मैं पहले से ही यह स्पष्ट कर दूँ कि होली के संदर्भ में प्रचलित पौराणिक हिरण्यकश्यप और भक्त प्रहलाद की कथा का इस कथा से कोई संबंध नहीं है। इस...
मैं पहले से ही यह स्पष्ट कर दूँ कि होली के संदर्भ में प्रचलित पौराणिक हिरण्यकश्यप और भक्त प्रहलाद की कथा का इस कथा से कोई संबंध नहीं है। इसे महज एक संयोग ही माना जा सकता है कि इस कलयुग में भी बाप का नाम राजा हिरण्यकश्यप और बेटे का नाम प्रहलाद था। बाप जितना प्रचंड और भंयकर भ्रष्ट्राचारी था, बेटा उतना ही ईमानदार और संवेदनशील। दोनों के संस्कार और कार्यों में इतना अंतर था जितना थाने में लिखे देशभक्ति और जन सेवा के स्लोगन तथा पुलिस के चरित्र के बीच होता है। आधुनिक हिरण्यकश्यप के नानस्टॉप भ्रष्ट्राचार को देख लोग उसे पौराणिक हिरण्यकश्यप का नया संस्करण कहते थे। होली के पौराणिक कथा के असर से आधुनिक हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रहलाद का नाम सुनते ही एकदम भयभीत हो जाया करते थे। डर के मारे वे अपने प्रहलाद को केवल पप्पू ही कहना पसंद करते थे। प्रहलाद के होश संभालने के बाद से ही उन दोनों के बीच छत्तीस का आकड़ा शुरू हो गया था इसलिए वह बड़ा परेशान रहा करता था। प्रहलाद बचपन से ही उसके अनैतिक बातों का विरोध करता था इसलिए वह उसकी दृष्टि में पितृद्रोही और कुसंस्कारी घोषित हो चुका था। राजा हिरण्यकश्यप प्रहलाद को संदेह भरी नजरों से देखकर सोचा करता था कि इसके खून में ईमानदारी और संवेदनशीलता के घातक तत्व आखिर कैसे और कहां से आ गये?
आधुनिक हिरण्यकश्यप को बचपन से जानने वाले बुजुर्ग लोग बताते हैं कि जब उसने अपनी दोनों आँखें और दिमाग की सारी खिड़कियां तथा दरवाजे बंद कर अपने आका की अखंड और घनघोर चमचागिरी की थी तब उसके आका स्वयं उसके घर प्रकट होकर उनसे वरदान माँगने के लिए कहा था। मगर हिरण्यकश्यप समझ नहीं पा रहा था कि आखिर अपने आका से कौन सा वरदान माँगे? उसे असमंजस में देखकर तब आका ने स्वयं उसे वरदान देते हुए कहा था कि चाहे तुम जितना भी भ्रष्ट्राचार करो पर न दिन में पकड़े जाओगे न रात में, न घर में पकड़े जाओगे न कार्यालय में, न कार में पकड़े जाओगे न वायुयान में, न एन्टीकरप्शन ब्यूरो के अस्त्र सें पकड़े जाओगे न मीडिया के शस्त्र से। अब तो खुश हो ना?
अपने आका से मिले वरदान को पाकर भी वह बहुत समय तक मौन ही रहा, पता नहीं उसके दिमाग में पौराणिक कथा का असर था या आधुनिकता का प्रभाव। अन्ततः आका के बार-बार कुरेदने के बाद जब उसकी चुप्पी टूटी तो उन्होंने कहा कि मुझे इन वरदानों का अंतिम हश्र मालूम है। यदि देना ही है तो मुझे इतना वरदान दीजिए कि मैं चाहे जितना भी घपला-घोटाला करूँ मगर किसी भी हालत में पकड़ा न जाऊँ और यदि पकड़ा भी गया तो मेरे कारनामें दो-चार दिन समाचारों की सुर्खिया बनने के बाद लोगों के दिमाग से वैसे ही विस्मृत हो जाये जैसे चुनाव के बाद नेताओं के द्वारा किये गये चुनावी वादे उनके दिमाग से विस्मृत हो जाते हैं। मैं बाइज्जत बरी हो जाऊँ। मुझे चोट तो क्या एक खरोच तक न आये। यह सुनकर आका ने उससे एवमस्तु कहा और अपने कार पर सवार होकर उसके घर से अर्न्ताधान हो गये।
तब से आज तक वह भ्रष्ट्राचार के दल-दल में आकंठ डूबा हुआ है। नित-नये घोटालों के वह इतना कीर्तिमान बना चुका है कि आज तक कोई उसका रिकार्ड नहीं तोड़ पाया है। जानते सब हैं पर मजाल है जो कोई उसकी ओर ऊँगली उठाना तो दूर, नजर उठाकर भी देख सके। इस संसार में उसके कारनामों का विरोध करने का साहस रखने वाला यदि कोई है तो वह केवल प्रहलाद ही है। अपने पिता के प्रत्येक राजकीय कार्य में उसे भ्रष्ट्राचार दिखता है। इसलिए वह हमेशा भ्रष्ट्राचार-भ्रष्ट्राचार जपता रहता है। जिसके कारण हिरण्यकश्यप के मंत्रियों को बड़ी चिन्ता होती थी। वे इस बात की शिकायत कई बार हिरण्यकश्यप से कर चुके थे।
इस बार भी जब मंत्रियों ने राजा हिरण्यकश्यप से प्रहलाद की शिकायत की तो राजा ने कहा-''पप्पू अभी बच्चा है। अभी उसे अच्छा-बुरा का ज्ञान नहीं है। एक काम करो, उसका मन बहलाने के लिए उससे कहो कि हम भ्रष्ट्राचार को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए उसकी खुदाई करवायेंगे। इससे वह खुश हो जायेगा और कुछ दिनों के लिए शांत बैठ जायेगा।''
राजा कि बात सुनकर एक मंत्री ने कहा-'' राजन! हमने यह फार्मूला भी आजमाकर देख लिया है। हमने एक दिन उनसे यह बात कही तो वह खुदाई करवाने की जिद पर अड़ गया। उसकी झूठी तसल्ली के लिए हमने खुदाई भी शुरू करवा दी। कार्यालयों की ओर जाने वाली छोटी -छोटी जड़ों को हमने उखड़वा भी दिया। ये तो आपका और हमारा सौभाग्य था कि भ्रष्ट्राचार की बड़ी-बड़ी जड़ें जो हमारे बंगलो की ओर और मूसला जड़ जो आपके राजमहल की ओर गई है उस पर उसकी नजर नहीं पड़ी, नहीं तो और भी अनर्थ हो जाता। उसके डर के मारे हमें खुदाई तुरन्त बंद करवानी पड़ी और बाद में खुदाई करवाने का आश्वासन देकर उन्हें शांत करना पड़ा।
यह सुनकर हिरण्यकश्यप के मुँह से डर के मारे अनायास निकल पडा-''अरे बाप रे! यह तो बहुत ही बुरा हुआ। अब क्या करें? अब तो केवल एक ही उपाय बाकी है, पप्पू को हमारी बहन जाँच के गोद में बिठा दो। हम सब जानते हैं कि जाँच को आँच नहीं आती और जाँच तो हमारी सगी बहन है, उस पर आँच आने का तो सवाल ही नहीं उठता। भ्रष्ट्राचार सर्वव्यापी है, इसे तो सभी जानते हैं पर उसे सिद्ध करना हथेली पर सरसों उगाने के समान कठिन है। बहन जाँच के चक्कर में पड़ने के बाद पप्पू भ्रष्ट्राचार को सिद्ध नहीं कर पायेगा और उसके दिमाग से ईमानदारी का भूत उतर जायेगा। सच्चाई जब हाथ-पांव चलाने लगाने तो उसे सपनों की रंगीन दुनिया में सैर कराने के सिवा कोई दूसरा उपाय हो ही नहीं सकता, समझ गये? एक मंत्री ने संदेह व्यक्त किया कि-''राजन! और यदि पप्पू पास हो गया तो? राजा ने कहा-ये जब होगा तब देखा जायेगा अभी जो कहा जा रहा है वही करो, समझ गये।
राजा के बताये कार्य योजना को अमल में लाने के लिए सभी मंत्री मुस्कुराते हुए राजमहल से बाहर निकल आये।
वीरेन्द्र 'सरल', धमतरी (छत्तीसगढ़)
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