परीदेश की सैर - 5 / रोमांचक बाल उपन्यास / श्रीनाथ सिंह

SHARE:

  (पिछली कड़ी 4 यहाँ पढ़ें) परीदेश में हलचल परीदेश की रानी के महल में सब परियाँ इकट्ठा हुईँ। आज देश में पहला मौका था जब परियाँ इतनी घबराई...

 

(पिछली कड़ी 4 यहाँ पढ़ें)

परीदेश में हलचल

clip_image002

परीदेश की रानी के महल में सब परियाँ इकट्ठा हुईँ। आज देश में पहला मौका था जब परियाँ इतनी घबराई हुई थीं. सब परियों के झोंपड़े उजड़ चुके थे। केवल रानी का महल बाकी था । वह इसलिए बिना रानी की इच्छा के वह सूख नहीं सकता था ।

महल के बाहर अजीब तमाशा हो रहा था । जान पड़ता था मानो बरसात और रेगिस्तान में लड़ाई हो रही है । बांहर ऊंट और मोर दोनों खुश थे । ऊँट दूर तक फैले रेगिस्तान को दखकर खुश था और मोर ऊपर की बादलों की गरज को सुन कर खुश था । बैल के रूप में किसान कभी-कभी हरी घास की इच्छा कर बैठता था इससे कुछ हरियाली दिख जाती थी । अजीब गड़बड़ मची हुई थी । एक चिडिया और एक जानवर की इच्छा ने यह हालत कर रखी थी । मनुष्य देश से और भी जानवर पहुँच जाते तो जाने क्या हो जाता ।

इस लिहाज से तो मनुष्यों के देश में यह अच्छा है कि यहाँ किसी की इच्छा पलक झपकते पूरी नहीं होती । क्योंकि यदि ऐसा होता और जानवरों की चलती तो ये इस दुनिया को न जाने क्या बना देते और तो और केवल उल्लू की इच्छा पूरी हो जाती तो सूरज के कभी दर्शन ही न होते । उल्लू महराज चौबीसों घन्टे अंधेरा बनाए रहते । खैर गनीमत हुई कि यह पक्षी परीदेश में नहीं पहुंच पाया । मगर बादलों के घिरने से जो अंधेरा हो गया था उससे लाल बौना को यही शक हुआ कि परी-देश में कोई उल्लू भी आया है इसलिए डर के मारे जब वह काँपता, घबराता भागता गिरता पड़ता रानी के महल में पहुँचा तब यही चिल्लाने लगा-परीदेश में क्या काई उल्लू भी आ पहुंचा? मैंने उसे नहीं देखा ।

एक तरफ परियां अपने बचने का उपाय सोच रही थीं दूसरी तरफ लाल बौना अपना यही बेसुरा राग अलाप रहा था । किसी को समझ में न आया वह क्या बक रहा है ।

रानी के महल में भीतर हर पत्ती पर एक जुगनू बैठा हुआ था । इससे खूब उजाला हो रहा था । उसी उजाले में एक परी ने देखा कि लाल बौना भीगा हुआ है । उसने पूछा-क्या बाहर पानी बरस रहा है?

लाल बौना बोला-नहीं गर्द बरस रही है ।

'तब तुम भीगे कैसे हो ?'

'में अभी बादलों को छूकर चला आ रहा हूं वहाँ इस कदर जोर से बिजली चमक रही है कि मैंने सोचा कि भागूंगा नहीं तो उसकी सारी चमक मेरी आँखों में घुस जायगी ।'

: इधर लाल बौने में और एक परी में ये बातें हो रही थीं इधर रानी से एक परी जोर देकर कह रही थीं-रानी इच्छा करो 'कि परीदेश फिर पहले जैसा हो जाय । तुम दिल से यह .बात चाहोगी तो जरूर हो जायगा । इसके जवाब में रानी ने कहा-मैं हमेशा बहुत सोच समझ कर इच्छा करती हूँ । अपने पास जो ताकत हो उसको सोच समझ कर काम में लगाने को मेरी हमेशा से आदत है । शायद भगवान को यही मंजूर हो कि परीदेश नाश हो जाय । इसलिए मैं बिना सोचे समझे कोई इच्छा नहीं करूँगी । लाल बौना कहां है उसे बाहर भेजो । पता लगाकर आवे कि क्या बात है । अगर मनुष्यों के देश से कोई आया होगा तो उसे पता होगा । लाल बौना रानी के सामने लाया गया । उसने अपनी दाढ़ी तान कर और मुँछें झटकर कर रानी को प्रणाम किया । मूंछे झटकने से मूछों में भरी पानी की बूंदे रानी पर जा पड़ी । रानी ने पूछा क्या बाहर से आ रहा है? कितना पानी बरस गया? ''बिल्कुल नहीं । मैं बादलों से आ रहा हूँ । आज की मुसीबत का सारा भेद मुझे मालूम हो गया है । सिर्फ एक बात नहीं मालूम हुई कि उल्लू कहाँ से और कैसे आ गया ।''

परियों की रानी ने कहा-''उल्लू तेरे दिमाग में कैसे घुस गया । अरे भाई बादल घिरे उनमें सूरज छिप गया । बस अँधेरा है । इसमें उल्लू का क्या कसूर है ।''

लाल बौना दोनों हाथों से अपना मुंह पीट कर बोला- -बेशक मैंने समझने में गलती की है । उल्लू की तलाश में मैं खुद -ही उल्लू बन गया ।

रानी ने कहा-बाकी तुझे क्या मालूम है?

लाल बौना ने गोपाल, चमेली, किसान, ऊंट, मोर, चूहा सब का सारा किस्सा कह सुनाया ।

परियों की रानी ने कहा-ये सब जीव जिस शकल में परी देश में आये थे उसी शकल में हमारे महल में हाजिर हों ।

रानी यह कह भी न पाई थी कि सब लोग उसके महल के सामने आकर खड़े हो गए ।

इसके बाद रानी ने कहा-परी देश जैसा पहले था वैसे-- ही फिर हो जाय ।

बस परीदेश फिर ज्यों का त्यों हो गया । परियां यह देखने के लिए बाहर निकल आई और रानी की तारीफ में एक गीत गाने के बाद ऊँट और मोर को देखने लगीं ।

रानी ने बाहर निकल कर कहा-तुममें से किसी को कुछ कहना है?

किसान बोला-हाँ, तुम्हारा यह लाल बौना बड़ा शैतान है । इसने मुझको बैल बना दिया था ।

लाल बौना-बिलकुल गलत! तुमने खुद बैल बनने की इच्छा की थी ।

किसान-तुमने मुझे गुस्सा दिलाया था ।

लाल बौना-तुमने भी मुझे चिढ़ाया या ।

रानी-बस, मुझे ऐसी बातें पसन्द नहीं है । यह प्रेम का देश है । यहां सब को प्रेम से रहना चाहिए । दोनों एक दूसरे को गले से लगाओ, और किसी को कुछ कहना है

गोपाल और चमेली ने एक साथ कहा - हम अपने देश वापस जाना चाहते हैं ।

रानी बोली-अच्छी बात है । पर तुम यहाँ आए कैसे?

गोपाल ने अपने आने की और चमेली ने अपने आने की कहानी कह सुनाई। चमेली के मुंह से किसान की तारीफ सुन कर रानी उठी और किसान के चरणों पर मस्तक रख कर उसे प्रणाम करने लगी।

लाल बौना बोला-इस तरह तो वह और आसमान पर चढ़ जायगा । उसके कुछ अक्ल शहूर है या यों ही उसे प्रणाम कर रही हो ।

रानी ने कहा-अक्ल शहूर हो या नहीं । मनुष्य देश में- रहने पर भी इसमें परियों के गुण मौजूद हैं । यह मुसीबत में पड़े की मदद करना जानता है । एक छोटी अनजान लड़की के लिए घर बार छोड्‌कर इतनी दूर जो आ सकता है और इतनी- तकलीफ उठा सकता है उसे मैं क्या ईश्वर भी एक बार प्रणाम करेंगे । यदि ऐसे ही आदमी मनुष्य देश में पैदा हो जायँ तो परियों को वहां जाकर प्रेम दया का गीत गाने की जरूरत ही न पड़े ।

इसके बाद रानी ने किसान से पूछा-किसान देवता और- क्या चाहते हो?

किसान बोला-चमेली का काम हो गया अब मैं अपने घर जाना चाहता हूँ ।

“अच्छा ऊँट पर बैठ जाओ”

किसान ऊँट पर बैठ गया। उसके बैठते ही ऊँट उड़ चला। चमेली बोली हम लोग भी इन्हीं के साथ जाएंगे।

रानी ने कहा – तुम बच्चे हो, अभी बहुत थके हो। दो चार दिन परी देश की सैर कर लो फिर जाना। किसान को इसलिए भेज दिया कि उस बेचारे को अपने घर बार की चिन्ता है। तुमने देखा नहीं वह कितना उदास था ।

चमेली चुप हो रही ।

मोर चुपचाप रानी की ओर देख रहा था। रानी को उस पर दया आ गई। रानी बोली मोर! चूहे को अपनी पीठ पर बैठाकर जहां से आये हो वहीं चले जाओ ।

मोर और चूहा दोनों रवाना हो गए ।

इसके बाद रानी ने लाल बौने से कहा-गोपाल और चमेली की कल मेरे यहाँ दावत होगी । सबेरा होते ही यहाँ पहुंचा जाना । उसके बाद बताऊँगी कि ये अपने घर कैसे जायेंगे ।

अब सूरज डूब चुका था । सफेद चाँदनी में परियों के गाना के बीच में से लाल बौना गोपाल और चमेली को घर लिये जा रहा था ।

वापसी

clip_image004

चमेली और गोपाल ने यह समझा था कि रानी के यहाँ दावत में उन्हें अच्छी-अच्छी चीजें खाने को मिलेगी । परन्तु परीदेश में दावत का बिलकुल दूसरा अर्थ है । रानी जिसका दावत देती है उसको वह बजाय अच्छे-अच्छे खाने खिलाने के अच्छी-अच्छी बातें सुनाती है । अपना दिल उसके सामने खोलती है और उसके दिल की बातें सुनती है ।

उस दिन रानी ने चमेली और गोपाल को बहुत सी अच्छी- अच्छी बातें बतलायीं । परोदेश के बारे में और मनुष्यों के देश के बारे में भी दोनों की बातें हुयी । बातें समाप्त होने पर रानी ने पूछा-बोलो, परीदेश को तुम कैसा समझते हो, यहाँ रहना चाहो तो तुम्हारे माता-पिता को भी यहीं बुला दूं?

चमेली ने जवाब दिया- परीदेश क्या है एक सपना है । थोडी देर तक सपना देखना अच्छा होता है । पर हमेशा सपना कौन देखना चाहेगा?

रानी ने कहा-परन्तु मनुष्यों की किताबों में लिखा है कि मनुष्यों का देश भी सपना है ।

गोपाल बोला-होगा, हमको क्या? हम अभी बच्चे हैं ।' हमें सब सपना है और हमारे लिए सब सच्चा है ।

रानी ने कहा-हम लोग यहाँ बुड्‌ढों की सी बातें कर रहे हैं । आज बातचीत शुरू करने में शुरू से ही गलती हो गई है । इस तरह की बातें मुझे बड़े बूढ़े मनुष्यों से करनी चाहिये थीं । तुम अभी बच्चे हो तुम्हें मनुष्यों की दुनिया का क्या पता?

चमेली बोली-मैं चाहती हूँ । मैं हमेशा इसी तरह लड़की बनी रहूँ ।

गोपाल बोला-मैं भी चाहता हूँ कि मैं हमेशा इसी तरह लड़का बना रहूँ ।

रानी बोली-उम्र की कमी से कोई बच्चा नहीं कहलाता और न उम्र की ज्यादती से कोई बुड्‌ढा । जिसका स्वभाव हमेंशा बच्चों का सा बना रहे यही बच्चा है । मनुष्यों के देश में ऐसे भी लोग होते हैं और वे ही अच्छे लोग कहे जाते हैं ।. तुम्हारे साथ जो किसान आया था वह ऐसा ही था ।

चमेली ने कहा-सचमुच बड़ा अच्छा आदमी था । वही मुझे यहाँ तक लाया । मैं अपने घर जाने पर उससे जरूर भेंट करूंगी और उसको बाबा कहूँगी ।

गोपाल बोला--मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा । मैं भी उसे बाबा कहूंगा ।

रानी ने मुस्करा कर कहा-तुम दोनों बड़े अच्छे लड़के हो 'तुमसे मैं बहुत खुश हूँ ।

गोपाल ने कहा-खुश हो तो कुछ इनाम दो ।

चमेली ने कहा--मैं इनाम नहीं चाहती । मैं किसी लालच .से अच्छी लड़की नहीं बनना चाहती ।

गोपाल बोला तब मैं भी कोई इनाम नहीं चाहता ।

रानी बोली-अब तुम दोनों परी-देश की सी बातें कर रहे हो । परियाँ अपने अच्छे कामों का कोई इनाम नहीं -चाहतीं ।

गोपाल कुछ कहने वाला था कि रानी ने कहा-मैं तुम दोनों को तितली बनाए देती हूँ । तुम बड़ी तेजी से उड़ते हुये जाओगे । और अपने घर पहुंच जाने पर अपने माँ की आवाज सुनते ही फिर मनुष्य बन जाओगे । क्यों मंजूर है? दोनों ने -एक साथ कहा-हाँ!

मुँह से 'हाँ' निकलते ही दोनों तितली बन गए । सबेरे की -सुनहली धूप में उनके रंग-बिरंगे पर चमक उठे । अब वे उड़ते- उड़ते रानी के महल से दूर लाल बौने की झाड़ी के पास पहुँच .गए थे । वहाँ से उन्हें रानी के घर में परियों का यह गाना होता हुआ सुनाई पड़ा ।

तुम्हारी जय हो जय रानी ।

फूलों सी है हंसी तुम्हारी महक सरीखे बोल ।

प्यार भरा है दिल में इतना दुनिया लेलो मोल ।।

खोल दो जग के बन्धन खोल ।

बोल दो महक सरीखे बोल ।।

बजा कर बढ़ो प्रेम का ढोल मिटा दो जग की हैरानी

तुम्हारी जय हो जय रानी

चमेली और गोपाल दोनों को यह गाना याद था. दोनों इसी को गाते उड़ते चले गए । शाम हुई, रात हुई, पर वे उड़ते ही चले गए।

दूसरे दिन जब पूरब में सूरज की लाली फूटी तब चमेली ने गोपाल से चौंक कर कहा-अरे गोपाल वह देख वह पेड् दिखाई पड रहा है । जिस पर से तू गुब्बारे के साथ उड़ा था।

गोपाल बोला-ओहो अब हम अपने गांव के पास आ गये। इसके थोड़ी ही देर बाद दोनों अपने घर के पास पहुँचे ।

पल भर के भीतर आंगन में लगे तुलसी के पेड़ पर बैठ गये। उनकी माता उदास मन चुपचाप बैठी थी । बड़ी देर तक दोनों चुपचाप दोनों इस आशा में बैठे रहे कि माँ बोलेगी तब वे' मनुष्य बन जायेंगे ।

परन्तु जब देखा कि माँ को बुलाना सहज नहीं है तब' चमेली चुपके से जाकर उसके सामने ऐसे पड़ रही जैसे कोई मरी तितली हो।

उसे देखते ही चमेली की मां ने धीरे से कहा – हाय रे बेचारी तितली।

“अरे चमेली! मैं सपना तो नहीं देख रही हूँ”

चमेली ने कहा-नहीं माँ सपना नहीं है । माता ने चमेली को पकड कर छाती से लिपटा लिया और कहा गोपाल । कहां है?

“वह सामने तुलसी के पेड़ पर तितली बना बैठा है ।'

तुम्हारी आवाज सुनते ही वह भी आदमी बन जायगा ।

मां ने तुलसी के पेड़ के पास जाकर देखा । वहाँ कोई तितली नहीं थी । बेचारी माँ बहुत घबड़ाई । चमेली भी बहुत घबड़ाई.

दोनों इधर-उधर दौड़ने लगीं ।

गोपाल की माँ ने जोर-जोर से पुकारा-गोपाल!

गोपाल!!

गोपाल बाहर उड़कर आ गया था और एक नीम के पेड़ पर बैठा हुआ था । माँ की आवाज सुनते ही वह तितली से आदमी बन गया । नीम की कमजोर पत्ती उसे सम्भाल न सकी। वह धड़ाम से नीचे जमीन पर गिर पड़ा और उसके मुँह से-

निकला-''हाय माँ तुमने मुझे मार डाला ।''

चमेली और उसकी माँ दोनों दौड़कर गौपाल के पास गए ।'

वह बच गया था । उसके बहुत चोट नहीं आई थी । माँ ने उसे जमीन से उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया ।

उसके सिर पर हाथ फेरा और बार-बार उसका मुँह चूमा ।

सारे गाँव में शोर मच गया कि गोपाल और चमेली घर वापस आ गए हैं । गाँव भर के लड़के-लड़कियां स्त्री-पुरुष सब उन्हें देखने आये । गोपाल के घर में कड़ी भीड् और चहल-पहल हो गई । गोपाल की माँ की खुशी का ठिकाना नहीं रहा । उसकी सारी उदासी न जाने कहाँ चली गई । उसने कहा-बच्चों!

मेरे प्यारे बच्चों! तुम्हीं को देखने की आशा से मैं जीती रही नहीं तो अब तक मर गई होती।

इसके बाद गोपाल और चमेली ने अपने-अपने परीदेश में पहुँचने का हाल कह सुनाया । सुनकर जितने लोग इकट्ठे हुए थे सब दंग रह गये और सिर हिला-हिलाकर गोपाल चमेली के साहस की तारीफ करने लगे । अपने बच्चों की इतनी तारीफ सुनकर और उन्हें वापस पाकर गोपाल चमेली के माँ बाप मारे खुशी के फूले न समाते थे ।

(समाप्त)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: परीदेश की सैर - 5 / रोमांचक बाल उपन्यास / श्रीनाथ सिंह
परीदेश की सैर - 5 / रोमांचक बाल उपन्यास / श्रीनाथ सिंह
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiRiVKmIEc-wXIl01WhKLFNftKvKq943vZ58iinelzD-6odeFJvcDEibh71qh9dyKy_U9a5vFQQ2BYn8uFW1TWheb-0lC-r76jCTpq_SeNpTyluaePjgyBLg8AmHoo-k0TImeJN/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiRiVKmIEc-wXIl01WhKLFNftKvKq943vZ58iinelzD-6odeFJvcDEibh71qh9dyKy_U9a5vFQQ2BYn8uFW1TWheb-0lC-r76jCTpq_SeNpTyluaePjgyBLg8AmHoo-k0TImeJN/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/06/5.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/06/5.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content