{सदियों पुराना, कभी खराब न होने वाला 'एवरग्रीन' रस होता है, ''निंदा-रस''। यह रस सेवन कर्ताओं का मनोरंजन करता है......
{सदियों पुराना, कभी खराब न होने वाला 'एवरग्रीन' रस होता है, ''निंदा-रस''। यह रस सेवन कर्ताओं का मनोरंजन करता है....उनका भोजन पचाता है....उनकी 'निंदा-तलब' (बेचैनी) दूर करता है। यानिकी यह एक परफैक्ट थैरेपी की तरह काम करता है। 'निंदा-रस/सूप' का यह सर्वाधिक सेवन नेता नामक असंवेदनशील जाति के प्राणियों द्वारा ही किया जाता है। ताकि उनका टी.आर.पी. वाला कद उनकी पार्टी....देश-प्रदेश में बढ़ सके और वे रातों-रात स्टार बन सके....मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक बन सके।}
आदरणीय कबीरदासजी को लालटेन की रोशनी वाले अपने युग में अपनी छोटी सी कुटिया को देख कर एक 'आइडिया' आया होगा। तभी तो उन्होंने लिखा था, ''निंदक-नियरे राखियो, आंगन कुटि छवाय'' (इसका भावार्थ बतलाने की आवश्यकता मैं इसलिये नहीं समझता हूँ क्योंकि, हम सभी ने अपने स्कूली जमाने में बहुत ही अच्छी तरह से इसे रटा था। जो कि हम सभी को अभी तक याद है)
खैर, सा'ब अब न तो वैसी 'कुटिया' रही और न ही वैसी 'लालटेन'....न ही वैसे 'आइडिया' रहें और न ही वैसे 'सच्चे-निंदक'। क्योंकि अब कुटिया (घर) की जगह मकान बन गये और 'लालटेन' की जगह पूरे का पूरा आई. टी. सेक्टर। अब तो फलों-सब्जियों के शुद्ध रसों....जूसों के स्वादों के साथ ही साथ उन चीजों का मिलावटी (कृत्रिम) सूपों का टेस्ट भी मिलने लगा।
सदियों पुराना, कभी खराब न होने वाला 'एवरग्रीन' रस 'निंदा-रस' अभी भी अपनी पहचान बनाये हुए है। यह रस हिन्दी-साहित्य के सभी नौ रसों बढ़कर....अलग हटकर अमरतत्व को प्राप्त होकर मानव की आत्माओं से जा मिला, ऐसा माना जाता है। यह रस सेवन कर्ताओं का मनोरंजन करता है....उनका भोजन पचाता है....उनकी 'निंदा-तलब' (बेचैनी) दूर करता है। यानिकी यह एक परफैक्ट थैरेपी की तरह काम करता है।
अभी कुछ वषरें पूर्व तक इस 'निंदा-रस' को बनाने और पीने का एक मात्र अधिकार सिर्फ 'नारी-जाति' को ही था। क्योंकि तब गृहिणियाँ बनी न्यूनतम दो नारियां अपने घर के 'चूल्हा-चक्की' वाले कामों से जैसे ही फ्री होती थी। वैसे ही वे किसी तीसरी नारी के संबंध में कड़वा....तीखा....जायकेदार 'निंदा-रस' बनाने का काम शुरू कर देती थी और फिर उस रस में अपनी ईर्ष्या-जलन का मिर्च-मसाला डालकर सिने अभिनेता सैफ अली खान के द्वारा चड्डी-बनियान पहनकर कसरत करते हुए....समुन्द्र तट पर कुर्सी पर बैठे हुए किये गये विज्ञापन....''बड़े ही आराम से'' वाली स्टाईल में ''बड़े ही आराम से''....चुस्कियां....चुटकियां लेते हुए पीती थी।
अब जमाना बदलने लगा। आज नारी-जात, पुरूष-जात के साथ अपना कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हुए कमाई भी करने लगी है। दिन-रात, घर-बाहर के कामों में व्यस्त रहने लगी है। समयाभाव के कारण सदियों पुराना उनको मिला सौ फीसदी 'निंदा-रस' का अधिकार उनसे पचास फीसदी छिन गया। यानिकी अब फिफ्टी परसेंट नारी-जात के पास रहा और फिफ्टी परसेंट पुरूष-जात के पास चला गया।
जैसे ही पुरूष-जात के लोग और नारी-जात की स्त्रियां अपने-अपने सरकारी ऑफिसों में नौकरी करते समय 'वर्किंग-ऑवर्स' में भी फ्री हुए अथवा हुई। वैसे ही सभी ने मिल-जुल कर किसी 'थर्ड-पर्सन' अथवा 'थर्ड-पर्सनी' की बुराईयों का टॉनिक रूपी 'निंदा-रस' बनाना और पीना शुरू कर दिया है। (वैसे यह बात तो सर्वविदित है ही की 'निंदा-रस' केवल उसी व्यक्ति का बनाया जाता है, जो कि प्रत्यक्ष रूप से उनके समीप उपस्थित नहीं रहता है। अर्थात 'निंदा-रस' व्यक्ति विशेष की पीठ के पीछे ही बनता है।)
वैसे सही मायने में देखा जाये तो आज कल पुरूष-जात में 'निंदा-रस'/सूप का सर्वाधिक सेवन नेता नामक असंवेदनशील जाति के प्राणियों द्वारा ही किया जाता है। फिर चाहे वो प्रदेश सरकार का नेता हो अथवा राष्ट्रीय स्तर का ?.....सत्ता पक्ष का अथवा विपक्ष का ? सभी समय-समय पर....एक के बाद एक इस 'निंदा-सूप' के छीटे एक-दूसरे पर छिड़कते रहते हैं...मारते रहते हैं। साथ ही इसकी सूचना पि्रंट-मीडिया एवं टी.वी. चैनलों वालों को भी देते रहते हैं, इस हिदायत के साथ की उनका 'निंदा-सूप' अच्छी तरह से....काफी समय तक कवरेज होना चाहिये। ताकि चैनलों की टी.आर.पी. बढ़ने के साथ ही साथ उनकी पार्टी....देश-प्रदेश में भी उनका टी.आर.पी. जैसा कद बढ़ सके और वे रातों'रात स्टार बन सके....चुनाव होने पर मुख्य मंत्री से लेकर प्रधान मंत्री तक (अपनी औकात अनुसार) बन सके।
'निंदा-रस'...'निंदा-जूस'...अथवा 'निंदा-सूप' सभी एक ही 'जूसर' के चट्टे-बट्टे होते हैं....। एक ही 'मिक्सर' के होते हैं। इसलिये इनका क्षेत्र बहुत ही विस्तृत होता है। शनि, राहु-केतु आदि के कुप्रभावों से एक बार बचा भी जा सकता है। किन्तु 'निंदा-रस' के कुप्रभाव से अभी तक न तो कोई बच पाया है और न तो कोई बच पायेगा। शायद यही कारण है कि निम्न श्रेणी अर्धनग्न गरीब से लेकर देश की अंधी जनता तक....मध्यवर्गीय गरीब से लेकर इनकम टैक्स से छापा खाये अमीर तक....सदगुरू से लेकर साधु-संत तक....सगे रिश्तों से लेकर मुंह-बोले रिश्तों तक....स्वर्गीय/भूतपूर्व सामाजिक/राजनितिक पार्टी के नेताओं से लेकर वर्तमान पार्टी तक के नेताओं तक सभी इसके शिकार हुए हैं अथवा सभी ने इसको अपना शिकार बनाया हैं।
इतना ही नहीं 'इन्टरनेट' के माध्यम से सिमटकर एक हुई पूरी दुनिया में कहीं भी....कभी भी अपने-अपने 'लैपटॉपों' के सामने बैठकर 'कॉन्फ्रेंस' की स्टाईल में भी 'देशी 'निंदा-रसों' एवं 'विदेशी 'निंदा-सूपों' का सौपान भी किया जा सकता है अथवा करना सिखाया जा सकता है।
इस प्रकार निंदा-रसों...निंदा-जूसों....निंदा-सूपों...के सर्वव्यापी महत्व को ध्यान में रखते हुए हमें आज आवश्यकता है इसके निजी करण को समाप्त करके इसका पूर्णतः सार्वजनिककरण एवं व्यवसायिक करण करने की। ताकि प्रकृति की भांति इसका भी पूर्ण रूप से निजी स्वार्थ हेतु दौहन एवं शोषण किया जा सके।
इन सभी रसों के विश्व व्यापी प्रचार-प्रसार के लिये हमें निम्न कदम उठाना पड़ेंगे।
प्रथम, निम्न तरह की वेबसाईटों को खोलना होगा....बनाना होगा। जैसे-'निंदा'डॉट कॉम'....'निंदा-ड्रिंक्स डॉट कॉम....''निंदा-सूप रेसेपी....''निंदा-कोचिंग क्लॉसेस....''निंदा-वाक-चातुर्य' पर्सनालिटी डॉट कॉम...'निंदा-खेल प्राधिकरण वेबसाइट' आदि-आदि।
द्वितीय, शहर कस्बों एवं गाँवों के हर गली मोहल्लों में 'निंदा-रसों'...'निंदा-जूसों...''निंदा-सूपों' के स्टॉल लगाने होंगे....उनका साहित्य....ब्रोसर छपवाकर भूखी प्यासी जनता में वितरित करने होंगे। ताकि एक साल के बच्चे से लेके तक के हमारे बड़े-बूढ़ों अथवा बड़ी-बूढ़ियों इनका रसास्वादन कर सकेंगे। पाठकों, जल्दी आईये 'फ्री' में मिलने वाले 'निंदा-डॉट कॉम' पर 'निंदा-सूप' पीने के लिये कहीं ऐसा न हो की आप ऐसे सूपों को पीने से वंचित रह जायें और फिर पछताना पड़े।
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संपर्क:
अशोक जैन 'पोरवाल' ई-8/298 आश्रय अपार्टमेंट त्रिलोचन-सिंह नगर(त्रिलंगा/शाहपुरा) भोपाल-462039 (मो.) 09098379074 (दूरभाष) (नि.) (0755) 4076446
साहित्यिक परिचय इस लिंक पर देखें - http://www.rachanakar.org/2016/07/blog-post_59.html
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