आदमी की सभ्यता सुरेश आनंद एक शहर की गली में सांड़, गाय, कुत्ता-कुतिाया चारों बैठकर अपनी-अपनी कहानी कर रहे थे. कहने लगे- मित्रो! आजकल...
आदमी की सभ्यता
सुरेश आनंद
एक शहर की गली में सांड़, गाय, कुत्ता-कुतिाया चारों बैठकर अपनी-अपनी कहानी कर रहे थे.
कहने लगे- मित्रो! आजकल हम चारों की बड़ी बुरी दशा हो गई है. हमें खाना-पीना भी नसीब नहीं है. हमारी उम्र भी बढ़ती जा रही है. हमें अब क्या करना चाहिए.
कुत्ता कहने लगा- आदमी भले ही वफादार नहीं रहा, पर मैं वफादार हूं, बना रहता हूं. फिर भी डंडा खाता रहता हूं? आदमी तो रिश्वत खाता है, फिर भी ईमानदार ही बना रहता है. आदमी बलात्कार भी करता है, उसने जानवर की असभ्यता भी ले ली है? उसने जानवर की पदवी भी ले ली है? अतः अब विचार करो, क्या करें?
चारों ने निर्णय लिया कि अब हम चारों भी आदमी की सभ्यता को ओढ़ लें. चूंकि आदमी ने जानवरों की असभ्यता को ही ओढ़ना शुरू कर दिया है, तो हमें यह मानने में क्या हर्ज है कि हम भी सभ्य हैं?
संपर्कः आनंद परिधि, एल/62
पं. प्रेमनाथ डोंगरा नगर, रतलाम-457001 (म.प्र.)
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पुरस्कार
शिवकुमार कश्यप
वह हाल ही में स्थानांतरित होकर इस दफ्तर में आया था. उसके बॉस कुलकर्णी जी उसकी योग्यता, कर्मठता और अनुशासनप्रियता से बहुत खुश थे.
एक दिन कुलकर्णी जी ने उसे अपनी केबिन में बुलाया. वह बड़ी आत्मीयता से बोले, ''मि. राजेश, मैं तुम्हारे काम से बहुत खुश हूं. इतनी कम उम्र में इतने उंचे पर पर पदोन्नति पाना ही तुम्हारी योग्यता का प्रमाण है. मैं तुम्हारे परिश्रम और कार्य के प्रति तुम्हारी निष्ठा देखकर सोचता हूं कि यदि तुम्हारे जैसे पांच अधिकारी भी मेरे पाास होते तो मेरी शाखा पूरे क्षेत्र में कार्य मूल्यांकन में प्रथम स्थान पर अवश्य होती. खैर कोई बात नहीं, अगले वर्ष ही पदोन्नति की प्रक्रिया होनी है. जिसमें तुम्हारा भी इंटरव्यू होगा. मैं तुम्हारे मूल्यांकन फार्म में तुम्हारी कर्मठता का पुरस्कार अवश्य दूंगा.''
समय आने पर राजेश का इंटरव्यू हुआ. किंतु वह फेल हो गया. उसे बड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि उसका इंटरव्यू बहुत अच्छा हुआ था. उसने सभी सवालों के सही जवाब दिये थे. साक्षात्कार समिति के सदस्यगण उससे पूर्ण संतुष्ट नजर आ रहे थे. जब उसने इसका कारण पता किया तो मालूम हुआ कि उसे कार्य मूल्यांकन फार्म में अत्यंत कम अंक मिला था, जिसके कारण वह फेल हो गया था.
राजेश को अब और भी आश्चर्य हुआ, क्योंकि उसके बॉस कुलकर्णी जी तो उसके कार्य से बहुत खुश थे. हमेशा तारीफ किया करते थे. इतना ही नहीं उन्होंने तो मूल्यांकन फार्म के माध्यम से उसे पुरस्कत करने का वादा भी किया था. फिर फेल होने का क्या कारण हो सकता है!
कुछ समय बाद बहुत पूछने पर कुलकर्णी जी की पी.ए. ने अत्यंत गुप्त तरीके से बताया, ''साहब को जैसे ही पता चला कि आप रिजर्व कटेगरी के हैं, उन्होंने आपके बारे में अपना विचार बदल दिया था. वह कहने लगे कि इसीलिए तो उसे इतनी कम उम्र में इतनी ऊंची पदोन्नति मिल गयी और उन्होंने आपके कार्य मूल्यांकन फार्म में बहुत कम अंक दिये थे.''
संपर्कः 15-बी, पौर्णमी अपार्टमेंट, पांच पाखाड़ी-नामदेव,
वाड़ी, ठाणे (पश्चिम), महाराष्ट्र-400602
मो. : 9869259701
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एक लोकतंत्रीय देश की कहानी!
सुरेश आनंद
एक लोकतंत्रीय देश में आम आदमी निवास करते थे. प्रारंभ में एक ही परिवार का प्रधानमंत्री बनता गया. पहले तो मुखिया बना, फिर उसकी लड़की बनी. उसके जाने के बाद उसका लड़का बना. लड़के के बाद उसकी धर्मपत्नी बनी.
यूं ही उस देश के लोकतंत्र में एक ही परिवार छियासठ वर्षों तक सत्ता पर कब्जा किये बैठा रहा. इस तरह लोकतंत्र की कहानी मजबूती लेती रही. लोग तालियां बजाते रहे.
फिर अकस्मात लोकतंत्र की कहानी बदल गई. एक दूसरा आदमी प्रधानमंत्री बन गया. नए लोकतंत्रीय मुस्कराने लगे. पुराने दुखी हो गए. वह नए प्रधानमंत्री से लोकतंत्र का हिसाब पूछने लगे?
नए-नए लोकतंत्रीय प्रधानमंत्री बोले- अजी पुराने लोगों! तुमने कौन-सा हिसाब दिया है, जो नए से हिसाब पूछ रहे हो? नए ने तो वह कर दिया जो छियासठ वर्ष में तुमने नहीं किया. वर्षों से मछुआरे जेलों में थे, उन्हें छुड़ा लिया. नर्सें देश के बाहर तड़प रही थी, उन्हें भी छुड़वा लिया. बाढ़-आपदा आई, तो उसमें लोगों को मदद पहुंचाई. जहां-जहां रास्ते नहीं थे, रास्ते बना लिए. जहां-जहां सीमाएं टूट रही थीं, वहां-वहां सेनाएं खड़ी कर दीं. अब और कौन सा हिसाब लोगे?
इस तरह देश में नया लोकतंत्र लागू हो गया. पुराने लोकतंत्रीय छियासठ साल में अपनी कोई कहानी नहीं बना पाए, जितनी नए लोकतंत्रीय प्रधानमंत्री ने दो साल में बना दी.
सम्पर्कः आनंद परिधि एल/62,
पं. प्रेमनाथ डोंगरा नगर, रतलाम-457001 (म.प्र.)
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नेकी कर
पवित्रा अग्रवाल
मोना ने अपनी सहेली अंजना से कहा- 'मेरे पति बहुत अच्छे और दूसरों की मदद करने वाले इंसान हैं. अपने और दूसरे बहुत से लोगों को उन्होंने सेटिल किया है, पर आज कल लोग किसी का अहसान नहीं मानते...मैं जब इनसे कहती हूं तो कहते हैं 'नेकी कर और कूंए में डाल'
'अच्छा! तुम्हारे पति ने किस तरह से लोगों को सेटिल होने में मदद की है?'
'आप तो जानती ही हो कि हमारा होलसेल का व्यापार है, कितने ही लोगों को प्रोत्साहित किया हैं कि मैं मॉल भेजता हूं तुम बेचो और पैसा भी माल बिकने के बाद भेज देना. खुद ब्याज पर पैसा ले रखा है लेकिन पार्टीज को उधार देते हैं.'
सहेली मन ही मन मुस्काई और सोचा- अपना माल बेचने के लिए हर व्यापारी यही करता है. मेरे पति भी यही करते हैं...इसमें नेकी कहां से आ गई...पर दोस्ती में दरार न आये, इसलिए हर बात का जवाब देना जरूरी नहीं होता.
वह चुप रही.
सपर्कः घरोंदा 4-7-126
इसामियां बाजार, हैदराबाद-500027
मोः 09393385447
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अंतिम दान
राजेश माहेश्वरी
सेठ रामसजीवन नगर के प्रमुख व्यवसायी थे जो अपने पुत्र एवं पत्नी के साथ सुखी जीवन बिता रहे थे. एक दिन अचानक उन्हें खून की उल्टी हुयी और चिकित्सकों ने जांच के उपरांत पाया कि वे कैंसर जैसे घातक रोग की अंतिम अवस्था में हैं एवं उनका जीवन बहुत कम बचा है. यह जानकर उन्होंने अपनी सारी संपत्ति अपनी पत्नी एवं बेटे के नाम कर दी. कुछ माह बाद उन्हें महसूस हुआ कि उनके हाथ से बागडोर जाते ही उनकी घर में उपेक्षा आरंभ हो गई है. यह जानकर उन्हें अत्यंत दुख हुआ कि उन पर होने वाला दवाइयों, देखभाल आदि का खर्च भी सभी को एक भार नजर आने लगा है. जीवन का यह कड़वा सत्य उनके सामने था और एक दिन वे आहत मन से किसी को बिना कुछ बताये ही घर छोड़कर एक रिक्शे में बैठकर विराट हास्पिटल की ओर रवाना हो गये. किसी का भी वक्त और भाग्य कब बदल जाता है, इंसान इससे अनभिज्ञ रहता है.
रास्ते में रिक्शेवाले ने उनसे कहा कि यह जगह तो कैंसर के मरीजों के उपचार के लिये है. यहां पर गरीब रोगी रहते हैं जिन होने वाला खर्च उनके परिवारजन वहन करने में असमर्थ होते हैं. आप तो वहां पर दान देने जा रहे होंगे. मैं एक गरीब रिक्शाचालक हूं परंतु मेरी ओर से भी यह 50 रुपये वहां दे दीजियेगा. सेठ जी ने रुपये लिये और उनकी आंखें सजल हो गयीं.
उन्होंने विराट हास्पिटल में पहुंचकर अपने आने का प्रयोजन बता दिया. वहां के अधीक्षक ने अस्पताल में भर्ती कर लिया. उस सेवा संस्थान में निशुल्क दवाइयों एवं भोजन की उपलब्धता के साथ-साथ निस्वार्थ भाव से सेवा भी की जाती थी. एक रात सेठ रामसजीवन ने देखा कि एक मरीज बिस्तर पर बैठा रो रहा है. वे उसके पास जाकर कंधे पर हाथ रखकर बोले- हम सब की नियति मत्यु है, तब फिर यह विलाप क्यों? वह बोला- मैं मत्यु के डर से नहीं रो रहा हूं. अगले सप्ताह मेरी बेटी की शादी होने वाली है. मेरे घर में मैं ही कमाऊ व्यक्ति था. अब पता नहीं यह शादी कैसे संपन्न हो सकेगी. यह सुनकर सेठ जी बोले- चिंता मत करो भगवान सब अच्छा करेंगे तुम निश्चिंत होकर अभी सो जाओ. दूसरे दिन प्रातः सेठ जी ने
अधीक्षक महोदय को बुलाकर कहा- मुझे मालूम है मेरा जीवन कुछ दिनों का ही बाकी बचा है. यह मेरी हीरे की अंगूठी है. अब मुझे इसकी कोई आवश्यकता नहीं है. यह बहुत कीमती है इसे बेचकर जो रुपया प्राप्त हो उसे इस गरीब व्यक्ति की बेटी की शादी में दे दीजिये. मैं समझूंगा कि मैंने अपनी ही बेटी का कन्यादान किया है और बाकी बचे हुये धन को आप अपने संस्थान के उपयोग में ले लें. इस प्रकार सेठ जी ने अपने पास बचे हुये अंतिम धन का भी सदुपयोग कर लिया. उस रात सेठ जी बहुत गहरी निद्रा में सोये. दूसरे दिन जब नर्स उन्हें उठाने के लिये पहुंची तो देखा कि वे परलोक सिधार चुके थे.
सम्पर्कः 106, नया गांव, रामपुर, जबलपुर (म.प्र.)
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