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चाहे कुछ भी हो जाए, कोई कितना ही अच्छा क्यों न हो, कोई कितना ही अच्छा काम क्यों न कर रहा हो, उसकी आलोचना-निन्दा करने वाले हर समय कुछ न कुछ होते ही हैं जो तरह-तरह की बातें और अफवाहें फैलाकर सज्जनों को बदनाम करने की हरचन्द कोशिश करते रहते हैं।
इस किस्म के लोग हर साल कुछ न कुछ संख्या में पैदा होते ही रहते हैं। ये आसुरी आत्माएं हर युग में पैदा होती हैं और अपने साथ पापों की गठरी लेकर मर जाती हैं, फिर पैदा होती हैं और पूर्वजन्मों की नालायकी और पापों की लम्बी फेहरिश्त के साथ।
और यों ही इन आसुरी आत्माओं का आवागमन उत्तरोत्तर बढ़ते हुए पापों के भण्डार के साथ होता चला जाता है। जब बहुत सारे और अक्षम्य पाप हो जाते हैं तब ये आसुरी आत्माएं कलियुग में पैदा हो जाती हैं और सत्य, धर्म, न्याय से संघर्ष को ही अपने जीवन का लक्ष्य मानकर पूरी जिन्दगी इसी में खपा देती हैं।
आज इसके पीछे लगे जाएंगी, कल दूसरों के पीछे। इनकी पूरी जिन्दगी का सर्वोपरि ध्येय ही यह हो जाता है कि किस तरह सत्य पर चढ़ाई की जाए, सज्जनता को रौंदा जाए और अपनी चवन्नियां या खोटे अवधिपार सिक्के चलाए जाएं।
चूंकि गंदगी, मैला और सडान्ध के बीच मेल-मिलाप जल्दी ही होकर सारे मिलकर कूड़ाघर या डंपिंग यार्ड का स्थान ले लिया करते हैं और इनकी अजीबोगरीब एरोमेटिक गंध का आनंद ये सभी प्रकार के कूड़े-करकट मिल कर ले लिया करते हैं।
आजकल इस तरह के कचरे की भी भरमार है और उसी की तर्ज पर सभी स्थानों पर कचराघर, डंपिग स्पॉट और डंपिंग यार्ड भी जगह-जगह अपना अस्तित्व दिखाते जा रहे हैं।
इन सभी का एकमेव उद्देश्य यही है कि जमाने भर में सिर्फ उन्हीं की दुर्गंध व्याप्त रहे और लोग दूर से ही इसका अहसास करने लगें, उन्हें स्वीकार करते चले जाएं। तकरीबन हर तरफ इन्हीं सड़ियल किस्म के जीवों को बोलबाला होता जा रहा है।
दुनिया भर में चाहे कितना ही अच्छा काम हो, समाज, देश और क्षेत्र के लिए कितना ही तरक्की वाला काम हो, समाज की निष्काम सेवा हो रही हो, परोपकार का परिवेश हरा-भरा होता जा रहा हो, सर्वत्र सुख-सुकून और शांति का माहौल हो, लेकिन इन आसुरी वृत्तियों वाले लोगों को यह सब नहीं सुहाता।
मन-मस्तिष्क और भावों से कमजोर लेकिन अंधरों की सरपरस्ती में खुद को महान जता देने वाले ये अंधकासुर हमेशा रोशनी के अस्तित्व को स्वीकार करने से परहेज रखते हैं। बहुत सारे तो चुंधियाने वाली रोशनी के पंजों में आकर दृष्टिदोषी या अंधे हो गए, और बहुत सारे रोशनी से घबरा कर अंधेरी मांदों में घुस गए अपने उन आकाओं के आंचल या भीतर तक, जिनका काम ही रह गया है जमाने भर में अंधेरा फैलाना।
दुनिया में यह हालत सभी स्थानों पर हैं। सब जगह अंधेरे वाले कामों को करने के आदी लोगों का जमावड़ा है और ये वे ही काम करते हैं जो अंधेरा पसन्द लोगों के होते हैं। हो सकता है अब इन गतिविधियों ने नया स्वरूप प्राप्त कर लिया हो मगर सच यही है कि हर तरफ आसुरी माया से घिरे लोगों का वजूद बढ़ता जा रहा है।
और ये ही वे लोग हैं जो जमाने भर की गंदगी को अपने दिल और दिमाग में कैद कर इसका रिसाईकल कर वापस फैलाते रहे हैं। इन लोगों को न अच्छे लोग सुहाते हैं, न अच्छे काम। बुरे कामों, पाप कर्मों और मलीनताओं से भरे-पूरे स्वभाव वाले ये लोग अपनी ही तरह के दूसरे कचरापात्रों का साथ लेकर जो कुछ कर गुजरने की क्षमता रखते हैं वह अपने आप में कलियुगी प्रभाव ही कहा जा सकता है।
दुनिया भर में सज्जनों और सज्जनता का खात्मा कर आसुरी वृत्तियों का सिक्का जमाने के लिए पैदा हुए ये लोग श्रेष्ठ कर्मों के धुर विरोधी रहे हैं और रहेंगे। हर स्थान पर ऎसे दो-चार-दस लोग मिल ही जाते हैं। आमतौर पर श्रेष्ठ कर्म का संपादन करने वाले लोग इन्हीं नुगरों और नालायकों से दुःखी रहते हैं और इस वजह से अच्छे कर्म या कर्मक्षेत्रों से पलायन तक कर जाते हैं।
जबकि श्रेष्ठ कर्मयोगियों को चाहिए कि वे इन लोगों से दूर रहें, इनकी बातों, मलीनताओं से भरे कुतर्कों और अफवाहों पर ध्यान न दें क्योंकि हर जगह मात्र एक-दो फीसदी ही ऎसे लोग होते हैं जिनके लिए न कोई सिद्धान्त होते हैं, न धर्म, न मर्यादाएं।
ये लोग अपने वजूद को बचाए रखने तथा प्रतिष्ठा के शिखरों को पाने के लिए किसम-किसम की बैसाखियों का सहारा लेते रहते हैं और अपने आसुरी धर्म की कीर्तिपताका फहराने में मशगुल रहते हैं। लेकिन सज्जनों को चाहिए कि वे इनके प्रति बेपरवाह रहें, इन्हें जहां मौका मिले वहां ठिकाने लगाएं क्योंकि यही आज की सर्वोपरि समाजसेवा है।
अच्छे लोगों को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि हर जगह ऎसे भौंकने वाले कुछ लोग होते ही हैं जिनके लिए भौंकना इसलिए अनिवार्य है क्योंकि इसी से उनके अस्तित्व का पता चलता है।
यह साफ मान लेना चाहिए कि जहां हम होते हैं वहां आज भी नब्बे फीसदी से अधिक लोग सज्जनाेंं की कद्र करते हैं और ऎसे में यदि दो-चार फीसदी लोग श्वानों की तरह भौंकते रहें, कुछ भी बकते रहें, अनर्गल अलाप करते रहें, कुछ भी फरक नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि ये दुमहिलाऊ और पराये टुकड़ों तथा झूठन पर पलने वाले लोग किसी के निर्णायक नहीं हो सकते। फिर आजकल तरह-तरह की झूठन खाकर भौंकने वाले और अधिक पागल हुए जा रहे हैं।
जो खुद का नहीं हो, वह किसी और का भाग्य न तो बाँच सकता है, न बना सकता है। इसलिए भौंकने वालों को भौंकने दें, उन पर दया-करुणा रखें और इन्हें अनसुना कर आगे बढ़ते चले जाएं। हर भौंकने वाले की अपनी सीमा रेखा होती है और वह वहीं तक भौंक सकता है, इससे आगे उसके कदम बढ़ नहीं पाते।
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