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कहानी

वैसे भी उसे सजा दिलवाने का मतलब है प्रेरणा के साथ हम सबको भी भरे बाजार में नंगा होना. हमारे परिवार पर तो कालिख पुत ही गई. यह बात सिर्फ हम लोग ही जानते हैं, बाहर वाले नहीं जानते. अगर यह बात सभी को पता चल गई तो हमारी सयानी हो रही दोनों बेटियों की भी शादी नहीं होंगी. कोई हमसे रिश्ता नहीं जोड़ेगा. हम गरीब क्या करेंगे? आप शांत हो जाएगा. मैं प्रेरणा के दिल से यह हादसा निकाल दूंगी. मेरी बच्ची...’ मां फूट-फूट कर रो पड़ी.

काला अध्याय

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नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’

श्री प्रखर जी,

नमस्ते,

आप सोच रहे होंगे कि आज मैं आपके नाम यह पत्र क्यों लिख रही हूं? जबकि हमारी शादी 20 दिन बाद ही होने वाली है. इस समय दूसरी लड़कियां अपने भावी पति के सपनों में डूबी रहती हैं. पर मैं, मेरी शादी आप जैसे अच्छे व सुंदर लड़के से हो जाएगी, यह सोच-सोच कर मानसिक पीड़ा के दौर से गुजर रही हूं. बुरा मत मानिए मैं आपसे नहीं कर सकती हूं. मैंने यह फैसला बहुत सोच समझ कर और अपने अतीत को देखते हुए लिया है. मैं आपको धोखा नहीं दे सकती हूं. भले ही मेरे अतीत का बदनुमा दाग मेरे घरवालों ने आप लोगों से छुपाया है, पर मैं नहीं छुपा सकती हूं.

मैं अपने घरवालों को भी दोष नहीं दे रही हूं. एक तरह से मेरे बारे में वह बात छुपाकर वे मेरा जीवन संवारना चाहते हैं. मां-बाप तो किसी तरह अपनी बेटी को खुश देखना और उसका रिश्ता अच्छे से अच्छे घरों में करना चाहते हैं. मेरे मां-बाबूजी भी यही चाहते हैं, इसलिए आप जैसे इकलौते रईस बेटे से मेरी सगाई झट से करवा दी.

कहां मैं मिडिल क्लास फैमिली से बिलांग करने वाली और कहां आप प्रोफेसर... मम्मी-पापा के एकलौते रत्न. पता नहीं उस शादी समारोह में आपके मम्मी-पापा ने मुझे कैसे देख लिया और आपने भी मुझ सांवली और साधारण नाक-नक्श वाली लड़की को पसंद कर लिया.

कभी-कभी जी चाहता है कि मैं अपने इस खूबसूरत भाग्य पर खूब इतराऊं, पर होंठों पर इतराने की मुसकान तैरती है कि आंखों में वह घिनौना दृश्य उतर जाता है और दिल आहें भर-भर के रोने लगता है.

मैं...मैं आपसे कैसे कहूं? जिस लड़की के साथ आप शादी के बंधन में बंधना चाहते हैं, अपना भरपूर प्यार उसके सुनहरे आंचल में डालना चाहते हैं, वह 9 साल की उम्र में ही जूठी हो चुकी है. मैं...मैं बलात्कार की शिकार लड़की हूं. मेरे सगे आशिक मिजाज मामा ने ही मेरा रेप किया था. मेरी गरीब मां अपने मायके में ही रहती थी.

...मैं खून से लथपथ मां की गोद में निढाल पड़ी थी. बाबूजी किसी भी कीमत पर उस मामा को जान से मारना चाहते थे.

मेरी अनपढ़ मां, बाबूजी के सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गई, ‘मधु के बाबूजी, मेरे उस नीच भाई ने जो करना था सो तो कर दिया, पर आप ऐसा कुछ मत कीजिए, जिससे हम तबाह और बरबाद हो जाएं. कहां मरती फिरूंगी? यह दुनिया बड़ी जालिम है, जब एक छोटी बच्ची को उसके मामा ने नहीं छोड़ा तो भला मुझे और मेरी दोनों बेटियों को कौन छोड़ेगा? बिना पति के मैं इन लड़कियों का बोझ कैसे उठाऊंगी...?’

‘तो क्या मैं तुम्हारे उस पापी भाई को ऐसे ही छोड़ दूं? उस ने मेरी फूल सी बच्ची को...’ बाबूजी थाने में जाने के लिए बेकाबू हो रहे थे.

‘आप को हम मां-बेटी की कसम अगर आप थाने गए तो. यह बात जानने के बाद सभी लोग हम पर उंगलियां उठाएंगे. हम किसी को मुंह नहीं दिखा पाएंगे. मेरा वह कुत्ता भाई बहुत अमीर है, किसी तरह जेल से छूट जाएगा. छूटने के बाद वह हमारे साथ कैसा सलूक करेगा, यह भगवान भी नहीं जानता.

‘वैसे भी उसे सजा दिलवाने का मतलब है प्रेरणा के साथ हम सबको भी भरे बाजार में नंगा होना. हमारे परिवार पर तो कालिख पुत ही गई. यह बात सिर्फ हम लोग ही जानते हैं, बाहर वाले नहीं जानते. अगर यह बात सभी को पता चल गई तो हमारी सयानी हो रही दोनों बेटियों की भी शादी नहीं होगी. कोई हमसे रिश्ता नहीं जोड़ेगा. हम गरीब क्या करेंगे? आप शांत हो जाइए. मैं प्रेरणा के दिल से यह हादसा निकाल दूंगी. मेरी बच्ची...’ मां फूट-फूट कर रो पड़ी.

न चाहते हुए भी बाबूजी अपने दिल पर हजारों पत्थर रख कर मां की बात मान गए.

उस मामा से मां ने सारे रिश्ते तोड़ लिए. उस गम से उबरने के लिए बाबूजी ने वह गांव छोड़ दिया और शहर में आ गए.

रिश्ते टूटे या गांव छूटा मगर मेरे दिल से वह दर्द कभी नहीं निकला. शरीर के घाव तो मिट गए, पर मन के घाव हमेशा गहरे ही रहे. चंचल और चुलबुली मैं उदासी के भंवर में डूबती चली गई. कब बचपन बीता और कब जवानी आई याद नहीं. दोनों पड़ाव आंसुओं से ही भरे रहे. मां-बाबूजी के असीम प्यार ने मुझे सहारा दिया. दोनों बड़ी बहनों के दुलार ने जीवन में चलने का हौसला दिया. पर जैसे-जैसे बड़ी होती गई, आत्महत्या का ख्याल गहरा होता गया.

मुझे हमेशा उदास और दिन-रात आंसू बहाते देख एक दिन बाबूजी ने कहा, ‘बेटा, हम जानते हैं कि तुम किस मानसिक पीड़ा से गुजर रही हो, पर हमारी खातिर जीओ.’

‘बाबूजी, मैं जीना नहीं चाहती...नहीं चाहती...’ मेरी आंखों से सैलाब उमड़ पड़ा.

‘प्रेरणा बेटा, जीना तो मुझे और तुम्हारी मां को नहीं चाहिए. जो हमने उस पापी को सजा नहीं दिलवाई. अपनी बदनामी के डर से चुप रह गए. बेटा, मधु और अंशु की तरह तुम भी हंसो, बोलो, खिलखिलाओ और हमें तुमसे कुछ नहीं चाहिए. तुम्हारी हमेशा ये भरी आंखें देख मेरी आत्मा तड़प-तड़प कर रोती है.’ वह मुझे सीने से लगा कर फफक पड़े.

हंसना-बोलना मेरे लिए आसान नहीं था. मगर बाबूजी की आंखों में अपने लिए असहनीय दर्द को देख मैंने अपने आप को थोड़ा-थोड़ा उस दुख से उबारा. किसी तरह पढ़ाई पूरी की. मां मुझे घरेलू काम में दिन भर उलझाए रहती, सिखाती रहती, ताकि मेरा मन लगा रहे.

मैं शादी करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी. उस समय मां-बाबूजी और मेरी दोनों शादीशुदा बहनों ने मेरे सामने हाथ जोड़ दिए, ‘जो हो गया उसे भूल जाओ, प्रेरणा. जब तुमने जिंदगी जी लिया है तो इस जीवन में खुशियां भर लो. जब इतने सालों बाद भी तुम्हारे बारे में कोई नहीं जान पाया तो आगे भी कोई नहीं जान पाएगा.’

पर मैं अपने इस दिल को कैसे समझाऊं? मैं एक सीधे-सीधे इंसान को धोखा नहीं दे सकती हूं. ना मैं उसे पत्नी का सुख दे सकती हूं और ना ही अपने इस छलनी दिल से अपना संपूर्ण प्यार उस पर उड़ेल सकती हूं.

जिस दिन हमारी सगाई हुई थी, उसी दिन उस मामा की बहुत दर्दनाक मौत हुई थी. ‘एड्स’ से. वह तो मर गया, मगर मेरे ऊपर दाग लगा का लगा ही है.

आप मैं आप के आगे हाथ जोड़ रही हूं आप किसी तरह मुझसे शादी न करें. यह मेरे ऊपर आप का बहुत बड़ा अहसान होगा.

प्रेरणा

प्रिय प्रेरणा जी,

आप का पत्र पढ़कर दिल बहुत गहराई तक दुख गया. मैं सोच भी नहीं सकता था कि जिस लड़की से मेरी शादी होने वाली है, उस के दिल में इतना बड़ा दर्द छुपा है.

सबसे पहले मैं आपकी हिम्मत की तारीफ करता हूं जो आपने अपने अतीत की सारी बातें मुझसे सच-सच बता दीं. अंधेरे में नहीं रखा. आप जैसी इतनी हिम्मत वाली और साफगोई से बात कहने वाली लड़की को मैंने पहली बार देखा है, दूसरी लड़की यह बात कभी नहीं बताती. आप के साथ जो हुआ, वह बहुत बुरा हुआ. जिस घटिया मामा ने आप के ऊपर इतना बड़ा दाग लगाया, उसे मरने के बाद भी कीड़े पड़ेंगे. भांजी तो देवी का रूप होती, पर आपके मामा ने...खैर, छोडि़ए आज आधुनिक युग में हर रिश्ता दागदार हो गया है.

अगर आप ने शादी न करने का ठान लिया है तो आप समाज को क्या जवाब देंगी? ऐसी स्थिति में हजारों प्रश्न आपको सुइयां चुभाएंगे. मैं मानता हूं अपने तन मन पर झेले अमिट घावों को बिसार देना इतना आसान नहीं है. फिर भी आपको इस घुटन से मुक्त होना ही पड़ेगा.

आपके अतीत की घटना इतनी गहरी है कि आप अपने हाथों से ही मुझ यथार्थ को मिट्टी में मिला रही हैं.

आप लड़कियों की नजरों में सिर्फ गोरी चमड़ी ही सुंदरता का प्रतीक है? क्या सांवले रंग की लड़कियां सुंदर नहीं लगतीं? भले आपका तन सांवला है पर मन तो आईने की तरह बिल्कुल साफ है, जिस पर एक खरोंच भी नहीं है. इसलिए मेरे मम्मी-पापा ने आपको मेरे लिए पसंद किया. हमंे सूरत नहीं बल्कि सीरत अच्छी चाहिए.

आप ने मुझसे शादी न करने की हाथ जोड़ कर प्रार्थना की है, पर मैं आपकी यह प्रार्थना स्वीकार नहीं कर सकता हूं. मैं आप से ही शादी करूंगा. आप बिल्कुल पवित्र हैं. भूल कर भी अपने आप को जूठी मत कहिए.

आप ऊपर बैठे उस ईश्वर का न्याय तो देखिए कि जिस दिन आप की सगाई हुई थी, उसी दिन आप के मामा की कितनी घृणास्पद मौत हुई है. वह तो मर गया पर उसके दिए गए जख्मों को याद कर कर के कब तक आंसू बहाएंगी?

उस दर्द, उस गम को भुला डालिए. इसमें मैं आपकी मदद करूंगा. आप अपने आप को पापी मत समझिए. छोटी बच्ची कभी पाप नहीं करती है. उस अपराध की जिम्मेदार भी आप नहीं है.

मैंने आप का पत्र अपने पापा-मम्मी से भी पढ़ाया है और साथ में आप से शादी करने का फैसला भी सुना दिया.

जानती हैं, मैंने अपने पापा के सपनों को पूरा नहीं किया है. उन का सपना था कि मैं डॉक्टर बनूं, पर आवारा दोस्तों के साथ सड़क नापने के चक्कर में मैं मामूली मेडिकल रिप्रेन्जेटिव बन कर रह गया. उसी समय से पापा मुझ पर गुस्सा रहते हैं. पर मेरा फैसला सुन उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा लिया, ‘प्रखर, मुझे तुम पर गर्व है कि तुम मेरे बेटे हो. प्रेरणा बेटी ही इस घर की बहू बनेगी.’

मम्मी ने कहा, ‘हम बहू की जिंदगी में इतनी सारी खुशियां भर देंगे कि वह अपने अतीत का सारा दुख हमेशा के लिए भूल जाएगी.’

मैं आपको खुशियां देने ठीक 20 दिन बाद आ रहा हूं. आप अपने अतीत का काला अध्याय हमेशा के लिए भूल कर दो कदम आगे बढ़ कर मेरी बांहें थाम लें.

आपका भावी जीवनसाथी

प्रखर

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सम्पर्कः द्वारा- श्री भगवान प्रसाद, कोयला दुकान, राजा बाजार कटेया रोड, बिहिया-802152.

जिला- भोजपुर (बिहार)

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रचनाकार: प्राची - जून 2016 / कहानी / काला अध्याय / नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’
प्राची - जून 2016 / कहानी / काला अध्याय / नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’
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