व्यंग्य राजा राज करे फिक्र तौंसवी आ ज हमारा हेड खजांची भूकमदास कदमबोसी को हाजिर हुआ और बोला, ''हजूर! खजाने की चाभियां संभाल ले...
व्यंग्य
राजा राज करे
फिक्र तौंसवी
आज हमारा हेड खजांची भूकमदास कदमबोसी को हाजिर हुआ और बोला, ''हजूर! खजाने की चाभियां संभाल लें, मैं तो कैलाश पर्वत पर जाकर तपस्या करूंगी.'' हम सन्न रह गये. हमें पता था कि भूकमदास और उसके कुटूंब का डेढ़ सौ वर्ष पूर्व भगवान से संबंध विच्छेद हो चुका था, अतः कारण पूछने पर मालूम हुआ कि खजाना खाली हो चुका है, रिआया टैक्स देने से इंकार कर रही है, वेतन न मिलने की वजह से सेनापति कहीं भाग गया है और सिपाही अपने हथियार बेचकर गुजारा कर रहे हैं.
हालत ऐसे थे कि हमने भी कैलाश पर्वत पर जाने का निश्चय किया और कार तैयार करने के लिए कहा, किंतु ड्राइवर ने बतलाया कि गाड़ी में पेट्रोल नहीं है और पेट्रोल-पंप वाला पिछले बिलों की अदायगी के बिना पेट्रोल देने से मना कर रहा है. हमें तैश आ गया, किंतु भूकमदास ने समझाया कि तैश से मोटर नहीं चल सकती, तैश और पेट्रोल में एक टैक्निकल फर्क है.
चार रानियां हमारे साथ कैलाश पर्वत पर चलने के लिए राजी हो गयीं, किंतु छोटी रानी भरतबाला ने कहा कि मेरा तो हुजूर के साथ विधिवत् विवाह नहीं हुआ हैं, मैं हरण की हुई स्त्री हूं, एक किसान की बेटी होने के नाते मैं तो रिआया में ही मिलकर रहूंगी. हमें छोटी रानी की बेवफाई पर दुःख हुआ और हमने एक कविता लिख डाली.
भूकमदास फिर हाजिर हुआ. उसने एक दस्तावेज पर हमसे हस्ताक्षर करवाये और कहने लगा कि यह नयी सरकार का आज्ञा पत्र है. परदे के पीछे से दो व्यक्ति प्रकट हुए और उन्होंने पेट्रोल के दो टीन हमें समर्पित कर दिये. भूकमदास ने बतलाया कि आज्ञा पत्र से देश में बादशाहत खत्म हो गयी है और लोकतंत्र स्थापित हो चुका है. यानी शासन हमारा ही रहेगा, किंतु हम उसे जनता-जनार्दन पार्टी के नाम से चलायेंगे, पेट्रोल लाने वाले व्यक्ति थेगीदड़ जंग और उजाड़ू सिंह. गीदड़ जंग हमारे नये मंत्रिमंडल में गृह मंत्री बना और उजाड़ू सिंह को रक्षा मंत्री का पद दिया गया.
हमारे द्वारा राज्याधिकारों का त्याग करते ही प्रजा में खुशी छा गयी. हमने छोटी रानी के साथ झरोखे में आकर रिआया को दर्शन दिये. भीड़ 'चौपट राजा, जिंदाबाद!' के नारे लगाती रही. रात को हम गणतंत्र समारोह में शामिल हुए. भूकमदास ने जी भरकर शराब पी. छोटी रानी ने हारमोनियम गर्दन में डालकर कुछ फिल्मी गीत सुनाये, जिनमें लोकतंत्र आदि का उल्लेख था.
दूसरे दिन सुबह गीदड़ जंग एक खूबसूरत कार में बैठकर हमारे पास आया. इससे पहले वह साइकिल पर आया करता था. हमने पूछा, ''यह गाड़ी कहां से ले आये?'' वह बोला, ''हुजूर! गश्ह मंत्री बनने के सम्मान में मुझे जनता ने कार भेंट की है.'' हमें ताज्जूब हुआ, जनता बड़ी नालायक है. खुद तो बसों में धक्के खाती है, और अपने नेता को कार भेंट करती है. गीदड़ जंग ने जवाहरात भेंट करने के बजाय हमें एक किताब नजराने में दी'लोकतंत्र क्यों और कैसे?' उसने कहा, ''हुजूर, अब आपको लोकतांत्रिक तरीके से हुकूमत करनी है, इसलिए यह पुस्तक पढ़ लें. हमने पुस्तक पढ़ने की चेष्टा की, पर कुछ समझ में नहीं आया, तब छोटी रानी ने कहा कि मैं आपके लिए ट्यूशन का प्रबंध कर दूंगी. शिक्षा चाहे लोकतंत्र की हो या तानाशाही की, दोनों के लिए बहुत सस्ते प्रोफेसर मिल जाते हैं.''
हमारे राजमहल का झंडा उतार दिया गया और उसका नाम भी बदलकर जनता भवन रख दिया गया. अब उस पर जनता-जनार्दन पार्टी का झंडा लहराने लगा. हमें गुस्सा आया तो भूकमदास ने सांत्वना दी कि महल भी आपका है और झंडा भी, किंतु चीजों का नाम बदलना लोकतंत्र में जरूरी है. प्रोफेसर निष्फलदास को हमारी ट्यूशन पर नियुक्त कर दिया गया. लोकतंत्र की शिक्षा लेने पर हमें यही पता चला कि हम तो व्यर्थ ही उससे डर रहे थे, लोकतंत्र असाधारण चीज नहीं है.
हमारी कैबिनेट की मीटिंग
लोकतंत्री मंत्रिमंडल की पहली बैठक हुई. मंत्री इतनी बहुमूल्य पोशाकें पहनकर आये कि हमें शक हुआ, वे शाही तोपखाने से चुरायी हुई हैं. गृह मंत्री गीदड़ जंग ने हमें हुक्म दिया कि हम एक-एक कर मंत्रियों के लिबास चूमें, तभी डेमोक्रेसी का मकसद पूरा होगा. अब तक कई व्यक्ति मंत्री बन चुके थे. भूकमदास ने महामंत्री होने के साथ-साथ वित्त मंत्री का पद भी संभाल लिया था. मीटिंग के बाद उसने एक लाख रुपये के खर्च हो जाने पर हमारी मंजूरी मांगी. हमने आश्चर्य व्यक्त किया कि मीटिंग पर इतना धन कैसे खर्च हो गया. भूकमदास ने एक लंबा भाषण देते हुए हमें धमकाया कि दस्तखत कर दीजिए, वरना शाही तख्त की बजाय भुने चने नजर आयेंगे. रिआया का रुपया रिआया पर खर्च हो रहा है, हमने सहमकर मंजूरी दे दी.
कई दिन ऐसी व्यस्तता में बीते कि हमें डायरी लिखने का भी वक्त नहीं मिला. सुबह जो गुलफाम बांदी अपने सुरीले कंठ से गाकर हमें जगाया करती थी, सुना है कि उसे भूकम्पदास के बंगले पर तैनात कर दिया गया है. हमें एक रेडियो सेट दे दिया गया है, जिससे प्रातः भक्ति गान सुनायी देता है. नाश्ते की मेज पर हमारा रोजाना का प्रोग्राम टाइप कर ट्रे में रख दिया जाता है. यह प्रोग्राम मंत्रिमंडल तय करता है. हमें क्या भोजन दिया जाये, यह एक कमेटी तय करती है. खाना बेशकीमती और बहुत अधिक मात्रा में होता है. हमने खाद्यमंत्री को बुलवाकर इस संबंध में कहना चाहा तो ज्ञात हुआ कि वह हवाई जहाज पर अकालग्रस्त क्षेत्र का दौरा करने गये हैं. यह अजीब लोकतंत्री शासन है कि जनता खुराक की कमी से भूखों मर रही है और हम खुराक की ज्यादती से परेशान हैं.
हमसे एक ऐसा फरमान निकलवाया गया है कि मुल्क में जो भी स्मगलर और चोर बंदी हैं, उन्हें रिहा किया जाये और उन्हें वोट देने के हक में महरूम न किया जाये. कारण पूछने पर बतलाया गया कि वोटरों की तादाद कम हो रही है, इसलिए यह कदम उठाया गया है.
महामंत्री की महबूबा
भूकमदास के बारे में चिंताजनक रिपोर्टें आ रही हैं. कानाफूसी हो रही है कि उसने अपनी स्टेनोग्राफर मिस रंभा को हरम में डाल लिया है. गीदड़ जंग ने बतलाया है कि भूकमदास ताकत का भूखा है और किसी भी दिन हमें जेल में डाल सकता है. सेनापति का कहना है कि गश्ह मंत्री ही महामंत्री को 'डेमज' खराब कर रहा है और अफवाहें फैला रहा है. मिस रंभा एक स्मगलर की बेटी है. किंतु लोकतंत्री संविधान में स्मगलर की बेटी होना कोई जुर्म नहीं है. काफी सोचकर हमने भूकमदास को पद से हटा देने का फरमान जारी कर दिया और गीदड़ जंग को महामंत्री बना दिया.
राजधानी में उथल-पुथल मच गयी. एक ही रात में गीदड़ जंग के ढाई सौ भूकमदास के तीन सौ हिमायती आपस में लड़ मरे. हमने उन बेगुनाहों की मौत पर हमदर्दी जाहिर कर दी. गीदड़ जंग ने मश्तकों के परिवारों को पांच-पांच सौ रुपये की सहायता देने का ऐलान किया. यह मदद गीदड़ जंग के लोगों को ही दी गयी. भूकमदास के समर्थकों के बारे में एक हाई पॉवर कमीशन गठित किया गया कि वह उनकी मौत की पुष्टि करे. एक जलसे में भूकमदास ने हमारे खिलाफ जहरीला भाषण दिया तो हमने उसकी गिरफ्तारी का वारंट निकाल दिया.
एक रोज भूकमदास पांच सौदागरजादों को लेकर गिड़गिड़ाता हुआ हमारे सामने पेश हुआ. उसने हमारे राजकुमार का जन्मोत्सव मनाने के लिए पांच लाख की थैली भेंट करते हुए कहा कि मैं आपका पुराना नमकख्वार हूं. गीदड़ जंग आपको कत्ल करने की साजिश रच रहा है. भूकमदास का गला भर आया तो हमने उसे गले से लगा लिया. भूकमदास ने कहा, ये सौदागरजादे राजकुमार के जश्न का पूरा खर्चा अदा करेंगे, हमने खुश होकर गीदड़ जंग को मुअत्तल कर दिया और भूकमदास को फिर महामंत्री बना दिया.
राजकुमार का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया. निजी खजांची ने हमें इत्तला दी कि जश्न पर पांच लाख रुपये खर्च हुए, किंतु पंद्रह लाख के उपहार आये, छोटी रानी ने हिसाब लगाया कि उपहार सोलह लाख के थे, एक लाख की चीजें खजांची डकार गया है. हमने छोटी रानी को समझाया कि लोकतंत्र में एक लाख की हेराफेरी न केवल मामूली है, बल्कि लाजमी भी.
हम नौशेरवां बने
हमने नौशेरवां का नाम बचपन में सुना था. प्रोफेसर निष्फलदास ने हमसे कहा कि हम भेस बदलकर रिआया के दुःख-सुख जानें. आखिर हम गुमराह हो गये और नौशेरवां की तरह एक माली का भेस बनाकर बाहर निकले. पैदल चलते-चलते थक गये तो हमें ख्याल आया कि हमारी जेब तो नोटों से भरी पड़ी है, क्यों न हम टैक्सी कर लें, किंतु टैक्सीवाले ने शक्ल-सूरत की वजह से हमें अपमानित किया.
पीपल के पेड़ के नीचे एक बुढ़िया पोटली में खाना खा रही थी. शायद वह पेड़ उसका डाइनिंग रूम था. हमने उससे पूछा कि क्या तुम रिआया हो? अगर हो तो हमें महाराज चौपटनाथ जी के राज-काज के बारे में जानकारी दो. यह सुनते ही उसने चौपटनाथ को सैकड़ों गालियां दे डालीं. तब मुझे अपना राजा होना स्वीकार करना पड़ा. इस पर बुढ़िया ने हमें संदेह से देखा और चिल्लाने लगीबचाओ, यह लुटेरा है!
कई पहलवान किस्म के लोगों ने हमें घेर लिया. मुश्टंडे मारपीट करने लगे. पच्चीसवां थप्पड़ पड़ते ही हमें अक्ल आयी. हमने कुछ नोट जेब से निकाले और हवा में उछाल दिये. अब वे लोग हमें भूल गये और नोटों के लिए सिर-फुटौव्वल करने लगे.
इस हादसे से हमें नसीहत मिली कि रिआया से संपर्क पैदा करने में वक्त और पैसे की बरबादी होती है.
इधर हमें बतलाया जा रहा है कि 'भ्रष्टाचार' बढ़ रहा है. यह शब्द हमने पहली बार सुना है, कदाचित लोकतंत्र की देन है.
रिआया में फिर बेचैनी
अखबार का संपादक और कोठे की तवायफ, दोनों पेशेवर डांसर होते हैं. पैसा दो और जिस तरह का चाहो, नाच नचवा लो. निष्फलदास हमें अखबार पढ़कर सुनाता है. एक पश्ष्ठ पर हमारे विरुद्ध विषवमन, दूसरे पर प्रशंसा के पुल. शायद यही आजाद जर्नलिज्म है. अखबारों ने छाप दिया कि महाराज अपनी जान पर खेल जायेंगे, किंतु प्रजा को भ्रष्टाचार से जरूर बचायेंगे, यह खबर पढ़ते ही जनता महल के बाहर जमा हो गयी और 'लोकतंत्री राजा चौपटनाथ जिंदाबाद!' के नारे लगाने लगी. निष्फलदास की विनती पर हमने रिआया को दर्शन दिये, ज्योंहि हमने लोगों पर गुलाब का एक फूल फेंका, वे नाचने लगे.
तभी मजनू की तरह बाल बिखराये हुए भूकमदास हाजिर हुआ. बोला, ''महाराज! लोकतंत्र के शुरू में 'करप्शन' अनिवार्य है. उसके बिना शासन नहीं चल सकता है. निष्फलदास ने ही हमें बहकाया था, इसलिए हमने उसकी ट्यूशन बंद कर दी.''
बड़े जोर-शोर से हमारी प्रेस कॉन्फ्रेंस शुरू हुई और हमारे भीतर यह विश्वास पैदा हुआ कि हम कई पीढ़ियों तक हुकूमत कर सकते हैं. सवाल''क्या हम महाराज चौपटनाथ जी से यह पूछने का साहस कर सकते हैं कि उनके राज्य का क्षेत्र कितना है?'' जवाब''हमारे राज्य का क्षेत्र बदलता रहता है. यह हमारी फौज पर निर्भर है कि वह कितने क्षेत्र पर कब्जा करती है और कितने को दुश्मन के हवाले कर भाग आती है.'' सवाल''हुजूर ने विदेशी जासूसों को दबाने के लिए कौन से कदम उठाये हैं?'' जवाब''अभी तक नहीं उठाये, जब फुरसत मिलेगी, उठायेंगे.'' सवाल''इसका अर्थ है कि विदेशी जासूस हमारे यहां मौजूद है?'' जवाब ''दुनिया का कौन-सा देश है, जहां विदेशी जासूस नहीं होते. हमारे अपने देश के जासूस भी कहीं न कहीं विदेश में जरूर होंगे.''
एक महिला पत्रकार ने हमारे साथ चार फोटो खिंचवाये. दूसरे पत्रकार ने बताया कि वइ इन फोटुओं की बदौलत बड़े-बड़े साहुकारों से ब्लैकमेल करेगी. प्रेस कॉन्फ्रेस से पहले ह्निस्की और बाद में पत्रकारों को चाय पिलायी गयी. पार्टी के बाद कई कीमती चम्मच गायब पाये गये.
अहमक कौन है?
छोटी रानी ने बताया कि अकाल की वजह से लोग वश्क्षों की जड़ें खा रहे हैं. हमने समझाया, आयुर्वेद के अनुसार ऐसी जड़ों में कई बीमारियां दूर करने की शक्ति होती है. विटामिन भी होते हैं और आदमी सौ-डेढ़ सौ साल तक जिंदा रह सकता है. सुबह-सुबह रेडियो पर हमने सुना कि निष्फलदास को गिरफ्तार कर लिया गया है. वह अकालग्रस्त क्षेत्र का दौरा कर रहा था और भूखों को हमारे खिलाफ भड़का रहा था.
छोटी रानी के पर्स से हमें निष्फलदास का एक पत्र मिला. उसमें कहा गया था कि आप महाराज को सही रास्ते पर लाएं. इस तरह प्रेमपत्र को पाकर हमको छोटी रानी पर तैश आ गया और हमने उसे गिरफ्तार करने का हुक्म दिया. सिपाही ने कहा,
''महाराज, मेरी ड्यूटी खत्म होने में सिर्फ डेढ़ मिनट बाकी है. दूसरा सिपाही आयेगा और वही आपके हुक्म की तामील करेगा.''
हम इस गुस्ताखी पर उबल पड़े-''जाओ, हम तुम्हें बर्खास्त करते हैं!''
वह बोला-''मैं आपका नौकर नहीं हूं, लोकतंत्री सरकार का सेवक हूं. मेरे विरुद्ध कोई शिकायत हो तो लिखित चार्जशीट बनाकर गश्हमंत्रालय को भेजें. मंत्रालय जांच करेगा और निर्णय लेगा.''
गश्हमंत्री ने बाद में उस सिपाही को मुअत्तल कर दिया. हमें कुछ संतोष हुआ. किंतु अकाल की खबरें बराबर भयानक होती जा रही थीं. अखबारों में भूखे, मरियल लोगों की तस्वीरें छप रही थीं. हमने भूकमदास को बुलाया और लकड़ी का टुकड़ा चबाते हुए एक नंग-धड़ंग लड़के का फोटो दिखलाया. वह हंसकर बोला-''हजूर, यह तो एक फिल्म की शूटिंग का दश्श्य है. जो लड़का बना है, वह एक धन्ना सेठ का पुत्र है और मेक-अप करके उसे गरीब दिखलाया गया है.''
हमने छोटी रानी के पास संदेश भेजा कि आकर हमारे साथ प्रेम करो. किंतु सूचना यह मिली कि छोटी रानी महल से गायब हो गयी है और अकालग्रस्त क्षेत्र का दौरा कर रही है.
धींगामुश्तीपुर प्रवेश की खुशहाली से संबंधित चित्र-प्रदर्शनी का जब हम उद्घाटन कर रहे थे, तो गोली चलने की आवाज आयी. भूकमदास ने कहा- ''उद्घाटन की खुशी में यह गोली चलायी गयी है'' लेकिन तभी धड़ाधड़ गोलियां चलने लगीं. मंत्रिमंडल भाग छूटा. हमने झरोखे से देखा कि अस्थिपंजर जैसे इंसानों की एक भीड़ महल को घेरे हुए थी. छोटी रानी और निष्फलदास उसका नेतश्त्व कर रहे थे. उन दोनों ने हमें देखते ही हाथ जोड़कर प्रणाम किया. किंतु तभी हजारों फौजी जवान ट्रकों पर प्रकट हो गये और मशीनगनों के मुंह खोल दिये गये. अंगरक्षक ने हमें अंदर खींचकर झरोखा बंद कर दिया. हमें सदमा लगा और हम दो घंटे तक रोते रहे. शाम को रेडियो ने खबर दी कि शाही महल पर बागियों के हमले को नाकाम कर दिया गया. यह नहीं बतलाया गया कि कितने भूखों को भून दिया गया.
मंत्रिमंडल मुअत्तल
सुबह अखबारों से पता चला कि पंद्रह सौ लोग गोलियों के शिकार बने थे. हमने तुरंत भूकमदास को बुलाया. उसने एक सौ एक बार हमारे चरण-कमल चूमे और आंसू टपकाने लगा. हमने शाही जलाल में फरमाया- ''मक्कार, दुष्ट, भ्रष्टाचारी! हमारे बाकी मंत्री कहां मर गये?'' उसने कहा-''हुजूर के बाग में खड़े कांप रहे हैं!'' मंत्रियों के कांपने की कल्पना से हमें संतुष्टि हुई. उसे दफा कर हमने सेनापति को याद फरमाया. वह बोला-''आप खुद ही शासन संभाल लें, नहीं तो फौज हुकूमत पर कब्जा कर लेगी.'' उसने यह भी स्पष्ट कर दिया कि संविधान के अनुसार हम ही सर्वोच्च कमांडर हैं. खाद्यमंत्री को अनाज के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. उसने इतना ही कहा कि मंत्रिमंडल में शामिल होने से पूर्व वह भूकमदास के साथ मिलकर घड़ियों की तस्करी करता था.
हमने मंत्रिमंडल भंग कर दिया. इस पर अखबारों ने हमें जनता का मित्र, मानवतावादी, सर्वश्रेष्ठ प्रशासक और देवताओं की संतान तक कह डाला. हमने अफसरों की मीटिंग बुलायी और कहा, कि खानदानी तौर पर ऊंचे और योग्य अधिकारी ही हुकूमत चला सकते हैं. लोकतंत्री शासन प्रजा को नोंचकर खाने के लिए नहीं है. इस पर अफसर बड़े जोश के साथ मुस्कराये और शाही दावत उड़ाकर विदा हुए. अकाल की आड़ में हमें फिर सत्ता संभालने का दुर्लभ अवसर मिल गया. दुबारा गद्दी मिलने पर हमारी इच्छा हो रही थी कि छोटी रानी के साथ दुबारा हनीमून मनाएं, किंतु वह तो वहां थी ही नहीं!
नया लोकतंत्र
मंत्रिमंडल बरखास्त करने के बाद हमने लोकतंत्री राजा की सलाहकार परिषद गठित की. सेहत और अक्ल से दुरुस्त लोग ही शामिल किये. गृह मंत्रालय से संबंधित मामलों का सलाहकार फटकारचंद को बनाया. उसका बड़ा भाई दुत्कारचंद एक करोड़पति सूदखोर महाजन है. वह जनता का खून चूसने और जनता के लिए मंदिर बनवाने में कुशल समझा जाता है. हमने आदेश जारी कर दिया है कि जो भी व्यक्ति भूखा-नंगा दिखलाई दे, उसे गिरफ्तार कर हमारे पास लाया जाये. इस फरमान ने जादू का-सा असर किया. हमें पता चला है कि छोटी रानी और निष्फलदास किसी पहाड़ी गांव में छुप गये हैं. हमने उनको बंदी बनाने का वारंट भी जारी कर दिया है.
फटकारचंद ने हमसे कहा है कि हमारा संविधान अब इतना पवित्र मान लिया गया है कि ईश्वरीय वाक्यों की भांति उसकी व्याख्या करना घोर पाप है. यह सुनते ही हमने लोकतंत्री चुनावों की घोषणा कर दी. हमने चौपटराज पार्टी का गठन किया है. अब हमें राजा की बनिस्बत महामंत्री बनना अधिक अच्छा लग रहा है. निष्पक्ष लोकतंत्री चुनाव के लिए हमने फटकारचंद के भाई दुत्कार चंद को चुनाव अधिकारी नियुक्त कर दिया है. वह इतना योग्य है कि उस पर जालसाजी के ग्यारह मुकदमे बन चुके हैं, किंतु हर बार उसे बाइज्जत बरी किया गया है.
पिछले दिनों हमें सैकड़ों तार और पत्र प्राप्त हुए. जिनमें कहा गया कि यदि राजनीतिक बंदी रिहा नहीं किये गये तो चुनाव फ्रॉड समझे जायेंगे. हमने दरियादिली दिखलाते हुए ऐसे कैदियों को रिहा करने का हुक्म दे दिया. छोटी रानी और निष्फलदास के वारंट भी वापस के लिये.
पार्टी की उपलब्धि
पार्टी के चुनाव फंड में नजराना देने के लिए कई दौलत-मंद लोग हाजिर हुए- फैक्ट्रियों, फिल्म कंपनियों और सिनेमाघरों के मालिक, उन्हें हमारी पार्टी के सोशलिस्ट सिद्धांत पसंद थे, इसलिए हमने उनकी तोंद का बुरा नहीं माना. एक आठवीं पास और लखपति अभिनेत्री भी आयी और पार्टी की सदस्या बन गयी. वह बला की नाजुक थी, किंतु उसने एक फिल्म में किसान कन्या का पार्ट किया था. सट्टेबाज, जुआरी, तस्कर, हलवाई, यूनियन के लीडर और धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधि तो आये ही, डाकुओं का एक सरदार भी आया. उसने थैली भेंट करते हुए कहा- ''आपकी पार्टी का कार्यक्रम पढ़कर मैंने डाकेजनी छोड़ दी है.'' डाके का धन सोशलिज्म के काम आ रहा था, यह हमारी पार्टी की पहली जीत थी.
किसान-मजदूरों की पार्टी के अध्यक्ष की हैसियत से हमने शाही लिबास उतार दिया और साधारण कपड़े पहन लिये. फटकारचंद ने हमारे लिए एक भाषण तैयार किया, जिसमें दो बार लोकतंत्र, तीन बार समानाधिकार और चार बार जन साधारण शब्द आते थे. हमारी पार्टी के झंडे पर शेर और बकरी की तस्वीर थी, जो एक घाट पर पानी पी रहे थे. किंतु चिंताजनक स्थिति यह हुई कि हमारी पार्टी के जन्म के बाद अनेक लांकतंत्री दल पैदा हो गये. भूकमदास, गीदड़ जंग आदि सभी ने पार्टियां बना लीं. निष्फलदास और छोटी रानी ने अपनी पार्टी का नाम 'जय-जय जनता पार्टी' रखा.
चुनार का बुखार
ज्यों-ज्यों चुनाव पास आ रहा है, सारे मुल्क में शादियों की-सी तैयारियां हो रही हैं. छोटा बच्चा मां के स्तनों से दूध पीते हुए पूछता है- ''मम्मी किसको वोट दोगी?'' सारी रिआया को वोट के अधिकार ने पागल कर दिया है. हमारी पार्टी का इश्तहार औरों से बड़ा और रंगीन है. हमने एक पोस्टर को देखकर पार्टी के सेक्रेटरी से पूछा- ''शेर को हमारा चेहरा क्यों लगा दिया गया है?'' उसने कहा, ''हजूर आप शेर हैं और जनता बकरी.'' हम मुस्कराये, ''अगर शेर झपटकर बकरी को खा गया तो?'' जवाब मिला, ''कोई हर्ज नहीं, दूसरी बकरी आ जायेगी.''
जब हम यह डायरी लिख रहे हैं, दूत ने आकर सूचना दी है कि आज दिन भर में 122 चुनाव सभाएं हुईं, 95 सभाओं में भारी दंगे-फसाद हुए, 600 वोटर घायल हुए, 15 कार्यकर्ता मारे गये. दूकानें लूट ली गयीं, किंतु किसी उम्मीदवार की उंगली तक जख्मी नहीं हुई. पार्टी सेक्रेटरी ने हमें फोन पर बतलाया है कि चुनाव में कत्ल बगैरह मामूली बात है. शहीदों के लहू से ही लोकतंत्र परवान चढ़ेगा.
टिकटों के भूखे
राष्ट्रीय एसेंबली में एक सौ मैंबर की जगह थी, किंतु चार सौ बीस अर्जियां आयीं. हमने तय किया कि हमारी पार्टी का टिकट उसी को मिलेगा, जो पांच लाख रुपया देगा. बड़ी रानी ने टिकट मांगा तो हमने पांच लाख के लिए हाथ फैला दिया. मंझली रानी ने भी सौतिया डाह में टिकट चाहा था, किंतु खून-खराबे की खबरें सुनकर अर्जी वापस ले ली. सुनने में आया है कि 'जय-जय जनता पार्टी' ज्यादा लोकप्रिय होती जा रही है. हम आराम फरमा रहे थे कि छोटी रानी और निष्फलदास चुपचाप आये. उन्होंने हमसे कहा कि आप चुनाव में खड़े न हों. यह तय है कि हमारी पार्टी जीतेगी. किंतु हम आपको उसकी ओर से महामंत्री बना देंगे.
तभी फटकारचंद और दुत्कारचंद पुलिस का दस्ता लेकर आ पहुंचे और उन दोनों को गिरफ्तार करने लगे. हम गरजे, ''यह नहीं हो सकता!'' फटकारचंद हमसे भी गरजा, ''यह जरूर होगा!'' लेकिन इससे पहले कि कोई दुर्घटना होती, छोटी रानी और निष्फलदास ने एक लाल-लाल सा पाउडर निकालकर उनकी आंखों में झोंक दिया और पिस्तौल से ठांय-ठांय करते हुए बाहर निकल गये.
कशमकश
हमारे मुकाबले पर छोटी रानी उम्मीदवार बनकर चुनाव लड़ रही थीं, किंतु फटकारचंद ने वोटों की हेरा-फेरी का इंतजाम कर लिया था. हमें वोटों की खातिर कई नीच हरकतें करनी पड़ीं. हमने गुंडों, जेबकतरों, नालायकों, ढोंगियों, शराबियों, दलालों और लफंगों की खुशामद की कि आप हमें वोट दीजिए, हम आपके भले के लिए चुनाव लड़ रहे हैं. चुनाव परिणाम निकले तो हम भारी बहुमत से जीत गये और छोटी रानी की जमानत जब्त हो गयी. फटकारचंद के सभी नुमांइदे हार गये. दुत्कारचंद ने आत्महत्या कर ली. निष्फलदास निर्विरोध जीत गया. यह बिना विरोध का लोकतंत्र हमारी समझ में नहीं आया.
फौज किसके साथ
हमने फौजों के कमांडर-इन-चीफ पर यह शक जाहिर किया कि तुम सत्ता उलटने पर तुले हुए हो! वह हमारे पांवों पर गिर पड़ा, ''हुजूर के आदरणीय पिता की भांजी मेरे महल की शोभा है. मैं तो सदा आपके प्रति वफादार रहूंगा.'' छोटी रानी और निष्फल ने फिर पेशकश की कि हम उनकी पार्टी की तरफ से महामंत्री का पद स्वीकार कर लें. हमने इंकार कर दिया और ताजपोशी का दरबार लगाया. फटकार चंद का दावा था कि चौदह निर्दलीय उम्मीदवारों के शामिल हो जाने से चौपटराज पार्टी का बहुमत हो गया है. अतः उसे हुकूमत बनाने दी जाये. आठ निर्दलीय मेंबरों का समर्थन जोड़कर छोटी रानी भी बहुमत का दावा कर रही थी और 'जय-जय जनता पार्टी' के मेंबरों की संख्या चौवन बतला रही थी. न्याय करने के लिए हमने कहा, ''निर्दलीय सदस्य हमारे कान में कह दें कि वे किसका समर्थन करते हैं?''
फिर क्या हुआ
और यहां चौपट राजा की डायरी खत्म होती है. लोकतंत्र का ताज पहनकर उसने डायरी लिखना बंद कर दिया. बाद की स्थितियां एक इतिहासकार ने लिखीं, जो इस प्रकार है- ''सिंहासन पर बैठकर यह इंकलाबी ऐलान किया गया कि राजा शब्द का प्रयोग करने वाले को फांसी दी जायेगी. जनता यह सुनकर पागल हो उठी. उसने सस्ती और जहरीली शराब पीकर जश्न मनाया, कई हजार व्यक्ति मर गये. एक प्रकाशक ने चौपट की पांच लाख तस्वीरें छापकर बेच डालीं. वह चौपट का ममेरा भाई था. राजा चौपटनाथ नागरिक चौपटनाथ कहलाने लगा. उसने जनता के लिए सड़कें बनवायीं, ताकि जनता आसानी से अपने प्रिय नेता के दर्शनार्थ पहुंच सके और चौपट की मोटर भी गांव-गांव तक जा सकें. वह झोंपड़ी में रहने लगा, जिसमें टेलिविजन आदि सब सुविधाएं थीं. महीने में एक बार वह हल चलाने का प्रदर्शन करता, जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते. उसने ऐसा लोकतंत्री विधान बनाया कि एक कानून से सजा होती थी और दूसरे से मुजरिम बच निकलता था. उसने सारी व्यक्तिगत जायदाद शासन को दान में दे दी, जिसका वह सर्वेसर्वा था.
फिर चौपटनाथ का अंतिम समय आ पहुंचा और वह चल बसा. जनता के लोकतंत्र की मशाल उसके बेटे के हाथों में दे दी, और यह साबित कर दिया कि राजा का बेटा ही गद्दी का
उत्तराधिकारी होता है, चाहे वह राजा खुदमुख्तार हो या लोकतंत्र का अनुयायी.''
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