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समय केवल उन्हीं का होता है जो समय के साथ चलते हैं, समय के साथ उसकी रफ्तार को थाम लेने की कला जान जाते हैं। समय उनके साथ कभी नहीं रहता जो समय के आगे चलने की कोशिश करते हैं अथवा समय के साथ नहीं चल पाते।
समय के साथ उसी वेग में समानान्तर चलने का हुनर इंसान की शत-प्रतिशत सफलता का मूल आधार है और जो यह आधार अपना लेता है वह अपने जमाने का सब कुछ अपने हाथ में थाम लेता है जो एक इंसान को अभीप्सित होता है।
समय अकेला नहीं होता। समय के साथ वे सारी खूबियां चलती हैं जो सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रकार की गतिविधियों को प्रभावित करने की भरपूर क्षमता रखती हैं। समय की धाराओं के अनुरूप चलते हुए काल को जान लेने वाले ही कालजयी और अमरत्व प्राप्त हो सकते हैं।
इस दृष्टि से दुनिया में काल ही सबसे बड़ा और बलवान है जिसके बारे में कहा जाता है कि समय किसी का नहीं होता। समय बड़ा बलवान है, सबका अपना-अपना समय है। समय सर्वोपरि सत्ता है जिसके आगे किसी का बस नहीं चलता।
इसीलिए समय को जीवन में सर्वोच्च स्थान देते हुए समय का पूरा-पूरा सदुपयोग करने को सर्वप्रथम कर्तव्य कहा गया है। इस मामले में पूरी दुनिया को दो भागों में बांटा जा सकता है। एक वे लोग हैं जो समय को सम्मान देते हैं और समय पर काम करते हैं इन लोगों को सौभाग्यशाली कहा जा सकता है।
जबकि दूसरे बहुसंख्य लोग दुर्भाग्यशाली कहे जा सकते हैं जो समय की अवहेलना करते हैं और प्रमाद-आलस्य तथा भोगविलासी आरामतलबी की वजह से कोई काम न तो समय पर करना चाहते हैं, न इनसे कोई सा काम समय पर हो पाता है।
जो लोग समय का आदर नहीं करते हैं उन लोगों को सीधे-सीधे टाईमपास प्रोडक्ट कहा जा सकता है। इन लोगों के बारे में गहन शोध अध्ययन किया जाए तो साफ-साफ पता चलेगा कि गर्भाधान से लेकर इनके दूसरे सारे संस्कार तक कभी समय पर नहीं हुए होते हैं और इसी का खामियाजा ये लोग पूरी जिन्दगी भुगतते रहते हैं और समय के साथ नहीं चल पाते इसलिए फिसड्डी होकर रह जाते हैं।
इनकी औसत जिन्दगी टाईमपास के सिवा कुछ अधिक नहीं बन पाती। समय की पाबंदी का अनुशासन नहीं पालने वाले लोग चाहे कुछ कर लें, अमर कीर्ति और यश प्राप्त नहीं कर पाते और यों ही औसत जिन्दगी गुजार कर परम धाम को प्राप्त हो जाते हैं।
समाज, क्षेत्र, देश और दुनिया के विकास में सबसे बड़ी बाधा है समय का निरादर। अधिकांश संस्थानों, बाड़ों, गलियारों और परिसरों में सबसे ज्यादा संघर्ष और तनावों का मूल कारण यही है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अधिकांश लोग अपने आपको इतने अधिक स्वच्छन्द और उन्मुक्त महसूस करने लग गए हैं कि ये किसी को कुछ नहीं मानते, किसी की अधीनता स्वीकार कर पाना इन्हें शर्मनाक महसूस होने लगा है चाहे वह कितना ही मर्यादित और राष्ट्र कल्याण से जुड़ा हुआ क्यों न हो।
बहुत सारे लोग हैं जिनके जीवन भर की यह आदत ही हो गई है कि कभी टाईम पर नहीं जाना, लेट जाना और टाईम पूरा होने से पहले भगोड़ा कल्चर को अपनाते रहना। यहां तक कि जिन गलियारों और बाड़ों से हमारा और परिवार का पेट पलता है, जिन लोगों और संस्थाओं की वजह से हम स्वाभिमानी और निश्चिन्त जिन्दगी जी रहे हैं, मोटी-मोटी तनख्वाह, भत्ते, मेहनताना, पारिश्रमिक, विलासितापूर्ण सुविधाएं और सम्मान पा रहे हैं उनके लिए जीने और काम करने में भी हमें मौत आती है।
कई बाड़ों में रोज का यही संघर्ष रहता है कि कई सारे महान स्वाधीन, स्वच्छन्द, उन्मुक्त और स्वनामधन्य लोग कभी टाईम पर नहीं आते। समय पर आने में उन्हें शर्म और हीनता का अनुभव होता है, देर से आना, पूरे समय टिक कर नहीं बैठना और जल्दी भाग जाना इनकी दैनिक जीवनचर्या का वह अंग है जिसे वे अपना अधिकार समझ बैठे हैं।
हालांकि वे लोग धन्य हैं जो समय पर आते हैं, समय पर काम करते हैं और पूरे मनोयोग से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हैं। लेकिन इन लोगों की ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और परिश्रम की बजाय उन लोगों का बोलबाला है जो टाईमपास प्रोडक्ट हैं और जिन्हें स्व कर्म और फर्ज में कोई रुचि नहीं है।
समय की पाबंदी को नहीं मानने वाले लोगों के पास देरी से आने और जल्दी भाग जाने के सौ बहाने हैं जिनका इस्तेमाल ये जिन्दगी भर करते रहते हैं। किसी काम की वजह से देरी हो जाए या जल्दी जाने की विवशता तो समझ में आती है लेकिन हमेशा अपनी ड्यूटी के समय का अनादर करना इन लोगों की ऎसी आदत बन जाती है जो मरे नहीं छूट पाती।
बहुत से लोग हैं जो कभी समय पर नहीं आते, समय पर काम नहीं करते और समय पूरा होने से पहले ही भाग छूटते हैं। और जरा सा कोई टोक दे तो त्यौरियां चढ़ जाती हैं, तैश में आकर ऊँची आवाज में ऎसे बोलेंगे जैसे कि इनके बाप-दादाओं की फैक्ट्री, अजायबघर या कोई धर्मशाला हो।
खुद की कमजोरी को स्वीकार कर सुधार लाने की बजाय इनकी तरह के दूसरे लोगों का उदाहरण गिनाएंगे जो कि समय के पाबंद नहीं हैं। संसार में बेवक्त और अनावश्यक पैदा हो गए सारे के सारे लोग समय की पाबंदी के प्रति बेपरवाह हैं और इस मामले में खुद को सुधारने की बजाय दूसरों की गलत आदतों की नजी़र पेश करते हुए ढाल तलाश लिया करते हैं।
इस किस्म के लोग चाहे कितना ही समय चुराएं, इन्हें यह नहीं पता कि यह हरामखोरी और समय की चोरी सारा हिसाब बराबर करके ही ऊपर भेजेगी। ये टाईमपास प्रोडक्ट असली भारतीय होने की बजाय चाईना प्रोडक्ट की तरह हो जाते हैं और यह उनकी पूरी जिन्दगी के कर्म, स्वभाव और व्यवहार से अच्छी तरह जाना जा सकता है।
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