‘‘घर में राशन खत्म होने को है। बच्चे एक साल से पुराने कपड़े पहने हैं और दीवारों में ईंटें नजर आने लगी है।...पिछली बार परदेश जा कर जो धन कमा...
‘‘घर में राशन खत्म होने को है। बच्चे एक साल से पुराने कपड़े पहने हैं और दीवारों में ईंटें नजर आने लगी है।...पिछली बार परदेश जा कर जो धन कमाया था,उसमें से अब कुछ ही बचा है। जल्दी से और धन की व्यवस्था करो वरना घर के सभी लोगों को जल्दी ही रोजाना उपवास करना पडेगा‘‘, बुद्धिराम की पत्नी ने जब फटकार के अंदाज में बुद्धिराम से कहा तो उसके कान खड़े हो गये।
‘‘सच में लक्ष्मी बड़ी चंचल होती है। वह ज्यादा समय कहीं टिक कर नहीं रह सकती। चंचल लक्ष्मी को सिर्फ कर्मयोगी ही वश में कर सकता है और बुद्धि अर्थात् सरस्वती का उपासक ही कर्मयोगी हो सकता है‘‘, बुद्धिराम ने मन ही मन सोचा और अपनी पत्नी को शांत लहजे में कहा,‘‘धैर्य रखो भागवान! जब तक तुम्हारे पति पर मां सरस्वती का हाथ है,तब तक लक्ष्मी इस घर से रूठ नहीं सकती। मैं आज ही कहीं जा कर धन की व्यवस्था करता हूं।‘‘ यह कह कर बुद्धिराम घर से निकल गया।
‘‘पत्नी को धन की व्यवस्था करने का तो कह आया, लेकिन अब व्यवस्था करने जाऊं तो जाऊं कहां?‘‘ एक जगह पीपल की चौकी पर बैठते हुए परेशान बुद्धिराम ने सोचा। तभी उसे अपना मित्र चित्रलेख सामने से आता हुआ दिखाई दिया।
‘‘कहो बुद्धिराम,क्या हाल है?...बहुत दिनों बाद दिखाई दिये!‘‘ पास आ कर चित्रलेख ने बुद्धिराम के कंधों पर हाथ रखते हुए कहा।
‘‘ठीक हूं भाई! और तुम बताओ,तुम्हारा क्या हाल है!....ये थैले में लिये क्या घूम रहे हो?‘‘ बुद्धिराम ने चित्रलेख के कंधे पर लटक रहे थैले की तरफ संकेत करते हुए कहा। ‘‘ये!...ये तो मेरे बनाये हुए चित्र हैं!‘‘ कहते हुए चित्रलेख थैले में से अपने बनाये हुए चित्रों को बुद्धिराम को एक-एक कर के दिखाने लगा। ‘‘वाह! तुम्हारे हुनर का जवाब नहीं!...हरएक चित्र इतना सजीव है कि मानो अभी बोल ही पड़ेगा!‘‘ बु़द्धिराम ने चित्रलेख के चित्रों को देखते हुए उसकी प्रशंसा की। ‘‘बस,सभी तुम्हारी तरह प्रशंसा ही करते हैं लेकिन कोई इन्हें खरीदना नहीं चाहता‘‘,चित्रलेख ने उदास भाव से कहा तो बुद्धिराम ने कहा,‘‘ गांव के गरीब लोगों से इस बात की उम्मीद करना व्यर्थ है कि वे तुम्हारे चित्र खरीदेंगे। न तो उनके पास तुम्हारी कला को समझने की योग्यता है और न ही पर्याप्त धन। और फिर तुमने यह कहावत भी सुनी होगी कि जंगल में मोर नाचा किसने देखा!....बेहतर होगा कि तुम इन्हें किसी राजा-महाराज के पास जा कर बेचो!‘‘
‘‘बात तो तुम्हारी सही है बुद्धिराम,लेकिन अपनी बीमार बूढ़ी मां को छोड़ कर मैं गांव से बाहर भी तो नहीं जा सकता!‘‘ चित्रलेख ने अपनी मजबूरी बताई तो बुद्धिराम को तुरंत एक उपाय सूझा। ‘‘अगर तुम मुझे अपने ये चित्र कुछ दिनों के लिये दे दो तो मैं तुम्हारे लिये पर्याप्त धन की व्यवस्था कर सकता हूं‘‘,बुद्धिराम ने चित्रलेख से कहा तो चित्रलेख ने तुरंत अपना थैला बुद्धिराम को सौंप दिया। ‘‘तुम्हारी बुद्धि का लोहा तो सभी मानते हैं। मुझे यकीन है कि तुम मेरे चित्रों का अच्छे से अच्छा दाम दिला दोगे‘‘,कहते हुए चित्रलेख ने बुद्धिराम से विदाई ली क्योंकि उसे अपनी बीमार मां के लिये वैद्य जी से दवाई लेने जाना था।
चित्रलेख के जाने के बाद बुद्धिराम तुरंत अपने घर लौटा और अच्छी तरह से सज-धज कर अपने प्यारे घोड़े ‘लट्टू‘ पर बैठ कर जमींदार जालिमसिंह के महल की तरफ चल पड़ा। ‘‘जमींदार जालिमसिंह कलाकार तथा गुणी लोगों की खूब खिल्ली उड़ाता है। आज उस दुष्ट को उल्लू बना कर बताउंगा कि गुणी लोगों की खिल्ली उड़ाने का क्या मतलब होता है‘‘, लट्टू पर बैठे बुद्धिराम ने चित्रों से भरे थैले पर हाथ फेरते हुए मन ही मन मुस्कुराते हुए सोचा।
जालिमसिंह के सामने पेश हो कर बुद्धिराम ने अपना परिचय एक चित्रकार के रूप में देते हुए उसे चित्रलेख के बनाये चित्र दिखाये तो जालिमसिंह ने उन्हें देखने के बाद कहा,‘‘चित्रकार! तुम्हारे चित्र वाकई में बड़े शानदार हैं, लेकिन हम तुम्हारे हुनर को तभी मानेंगे जब तुम मांग के अनुरूप हमें एक चित्र बना कर दिखाओगे!‘‘
‘‘आप बस हुकम फरमाइये जमींदार साहब!...आप जो भी कहेंगे,ये दास तुरंत उस चीज का चित्र बना देगा‘‘, बुद्धिराम ने पूरे आत्मविश्वास के साथ जालिमसिंह से कहा। ‘‘तो फिर तुम हमारे साथ भीतर हमारी बैठक में चलो!‘‘ कहते हुए जालिमसिंह बुद्धिराम को बैठक में ले आया। ‘‘यहां मैं अपने मंत्रियों के साथ एक बैठक कर रहा हूं...तुम सभी की पांच मिनटों में एक-एक झलक देख आओ!...बाद में तुम्हें सामने वाली दीवार पर हम सभी की बिना देखे तस्वीर बनानी है। अगर तुम तस्वीर बनाने में कामयाब हुए तो सोने की हजार मुहरें पुरस्कार के तौर पर तुम्हें हम भेंट करेंगे और अगर तुम नाकामयाब हुए तो.....तो तुम्हें अपनी सारी तस्वीरें हमें मुफ्त में देनी पड़ेगी।...क्यों,मंजूर है शर्त?‘‘
‘‘आपकी यह मामूली सी शर्त मुझे बिल्कुल मंजूर है। आधे घंटे के बाद चित्र आपको तैयार मिलेगा‘‘, बुद्धिराम ने मुस्कुराते हुए कहा तो जमींदार उसका आत्मविश्वास देख हैरान रह गया। सभी मंत्रियों की एक-एक झलक देखने के बाद बुद्धिराम कलम-कूंची ले कर खाली दीवार पर आधे घंटे तक चित्र बनाने का नाटक करता रहा। आधे घंटे बीत जाने के बाद जालिमसिंह अपने मंत्रियों सहित बुद्धिराम के पास आया।
जालिमसिंह के पूछने पर कि क्या चित्र तैयार है, बुद्धिराम ने खानी सफेद दीवार की तरफ इशारा करते हुए कहा,‘‘चित्र तैयार है जमींदार साहब!...लेकिन मैंने इसे विशेष रासायनिक रंगों से बनाया है अतः इसे वहीं व्यक्ति देख सकता है, जिसका खानदान उच्च श्रेणी का हो।‘‘ यह सुन सभी सकते में आ गये। जमींदार ने खाली दीवार देखी तो उसने अपने एक मंत्री को आगे करते हुए कहा,‘‘शक्तिसिंह जी, आप देख कर बताइये तो कि तस्वीर कैसी बनी है? मुझे तो भई बड़ा जानदार लग रही है।‘‘ शक्तिसिंह ने देखा, दीवार पर कुछ भी नहीं बना है,लेकिन जमींदार ने झूठ कह कर अपनी शान रख ली है तो उसने भी जमींदार की तरह वाह-वाह करते हुए तस्वीर को कला का एक नायाब नमूना बताया। इसके बाद एक-एक मंत्री ने अपनी बारी आने पर अपनी शान रखते हुए तस्वीर की प्रशंसा में अनेक गुण गाये।
शर्त के अनुसार जालिमसिंह ने बुद्धिराम को सोने की हजार मुहरें पुरस्कार के रूप में देनी पड़ी। ‘‘वाह! अब हम दोनों दोस्तों के अगले पांच साल आसानी से कट जायेंगे!....एक गायब तस्वीर ने हम दोस्तों की किस्मत बना दी!‘‘ सोचत हुए बु़द्धिराम ने सोने की मुहरों से भरा थैला लट्टू पर लादा और अपने गांव की तरफ चल पड़ा।
उसी शाम जालिमसिंह अपनी पत्नी को उस सफेद दीवार के पास ले कर आया जहां बुद्धिराम ने ‘गायब तस्वीर‘ बनायी थी। उस दीवार की तरफ इशारा करते हुए जालिमसिंह ने अपनी पत्नी से पूछा,‘‘जरा यह तस्वीर देख कर तो बताओ कि यह कैसी लग रही है?‘‘ पत्नी हैरान। तस्वीर हो तो नजर आये। ‘‘तस्वीर!...कैसी तस्वीर!...यहां पर तो सफेद दीवार के अलावा कुछ भी नहीं है!‘‘ पत्नी ने हैरान होते हुए कहा तो जालिमसिंह का चेहरा तमतमा गया। फिर अगले ही पल उसने मुस्कुरा कर अपनी पत्नी से कहा,‘‘लगता है,आपका खानदान भी हमारे खानदान जैसा ही है।‘‘
--
संपर्क:
शैलेन्द्र सरस्वती
नारायणी निवास
मोबाइल टॉवर के सामने
धरनीधर कॉलोनी
उस्ता बारी के बाहर
बीकानेर- 334005 (राज)
मो- 7877986321
shailendra5saraswati@gmail.com
COMMENTS