कमला कुम्हारिन और सिनेमा का संचार : ‘ वेलकम टू सज्जनपुर’[2008] फिल्म के विशेष संदर्भ में .. आलेख : रेणु कुमारी पी-एच. डी शोधार्थी महात...
कमला कुम्हारिन और सिनेमा का संचार : ‘वेलकम टू सज्जनपुर’[2008] फिल्म के विशेष संदर्भ में ..
आलेख : रेणु कुमारी
पी-एच. डी शोधार्थी
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
7387909734
“बिरवा पर चढ़ी कागा बोले
तुम्हरे बालम कईसे भोले
बिना पता की चिट्ठी डाली
चिट्ठी यहां वहां है डोले....”
यह गीत है इक्कीसवीं सदी के पहले दशक की हिंदी फिल्म वेलकम टू सज्जनपुर का . जैसा कि गीत में स्पष्ट है कौवा और चिट्ठी दोनों संचार माध्यमों की बात सिनेमा के माध्यम में इस फिल्म में हो रही है . यह कहानी है सज्जनपुर गांव की जहां लगभग सभी लोग अशिक्षित हैं . इक्के दुक्के लोगों को छोड़कर इस गांव में कोई पढ़ा लिखा नहीं , इतना ही नहीं, संचार एवं सूचना तकनीक के इस युग में भी एक दो लोगों के पास ही मोबाईल है बाकी का पूरा गांव आज भी दूर दराज रह रहे लोगों से संचार स्थापित करने के लिए चिट्ठी – पत्री पर निर्भर हैं .यह उनका सबसे सस्ता,सहज और स्थाई संचार का साधन है .चिट्ठी लिखवाने के लिए भी ये लोग महादेव जो गांव का एकमात्र ग्रेजुएट है , उसपर निर्भर हैं . बेरोज़गार महादेव के लिए अब यही रोज़गार का साधन है . दो रुपया लेकर वह लोगों की चिट्ठियां लिखता है . गांव के कई लोग उनसे चिट्ठी लिखवाने उसके पास आते हैं उन्हीं में एक है कमला कुम्हारिन .
यह कमला कुम्हारिन अशिक्षित है , चिट्ठी लिख नहीं सकती , पढ़ नहीं सकती . भोली भाली सीधी सादी कमला अपनी सास के साथ गांव में रहती है . माटी के बर्तन बनाना , घर के कामकाज करना , पशुओं की देखभाल करना यही कमला का जीवन है . उसका पति शादी के बाद ही बड़े शहर मुम्बई चला गया है कमाने के लिए . चार साल साल बीत चुके हैं उसका पति अबतक नहीं आया लेकिन चिट्ठी ही उनका एकमात्र सहारा है एक दूसरे से संचार स्थापित करने का . अन्य गांव वालों की तरह कमला भी महादेव के पास चिट्ठी लिखवाने आती है और पति द्वारा भेजी चिट्ठी भी उसी के पास पढवाने भी आती है .
कमला इस फिल्म की मुख्य महिला चरित्र है जिस के माध्यम से फ़िल्मकार ने भारत के गांव में बसने वाली अधिकांश आबादी और उस क्षेत्र ,वर्ग की स्त्री के जीवन को अभिव्यक्ति दी है . यह कमला कुम्हारिन भारत के गांव के दूर दराज के क्षेत्र में रहनेवाली उन लाखों -करोड़ों स्त्रियों की छवि को प्रतिबिम्बित करती है जो आज भी अशिक्षा , अभाव , ग़रीबी में जीवन यापन करती हैं .
गांव में मोबाईल का आगमन हो चुका है, जो यह स्पष्ट करता है कि हम सूचना तकनीक के उस युग में जी रहे हैं जिसे ‘सूचना ही शक्ति है’ का युग कहा जाता है . यह मोबाईल महज इक्के दुक्के लोगों के पास है जो गांव वालों की आर्थिक स्थिति को दर्शाता है . ऐसे में आज भी चिट्ठी स्थाई और अधिक सहज है उनके लिए . जिन एक दो लोगों के पास मोबाईल है भी उन्हें मैसेज लिखना नहीं आता इसके लिए भी वे दूसरों पर निर्भर रहते हैं .
अशिक्षा किस तरह अभिशाप है इसे बड़े ही रोचक और व्यंग्यात्मक तरीके से सिनेमा माध्यम द्वारा इस फिल्म में प्रस्तुत किया गया है. कमला की अशिक्षा ही नहीं अन्य गांव वालों की अशिक्षा भी उनके लिए मुश्किल पैदा करनेवाली और उनके जीवन को कठिन बनाने वाली है . आज भी भारत के कई राज्यों में गांव तो क्या शहरों में भी शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सका है .ग्रामीण क्षेत्रों में तो शिक्षा की स्थिति और भी विकट है . अशिक्षा का संबंध अज्ञानता से है और अज्ञानता मानव जीवन की कई मुश्किलों और समस्याओं को जन्म देनेवाला है .इस गांव का भी यही हाल है .कमला तो उसका एक उदाहरण है .
अशिक्षा के कारण लोग अंधविश्वास में डूबे हुए हैं . इसी का एक उदाहरण - एक लड़की विंध्या की शादी उसकी मां कुत्ते से करवा रही है ताकि उसके विवाह के लिए बाधा दोष ठीक हो जाए . विंध्या गांव की इकलौती पढी लिखी तेज तर्रार लड़की है जो मोटर साईकिल चलाती आती है ,अपनी बुद्धिमत्ता से , अपने तर्क से अंधविश्वासों को काटनेवाली . वह शादी का विरोध करती है और मंडप से उठकर भागती है लेकिन विंध्या तो एकमात्र अपवाद है इस गांव में . ऐसी स्त्री छवि मात्र एक यही है जो नए ज़माने की नई ताजी हवा के झोंके की तरह उस गांव में है . गांव की लगभग अन्य सभी महिलाओं की स्थिति तो कमला की तरह है . सर पर आधा घूंघट काढ़े जब कमला आती है तो उसका आधा ही चेहरा दिखता है जो आज भी हमारे समाज में पर्दा प्रथा को स्पष्ट करता है . एक तरफ महिलाएं चाँद सितारों को छूने की तमन्ना लिए अंतरिक्ष की सैर को जा रही हैं . कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स जैसी भारतीय मूल की महिलाएं अंतरिक्ष के रहस्यों को सुलझाने जाती हैं तो दूसरी ओर आज भी करोड़ों महिलाएं कमला की तरह , विंध्या की तरह उन रीति रिवाजों के बंधनों में बंधने को मज़बूर की जाती हैं जो जेंडर विभेदों को उत्पन्न करता है , मानवीय जीवन , समानता पूर्ण जीवन जीने की राह में बाधा है .
अशिक्षा किस तरह अभिशाप है और यह मुश्किल पैदा कर सकता है यह हम कमला कुम्हारिन के चरित्र के रूप में इस फिल्म में देख सकते हैं . कमला अपने पति के लिए जो चिट्ठियाँ महादेव से लिखवा रही है महादेव शब्दों और भावों को तोड़ मरोड़ कर लिखता और पढता है . कमला अपने पति को जो लिखने को कहती है , महादेव उन शब्दों को बदल कर , बात बदल कर लिख देता है और जब कमला के पति का जवाब आता है तब भी कुछ का कुछ पढ़ कर सुना देता है जिससे कमला परेशान हो जाती है . उसे दुःख और आश्चर्य होता है कि उसके पति ने ऐसा कैसे लिख दिया . उधर कमला के पति को भी परेशानी हो रही है कि कमला ने ऐसा कैसे लिखवाया चिट्ठी में . ये सब चिट्ठी लेखक महादेव इसलिए कर रहा है क्योंकि वह कमला और उसके पति के बीच ग़लतफ़हमी पैदा करना चाहता है ताकि कमला के साथ प्रेम करने का अवसर मिल सके . कमला उसके साथ बचपन में स्कूल में पढ़ती थी , बाद में उसने स्कूल छोड़ दिया था . आज इतने वर्षों बाद जब कमला उसके पास चिट्ठी लिखवाने आती है तो महादेव उसे पहचान जाता है . सोलह साल बाद मिलकर कमला के प्रति उसका प्रेम फिर जागृत हो जाता है कमला के लिए लेकिन भोली भाली कमला की अज्ञानता का फायदा उठा महादेव अपने प्रेम के लिए स्पेस बनाने में असफल रहता है और उसकी संवेदना तब जागृत हो जाती है जब उसे पता चलता है कि कमला के पति और कमला कितने संकट के दौर से गुज़र रहे हैं . कमला का पति उसे बेहद चाहता है और अपना खून बेचकर घर पैसे भेजता है और जब उसे कमला की नाराज़गी का पता चलता है जिसे महादेव ने अपनी तरफ से जोड़ दिया है तब वह चिट्ठी लिखता है कि वह अपना गुर्दा बेचने जा रहा है ताकि खोली ख़रीद सके और कमला को बुला सके उसे आत्मग्लानि होती है . महादेव कमला को चिट्ठी की ये सब बातें नहीं बताता और अपनी ज़मीन पचास हज़ार में गिरवी रखकर कमला के पति को यह कहकर रुपया देता है कि किसी और ने दिए हैं . इन पैसों से कमला के पति की खोली ख़रीदने की आर्थिक ज़रुरत पूरी हो जाती है और कमला को अपने पास बुलाना संभव हो पाता है . महादेव यह आर्थिक मदद अनजान बनकर करता है . कमला और उसके पति को बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि इतने सारे पैसे किसने भेजे . महादेव के सिवा यह बात कोई नहीं जानता . यह महादेव की एक तरफ़ा मूक प्रेमाभिव्यक्ति है जिसमें कमला की कोई सहभागिता नहीं . उसके लिए उसका घर , परिवार , उसके बच्चों की तरह प्यारे कुत्ते ,गाय , उसकी सास , उसके माटी के बर्तन ही उसकी दुनिया है . इस गांव में यदि कोई महिला या पुरुष प्रेम करे तो उसका क्या हाल होता है यह इस फिल्म में एक विधवा और कम्पाउण्डर के प्रेम और शादी और उसके बाद की परिणति में देख सकते हैं . एक रिटायर्ड व्यक्ति ख़ुद अपने बेटे की विधवा बहू की शादी कम्पाउण्डर से करवाता है जब उसे पता चलता है कि दोनों आपस में प्रेम करते हैं लेकिन गांव में यह बात बर्दाश्त के बाहर है . दोनों प्रेमियों की लाश गांव के बाहर पेड़ पर लटकी मिलती है .
वहीँ एक दूसरा उदाहरण भी फ़िल्मकार ने पेश किया है – चिट्ठी लेखक महादेव और पढ़ी लिखी , बुद्धिमान विंध्या अपनी पसंद से विवाह करते हैं और सुखी जीवन व्यतीत करते हैं . चिट्ठी लेखक से महादेव उपन्यास लेखक हो जाता है . महादेव और विंध्या के जीवन में इतना कुछ बदलाव इसलिए आया क्योंकि वे पढ़े लिखे थे जबकि कमला और उसकी तरह की अन्य गांव वालों का जीवन इसलिए इतने मुश्किलों से भरा क्योकि वे अनपढ़ हैं .
फ़िल्मकार ने इस फिल्म के माध्यम से कमला ही नहीं बल्कि चिट्ठी लेखक महादेव तथा अन्य चरित्रों एवं घटनाक्रमों के माध्यम से हमारे जीवन , समाज से जुड़े कई प्रश्नों को सामने रखा है और करोडों लोगों की संवेदना , उनकी आकांक्षाओं , ज़रूरतों को रोचक तरीके से कहानी में पिरोकर इस दृश्य श्रव्य माध्यम में प्रस्तुत किया है .
निष्कर्ष : निष्कर्षतः हम कह सकते हैं की संचार माध्यम सिनेमा में कमला कुम्हारिन की छवि देश की लाखों – करोड़ों महिलाओं की छवि है . सिनेमा का यह माध्यम ऐसी महिलाओं के जीवन के दुःख, उनके प्रश्नों को अभिव्यक्ति दे सकता है , यह इस फिल्म को देखकर स्पष्ट होता है . इतना ही नहीं कमला कुम्हारिन के साथ अन्य चरित्र और घटनाक्रम हमारे सामने कई प्रश्नों को छोड़ जाते हैं . ये प्रश्न हैं- कब तक कमला जैसी महिलाएं अशिक्षा , अंधविश्वास , पर्दा , ग़रीबी में जीवन यापन करेंगी ? सूचना और तकनीक से , शिक्षा से उनका जीवन कब जगमगाएगा ? विकास की मुख्यधारा में ये कैसे शामिल होंगे यह सवाल सहज ही यह फिल्म हमारे सामने रखती है .
सहायक ग्रंथ सूची –
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