व्यंग्य / राजा का जन्मोत्सव / अरविन्द कुमार खेड़े

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दरबारी समझा रहे थे, ‘‘अब सौ फीसदी अमन-चैन संभव नहीं है । राज्य में थोड़ी बहुत, छोटी-मोटी हिंसा, वारदातें लूटमारी, चोरी चकारी, दंगा फसाद, बल...

दरबारी समझा रहे थे, ‘‘अब सौ फीसदी अमन-चैन संभव नहीं है । राज्य में थोड़ी बहुत, छोटी-मोटी हिंसा, वारदातें लूटमारी, चोरी चकारी, दंगा फसाद, बला का सत्कार अर्थात बलात्कार आदि तो होता ही रहेगा । छुट-पुट घटनाएं तो होती ही रहेगी । अब इनके कारण हमेशा तो मुंह लटकाए बैठे तो नहीं रहेंगे । अब इनके कारण हंसी-खुशियों पर बंदिश तो नहीं लगाई जा सकती । राज्य में हंसी, खुशी, उत्सव का माहौल भी बना रहना चाहिए । नहीं तो प्रजा रसहीन हो जायेगी । प्रजा का उत्साह बना रहे, इसलिए कुछ उत्सव होना चाहिए ।’’

राजा ने प्रश्न पूछा, ‘‘आपके मन में ऐसा विचार कैसे आ गया ? अभी न कोई मौसम है ? न कोई माहौल है ? न कोई अवसर है ? अभी तो हम भीतरी और बाहरी दोनों आघातों से जूझ रहें हैं । ’’

उत्तर में दरबारियों ने कहा कि, खुशियां अवसर, मौसम की मोहताज नहीं होती । न आघात देखती है । जब दिल अच्छा महसूस करे, समझो यही उपयुक्त अवसर है, मौसम है, माहौल है । ’’

किसी दरबारी ने विचार दिया कि, क्यों न राजा का जन्म दिवस बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाए ? क्यों न राजा का जन्म दिवस उत्सव के रूप में मनाया जाए ? आखिर प्रजा का भी तो कुछ दायित्व है कि, वह भी अपने प्रिय राजा के लिए कुछ करें ?

राजा स्पष्ट मना कर गये । दरअसल राजा राज्य के मौजूदा हालातों से नाखुश और चिंतित थे । प्रजा की भलाई और कल्याण के लिए तरह-तरह की योजनाएं संचालित कर दी गयी थी । तरह-तरह की नीतियां लागू कर दी गयी थी । राजा के द्वारा प्रजा के उद्वार के लिए हरसंभव प्रयास किये जा रहे थे । बावजूद परिणाम अपेक्षित नहीं आ पा रहे थे । दरसअल राजा दूरदर्शी थे । हो सकता है इसके कारण विरोधियों की आलोचनाओं का शिकार होना पड़े ? राजा का मानना है कि, मुखिया को इस प्रकार के आचरण से कोसों दूर रहना चाहिए । जिससे कि प्रजा को यह सोचने का मौका न मिले कि राजा के लिए प्रजा का कोई मूल्य नहीं है । सारा राजकोष अपने लिए ही इस्तेमाल किया जा रहा है । कि राजा सिर्फ अपने आनंद से वास्ता रखता है । इस प्रकार का आचरण तो पर्दे के पीछे ही शोभा देता है ।

परंतु जैसा कि दरबारी हमेशा से राजा को समझाने में कामयाब होते आ रहे हैं, इस बार भी कामयाब हो गये । दरबारियों ने आश्वस्त किया कि राजकोष पर किसी प्रकार का कोई भार नहीं आयेगा, जन्मोत्सव की घोषणा कर दी गयी कि,  इस बार राजा का जन्म दिवस बड़े ही धूम-धाम से मनाया जायेगा । व्यापक तैयारियों प्रारंभ कर दी गयी । प्रजा को ससम्मान न्योतें भेज दिए गये ।

नियत तिथि को सारा राज्य और राजमहल दुल्हन की तरह सजा दिया गया था । विशाल पंडाल सजाया गया । विशाल मंच तैयार किया गया । मंच पर सबसे आगे राजा का सिंहासन और उसके पीछे आमंत्रित अथितियों/आगंतुकों विशेषों के लिए कतारबद्ध अन्य आसन । प्रजा और अथितिगण लगभग जा चुके थे । बस केवल राजा का इंतजार किया जा रहा था ।

जमूरे ने मोर्चा और मंच संभाल रखा था । मंच के किनारे पर वाद्ययंत्रों के साथ साजदार बैठे हुए थे । जमूरे ने उपस्थित समस्त देवियों और सज्जनों में श्रद्धा और आस्था पैदा करने लिए अपनी सुमधुर आवाज में तान छेड़ रखी थी । और उसकी आवाज के साथ-साथ सभी वाद्य यंत्र भी बज रहे थे । जिसके भाव थे कि, राजा ही प्रजापालक है, राजा ही प्रतिपालक है, राजा ही संकटमोचक है, राजा ही उद्धारक है, राजा ही भगवान है और यदि रुष्ट हो जाये तो राजा ही संहारक है । अपने सुमधुर स्वर के जरिये समपर्ण का भक्तिनुमा माहौल पैदा करने में जमूरा कामयाब हो गया तो राजा के आगमन की घोषणा कर दी गयी । पालकी में सवार राजा आ रहे है ।

जमूरे ने फिर से सुमधुर तान छेड़ दी-

सावधान......होशियार.....खबरदार.......

राजाओं के राजा....महाराजाओं के महाराजा...पधार रहे हैं .....

हम अभिनंदन करते हैं......हम वंदन करते हैं.....

सावधान......होशियार.....खबरदार.......

करूणा के सागर......दया के गागर....पधार रहे हैं

हम स्वागत करते हैं.....नतमस्तक करते हैं.......

सावधान......होशियार.....खबरदार.......

मानवता के पुजारी.....सेवा के अवतारी....पधार रहे हैं

हम चरण वंदन करते हैं.....तिलक चंदन करते हैं....

सावधान......होशियार.....खबरदार.......

मुक्ति के दाता.....सुख-शांति प्रदाता....पधार रहे हैं

हम मनुहार जाते हैं......बलिहार जाते हैं.....

सावधान......होशियार.....खबरदार.......

पालकी में सवार राजा का आगमन हुआ । कहना न होगा कि, विशेष कृपा पात्र दोपायों को ही पालकी ढोने का अवसर मिलता होगा । पुष्पहारों से स्वागत हुआ । पुष्पहारों की वर्षा हुई । प्रजा में प्रफुल्लता बढ़ गयी । जमूरे ने फिर शांत रहने की अपील की ।

जमूरे ने समां बांधा, ‘‘राजा का यह जन्मोत्सव अभूतपूर्व होगा । अनूठा होगा । राजा के 65 वें जन्मदिन पर लीजिये यह 65 किलो का केक । इसे मामूली केक न समझे । इस केक में श्रद्धा और विश्वास मिला है । राजा का प्यार और अनुराग मिला है । राजा की कृपा और आशीर्वाद मिली है ।’’

जमूरा कुछ पल रूका, फिर तान छेड़ दी-

जो यह प्रसाद पायेगा, उसका उद्धार हो जायेगा...

जो यह प्रसाद खायेगा, उसका.......

अपना गान बंद रखते हुए जमूरे ने माईक प्रजा की ओर कर दिया ।

उसका बेड़ा पार हो जायेगा.....जनता ने समवेत स्वर में जोर से पूरा किया ।  

लीजिए.....अपने प्रिय राजा को यह पहली भेंट । जो सबसे उंची बोली लगायेगा, उसे यह प्रसाद बांटने का मौका दिया जायेगा । बोलियां लगनी शुरू हो गयी । जमूरा जोरों से दोहराता गया....दो...चार...छः...आठ....दस.......जब बोली आगे नहीं बढ़ी तो जमूरे ने फिर तान छेड़ दी-देर ना हो जाए कहीं देर ना हो जाए......। रूकी हुई बोली आगे बढ़ने लगी । बहुत बढि़या, बहुत अच्छा, बहुत खूब ।

पन्द्रह तक आकर बोली रोक दी गयी । जमूरे ने कहा, राजा ने तय कर रखा है, बोली इससे आगे नहीं जायेगी । हमें भी नैतिक दृष्टिकोण अपनाने की बाध्यता है । (मतलब कि खुले आम इतनी ज्यादा लूट नहीं ) पहला चरण सफलता और अभूतपूर्व उत्साह के साथ सम्पन्न हुआ ।

प्रसाद के बाद दुशाला लाया गया । जमूरे ने कहा, ‘‘यह दुषाला महाराजा को प्रिय है, बेहद पसंद है । महाराजा को यह दूसरी भेंट की जायेगी । जो इसकी उचित बोली लगायेगा, उसको यह दुशाला महाराजा ओर से भेंट किया जायेगा । अबकी बार दुशाले की बोली पहले तय कर दी गयी । जमूरे ने फिर वही प्रेरक उद्गार व्यक्त करते हुए जोश भरा, उत्साह फूंका । और थोड़ी देर में ही बोली सम्पन्न हो गयी । सारा आकाश तालियों की गूंज से भर उठा ।

अब अंतिम चरण की घोषणा हुई । जमूरे ने पैंतरा बदला, महाराजा को जूते नहीं, काष्ठ की पादुकाएं प्रिय है । अब पादुकाएं दिखाते हुए जमूरे कहा कि अब पादुकाएं भेंट की जायेगी । हालांकि इन पादुकाओं के लिए कोई रकम निर्धारित नहीं की गयी है, लेकिन जैसे ही महाराजा को उचित लगेगा, बोली तय कर दी जायेगी ।

जमूरे ने तान छेड़ दी-

अब खास अवसर आया है.....

अब वो महान अवसर आया है......

उधर साथ में सारे वाद्य यंत्र बज उठे ।

जमूरे को लगा, यदि इन पादुकाओं की बोली प्रसाद से ज्यादा नहीं आयी तो, यह सीधे-सीधे पादुकाओं का अपमान होगा । स्थिति को भांपते हुए जमूरे ने इस प्रकार चुटकुला सुनाया-

एक बच्चे ने चवन्नी निगल ली...

माता पिता पास पड़ोसी सब हार गये...

हकीम वैध ओझे पण्डे सब हार गये.....

इतने में एक आदमी आया.....

उसने बच्चे को उठाया.....

उल्टा लटकाया......

और पीठ पर हल्का-सा फटका लगाया....

चवन्नी बाहर........

सुनाकर जमूरा कुछ पल रूका, फिर अपनी बात जारी रखी, ‘‘सब उससे पूछने लगे । वैध हकीम सब हार गये, सारे जतन बेकार गये, और तुमने इतनी आसानी से निकाल दी ? तुम कौन हो भाई ?

उस आदमी ने उत्तर दिया, ‘‘मैं इनकम टैक्स अधिकारी हूं । मुझे मालूम है, फंसा हुआ और छिपा हुआ रूपया कैसे निकाला जाता है ? ’’ (इस अमौलिक चुटकुले के लिए खेद है)

तालियों की गड़गड़ाहट से फिर आकाश गूंज गया । फिर जमूरे ने, पूंजीपतियों, उद्योगपतियों और करोड़पतियों की ओर देखा, कुछ पल के लिए उनका चेहरा सफेद पड़ गया था । जमूरे ने फिर स्थिति संभाल ली । इस बार उसने छोटी-छोटी कहानियां सुनाई, जिनसे यह प्रेरणा मिलती थी कि, दान, पुण्य की श्रेणी में आता है । दान-पुण्य से इंसान को सदगति मिलती है । इंसान का इहलोक और परलोक सुधरता है । कठिन और बुरे समय में यही दान-पुण्य आड़े आते हैं । बलाओं और मुसीबतों का रूख मोड़ देते हैं । दान-पुण्य से इंसान को सुख-शांति मिलती है समृद्धि आती है । कुछ पलों में ही इन निरापद कहानियों के कारण उनके चेहरे फिर खिल उठे थे । जमूरे ने महसूस किया कि, लहरें मचल उठी है, उसने पादुकाओं की बोली शुरू कर दी ।

और इस बार भरपूर संभावनाओं के अनुरूप चरण पादुकाओं पर कई शीश उमड़ पड़े । पादुकाओं को शिरोधार्य करने के लिए होड़ मच गयी । शास्त्र गवाह है, चरण पादुकाओं का कोई आज तक मोल नहीं लगा पाया है । चरण पादुकाओं के सामने सारे साम्राज्य का वैभव फीका पड़ जाता है । कुबेर का खजाना उनका मूल्य आंक नहीं सकता है ।

प्रजा को प्रसाद बांटा गया । प्रजा ने पूरी श्रद्धा, भक्ति और विश्वास के साथ प्रसाद ग्रहण कर अपने को धन्य माना । प्रजाजनों से इतनी भेंट पाकर राजकोष से भेंटे देने पड़ी । जो इस उत्सव का मुख्य हिस्सा हुए थे, वे पूरी शक्ति और सामर्थ्य अनुसार भेंटे पाकर पाकर कृतार्थ हुए । फिर सम्मान पत्र बांटे गये, राजा को चिरंजीवी होने का , तेरा वैभव अमर रहे, तेरी यश की कीर्ति पताका युगों तक लहराती रहे, किस्म के आशीर्वाद देती हुई प्रजा गद्गद होकर लौटी ।

मैं इस प्रकार के राजा पर ही लिखकर अपने को कृतार्थ पाता हूं । और आपसे अनुरोध करता हूं कि, आप, महाराजा के स्थान पर, जिसने अपने को स्वयंभू घोषित किया है, या जिसे उत्तराधिकार में गुरू-पद मिला है, उनके संदर्भ में पढ़कर अपने को कृतार्थ मान सकते हैं ।

-अरविन्द कुमार खेड़े

मोबाईल नंबर-09926527654

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परिचय-

नाम- अरविन्द कुमार खेड़े (Arvind Kumar Khede)

आत्मज-श्रीमति अजुध्या खेड़े / स्व.श्री रेवाराम जी खेड़े

वर्तमान पता- २०३ सरस्वती नगर, धार, जिला-धार, मध्य प्रदेश-४५४००१ (भारत)

जन्मतिथि- २७ अगस्त,१९७३  

शिक्षा-एम.ए.

सम्प्रति-शासकीय नौकरी.

विभाग- लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग मध्य प्रदेश शासन

पदस्थापना- कार्यालय मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, धार जिला धार मध्य प्रदेश-पिन-४५४००१ (भारत)

प्रकाशन-

1-पत्र-पत्रिकाओँ में रचनाएं प्रकाशित.

2-कविता कोष डॉट कॉम एवं हिंदी समय डॉट कॉम में कविताएं एवं व्यंग्य सम्मिलित.

3-साझा कविता संकलनों में कविताएं प्रकाशित.

(समय सारांश का-संपादन-बृजेश नीरज/अनवरत भाग-२-संपादन-भूपाल सूद/काव्यमाला-संपादन -के.शंकर सौम्य )

4-व्यंग्य संकलन-भूतपूर्व का भूत-अयन प्रकाशन दिल्ली-२०१५

5-निकट भविष्य में एक व्यंग्य एवं एक काव्य संग्रह के प्रकाशन की सम्भावनाएं हैं

मोबाइल नंबर-९९२६५२७६५४

ईमेल- arvind.khede@gmail.com

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रचनाकार: व्यंग्य / राजा का जन्मोत्सव / अरविन्द कुमार खेड़े
व्यंग्य / राजा का जन्मोत्सव / अरविन्द कुमार खेड़े
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