एक लेटलतीफ स्वप्न / व्यंग्य / प्रमोद यादव

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समझ ही नहीं आया कि इस निपट वीराने में एकाएक कौन नासपीटा उसे ट्रेन की पटरी से उठा किनारे पटक दिया ? आत्महत्या करने का अच्छा-ख़ासा मूड खराब कर...

समझ ही नहीं आया कि इस निपट वीराने में एकाएक कौन नासपीटा उसे ट्रेन की पटरी से उठा किनारे पटक दिया ? आत्महत्या करने का अच्छा-ख़ासा मूड खराब कर दिया..बड़ी मुश्किल से बना – उसे भी गुड-गोबर कर दिया..गुस्से से तमतमाते उठते हुए उसने अजनबी नामाकूल की ओर निहारा तो भौंचक रह गया..उसे देख एकबारगी डर गया.. झक धवल वस्त्रों में वो किसी दूसरे लोक का वासी लगा..रंग रूप से आदिकालीन आदिवासी लगा.. सिर पर नेपोलियन युगीन नुकीली मुड़ी हुई लम्बी टोपी थी..उसके नीचे दो बड़ी-बड़ी चमचमाती उल्लू जैसी आँखें थी..हाथ में चमचमाता तलवार..कमर के नीचे लहराता सफ़ेद रेशमी सलवार और पैरों में नोकदार लाल कानपुरी जैसे जूते..उस पर शानदार रंगीन बेलबूटे...

कुल मिलाकर वह एक सिपाही का लुक दे रहा था..हट्टा-कट्टा अच्छा लग रहा था..पर इतना तय था वो इन्डियन ठोला नहीं था..ठोले का उसमें कोई गुण नहीं था..इन्डियन तो पटरी में “लिटाने” का काम करते हैं-पटरी में लाने का नहीं..वो तो फकत “मारने” का काम करते हैं-बचाने का नहीं..वह गुस्से का इजहार करते बोला- ‘ ऐ बेवकूफ..नादान अजनबी ..ये क्या किया ? हाथ में तलवार लिए ये कैसा बेहूदा मजाक किया ? मरने वाले को बचाकर अच्छा नहीं किया !..ये समझ लो- एक बड़ा पाप अपने सिर लिया..’

‘ नालायक खोते..पाप मेरे नहीं तेरे सिर चढ़ेगा..ट्रेन से कटेगा तो कटकर भी नहीं मरेगा..बस इधर-उधर भूत सा भटकता फिरेगा..क्या कभी पढ़ा नहीं कि आत्महत्या करना पाप है ? जिंदगी वरदान तो ख़ुदकुशी अभिशाप है.. ‘ उसने डांटते हुए कहा.

‘ पढ़ा है..पर पहले बताईये- कौन हैं आप और क्यों डांट रहे हैं ? हमारे क्या लगते हैं ? ‘

‘ समझ ले बेटा.. रिश्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं..पहचान कौन ? हम यमदूत हैं..यमदूत..’ उसने अट्टाहस करते कहा.

‘ अरे हाँ..एकाध किसी धार्मिक फिल्म में कहीं देखा है आपको..’

‘ अरे मूर्ख..हम फिल्मवाले नहीं.सचमुच के यमदूत हैं..’ वह जोर से गरजा.

‘ सचमुच के हैं तो यहाँ क्या कर रहे हैं ? क्यों हमें नाहक डिस्टर्ब कर रहे हैं ? समझ नहीं आता – इतने वीरान इलाके में आप कैसे घुस आये ? बड़ी मुश्किल से तो डरते-डरते हम यहाँ आये..‘

‘ नादान छोकरे..हम यमदूत हैं..यमदूत.. इस वीराने तो क्या – हम हर ठिकाने, हर मुहाने, और हर जमाने में हर जगह सेकंडों में पहुँच जाते हैं.. तभी यमदूत कहलाते हैं..’

‘ वो तो ठीक है द्रुत गतिवाले दूतजी..पर पहले कटने-मरने तो देते ? प्राण निकले ही नहीं और चले आये ? आ गए तो ठीक..पर यूं इस तरह प्राण बचाना समझ नहीं आया..हमें आपका ये रोल रास नहीं आया..आपका काम तो प्राण हरना है दूतजी..किसी से डरना नहीं..फिर हमसे कैसे डर गए ? कैसे अपने धर्म से विचलित हो गए ? क्या यमलोक के कायदा-क़ानून भी भूल गए ? ऊपर यमराज जी को आपकी हरकतों का पता चलेगा तो यमलोक में हंगामा मचेगा..खड़े-खड़े सस्पेंड हो जायेंगे..फिर किधर जायेंगे ? जनाब..सब हेकड़ी भूल जायेंगे.’

‘ तुम तनिक भी इसकी चिंता मत करो वत्स..हम उन्हीं के निर्देशों के तहत काम कर रहे..उनकी ही आज्ञा का पालन कर रहे..इसलिए तो तुम्हें बचा रहे..वरना हमारा मुख्य काम तो प्राण हरना ही है..बरखुरदार..दरअसल अभी तुम्हारे “रुखसती” का वक्त नहीं हुआ है....अरे पगले ! अभी तो इंटरवेल भी नहीं हुआ है..तुम कट मरो या डूब मरो..फांसी चढो या जहर पियो..कुछ भी करो पर मरोगे नहीं..संसारी झंझट से यूं बचोगे नहीं..बस इतना जान लो- मर-कट के कहीं के न रहोगे..न इधर के रहोगे न उधर के रहोगे ..’

‘ न इधर के न उधर के का क्या मतलब ? ‘ उसने कौतूहल से पूछा.

‘ मतलब कि ख़ुदकुशी करने वाले न स्वर्ग जाते हैं न नरक..’ दूत ने जवाब दिया.

‘ तो फिर जाते कहाँ है जी..? ‘

‘ वे कहीं नहीं जाते..इसी लोक में एक नियत काल तक भटकते रहते हैं..अब जैसे कि अभी तुम पच्चीस साल के हो..चित्रगुप्त के खाते में उम्र दर्ज है पैंसठ साल..तो समझो चालीस साल तुम्हें इसी लोक में भटकना होता..उसके बाद फैसला होता कि तुम्हें कहाँ शिफ्ट करे? -स्वर्ग कि नर्क..? ’

‘अच्छा..बताइये भला कि ट्रेन से कटकर अभी मैं मरता तो कहाँ जाता ? मतलब कि कहाँ-कहाँ भटकता ?‘ उसने कौतूहल से पूछा.

‘ अरे वहीँ-वहीँ भटकते जो अभी तुम्हारे ठिकाने हैं..आशियाने हैं..उन्हीं के बीच बिलखते जो जीने के बहाने हैं..उसी के आस-पास मंडराते जिसके आप दीवाने हैं..परवाने हैं..जिंदगी के सारे दृश्य जीवंत चलते-फिरते अपनी आँखों से एच.डी.फार्मेट में देखते पर देखकर भी उसमें कोई “ अमेंडमेंट” नहीं कर सकते ..’

‘ जैसे ? ‘

‘ जैसे अभी तुम फ़ना हो जाते तो तुम्हारे जाने से तुमसे सम्बंधित कोई काम यहाँ नहीं रुकता..यह प्रकृति का नियम है..तुम्हारी बेवफा प्रेमिका (जिसके गम में तुम व्यर्थ ही कटे-मरे जा रहे) की शादी तो होती ही..और उसी से होती जिसे तुम फूटी आँख भी देखना पसंद नहीं करते..लेकिन अफसोस कि ये सब कुछ तुम “लाईफ” देखते और कर कुछ नहीं पाते सिवा सिर धुनने के...’ दूत ने कहा.

‘ अरे फिर तो ये नरक भोगने से भी ज्यादा कष्टमय काम होगा श्रीमान..आप तो ट्रेलर ही दिखा रहे..मैं तो कल्पना कर रहा हूँ कि चालीस साल लम्बी लाईफ कास्ट देख पगला ही जाऊँगा..इस बीच और न जाने कितनी बार मर जाऊँगा..’

‘ तभी तो.. तभी तो तुम्हें चेताने आये हैं कि आत्महत्या मत कर...चालीस साल जीना ही है तो भटकते और नरक भोगते क्यों जीना ? अरे..इसे हँसते-गाते जी ना..! हिम्मत के साथ कुछ ऐसा पुरुषाना हरकत (करम) कर कि बेवफा प्रेमिका को भी नानी याद आ जाए..कभी याद भी करे तो पसीना छूट जाये..उसने तुम्हें छोड़ा तो तुम क्यों बेवजह पकडे हो ? क्यों दिल में जकडे हो ? तू भी थोडा अकड ..किसी और हसीना को पकड़..ज़माना बदल गया है..तू भी उसे बदल..अब चल उठ और घर जा..ज्यादा दिल न जला.. सनद रहे..कोई भी बात अब दिल से मत लेना..बेवफा मान जाए तो भी.. “रिस्क” मत लेना.. “रिस्क” मत लेना..’ दूत ने उसे समझाते कहा और फिर अचानक किसी जादुई पिक्चर के सीन की तरह वो रंगीन धुंए और गुबार के बीच गायब हो गया.

डरकर..हडबडा कर वह उठ बैठा...देखा- सामने पत्नी खड़ी बडबड़ा रही थी –‘ ‘उफ़ ! दिनभर घोड़े बेच मुंगेरी लाल की तरह सपने देखते रहते हैं.. न जाने कौन सी वो मनहूस घडी थी कि दुबारा इनके चक्कर में आ शादी के लिए मान गई..कूल-कूल दिमाग से काम लेती तो आज किसी कलेक्टर,एस.पी. की बीबी होती..पर अब मलाल करने से क्या ?’

‘ अरे यार ! नाईट शिफ्ट की ड्यूटी है..दिन को नहीं सोऊंगा तो और कब सोऊंगा ? और रहा तुम्हारे मलाल का सवाल तो तुमसे ज्यादा मुझे मलाल है..’ आँखें मलते वह तनिक गुस्से से बोला.

‘ किस बात का भई ?’ पत्नी हैरानी से बोली.

‘ इस बात का कि जो स्वप्न अभी देखा वो चार साल पहले क्यों नहीं आया ? तुम चाहे जो होती न होती..पर मैं जरुर मंत्री-संत्री होता..लेकिन रिस्क लेकर मैनें सारा गुड गोबर कर डाला..’

‘ कैसा रिस्क ? कौन सा रिस्क ?’ पत्नी पूछी.

‘ अब जाने भी दो..तुम नहीं समझोगी..जाओ..अपना काम करो और कृपा कर एक कप चाय पिलाओ..’

पत्नी “पागल है” वाले भाव से उसे घूरते मन ही मन बडबड़ाती किचन की ओर चली गई और वह फिर उस स्वप्न के सार में उलझ गया..इस हकीकत भरे सपने के लेट-लतीफी पर वह काफी दुखी था..सिगरेट जला इस दुःख को वह धुंएँ में उड़ाने की कोशिश करने लगा....

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प्रमोद यादव

गयाबाई धर्मशाला के पास,गली नंबर--5

गया नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़

E-Mail- pramodyadav1952@gmail.com

Mo. 09993039475

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रचनाकार: एक लेटलतीफ स्वप्न / व्यंग्य / प्रमोद यादव
एक लेटलतीफ स्वप्न / व्यंग्य / प्रमोद यादव
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