आपने कहा है निडर संपादकीय मुझे ‘‘प्राची’’ का जून-2016 अंक प्राप्त हुआ. सर्वप्रथम मैंने संपादकीय पढ़ा. आपका संपादकीय आपकी निर्भीकता, जीवंत...
आपने कहा है
निडर संपादकीय
मुझे ‘‘प्राची’’ का जून-2016 अंक प्राप्त हुआ. सर्वप्रथम मैंने संपादकीय पढ़ा. आपका संपादकीय आपकी निर्भीकता, जीवंतता एवं पत्रकारिता के मिशन के प्रति समर्पित भावना का प्रतीक है. आज कितनी अधिक संख्या में हिंदी पत्रिकाएं निकलती हैं, लेकिन ज्वलंत विषयों पर ऐसी निर्भीक टिप्पणी पढ़ने को कहीं नहीं मिलती है. प्रायः अधिकांश संपादक अपनी इस जिम्मेदारी को ठीक ढंग से नहीं निभाते हैं, कारण चाहे जो हो.
संपादक की एक सामाजिक जिम्मेदारी होती है, जिसे निभाना उसका एक कर्त्तव्य होता है. आप इस कर्त्तव्य को भली-भांति निभा रहे हैं. ‘‘अमीर कैसे बनें’’ में आपने सही कहा है कि अमीर बनने के लिए पहले से ही अमीर होना आवश्यक है, गरीब के पास लक्ष्मी भी जाने से कतराती है. बैंक वाले भी गरीबों/सामान्य लोगों से ;ण वसूली करने में खूब कड़ाई बरतते हैं. किंतु बड़े एवं धनाढ्य लोग बैंकों के हजारों करोड़ ;ण लेकर विदेश पलायन कर जाते हैं और कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर पाता. आपको जोरदार संपादकीय के लिए बधाई, आगे भी इसे जारी रखें.
‘‘बातचीत’’ के अंतर्गत रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी की रचना प्रक्रिया पर बातचीत पढ़ना अद्भुत अनुभूति दे गयी. डॉ. प्रमिला भारती से डॉ. भावना शुक्ल का साक्षात्कार बहुत सारगर्भित लगा. प्रमिला जी का यह कहना बिल्कुल सही है कि लेखन का आधार मूल रूप से दर्द ही होता है. बाह्य दृश्य जब हृदय को मथते हैं तभी विचार निकलते हैं और कलम चलती है. पहले भी किसी ने इसी बात को यूं कहा है- ‘वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान.’ ‘‘भूमंडलीकरण के द्वंद्व में पिसती अर्थव्यवस्था’’ में राम शिव मूर्ति यादव जी इस बात को बहुत अच्छी तरह अभिव्यक्त कर सके हैं कि कैसे लोगों को बेवकूफ बनाया जा रहा है. डॉ. मधुर नज्मी की रचना ‘‘पत्रकारिता तब मिशन थी..’’ आज की पत्रकारिता के लिए प्रकाश स्तंभ है. हमारी विरासत के अंतर्गत ‘इंदुमती’, धरोहर कहानी के अंतर्गत ‘अंगूठे का दाग’ तथा भारतीय अंग्रेजी कहानी ‘डॉक्टर के शब्द’ बहुत अच्छी एवं हृदयस्पर्शी कहानियां हैं. शीला त्रिवेदी की कहानी ‘मुझे पंख दे दो’ तथा नीतू सुदीप्ति की कहानी ‘काला अध्याय’ प्रेरक कहानियां हैं. काव्य जगत की अधिकांश कविताएं मर्मस्पर्शी हैं. मां के ऊपर कई कविताएं एवं लघुकथाएं छपी हैं, जो अच्छी हैं. सुंदर सामग्री चयन एवं सशक्त संपादक के लिए संपादक एवं संपादक मंडल को बहुत-बहुत बधाई.
शिवकुमार कश्यप, ठाणे (महाराष्ट्र)
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संपादकीय चार चांद लगाती है
प्राची सामाजिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विचारों की पूंजी के साथ निरंतर समृद्धि की ओर बढ़ रही है. पाठकों एवं रचनाकारों के लिए इससे बढ़कर खुशी और क्या हो सकती है. संपादकीय और (पाठकों के पत्र) ‘आपने कहा है’ इसमें चार चांद लगाते हैं. देहदान करने वाले श्री जगत नारायण वाजपेयी को शत-शत नमन एवं श्रद्धांजलि. सामग्री के चयन में आप सिद्धहस्त हैं.
अरविन्द अवस्थी, मीरजापुर
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गरीब वर्ग दमनचक्र से मुक्त नहीं
जुलाई 2016 में प्राची का अंक पढ़ा. प्राची में प्रकाशित सभी कहानी और कविताएं बहुत ही अच्छी लगीं. सम्पादकीय ‘सावन फिर रुलाएगा’ ;तुओं की अनिश्चितता का बहुत ही वस्तुपरक चित्रण करता है. कहानी ‘ग्यारह वर्ष का समय’ दो बिछड़े हुए पति-पत्नी का बहुत ही हृदयस्पर्शी चित्रण है. आचार्य एवं पं. रामचंद्र शुक्ल ने एक बिछड़ी हुई पत्नी का बहुत ही हृदयस्पर्शी चित्रण किया है. ग्यारह वर्ष तक एक खंडहर में विधवा का सा जीवन जीने के लिए बाध्य युवती का दुखी जीवन हमारे मन को द्रवित कर देता है. कहानी का अंत सुखद है. बिछड़े हुए पति-पत्नी अंत में मिलकर एक हो जाते हैं.
‘पक्षाघात’ कहानी में कहानीकार ने रीना की मानसिक दशा का बहुत ही करुण चित्रण किया है. ‘सुपनीली की कब्र’ में अमृता प्रीतम ने सुपनीली की दर्दनाक मृत्यु का हृदयस्पर्शी चित्रण कर हम पाठकों को रूला दिया. ‘आशंकाओं में नागपाश’ में डॉ. कुंवर प्रेमिल ने आज समाज में जो माता-पिता और पुत्र और पुत्रबंधुओं में जो संबंधों की दूरियां बढ़ती जा रही हैं, उसका यथार्थवादी चित्रण किया है. सौभाग्य से सुनीता को ऐसी बहू जाती है जो उसके प्रति पूर्ण प्रेम प्रदर्शित करती है. ऐसी शिष्ट और विनम्र बहू को पाकर सुनीता आनंद विभोर होकर उसके गले में सोने का हार पहना देती है.
‘नुटू मोख्वार का समाज’ में कहानीकार ने सामन्तवादियों के अत्याचार का बड़ा ही यथार्थवादी चित्रण किया है. सामन्तवाद ने कई शताब्दियों तक हमारे देशवासियों का शोषण किया है. आज भी गरीब वर्ग उनके दमनचक्र से मुक्त नहीं हुआ है.
सभी लघुकथाएं बहुत ही म्चिकर हैं. ‘एक पिता ये भी’ कविता बहुत ही मार्मिक है. वह हमारे अर्न्तमन को भिगो देती है. पुत्रियों पर हो रहे अत्याचार रुकने चाहिए. शेष सभी कविताएं बहुत ही अच्छी लगीं.
प्राची के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं.
शरद चंद्र श्रीवास्तव, जबलपुर (उ.प्र.)
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श्रद्धांजलि
नहीं रहे मशहूर कवि और
पत्रकार नीलाभ अश्क
कवि नीलाभ अश्क का 70 साल की उम्र में दिनांक 23.07.2016 को निधन हो गया. वह वरिष्ठ साहित्यकार उपेंद्रनाथ अश्क के पुत्र थे. नीलाभ कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. शनिवार को ही निगम बोध घाट पर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया. उनके परिवार में पत्नी भूमिका द्विवेदी है. 16 अगस्त 1945 को मुंबई में जन्मे नीलाभ की शिक्षा इलाहाबाद से हुई थी. वह लेखक, कवि, अनुवादक और संपादक भी थे. उन्होंने चार साल तक लंदन में बीबीसी (ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग सर्विस) की हिंदी सेवा में बतौर प्रोड्यूसर कार्य किया.
उनकी प्रसिद्ध कृतियां ‘अपने आप से लंबी बातचीत’, ‘जंगल खामोश है’, ‘शब्दों से नाता अटूट है’, ‘शोक का सुख’, ‘ईश्वर को मोक्ष’ हैं. अरुधंति राय के उपन्यास ‘गॉड ऑफ स्माल थिंग्स’ के हिंदी अनुवाद के लिए भी उन्हें पुरस्कार देने की घोषणा की गई थी. संप्रति वह राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की पत्रिका ‘रंग प्रसंग’ के संपादक के तौर पर कार्यरत थे.
पत्नी के साथ अभद्र व्यवहार के बाद सोशल मीडिया में चर्चा में रहने के बाद नीलाभ ने गत 14 जुलाई को ‘प्रायश्चित’ शीर्षक से बेबाकी से माफीनामा लिखा था, जिसकी साहित्य जगत में काफी चर्चा हुई थी.
वह दिल्ली में बुराड़ी में रह रहे थे.
प्रस्तुतिः संपादक प्राची
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सर्वश्रेष्ठ पत्र
प्राची एक दिशाबोधी पत्रिका है
सारस्वत पत्रिका ‘प्राची’ साहित्य पत्रिका और साहित्य के सेवाकारियों के लिए एक दिशाबोधी पत्रिका है. इसकी एक सबसे बड़ी खूबी इसकी प्रकाशकीय नियमितता है. मेरा अपना लेखकीय सरोकार आज की अनेकों पत्रिकाओं से है किंतु जो नियमितता इसके प्रकाश में है अत्यंत ‘रेयर’ है. वह संपादक कि विचार दृष्टि और उसका साहित्य लेखन के प्रति समर्पित, सकंलित, सात्विक मन भाव है. इस भाव के अभाव में कुछ भी संभव नहीं हो पाता. भाई राकेश आप सरकारी अनिवार्य सेवा में हैं. वहां से समय निकालकर इतना सब कुछ प्रतिपादित कर पा रहे हैं, यह निश्चित रूप से साहित्य की मध्यम सेवा है. साहित्य की विविध विधाओं में आपने पहचान परक कार्य किया है. आपकी किताबें इसकी शाहिद हैं. अंग्रेजी साहित्य में 'The Eclipsed Moon' और हिंदी में ‘पीला उदास चांद’ का विज्ञापन पढ़कर आत्मिक खुशी हुई. इस यकीन से पुरयकीन हूं कि दोनों ही औपन्यासिक कृतियां विधा को सारस्वत गति देंगे. ‘अमीर कैसे बनें?’ संपादकीय में आपके नुस्खे नायाब हैं. सुविधासम्पन्न लोगों को आपकी नसीहत से समाधान मिलेगा. ‘‘अगर आप गरीब हैं और समाज में आपकी कोई साख नहीं है तो कभी भी बैंक से कर्ज लेने का जोखिम मत उठाना.’’
पत्रिका का ‘धरोहर स्तंभ’ भी अन्य समाग्रियों की तरह नायाब है. अल्पना हर्ष, ज्योति जुल्का, रमा शर्मा, अनीता सिंह राज की समकालीन कविताएं प्रभावशालिनी हैं. डॉ. प्रमिला भारती से डॉ. भावना शुक्ल की बातचीत संयमित और काफी कुछ जानने समझने के लिए प्रेरित उत्कुंठित करती है. डॉ. भावना शुक्ल के सवालात साहित्यिक नज़रिये से जितने शालीन हैं, उसी नज़रिये के उत्तर पढ़कर खुशी हुई. यह पंक्तिकार व्यक्तिगत तौर पर आग्रही है जिन तथाकथित साहित्यकारों के संस्कार साहित्यिक नहीं हैं उन्हें प्रकाशित करने से ‘प्राची’ गुरेज करे. राम शिव मूर्ति का आलेख सिर्फ सरकारी डाटा है. भाषाई कसावट-बुनावट कहीं नहीं है. साहित्य समाचार के अंतर्गत गरिमापुरित आयोजनों को ही छापने का महत्व दिया जाय. ये सारे सुझाव-संकेत ‘प्राची’ की गरिमा को अनुकूलित करने वाले हो सकते हैं. पत्रिका परिवार को ईश्वर ‘राम-कथा’ की आयु दे.
डॉ. मधुर नज़मी, मऊ (उ.प्र.)
(डॉ. मधुर नज्मी को अंशलाल पन्द्रे की पुस्तक सबरंग हरसंग’ उपहार स्वरूप भेजी जाएगी. संपादक)
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