साक्षात्कार ‘‘मनुष्य के निर्माण का आधार है शिक्षा’’ (डॉ . उषा रानी से डॉ. भावना शुक्ल की बातचीत के अंश) डॉ. उषा रानी एक बेहतरीन कवयित्री ...
साक्षात्कार
‘‘मनुष्य के निर्माण का आधार है शिक्षा’’
(डॉ. उषा रानी से डॉ. भावना शुक्ल की बातचीत के अंश)
डॉ. उषा रानी एक बेहतरीन कवयित्री और शिक्षिका है. इनकी अधिकांश कविताएं गम्भीर विषयों पर होती है. ये वर्तमान में बैंगलौर (कर्नाटक) के बाल्डविन महिला महाविद्यालय की हिंदी की विभागाध्यक्षा हैं. उनसे शिक्षा और समाज से जुडे विभिन्न मुददों पर डॉ. भावना शुक्ल की एक बेबाक बातचीत यहां प्रस्तुत हैः-
1. डॉ. भावना शुक्लः आप अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में कुछ बताइये.
डॉ. उषा रानीः आदरणीय पिताजी दर्शनशास्त्र एवं हिंदी के विद्वान थे. इस कारण घर में बचपन से ही साहित्यिक वातावरण मिला. उनके मार्गदर्शन में बड़े-बड़े विद्वान जैसे डॉ. विद्यानिवास मिश्र आदि को करीब से सुनने व जानने का अवसर मिला. साहित्यिक सम्मेलनों में भाग लेने व आयोजन के प्रतिभागी बनने का अवसर मिलने के कारण इन गतिविधियों का हिस्सा बन पायी. मूल रूप से दक्षिण भारतीय होने पर भी पिताजी कई पीढ़ियों से वाराणसी में बसे हैं. इस कारण जन्म एवं शिक्षा आदि वाराणसी में हुई.
2. डॉ. भावना शुक्लः साहित्य के प्रति आपकी रुचि कब से और कैसे जाग्रत हुई?
डॉ. उषा रानीः साहित्य, संगीत और कला की राजधानी में ज्ञानरूपी गंगा की सतत् धारा बहती रहती है. ऐसे में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के साहित्यिक व्याख्यानों में बड़े-बड़े साहित्यकारों/कवियों को सुनते रहने के कारण साहित्य के प्रति रुचि जागना स्वाभाविक रहा.
उन दिनों की मेरी स्वरचित कविता याद आती है-
‘शुभ्रप्रकाश वलय में हृदय के बंद कपाट खुल रहे हैं
नंगे पांव किरणें धरती के अंधियारे को चटाई की
तरह समेट देती है
तब तम का कठोर
पत्थर पिघलने लगता है
धरती कर्म प्रेरित पथ
बन जाती है’
लगातार वैचारिक मंथन के वातावरण में रहने के कारण लेखन के प्रति इच्छा दृढ़ होती चली गई. और अब कर्नाटक में बीस वर्षों से शिक्षण के क्षेत्र में होने के कारण साहित्य की सेवा का अवसर मिलता रहा है.
3. डॉ. भावना शुक्लः अब तक आपने किन किन लेखकों को पढ़ा और किन किन लेखकों ने आपको प्रभावित किया?
डॉ. उषा रानीः अनेक लेखकों ने मेरे विचार संसार को प्रभावित किया है. सबके नाम बताना असंभव है. लम्बी लिस्ट हो जायेगी.
प्रिय लेखकों में प्रेमचन्द, रामधारीसिंह दिनकर, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, भीष्म साहनी, मुक्तिबोध, और भी अनेक आलोचक एवं निबंधकार हैं.
पाश्चात्य लेखकों में कीट्स, शेली, निकोल, वुड्सवर्थ, फ्रायड, शेक्सपीयर, विलियम ब्लेक आदि लेखकों को पढ़कर बहुत कुछ सीखा है.
4 डॉ. भावना शुक्लः नारी शिक्षा के प्रति आपके क्या विचार है और इस सन्दर्भ में शैक्षणिक जगत में आप क्या क्या बदलाव चाहती है?
डॉ. उषा रानीः सर्वव्यापक अर्थ में मनुष्य के निर्माण का
आधार है शिक्षा. कर्म करते हुए सम्बंधों का निर्वाह करने में शिक्षा अति आवश्यक रूप से सहायक होती है. खुला मस्तिष्क में बौद्धिक, सामाजिक एवं नैतिक गुण के विकास के लिए शिक्षा द्वार खोलती है.
आज के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारी शिक्षित होने के कारण ही शोषण का, अन्याय का एवं अत्याचार का विरोध कर पा रही है.
शिक्षा से नारी में आत्मविश्वास तथा अधिकार के प्रति सजगता आ पाती है और साथ ही स्वस्थ विचार वाले समाज का निर्माण करने में सहायक होती है.
मेरी एक और मेरी स्वरचित कविता की पंक्तियां यही भाव प्रदर्शित करती हुई-
‘नारी पुरुष की
जननी हो...
भरो ऐसे आचार विचार और संस्कार...
समझे वह सृजनशीला की
भूमिका...
माने उपकार.
केवल सामाजिक विकास के लिए ही नहीं आत्मिक विकास के लिए भी नारी शिक्षा की परम आवश्यकता है.
5. डॉ. भावना शुक्लः आपने अपनी कविताओं में गंभीर विषयों पर कलम चलाई है. क्या आप मानती है कि कविताओं के माध्यम से समाज में बदलाव लाया जा सकता है और कैसे?
डॉ. उषा रानीः आपका प्रश्न आज के सन्दर्भ में बहुत सटीक है. यह सच है कि मेरी रचनाओं में गम्भीरता का पुट रहता है. संप्रेषण एक स्वतंत्र अभिव्यक्ति है. मुझे लगता है कि गम्भीरता से कही बात गहरे पैठती है. कविता मन पर सीधे प्रभाव डालती है. कविता जहां मन को रंजित और व्यंजित करती है, वहीं आंदोलित भी करती है. समाज में बदलाव लाने के लिए विचारों में बदलाव लाना आवश्यक है. इस दृष्टि से कविता सशक्त माध्यम है. ऐसी कविताओं की रचना बार-बार हो, जिसमें मानवीय संवेदना की चर्चा काव्यात्मक हो.
6. डॉ भावना शुक्लः साहित्य के माध्यम से समाज में परिवर्तन लाया जा सकता है. इस सन्दर्भ में आपके क्या विचार है?
डॉ. उषा रानीः साहित्य समाज का आईना होता है. सामाजिक ढांचा, संस्कृति, सभ्यता एवं मानवीय व्यवहारों के विभिन्न आयामों को हूबहू साहित्य में देखा जा सकता है. शास्त्र की शिक्षा से समाज में विचार क्रान्ति उत्पन्न होती है.
साहित्य के माध्यम से समाज के संगत एवं विसंगत परिस्थितियों के बारे में विस्तृतता से ज्ञान प्राप्त होता है. सभी प्रकार के परिवर्तन के मूल में विचार मुख्य होते हैं. आज का युवा तर्कशील है. किसी भी अवधारणा के सापेक्ष विचारों की स्पष्टता अनिवार्य है. अतः वर्तमान समाज में परिवर्तन लाने के लिए साहित्य की आवश्यकता है. साहित्य विचार संप्रेषण का सशक्त माध्यम है.
7. डॉ भावना शुक्लः वर्तमान में शिक्षा का जो व्यवसायीकरण हो रहा है उसे रोकने के लिए क्या उपाय किये जा सकते है?
डॉ. उषा रानीः आज जीवन का हर क्षेत्र व्यवसायीकरण की त्रासदी झेल रहा है. हर क्षेत्र में व्यापार हावी हो गया है. शिक्षा का व्यापारीकरण अत्यन्त खतरनाक है. मेरे विचार से शिक्षा को संस्थाओं से न जोड़कर शिक्षकों से जोड़ना आवश्यक है. भारतीय शिक्षा पद्धति में ज्ञान देना प्रमुख लक्ष्य होता था न कि अर्थोत्पादन. व्यक्ति का जीवन दर्शन सेवा के विचारों से पूरित था, परन्तु आज अर्थ मुख्य लक्ष्य बन बैठा है. जबकि ज्ञान देना मुख्य लक्ष्य एवं अर्थप्राप्ति परिणाम के रूप में लिया जाना चाहिए. आज अर्थ को लक्ष्य के रूप में लिया जा रहा है. यह व्यवसायीकरण हुआ. आज संस्थाओं का लक्ष्य धन और विद्यार्थियों का लक्ष्य डिग्री हो गया. अभिभावक एवं संस्थायें सभी पक्ष परिणाम से जुड़ गये हैं.
8. डॉण् भावना शुक्लः शैक्षिक जगत में आपके अब तक अनुभवों में ऐसा कोई अनुभव जिसने आपको प्रभावित किया हो?
डॉ. उषा रानीः लम्बे समय से शिक्षा के क्षेत्र में होने के कारण कई तरह के अनुभव होते रहते हैं. आजकल के विद्यार्थियो में अनुशासन का अभाव होना बहुत खलता है.
शिक्षा के दो पक्ष महत्वपूर्ण हैं-
1. उत्पादक प्रतिभा का विकास एवं 2. मानवीय चरित्र का निर्माण.
आज की शिक्षा उत्पादक प्रतिभा का विकास तो कर रही है. परन्तु मानवीय चरित्र के निर्माण में असफल साबित हो रही है. परिवार, समाज, राष्ट्र का दायित्व का बोध कराने में असफल है. चरित्र निर्माण का पक्ष गौण है. इसीलिए हम आज की पीढ़ी में अनुशासन के प्रति उदासीनता देखते हैं.
9. डॉण् भावना शुक्लः आप अहिन्दी भाषी प्रदेश में हिंदी भाषा की वरिष्ठ प्राध्यापक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष के तौर पर कार्यरत हैं, तो बताइये कि अहिन्दी भाषी प्रदेशों में हिंदी विषय में शिक्षा प्राप्त युवाओं के लिए रोजगार के कितने अवसर हैं?
डॉ. उषा रानीः अहिन्दी भाषी क्षेत्र में हिन्दी विषय में अनेक रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं. लोगों में रुचि भी है. जैसे -अनुवादक, शिक्षक, प्रवक्ता, आकाशवाणी में विभिन्न कार्यक्रम से जुड़ना, हिंदी अखबार व पत्रिकाओं में लेखन करना या मुद्रण विभाग में तथा पत्रकारिता में अनेक अवसर हैं.
10. भावना शुक्लः हमारे पाठकों को आप क्या सन्देश देना चाहेंगी?
डॉ. उषा रानीः हम सभी शिक्षकों को अपने विद्यार्थियों से भावनात्मक संबंध बनाना आवश्यक है. चरित्र निर्माण मुख्य लक्ष्य हो. ऐसा प्रयास होना चाहिए.
लेखक और साहित्यकार समाज की विसंगतियों, पीड़ा के साथ साथ समाज की समरसता, एकता एवं सकारात्मक सोच को भी युवा पीढ़ी के सामने रखते हैं तो मानवीय चरित्र का उजला रूप प्रकाशित होगा.
और अंत में मुझे अपनी पत्रिका में सम्मान देने के लिए आप सभी का अनेक आभार बहुत-बहुत शुभकामनाएं.
संपर्कः सह संपादक प्राची
डब्ल्यू जेड 21, हरिसिंह पार्क, मुल्तान नगर,
पश्चिम विहार, नई दिल्ली- 110056
मोबाइलः 09278720311
ईमेल- bhavanasharma30@gmail-com
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