यहां वहां की पत्नी मुक्त महीना दिनेश बैस फें कोलॉजी के विशेषज्ञ दावा कर सकते हैं कि अगस्त महीने का नामकरण अगस्त ऋषि के नाम पर हुआ. वे...
यहां वहां की
पत्नी मुक्त महीना
दिनेश बैस
फेंकोलॉजी के विशेषज्ञ दावा कर सकते हैं कि अगस्त महीने का नामकरण अगस्त ऋषि के नाम पर हुआ. वे विद्वान लोग हैं. उनके मुंह कौन लगे. वे बता सकते हैं कि इंग्लैंड की टेम्स नदी वास्तव में तमसा है जो भारत से चल कर अंग्रेजों के कल्याणार्थ इंग्लैंड पहुंच गई. यह भारत का विश्व को आशीर्वाद रहा है. भारत और इंग्लैंड के बीच की भौगोलिक संरचना को छोड़िये. यह मत सोचिये कि तमसा कैसे पहुंच गई वहां. बस पहुंच गई. हमारे वेदों में लिखा है. तो क्या गलत लिखा है? वेद हमने पढ़े नहीं हैं. हमारे पिताजी ने बताया है. उन्हें उनके पिता जी ने बताया था. उनके पिता जी को उनके पिता जी ने बताया था. ऐसे ही हजारों सालों से पिताजी पुत्रों को बताते आ रहे हैं. तो क्या झूठ बता रहे हैं?
बड़ों-बड़ों की बातें हैं. कौन चक्कर में पड़े. अपनी देह की ऊपर वाली मंजिल वैसे भी खाली बतायी जाती है. इसलिये हमें इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता है कि टेम्स वास्तव में तमसा ही है या हमारे यहां से निकली नाली नुमा नदी रामरई है या इंग्लैंड वालों की अपनी नदी है, ओरीजनल. इससे भी कोई अंतर नहीं पड़ता है कि अगस्त महीने को किसी स्वदेशी ऋषि के नाम से जाना जाता है या कि विदेशी संत के नाम से. अगर मेक इन इंडिया के नाम पर विदेशी उद्योगपतियों के पांव पखारे जा सकते हैं तो अगस्त का महीना पचाने के लिये हमें कौन सा कंकड़-पत्थर हजम चूरन खाने की आवश्यकता पड़ेगी. हम उस देश के वासी हैं कि कोई सेवा का अवसर दे तो देश पचा जायेंगे.
मामूली सी बात यह है कि हम तो अगस्त के महीने को मुक्ति का महीना मानते हैं. राष्ट्रीय स्तर पर भी अगस्त के महीने को मुक्ति का महीना ही माना जाता है. 15 अगस्त को अंग्रेज भारत छोड़ कर चले गये. बोले, ‘लो सम्हालो, हम जा रहे हैं.’ देश 15 अगस्त को राष्ट्रीय मुक्ति दिवस के रूप में मनाने लगा. अपन की सोच इतनी विराट नहीं रही. जब तक लोग हमें बड़ा नहीं मानने लगे, हम इस दिन को स्कूल मुक्ति दिवस के रूप में मानते रहे.. कम से कम एक दिन तो था जब स्कूल में पढ़ने का डर नहीं रहता था. स्कूल जाओ. झंडा चढ़ाओ. भाषण सुनो. दो केले लो. घर आ जाओ. मस्ती करने के लिये. लोग कहते कि 2श् जनवरी और 2 अक्टूबर भी तो ऐसे ही दिन होते हैं. हमारा प्रश्न होता कि 15 अगस्त नहीं होता तो यह दोनों कैसे होते. बेवकूफों को मुंह लगाने का नियम नहीं है. मुझे भी लोग इसी योग्य मानते थे. होते हैं, कुछ लोग इस मामले में भाग्यशाली होते हैं. अपने आप को बचपन में ही प्रूव कर देते हैं. अपन को भी उनमें शामिल किया जा सकता है. बेवकूफी के क्षेत्र में काफी जल्दी अपन को मान्यता मिल गई थी. हमारी प्रतिभा को बचपन में ही पहचान लिया गया था. लगे हाथों समय की कसौटी पर यह कहावत भी कस गई थी कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं.
समय के साथ हमारी यह धारणा पुष्ट होती गई कि अगस्त नहीं होता तो हम भूल जाते कि स्वतंत्रता क्या होती है. मुक्त वातावरण में सांस लेना क्या होता है. बचपन में एक ही दिन सही, अगस्त हमें स्कूल मुक्त करता था तो आज कुछ दिनों के लिये पत्नी से मुक्ति का सुख देता है. हालांकि इस सुख को पति प्रजाति के जीव-जंतु ही प्राप्त कर सकते हैं. जो भाई यह सुख प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें पहले पति धर्म में प्रवेश करना होगा.
अगस्त के महीने में पत्नियों का घर वापसी कार्यक्रम चलता है. उनकी शिफ्टिंग शुरू हो जाती है. उन्हें यह अनुरोध करने जाना होता है कि भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना. बदले में भैया आश्वासन देते हैं कि बहना, चिंता मत करो. जब तुम आदेश दोगी तभी अम्मा-बाबू, तुम्हारी भाभी, चुन्नू-मुन्नू सहित जीजा की छाती पर मूंग दलने आ जायेंगे. जब तक तुम चाहोगी, तुम्हारे घर की शोभा बढ़ाते रहेंगे. अपनों का मेहमान बनना हमारी खानदानी परंपरा है.
खैर, यह सम्भावित खतरे हैं. खतरों से खेलना हमारी खानदानी परम्परा है. खतरों से खेलना हमें आता है. यों ही नहीं हम चाहते हैं कि लोग हमें खतरों के खिलाड़ी समझें.
जो भी हो, ऐसे खतरों के डर से हम पत्नी-मुक्त-घर का सुख भोगने के मोह को नहीं त्याग सकते हैं. गुलामी से मुक्ति के लिये देश न मालूम कितने-कितने संग्राम करते हैं. पति प्रजाति को तो केवल पत्नी-परिवार को ही झेलना पड़ता है. उसे भी आने से यथासम्भव रोकने के लिये अनेक प्रकार की अफवाहों की सहायता ली जा सकती है. कहा जा सकता है कि हमारे यहां नीतालेपादसू वायरस का हमला हो गया है. यह फारेन डायरेक्ट प्रवेश कार्यक्रम के अंतर्गत विदेश से आया है. केवल ससुराल वालों पर हमला करता है. बोलने के बजाय वे भौंकने लगते हैं.
उन थोड़े से दिन पत्नी-मुक्त घर भोगने का अलग सुख होता है...जेल के वार्डन की तरह आपको यह कह कर जल्दी जगाने वाला कोई नहीं होता है कि उठ जाओ, दूध लेने जाना है. घर के स्वच्छता अभियान से भी आप दिखा सकते हैं. आपका घर है. इसे अव्यवस्थित रखने का आपको पूर्ण
अधिकार है. तकिये पर लार बहाइये. बेड पर बिछी चादर से नाक पोंछिये. गुटखा खाइये और डबल बेड के पीछे थूक दीजिये. पाउच हवा में उड़ा दीजिये. हर फिक्र को हवा में उड़ा देने की तरह. सलीका गया पत्नी जी के साथ तेल लेने. आपके प्रयासों से कुछ ऐसा वातावरण निर्मित हो जाना चाहिये जैसे आप नील गगन के तले खड़े हैं. प्राकृतिक घूरा आपके चारों ओर दुर्गंध मार रहा है. ऐसा करके आप स्वास्थ्य विशेषज्ञों की उस सलाह का सम्मान कर रहे होंगे जिसमें कहा जाता है कि हमें अधिक से अधिक प्रकृति के सानिध्य में रहना चाहिये.
पति प्रजाति के जो लोग डायबिटीज एन्ज्वाय कर रहे हैं. उनके लिये यह पत्नी-मुक्त माह वरदान की तरह आता है. चाय में तीन चम्मच चीनी डाल कर पीजिये. यह भी कोई बात हुई कि सुगर खून में तो रहे, प्याले में नहीं. शपथ लीजिये कि पत्नी के हर निर्देश की धज्जियां उड़ा देनी हैं. आखिर आजादी बार-बार नहीं मिलती है. गुनगुनाइये...
‘‘अपनी आजादी को हम हर्गिज मिटा सकते नहीं.’’
सम्पर्कः 3-गुरुद्वारा, नगरा, झांसी-28003
मो. 08004271503
email: dineshbais3@rediffmail.com
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