़ के महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती रमशिला साहू, लोक निर्माण मंत्री श्री राजेश मुणत एवं छत्तीसगढ़ राज्य बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष श्रीमती शताब्दी सुबोध पांडे द्वारा न्यू सर्किट हाऊस सिविल लाईन रायपुर में 17 जून को प्रदान किया गया. इस सम्मान समारोह में भारत सरकार बाल आयोग के सदस्य यशवंत जैन मध्यप्रदेश बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष डॉ. राघवेन्द्र शर्मा, गुजरात बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष श्रीमती जागृति एच. पंडया, श्री पी. एन. तिवारी विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारी पुलिस विभाग रायपुर महिला आयोग के अध्यक्ष श्रीमती हरसिता पांडे भा.ज.पा. महिला मोर्चा की राष्ट्रीय मंत्री आर. विभा राव उपस्थित रहे.
वर्तमान में सुरेन्द्र साहू किशोर न्याय बोर्ड सरगुजा के सदस्य के रूप में कार्य कर रहे हैं. साथ ही अनेक सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं.
इसके पूर्व सामाजिक कार्यकर्त्ता सुरेन्द्र साहू को नेहरू युवा केन्द्र संगठन द्वारा जिला एवं राज्य युवा पुरस्कार, जन कल्याण परिषद द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य पर्यावरण जागरूकता पुरस्कार राष्ट्रीय स्तर पर स्वामी विवेकानन्द राष्ट्रीय पुरस्कार, भारतीय आदिम जाति सेवक संघ नई दिल्ली द्वारा आदिवासी सेवा सम्मान एवं पवहारी शरण द्विवेदी समाज सेवी सम्मान इलाहबाद द्वारा प्रदान किया गया हैं. सुरेन्द्र साहू को छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा बाल गौरव सम्मान प्रदान करने जाने पर अनेक लोगों ने बधाई दिया.
प्रस्तुतिः सुरेन्द्र साहू, छत्तीसगढ़
हिन्दी में समर कैम्प
मिन्स्क नगरः बेलारूस 6 से 24 जून तक ‘जारनीत्सा’ नामक समर कैंप, जो मिन्स्क नगर से 46 कि.मी. की दूरी पर है और ओ.जे.एस.सी. ‘इंटीग्रल’ द्वारा स्थापित किया गया था, हिन्दी भाषा स्टूडियो ‘अलंकार’ की मेहमानदारी करता रहा. जिस कैंप में मेरा पूरा बचपन बीता, और जिस में मैं बड़ी होकर कई साल तक अध्यापिका के पद पर काम करती रही, वही कैंप मेरी एक पायलट परियोजना के कार्यान्वयन के लिए एक मंच बन गया. इस समय के दौरान मैं बेलारूसी बच्चों को हिंदी भाषा पढ़ाती रही. बेशक, समर कैंप में, जहां बच्चों के लिए बहुत से रोचक मनोरंजन, मंडली और बहुत दिलचस्प कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, उन से प्रतियोगिता करना, और जिन की हिन्दी सीखने में रुचि हो उन्हें इकट्ठा करना बहुत मुश्किल होता है. फिर भी, मेरी हिन्दी की मंडली में 10-12 वर्ष की छह लड़कियों ने प्रवेश किया, जो वास्तव में इतना कम नहीं है.
हंसी-मजाक के माहौल में, खेलते-खेलते लड़कियों ने बहुत अक्षरों, शब्दों और वाक्यों को भी सीख लिया. बच्चों के गीतों की हिंदी कार्टून्स लड़कियों को सब से ज्यादा पसंद आ गईं. और ओपन क्लास में मेरी छात्राओं ने भारतीय दूतावास के एक प्रतिनिधि से बात भी की.
हां, 1श् जून को मेरा क्लास देखने के लिए भारतीय दूतावास के द्वितीय सचिव और कार्यालय के प्रधान श्री पीयूष वर्मा जी आए थे. उनके आगमन के अवसर पर कैंप में बड़ा उत्सव आयोजित किया गया था. बेलारूसी परंपरा के अनुसार मेहमान का स्वागत रोटी और नमक से किया गया था तथा बेलारूसी और भारतीय गीतों से, उन्हें कैंप की सैर भी करवाई गई थी. इसके अलावा सचिव महोदय बच्चों के चित्र की प्रदर्शनी तथा कलात्मक वस्तुओं की छोटी प्रदर्शनी भी देखने गए थे.
ओपन क्लास में श्री पीयूष वर्मा जी ने कैंप को बहुत सी हिंदी सीखने की पुस्तकें तथा दृश्य-श्रव्य सामग्री को तोहफे में दिया. मैं ने भी भारतीय दूतावास के पुस्तकालय के लिए एक छोटा सा तोहफा दिया- सुंदर हिन्दी कविताओं का एक संग्रह, जो मेरे अच्छे दोस्त डॉ. अकेलाभाई जी (पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलांग) के द्वारा संग्रहित किया गया था.
फिर छोटे कान्सर्ट में बच्चों ने बहुत अच्छा कार्यक्रम प्रस्तुत किया, जिस में आमंत्रित नृत्य करने वाली नर्तकियों ने- ‘आम्रपाली’ भारतीय नृत्य स्कूल से मेरी सहेलियों ने भी भाग लिया. और कान्सर्ट के बाद रूसी भाषा में दिए गए वर्मा जी के भाषण की समाप्ति पर पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. इसी तालियों की गड़गड़ाहट से बच्चों ने मेहमान को विदा किया.
सारा उत्सव ‘इंटीग्रल’ अखबार के संवाददाताओं के कैमरों की नजरों में चलता रहा.
कुल मिला के कहा जा सकता है की मेरी यह परियोजना सफल हुई, चाहे उस में छोटी संगठनात्मक खामियां भी थीं. और मुझे आशा है कि कैंप में इस तरह के गर्मियों के पाठ्यक्रम अच्छी परंपरा बन जाएंगे.
अंत में मैं अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करना चाहूंगी, सब से पहले कैंप संचालिका तातियाना येरमलीन्स्काया के प्रति, जिन्होंने मुझ में और मेरे परियोजना पर भरोसा किया, मुझ से भी ज्यादा, और अपने व्यस्त कार्यक्रमों के बावजूद भी उसका समर्थन करती रही. तथा मेरे प्रिय मित्रों के प्रति- ‘आम्रपाली’ भारतीय नृत्य स्कूल की कला निदेशिका डारिया लोन्स्काया, इसी स्कूल की छात्रा मार्गरिटा सफीरोवा, जो अब उसकी एक नृत्य शिक्षिका बन गई, तथा स्कूल की छात्राओं- अन्ना गेस्ट और वलेरिया सरोकिना के प्रति, जिन्होंने मेरा बहुत बड़ा नैतिक समर्थन किया तथा कंसर्ट आयोजित करने में अमूल्य सहायता की.
प्रस्तुतिः रमाकांत गौतम, जबलपुर
नहीं रहे साहित्यकार-पत्रकार गुंजेश्वरी प्रसाद : एक शाश्वत लेखांकन
विगत 18 जून 2016 को एक स्मृति आयोजन ‘शॉर्प रिपोर्टर’ के संपादकीय कार्यालय, ‘होटल नीलकंठ’ में किया गया, जिसमें जनपद के पत्रकारों एवं साहित्यकारों ने समाजवादी लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए याद किया. इस स्मृति आयोजन की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार गज़लकार डॉ. मधुर नज़्मी ने की. स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद की 26 जून को हुए देहावासन को पत्रकारिता एवं समाजवादी आंदोलन की अपूर्णीय क्षति बताते हुए डॉ. नज्मी ने कहा स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद ने जीवन पर्यन्त जिन विचारों को अंगीकार किया, उसी के लिए संघर्ष करते रहे. डॉ. राममनोहर लोहिया एवं जय प्रकाश नारायण के साथ काम करने वाले गुंजेश्वरी प्रसाद अंतिम समय तक समाज के आखिरी व्यक्ति की लड़ाई लड़ते रहे. उन्हें सरकारी मान-सम्मान या पुरस्कारों की न कभी लालसा थी, और न ही उन्होंने कभी आवेदन किया. अपने विचारों के सहारे जनता की आवाज को मुखर करने वाले स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद ने पत्रकारिता के उच्च मानदंडों को स्थापित किया. देश का कोई पत्र या पत्रिका नहीं थी, जिसमें स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद के आलेख न छपे हों.
पत्रकार आशुतोष द्विवेदी ने कहा ‘‘स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद के दिखाये गये मार्ग पर चल कर ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजली दी जा सकती है. पत्रकारिता के क्षेत्र में स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद ने जो रेखा खींची है उसे आने वाली पीढ़ी छू भी पायेगी, यह कहना कठिन होगा.’’ पत्रकार डॉ. दीपा नारायण मिश्र ने स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद की स्मृतियों को साझा करते हुए कहा- ‘‘पत्रकारिता के जिस शलाका पुरुष को आज हम याद कर रहे हैं, दरअसल, ऐसे लोग कभी स्वर्गीय नहीं होते( बल्कि अपने विचारों के साथ सदैव समाज की धमनियों में स्पंदन करते हैं.’’ उन्होंने कहा ‘शॉर्प रिपोर्टर’ और ‘मनमीत’ पत्रिकाओं के वे संरक्षक तथा नियमित लेखक भी थे. अभी पिछले 29 मार्च को आजमगढ़ में आयोजित ‘मीडिया समग्र मंथन 2016’ के दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यक्रम में उ. प्र. के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष मा. सुखदेव राजभर के हाथों ‘शॉर्प रिपोर्टर लाइफ टाइम अचीवमेंट सम्मान 2016’ प्रदान किया गया था. शॉर्प रिपोर्टर के संपादक एवं उनसे पिछले दो दशकों से घनीभूत ढंग से जुड़े डॉ. अरविंद कुमार सिंह ने स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद की मौत को अपनी निजी क्षति बताते हुए कहा कि स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद देश के न केवल दूरदर्शी पत्रकार थे, बल्कि मेरे लिए गुरु और अभिभावक भी थे. पत्रकारिता के जिन उच्च मानदण्डों की स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद ने स्थापना की आने वाली पीढ़ियां उन्हें छू भी न पायें. गुंजेश्वरी प्रसाद ने समाजवाद की दीक्षा स्वयं इसके आचार्य डॉ. राममनोहर लोहिया से हुयी थी. राममनोहर लोहिया ने स्वयं उन्हें चार आने की सदस्यता देकर पूर्णकालिक समाजवादी बना दिया. जिसके फलस्वरूप, गुंजेश्वरी प्रसाद पाण्डेय, गुंजेश्वरी हो गये. धर्म, जाति, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर गुंजेश्वरी प्रसाद ने समाजवादी आंदोलन को मुखर किया और बदले में 24 बार जेल यात्राएं कीं. दमनकारी शासन एवं पुलिस की बर्बरता से गुंजेश्वरी प्रसाद के सभी दांत तोड़ दिये गये थे, बावजूद समाजवादी आंदोलन की धार जीवनपर्यंन्त कमजोर नहीं होने दी. लोहिया से किये गये वायदे के मुताबिक अंतिम सांस समाजवादी विचारधारा के चोले में ही ली.
स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद के आलेख जो पूर्वी उ.प्र. के सामाजिक जीवन दर्शन पर हैं, उसे आस्ट्रेलिया के केनबरा विश्वविद्यालय में आज भी पढ़ाया जाता है. सोवियत संघ की पत्रिका सोवियत भूमि से लेकर लोहिया के चौखम्भा, हैदराबाद की कल्पना, धर्मयुग, दिनमान, साप्ताहिक हिंदुस्तान जैसे पत्रिकाओं में राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक विषयों पर विचारोत्तेजक उनके आलेख पिछले चार-पांच दशकों तक भारतीय पाठकों की मानसिक खुराक थे. यह क्रम उनकी अंतिम सांस तक चलता रहा.
13 मार्च 1936 को गोरखपुर जनपद के कौड़ीराम बाजार से सटे मिश्रौली गांव में पैदा हुए गुंजेश्वरी प्रसाद ने 1957 में स्नातक किया था. लोहिया के जन आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाते हुए अंग्रेजी हटाओ आंदोलन 1960, दामबांधो आंदोलन 1960, बीमार प्रधानमंत्री हटाओ 1964, उ.प्र. बंद आंदोलन 1966, भूमि बांटो 1969, इंदिरा हटाओ 1970 तथा आपातकालीन आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. समाजवाद के आचार्य डॉ. राममनोहर लोहिया पर स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद ने एक किताब ‘डॉ. राममनोहर लोहिया’ लिखी है जिसे नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली ने छापा है. पत्रकारिता में दीघकालिक सेवा के लिए अनेक पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मानित स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद को 1965 में सह अस्तित्व पर सोवियत भूमि पुरस्कार, रामधारी सिंह दिनकर पुरस्कार, पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के हाथों सरयू रत्न सम्मान आदि प्राप्त हुये.
प्रस्तुतिः उपदेश कुमार चतुर्वेदी
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