हास्य-व्यंग्य धारावाहिक उपन्यास एक गधे की वापसी कृश्न चन्दर पांचवीं किस्तः पब्लिसिटी होना गधे का , और घेर लेना सट्टेबाजों का उसको, औ...
हास्य-व्यंग्य
धारावाहिक उपन्यास
एक गधे की वापसी
कृश्न चन्दर
पांचवीं किस्तः
पब्लिसिटी होना गधे का, और घेर लेना सट्टेबाजों का उसको, और बयान गधे की चालाकी का...
दूसरे दिन सेठ भूरीमल मेरे कमरे में बहुत-से समाचार-पत्र लेकर प्रविष्ट हुआ.
प्रसन्न होकर बोला, ‘‘देखा, कैसी शानदार पब्लिसिटी की है आपकी.’’
मैंने कहा, ‘‘मेरे साथ आप लोगों की भी तो बहुत पब्लिसिटी हो गई है.’’
वह बोला, ‘‘आजकल पब्लिसिटी का जमाना है. एक गधे के साथ पब्लिसिटी मिले तो यार लोग उसे भी प्राप्त करने से नहीं चूकते. इसलिए मैंने कल रात ही कुछ जर्नलिस्ट मित्रों को बुलाकर उन्हें यह सूचना दे दी थी.’’
मैंने समाचार-पत्र तह करके अलग रख दिया और सेठ भूरीमल से प्रश्न किया, ‘‘अन्ततः आपको एक गधे के लिए यह सब करने की क्या आवश्यकता थी?’’
सेठ भूरीमल मुस्कराकर बोले, ‘‘जो आपको गधा समझते हैं, स्वयं गधे हैं. मेरे लिए आप क्या हो, यह मैं भली प्रकार जानता हूं. किन्तु इस समय इस प्रश्न पर विवाद न करें तो अच्छा है. सबसे पहले तो मुझे आपके स्वास्थ्य की चिन्ता है. इतने कमजोर हो गए हैं आप कि आठ-दस, बारह-पन्द्रह दिन तक पूरा आराम करें( बाद में बात करूंगा.’’
अतः पन्द्रह दिन बड़े चैन और आराम से गुजरे. तीन बार बढ़िया से बढ़िया खाने को मिला और विलायती जौ का दलिया, गुलूकोज के इंजेक्शन और ताजा फलों का रस, विटामिन की गोलियां. और अन्य टॉनिक एवं औषधियां एक कुशल पशु-चिकित्सक के परामर्श के अधीन मुझे खिलाई गईं. पढ़ने के लिए अगाथा क्रिस्टी के उपन्यास, जासूसी और रूमानी मासिक पत्रिकाएं, फिल्मी पत्रिकाएं और वे यूरोपीय पत्र मेरे पास पहुंचाए गए जो केवल आर्ट पेपर पर प्रकाशित होते हैं और जिनमें या तो स्त्रियों के नग्न चित्र होते हैं या प्रसिद्ध अभियुक्तों के हत्याकांड के भयानक विवरण लिखे होते हैं.
पन्द्रह दिनों के पश्चात्, सेठ ने मेरे स्वास्थ्य-लाभ के उपलक्ष्य में एक शानदार पार्टी दी. पार्टी भिन्न-भिन्न खानों के कारण बहुत शानदार थी. सेठ ने मेरे लिए विशेषतः वायुयान के द्वारा कश्मीर की घास मंगाई थी, जो गुलमर्ग की ऊंची घाटियों में उत्पन्न होती है. जो स्वाद, रस और पौष्टिकता के आधार पर संसार-भर में अद्वितीय समझी जाती है.
किन्तु इस पार्टी में सेठ ने अधिक आदमियों को दावत न दी थी. केवल सेठ था और उसका दोस्त जुम्मन, जो उस दिन माहिम में सेठ के साथ था. और उसके साथ दो आदमी और थे, जिनमें नाम मुझे गुलाबसिंह और सिताबसिंह बतलाए गए और जो अपने चौड़े-चकले सीने, घुटे हुए सिर और हंसती हुई मूंछों के कारण बड़े भयानक किस्म के गुण्डे नजर आते थे.
उस दिन मैंने भिन्न प्रकार की शराबें चखीं. ऐसी शराबें जो किसी गरीब गधे के भाग्य में नहीं होतीं, जो कीमती साड़ियों की तरह सुन्दर कांच की खिड़कियों में दूर ही दूर से दुकान पर नजर आती हैं और जिन्हें आवारा गधे बड़ी हसरत से देखते हुए सड़क पर से गुजर जाते हैं- इटली की ‘कियंति’, हंगरी की ‘तौकई’, जर्मनी की ‘राईन हासन’, फ्रांस की ‘शातो ब्रियां’, स्पेन की ‘बरगण्डी’ और स्काटलैण्ड की ‘ब्लैक डॉग’ ह्विस्की.
‘ब्लैक डॉग’ यानी काला कुत्ता मार्का ह्विस्की. अब मैं काला कुत्ता तो न था, किन्तु एक काला गधा अवश्य था. इस कारण मजे में आकर ‘ब्लैक डॉग’ की तीन बोतलें समाप्त कर गया और नशे में आकर झूमने लगा. मेरे पांव जमीन पर न पड़ते थे और मैं एक चौड़े गलीचे के फर्श पर खड़ा होकर एल्बस पर्सले की धुन में ‘राक-एन-रोल’ का एक मिला-जुला हिन्दुस्तानी और अंग्रेजी गीत गाने लगा-
जूं...जूं...जूं
कड़वा-कड़वा थू!
मीठा-मीठा हप्प,
यू शट-अप!
यू...यू...यू,
जूं...जूं...जूं,
तू मेरी जान,
मैं तेरी जानी!
तेरे-मेरे ऊपर,
एक मच्छरदानी!
सो-हट,
शट-अप!
अचानक सेठ भूरीमल, जुम्मन दादा, गुलाबसिंह, सिताबसिंह अपने-अपने स्थान वर से उठे और आकर मेरे पांव पड़ गए.
‘‘गुरु महाराज, दया करो. सट्टे का नम्बर बता दो, उस दिन की तरह.’’ सेठ भूरीमल मेरे पांव पर अपनी नाक रगड़ते हुए बोले.
‘‘साईं लाला, तेरा बोलबाला,’’ जुम्मन बोला, ‘‘बस एक नम्बर बता दो.’’
‘‘हटो, क्या करते हो!’’ मैं क्रोध से बोला, ‘‘मैं कोई योगीराज या साईं नहीं हूं. महज एक गधा हूं.’’
‘‘हम जानते हैं. सब जानते हैं.’’ वे सब एकदम बोल उठे.
‘‘अरे खाक जानते हो!’’ मैं भड़ककर कहा, ‘‘मैं कोई
साधु-सन्त या योगी-फकीर होता तो इस प्रकार शराब पीता?’’
‘‘गुरु महाराज, हम जानते हैं.’’ भूरीमल मेरे पांव पर अपना माथा रगड़कर बोला, ‘‘जो अघोरी साधु होते हैं या वाममार्गी तांत्रिक होते हैं, वे मांस-मच्छी, अण्डा-शराब सब खाते-पीते हैं. जिस पशु का भेस चाहें, बदल लेते हैं.’’
‘‘गुरु महाराज, हम आपका पीछा नहीं छोड़ेंगे. हमें सट्टे का नम्बर दे दो.’’
मैंने अपने पांव छुड़ाने का बहुत प्रयत्न किया. किन्तु गुलाबसिंह और सिताबसिंह ने इतनी दृढ़ता से मेरे दोनों पिछले पांव पकड़ रखे थे कि मैं किसी प्रकार भी उनसे अपने पांव न छुड़ा सका. अन्त में मुझे कहना पड़ा-
‘‘मेरे पांव छोड़ दो, मरदूदों. बताता हूं.’’
उन लोगों ने तत्काल मेरे पांव छोड़ दिए और मैंने कुछ सोचकर एक-दो क्षण के मौन के पश्चात् झूम-झूमकर नाचना और गुनगुनाना प्रारम्भ कर दिया, फिर वे लोग भी ताली पीट-पीटकर मेरे साथ नाचने लगे.
‘‘उटी देखी, शिमला देखी,
देखा मैंने कुल्लू!
कुल्लू में उल्लू,
उल्लू में चुल्लू!
मर गई चारों की नानी!
नानी के बेटे ग्यारह,
जो जीता वह भी हारा!’’
कहते-कहते मेरे मुंह से झाग निकलने लगे और मैं लड़खड़ाकर एक ओर गिर गया और बेहोश हो गया. किन्तु यह सब कुछ बनावटी था. उन लोगों ने इसे बनावटी नहीं समझा.
जुम्मन ने कहा, ‘‘साईं को ‘हाल’ आ गया है.’’
सेठ बोला, ‘‘योगी अन्तर्धान हो गए.’’
किन्तु गुलाबसिंह बोला, ‘‘नम्बर कब बताया?’’
‘‘नम्बर तो साफ बताया,’’ जुम्मन बोला, ‘‘मर गई चारों की नानी. भई, चौका तो जरूर आएगा.’’
गुलाबसिंह बोला, ‘‘पर ओपन में आएगा या क्लोज में आएगा, यह तो कुछ बताया नहीं.’’
जुम्मन बोला, ‘‘फकीर कभी साफ-साफ नहीं बताते. मतलब निकालना होता है. मेरे ख्याल में तो यह क्लोज में चौका जाएगा.’’
‘‘वह कैसे?’’ सिताबसिंह ने पूछा.
‘‘जरा ध्यान दो.’’ जुम्मन सोचते हुए बोला, ‘‘मर गई चारों की नानी-अब मौत को ओपन नहीं कह सकते. मौत तो एक तरह का क्लोज है. जिन्दगी ओपन होती है, पर मौत क्लोज होती है. लिहाजा चौका क्लोज में आएगा. क्यों सेठ?’’
सेठ ने ध्यान करते हुए कहा, ‘‘मेरे विचार में यह जो योगीराज ने कहा है न, नानी के बेटे ग्यारह, यह मुझे ठीक मालूम होता है. ग्यारह अधिक ठीक है.’’
‘‘पर कुल नम्बर तो दस होते हैं सेठ?’’ गुलाबसिंह ने कहा.
‘‘हां, तो इसका मतलब यह है कि योगी ने ओपन टू क्लोज दिया है. ग्यारह यानी, एक से एक.’’
‘‘हां, यह मुझे ठीक लगता है.’’ सिताबसिंह ने कहा और जल्दी नम्बर लगाने चला गया. उसके जाते ही जुम्मन और गुलाबसिंह भी रफूचक्कर हो गए.
अब कमरे में सेठ अकेला रह गया था. वह अपनी धुन में खोया खड़ा-खड़ा बहुत देर सोचता रहा. फिर वह भी बाहर चला गया.
दूसरे दिन न चौका आया, न एक से एक. बल्कि बिन्दी से बिन्दी आई, यानी शून्य से शून्य. जुम्मन, गुलाबसिंह और सिताबसिंह मुंह लटकाए ड्राइंगरूम में बैठे थे. किन्तु सेठ प्रसन्न था. आज उसने फिर दो लाख रुपये कमाए थे.
‘‘किन्तु कैसे?’’ जुम्मन ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘मैं खुद भी बहुत हैरान था कि न चौका आया, न एक से एक( फिर भी सेठ ने दो लाख कैसे कमा लिया?’’
सेठ मुस्कराकर बोला, ‘‘तुम लोगों के जाने के बाद मैं देर तक सोचता रहा. हो न हो, योगीराज इतने आसानी से नम्बर बतलाने वाले नहीं हैं. जरूर इसमें कुछ उलझाव है. बहुत सोच-विचार के बाद मेरी समझ में आया कि योगीराज ने सबसे अन्त में जो बात कही, वही सबसे उत्तम है.’’
‘‘जो जीता वह भी हारा?’’ जुम्मन ने पूछा.
‘‘बिल्कुल सही! इसका तो साफ मतलब यह है कि हार-जीत बराबर, यानी मामला सिफर. बल्कि सिफर से सिफर. इसलिए मैंने सिफर से सिफर पर दांव लगा दिया?’’
‘‘कमाल है,’’ मैंने कहा, ‘‘सेठ, तुम मुझे कितना समझते हो.’’
‘‘सारी आयु आप लोगों की ही जूतियां सीधी की हैं.’’ सेठ भूरीमल प्रसन्न होकर बोला.
जुम्मन ने कहा, ‘‘तो आज नम्बर तुम बोलोगे सेठ, साईं की बात सुनकर जो नम्बर तुम खूब सोच करके बतलाओगे, उस पर हम लगाएंगे. पर हमसे धांधली मत करना कि तुम तो खुद कुछ और लगाते हो और हमें कुछ और बताते हो?’’
‘‘आज तो मैं कोई नम्बर बताने वाला ही नहीं हूं.’’ मैंने निर्णय के स्वर में कहा.
‘‘क्यों योगीराज, मुझसे क्या अपराध हुआ है?’’ सेठ दोनों हाथ जोड़कर बोला.
मैंने कहा, ‘‘बात वास्तव में यह है कि मैं केवल पूर्णमासी के दिन ही नम्बर बता सकता हूं. मुझे केवल उसी दिन नम्बर बताने की आज्ञा है.’’
मैंने सोचा कि आज यदि किसी प्रकार से मामला टल गया और अपनी बात रह गई और अब यदि प्रतिदिन मैंने शराब पीकर बकवास शुरू की तो एक न एक दिन पकड़ा जाऊंगा. यहां मैं बहुत आनंदपूर्वक था. यदि एक मास और आराम और शान्ति के लिए मिल जाए तो क्या बुरा है. अगली पूर्णमासी को देखेंगे. उस दिन भी यदि इन लोगों ने मेरी बकवास से अपने ढब का कोई नम्बर निकाल लिया, तो पौ बारह! वर्ना दुम दबाकर भाग जाएंगे या ये लोग स्वयं ही डंडे मारकर निकाल बाहर करेंगे.
गुलाब सिंह बोला, ‘‘सेठ, महीने में एक नम्बर भी ठीक से मिल जाए तो साल-भर की रोटी चल जाती है. एक पगला बाबा मैंने देखा था. ये तो खैर बोलते भी हैं.’’ उसने मेरी ओर संकेत करके कहा, ‘‘ये महाराज हमेशा चुप साधे रहते थे. उनका नम्बर बड़ी मुश्किल से मिलता था. किंतु जब मिलता था, तो निहाल कर देते थे. लोग हर समय उनके इधर-उधर भीड़ लगाए रहते थे.’’
मैंने आश्चर्य से पूछा, ‘‘जब वे चुपचाप रहते थे नम्बर कैसे बताते थे?...लिखकर?’’
‘‘जी नहीं,’’ गुलाबसिंह बोला, ‘‘बड़े पहुंचे हुए बुजुर्ग थे. बड़ी अजब-अजब हरकतों से नम्बर बताते थे. एक बार उन्होंने मेरे मुंह पर पान की पीक फेंकी. मैं उसी वक्त उठकर गया और ‘पंजा’ लगा दिया. आ गया. फिर एक दिन उन्होंने मुझे अपना डण्डा खींचकर मार दिया. मैंने उसी वक्त जाकर ‘इक्का’ लगा दिया, क्योंकि डण्डा इक्के के अंक की तरह होता है. इक्का भी आ गया. बड़े पहुंचे हुए बुजुर्ग थे. एक दिन अचानक बम्बई से अन्तर्धान हो गए. फिर कभी नहीं मिले. वर्ना मैं तो अब तक उम्र भर की रोटियां उनकी सेवा करके खड़ी कर लेता.’’
सेठ मेरे पांव दबाते हुए बोला, ‘‘चिन्ता मत करो गुलाबसिंह! अब गुरु महाराज के चरणों की धूल से हमारा बेड़ा पार लग जाएगा. अगली पूर्णमासी तक प्रतीक्षा करो.’’
अगली पूर्णमासी के दिन मैंने सेठ से स्पष्ट रूप से कह दिया, ‘‘हम आज नम्बर नहीं बताएंगे.’’
‘‘मुझको आज हिमालय से बुलावा आया है. योगी सि)नाथ जो हमारे गुरु हैं और जो कैलाश पर्वत पर दो हजार वर्ष से
समाधि लगाए बैठे है, वे हमसे बहुत रुष्ट हो गए हैं. हमें आज चला जाना चाहिए.’’
‘‘क्यों महाराज, आपके गुरु आपसे क्यों रुष्ट हैं?’’
‘‘बेटा भूरीमल!’’ मैंने सेठ से कहा, ‘‘गुरु हमसे इसलिए रुष्ट हैं कि हम बम्बई आकर अपने कर्तव्य को भूल गए. गुरु महाराज ने हमको इसलिए बम्बई में आने की आज्ञा दी थी कि हम बम्बई जाकर गुरु के मठ के लिए इक्कीस लाख रुपये का चन्दा जमा करके लाएं. यहां आकर हम तेरे पल्ले पड़ गए. और तू हमसे सट्टे का नम्बर लेता है और हमाारे गुरु के मठ के लिए कुछ भी नहीं करता.’’
‘‘आप आज्ञा करें महाराज! मैं अभी एक लाख का चेक काटता हूं.’’
‘‘एक लाख से क्या होगा, बेटा भूरीमल! अरे हमको चाहिए इक्कीस लाख! और हमारे गुरु की आज्ञा है कि केवल एक आदमी से इक्कीस लाख मांगना और यदि उसने न दिया तो फिर किसी से मत मांगना. वापस हिमालय चले आना.’’
‘‘मेरे पास इक्कीस लाख तो नहीं हैं, गुरुजी!’’ सेठ भूरीमल परेशान होकर बोला.
‘‘तो हम कहां तुमसे इक्कीस लाख मांगते हैं! हम तो केवल यह चाहते हैं कि हमारे ज्ञान-ध्यान की बातों से तू जो नम्बर निकाले, और उससे जो कमाए, उसका आधा हमारे नाम से बैंक में जमा करता जाए. जब इक्कीस लाख हो जाएगा तो हम उसे लेकर हिमालय चले जाएंगे.’’
‘‘मुझे स्वीकार है, मुझे स्वीकार है महर्षि,’’ सेठ बड़ी दयनीयता से बोला, ‘‘आप जो कहें मुझे स्वीकार है. मैं तो आपके नम्बरों का, मेरा मतलब है आपके चरणों का दास हूं.’’
निश्चित समय पर फिर महफिल जमी. फिर ह्विस्की का दौर चला. आज मैंने अच्छी तरह से सोच लिया था कि ऐसी अण्ट-सण्ट हांकूंगा कि किसी के पल्ले कुछ न पड़े. उसके बाद भी यदि वे नम्बर निकालने में सफल हो जाएं तो मेरा आधा हिस्सा तो खरा है. इस प्रकार ये लोग मेरे ऊपर किसी प्रकार का आरोप लगाने में सफल न होंगे. और अपना कुछ समय और मजे में कट जाएगा.
यह दुनिया है ही ऐसी. यहां पर ईमानदारी, सचाई, सहृदयता और आदर्श की ऊंचाई का अर्थ यह है कि आदमी भूखा रहे और कुढ-कुढ़कर दूसरे के लिए गधा बनकर मर जाए. अब तो इन लोगों के साथ मैं भी ऐसा ही व्यवहार करूंगा जैसा ये अब तक मुझसे करते आए हैं. इनका जूता इन्हीं के सिर रख देना चाहिए, वर्ना हमारे जैसे सिरफिरे गधों के लिए कहां स्थान है!
किन्तु, जब नम्बर बताने का समय आया तो मेरे दिल में विचित्र प्रकार का क्रोध पलने लगा. कैसे मूर्ख और लालची हैं ये लोग! कितने अनपढ़ और पैसे के पुजारी! इनके लिए धर्म, राजनीति, समाज और व्यक्ति, हैसियत, कल्चर, सभ्यता, मानव का भविष्य-ऐसे शब्द कोई अर्थ नहीं रखते. ये लोग रुपये की सीमित परिधि में घिरे हुए, अपने स्वाभिमान पर पट्टी बांधे हुए भूत और भविष्य से असम्पृक्त, अपनी लालसा के कोल्हू के चारों ओर घूमते रहते हैं. ये चारों के चारों किस प्रकार अपने चेहरे उठाए हुए मेरी ओर कैसी मूर्खता-भरी दृष्टि से देख रहे हैं जैसे मेरे एक शब्द से उन पर चारों ओर से नोटों की वर्षा आरम्भ हो जाएगी.
‘‘सूअर के बच्चे! हरामी!’’
मैंने क्रोध में झुंझलाकर कहा. वे चारों एक क्षण के लिए चौंक गए. फिर ऐसे ठस्स-से बैठ गए जैसे उन्हें सांप सूंघ गया हो.
‘‘परिश्रम नहीं करेंगे, काम नहीं करेंगे, राष्ट्र की सम्पत्ति में एक पाई की वृ)ि नहीं करेंगे! किन्तु सट्टा, जुआ, रेस, स्मगलिंग, बदमाशी, गुंडागर्दी, आवारगी, जालसाजी, बेईमानी, चोरी-डकैती, चचा-भतीजावाद, रिश्वत, हत्या, हर बुरे से बुरे काम को उचित ठहराएंगे. फिर इस बात पर मगरमच्छ के आंसू बहाएंगे कि यह देश प्रगति क्यों नहीं करता, समाज आगे क्यों नहीं बढ़ता,
निर्धनता दूर क्यों नहीं होती, लोग प्रसन्न और सभ्य क्यों नहीं दीख पड़ते!
‘‘साले, चोर, उचक्के, बदमाश, कुत्ते, कमीने चाहते हैं छूमंतर करके लाखों रुपये एक क्षण में कमा लें. नम्बर बता दो. नम्बर बता दो! क्यों नम्बर बताऊं मैं? नहीं बताता! जाओ जो करना है, कर लो मेरे ठेंगे से!’’
मारे क्रोध के मेरे मुंह से झाग निकलने लगे और मैं थरथर कांपने लगा. उनके मनहूस लालची चेहरे कैसे कुरूप और पेशेवर नजर आ रहे थे. पक्के और झुके हुए. मैंने अत्यंत क्रोध और ग्लानि से उनकी ओर से मुंह फेर लिया और कमरे से बाहर चला गया. दरवाजे की आड़ लेकर उनकी बातें सुनने लगा.
सिताबसिंह कह रहा था, ‘‘इस गधे को हुआ क्या है! हमारा खाता है, हमें ही गाली देता है. ह्विस्की वह पीए. फलों का रस इसके लिए आए! दो नौकर इसकी मालिश और मुट्ठी-चम्पी करें! सोने के लिए बढ़िया बिस्तर, रहने के लिए बढ़िया कमरा, झाड़-फानूस, गलीचे, गावतकिये, टेलीफोन, जीवन की प्रत्येक
सुविधा इसको हम दें और यह कम्बख्त हमको गाली दे! मैं अभी इसको पिस्तौल से मारता हूं.’’
‘‘नहीं, नहीं, तुम नहीं समझे सिताबसिंह,’’ जुम्मन बोला, ‘‘साईं को जलाल आ गया है. जरूर हमसे कोई गलती हो गई है.’’
‘‘जुम्मन ठीक कहता है,’’ गुलाबसिंह ने अपनी ठोड़ी खुजाते हुए कहा, ‘‘योगीराज हमसे रुष्ट हैं. जरूर हमसे कोई अपराध हुआ है.’’
‘‘अजी, कुछ नहीं हुआ,’’ सेठ भूरीमल हंसकर बोला,
‘‘साधु का वचन तो आकाशवाणी होता है. उसकी गाली में गुलाब होता है. तुमने ध्यान नहीं दिया? महात्मा ने नम्बर बता दिया है.’’
‘‘नम्बर बता दिया है, कि गाली दी है?’’ सिताबसिंह ने
क्रोध में कहा.
‘‘हंय, नम्बर बता दिया है? वह कैसे?’’ गुलाबसिंह ने आश्चर्यचकित होकर पूछा.
‘‘जरा सोचकर बताओ कि बातचीत शुरू करते समय योगीराज ने हमें कौन-सी गालियां दीं.’’
‘‘अजी, उसने छूते ही हमें सुअर का बच्चा और हरामी कहा और आखिर में साले, चोर, उचक्के, बदमाश, कुत्ते, कमीने कहा!’’ सिताबसिंह भड़ककर क्रोध से लाल होता गया.
‘‘मतलब शुरू में दो गालियां दीं और अन्त में छः गालियां दीं,’’ सेठ भूरीमल प्रसन्न होकर बोला, ‘‘बस, अब तो मामला साफ है. आज ओपन में ‘दुआ’ आएगा और क्लोज में ‘छक्का’. आज महर्षि ने जी भरकर गाली दी हैं. इसलिए आज जी करके इसी नम्बर पर सट्टा खेल दो. आखिरी पाई भी लगा दी यारों, ‘दुए’ और ‘छक्के’ पर. आज मौका है, सारी बम्बई लूट लो.’’
क्षण भर के लिए उन लोगों ने आश्चर्य और हैरत-भरी मुस्कराहट की निगाहों से सेठ भूरीमल की ओर देखा. फिर वे चारों एक-दूसरे के गले लग गए और एक-दूसरे को खुशी से मुंह चूमने लगे.
मैं भागकर अपने कमरे में चला गया और इन लोगों की प्रकृति पर सोच-विचार करने लगा, जो रुपये के लिए गालियां खाकर बेमजा न हुए थे.
इतनी बात तो बिल्कुल स्पष्ट है-मैंने अपने मन में सोचा कि यदि कल ये नम्बर न आए तो अपनी कुशल नहीं. सिताबसिंह मुझे फौरन गोली मार देगा. मैंने निकल भागने के लिए कई प्लान बनाए, किन्तु इस प्रकार कड़ा पहरा था मुझ पर कि भागने का अवसर भी न मिला. रात को सोते समय बाहर से ताले से बन्द कर दिया गया.
सुबह को जब कमरा खोला गया तो मैं निराश होकर हतप्रभ अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा में चुपचाप खड़े का खड़ा रह गया. उन चारों को अपने सामने गम्भीरता से खड़े देखकर मेरी घिग्गी
बंध गई. आज मृत्यु आ गई गधे! अब तैयार हो जाओ. मैं परेशान होकर पीछे हटने लगा. ये लोग उतने ही आगे बढ़ आए और चारों के चारों मेरे पांव पर गिर पड़े.
‘दुए’ से ‘छक्का’ आ गया था!
जुम्मन ने सत्तर हजार कमाए थे.
गुलाबसिंह ने तीस हजार!
सिताबसिंह ने पचास हजार!
सेठ भूरीमल ने अपनी सारी पूंजी लगा दी थी. उसने चौंसठ लाख कमा लिए थे.
चौंसठ लाख!
एक दांव-चौंसठ लाख!!
बाप रे!!!
अब वे लोग प्रसन्नता के कारण हंसते जाते थे और रोते भी जाते थे और मेरे पांव को चूमते भी जाते थे. प्रसन्नता और गाम्भीर्य, आश्चर्य और भय से उनके गले से विचित्र प्रकार की चीखें और कराहें निकल रही थीं. जो कुछ वे बोल रहे थे वह मेरी समझ में नहीं आ रहा था. कभी कुछ शब्द समझ आ जाते.
‘‘भगवान्...मालिक...महर्षि देवता साईं...फकीर...दरवेश...’’
मैंने एकदम कड़ककर कहा, ‘‘निकल जाओ, अभी निकल जाओ कमरे से. हम एकान्त चाहते हैं.’’
वे लोग मेरे पांव छोड़कर उल्टे पांव भागे. हाथ जोड़ते हुए थर-थर कांपते हुए, कमरे से बाहर जाने लगे, तो मैंने गरजकर फिर कहा, ‘‘सेठ को यहीं छोड़ जाओ.’’
जब सेठ अकेला मेरे सामने खड़ा रह गया तो मैंने कुछ क्षण उसकी ओर एकटक घूरकर देखा. सेठ ने दृष्टि झुका ली. उसके सारे शरीर पर कम्पन छाया हुआ था.
मैंने पूछा, ‘‘सच-सच बताओ, तुमने कितने कमाए?’’
‘‘चौंसठ लाख गुरुदेव, केवल चौंसठ लाख!’’
‘‘तो मेरे बत्तीस लाख मुझे दे दो.’’
‘‘अभी लीजिए, स्वामी.’’
सेठ भूरीमल घबराया हुआ, भागता हुआ, अपने बेडरूम में गया और अपनी तिजोरी खोलकर हजार-हजार के बत्तीस सौ नोट लेकर आया. और नोट लाकर उसने मेरे कदमों पर ढेरी कर दिए.
बत्तीस लाख के नोट देखकर मेरा दिल पसीजा और मेरा स्वर बदला और मैंने कहा, ‘‘बच्चा, हम तुमसे बहुत प्रसन्न हैं. तू अपनी परीक्षा में सफल हुआ. इस खुशी में हम तुम्हें और दो लाख का पुरस्कार प्रदान करते हैं. इस ढेरी में से दो लाख के नोट उठा ले और शेष तीस लाख के नोट लेकर हमारे साथ बैंको चल.’’
क्रमशः....
अगले अंक में.....
जाना गधे का दि ग्रेट नेशनल स्टार बैंक ऑफ इण्डिया में, और जमा कराना तीस लाख रुपये का, और मुलाकात करना बैंक के जनरल मैनेजर से...
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