प्राची - जून 2016 / धरोहर कहानी / अंगूठे का दाग / स्नेहमयी चौधरी

SHARE:

धरोहर कहानी अबकी मुझसे एकदम सटकर मिस खरे बोलीं-तो फिर आप मुझसे डर क्यों गयीं? सच, आपने कैसे जाना कि...मैंने अमर से प्रेम किया और उसकी पत्...

धरोहर कहानी

अबकी मुझसे एकदम सटकर मिस खरे बोलीं-तो फिर आप मुझसे डर क्यों गयीं? सच, आपने कैसे जाना कि...मैंने अमर से प्रेम किया और उसकी पत्नी बेद को दवा में धीरे-धीरे विष देती रही? सच बताइए, आपने कैसे जाना?

अब वह मेरे और निकट आ गयीं. मैं एकदम सहम और उनको छोड़ अलग खड़ी हो गयी. वह एकदम बिलख कर रो दीं-फिर...आपने मुझ पर विश्वास क्यों खो दिया? कैसे समझा कि मैं आपको

भी...

अंगूठे का दाग

स्नेहमयी चौधरी

थर्मामीटर मुंह से निकालते हुए मैंने पूछा-यह शोर कैसा है?

टेम्परेचर देख, दवा की शीशी में थर्मामीटर डालते हुए, नर्स ने मुस्कराकर जवाब दिया-लगता है, पड़ोस के वार्ड में मिस खरे और मरीजों के बीच बहस जोरों पर है.

-मिस खरे कौन?

-हमारी कोलीग हैं एक.

-ओह, नर्स होकर मरीजों के साथ इतनी तेजी से बात करती है?

-अस्पताल जगह ही ऐसी है, बहन. यहां आकर किसका दिमाग ठीक रह पाता है! -कहती हुई नर्स मेरे पास से हट गयी.

मैंने उससे कहना चाहा, पर तुम तो बिल्कुल ठीक मालूम होती हो. लेकिन फिर मैंने सोचा कि यह क्या कोई कहने की बात है? संभव है, यह भी उतनी ही चिड़चिड़ी हो या आगे चलकर हो जाय. अभी तो नयी-नयी मालूम होती है यहां.

वार्ड में सब-कुछ पुराना-पुराना-सा था, फिर भी झाड़-पोंछकर साफ किया हुआ, शांत ठहरा-ठहरा सा वातावरण था. इधर-उधर भटकती हुई मेरी निगाह बाहर लॉन पर टिक गयी. वहां थोड़ी हरियाली थी...

शाम बीत चली थी. मरीजों से मिलनेवाले कब के जा चुके थे. सिर्फ नर्सें और दाइयां आ-जा रही थीं. शायद आपरेशन-रूम में कोई नयी मरीज आयी हो.

-उठिए, दवा पी लीजिए,-किसी की स्थिर-शांत आवाज सुनकर मैंने आंखें खोलीं. तकिये के सहारे उठते हुए मैंने अनुमान लगाया, मिस खरे होंगी. फिर न जाने क्यों, शब्दों में कोमलता उंडेलते हुए मैंने पूछा-क्या इस वार्ड में भी आपकी ड्यूटी रहती है, सिस्टर?

जी, हां, शुक्रिया!-कहकर वह मानो अपने-आपसे बात करने लगीं-चलिए, किसी ने पूछा तो! यहां तो सब अपनी-अपनी परेशानी अलापते रहते हैं!

....हमारा जीवन तो महज दूसरों के लिए है, अपनी क्या कहें? लीजिए, टेम्परेचर लीजिए!

बड़ी रुखाई और उदासीनता से एक ही सांस में यह सब कहती हुई वह थर्मामीटर मुंह के पास ले आयीं. जितनी देर थर्मामीटर मुंह में रहा, मैं उन्हें निरंतर देखती रही.

फिर बोली-कितनी सर्दी है आज और कितना अकेलापन! डर नहीं लगता आपको?

-डर, सर्दी और गर्मी हम लोगों के लिए नहीं बने, बहनजी!-कहती हुई एक लंबी सांस ले वह शीघ्रता से कमरे के बाहर हो गयीं.

उनके चेहरे पर पड़ती हुई बरामदे की हलकी रोशनी में मैंने देखा और पहचाना, कुछ रेखाएं खिंच आयी थीं; रूखे और स्थिर चेहरे पर काफी उतार-चढ़ाव था.

दूसरे दिन सुबह जब डाक्टर राउन्ड करती हुई हमारे वार्ड में आयीं, तो मैंने देखा कि उनके साथ मिस खरे भी हैं. मैं उठकर बैठ गयी. डॉक्टर ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और नब्ज देखने लगीं. फिर बोलीं-मिस खरे, यह तो तुम्हारी सहेली बेदी की तरह है, वैसी ही बड़ी-बड़ी आंखें, वही गोरा रंग.

-अरे हां, मैं भी यह देख रही थी. आज मुझे इनको देख अचानक उसकी याद हो आयी...सुनिए, आपका नाम क्या है?-उन्होंने बड़ी उत्सुकता से मुझसे पूछा.

-मेरा नाम तो नलिनी है. पर क्या मेरी शक्ल आपकी सहेली से मिलती है? वो हैं कहां?

-बेचारी!...वेदी...यहीं तो थी...बीमार होकर आयी थी...बची ही नहीं...-डाक्टर ने हाथ धोकर तौलिये से पोंछते हुए जवाब दिया.

मिस खरे ऊपर से नीचे तक कांप गयीं. उनका सफेद मुंह एकदम पीला पड़ गया. मुझे लगा, डॉक्टर ने असमय ही यह बात छेड़ दी थी.

-शायद बहुत घनिष्ट सहेली थीं आपकी?-मैंने सहानुभूति प्रदर्शित करते हुए चाहा कि उनका दुःख बंटा लूं, पर उनकी आंखों में आंसू भर आये.

-हे भगवान, शांति दे!-उन्होंने आंखें बंद कर दोनों हाथ जोड़ लिये, फिर उन्हें ऊपर किसी अज्ञात शक्ति की ओर उठाये हुए थोड़ी देर तक मौन खड़ी रहीं.

-आइए, चलिएगा नहीं? अभी बहुत-से मरीज देखने हैं. -डॉक्टर की आवाज से उनका ध्यान टूटा और वह उनके पीछे हो लीं. पर उनके शांत चेहरे पर खीझ और कटुता फिर उभर आयी थी.

दो-एक दिन बाद की बात है. मिस खरे की ड्यूटी शाम की थी. आते ही बोलीं-आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं? नलिनीजी!...आप बिल्कुल मेरी सहेली बेदी की तरह हैं, जरा भी अंतर नहीं. आंखें देखकर लगता है, एकदम वही आंखें हैं! मैं आपको बेद कहूं तो बुरा तो नहीं मानेंगी आप?

मैंने ध्यान से देखा, उनके मुख पर आज हर दिन से भिन्न मुद्राएं खिंची हुई थीं.

-अरे क्यों नहीं? बड़ी खुशी से! तब तो मैं भी आज से आपको अपनी सहेली ही समझूंगी. है न ठीक? मैंने अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ाया और चाहा कि उनसे मिला लूं, पर उनके चेहरे पर उभरती रेखाएं देखकर मैंने अपना हाथ खींच लिया और धीरे से पूछा-आप सुस्त क्यों हो गयीं? शायद मैंने सहेली की याद दिलाकर अच्छा नहीं किया.

-नहीं-नहीं, यह बात नहीं! मैंने सोचा था कि एक को खोकर अब कोई भी सहेली न बनाऊंगी, पर आपको देख जाने कहां से मन में प्रेम उमड़ पड़ता है. सारी खीझ और झुंझलाहट दूर हो जाती है. मन होता है कि आपके पास ही बैठी रहूं!-उन्होंने रुकते-रुकते अपना वाक्य पूरा किया. फिर दवा देती हुई बोलीं-बातों में मैं अपना काम तो भूल ही गयी थी. लीजिए, दवा पी लीजिए. आज बड़ी देरी हो गयी.

हड़बड़ाकर वह चल दीं. मैं पीछे से उनको जाते हुए देखती-देखती अपने मन में उनके सरल और खीझ-भरे, दोनों चेहरों की तुलना करती रही.

अगले रोज, दिन-भर मिस खरे से मुलाकात नहीं हुई. लेकिन रात में आठ बजे के करीब, मैंने खाने की थाली अपनी ओर खिसकायी ही थी कि वह शाल में लिपटी हुई मेरे पास आकर खड़ी हो गयीं.

-ओहो, सिस्टर! आज दिन-भर मैं आपको याद करती रही, पर आप दिखायी ही नहीं दीं?- मैंने कहा.

-तभी तो आ गयी,-वह धीरे से बोलीं.

-आइए, खाना खाइए!-मैंने सभ्यतावश कहा.

फीकी हंसी हंसकर वह बोलीं-आप शुरू कीजिए, बहन. मेरा एक तो खाना खाने का मन नहीं. दूसरे, पूजा करके भी नहीं चली थी.

मैं उनके मुंह की ओर देखने लगी. आज वह और दिनों से अधिक कोमल लग रही थीं. चेहरे पर खीझ और झुंझलाहट का नाम न था. रूखापन और पीलापन भी न था. मानो दुखते हुए जख्म पर किसी ने मरहम लगाकर दर्द को खींच लिया हो.

मैंने उत्सुकता से पूछा-तो आप पूजा करती हैं? यह अच्छा है. लेकिन ईश्वर के किस रूप की?

वह कुछ देर सोचकर बोली-रूप कोई भी हो. मैं तो मूर्ति की पूजा करती हूं. उतनी देर बड़ी शांति मिलती है. लेकिन उसके बाद फिर वही जलन...पीड़ा...असंतोष!

-पीड़ा और पूजा में भला क्या संबंध?-मैंने मुस्कराकर कहा.

-क्यों? सबंध क्यों नहीं हैं?...लगता है, आप ईश्वर को नहीं मानतीं. मेरी वेद भी नहीं मानती थी.-उन्होंने कहा.

कहीं नाराज न हो जायं, इसीलिए मैं धीरे से बोली-नहीं, ईश्वर को तो मैं मानती हूं. लेकिन अपनी सेवा-शुश्रुषा से इतनी सारी मानव-आत्माओं को आप जो सुख देती हैं, वह क्या परमात्मा की किसी पूजा से कम है?

-तो आप व्रत, नेम पूजा आदि को ईश्वर को पाने में सहायक नहीं मानतीं?-उन्होंने बड़ी सरलता से पूछा.

-जी, नहीं, मेरा तो विश्वास है कि व्रत-नेम से इन्द्रियों का जितना अधिक दमन कीजिए, उतनी ही तीव्रता से वे अपनी पूर्ति का मार्ग खोजती हैं. इससे विकृतियां उभर आती हैं. रोली-चावल लेकर केवल मूर्ति को पूजने से तो मन में जड़ता ही भरती है. जहां तक मैं समझ पायी हूं, मिस खरे, परमात्मा इस धरती की आत्माओं में ही है और प्रेम-द्वारा उसे पाया जा सकता है.

मिस खरे एकटक मुझे देख रही थीं.

-और जो व्यवहार को रूखा बना दे, अपने को कसनेवाले ऐसे धर्म के किसी भी मार्ग पर मेरी आस्था नहीं जम पाती. प्रेम ही ईश्वर है. हां, वह एक व्यक्ति या स्थान में केन्द्रित न होकर सबकी ओर विस्तृत हो. मानवता के प्रति प्रेम ही सबसे बड़ा धर्म है.

उन्होंने व्यग्र होकर मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा-तो, सच, प्रेम पाप नहीं है? ईश्वर कहीं और नहीं है?

-बिल्कुल नहीं, मिस खरे. प्रेम से ही सोयी आत्मा जागती है. ईश्वर हमसे कोई भिन्न प्राणी है, यह मानने को मैं तैयार नहीं. मनुष्य की सारी शक्तियां स्वयं उसी में छुपी हैं, उससे अलग कोई देवी शक्ति है, इस पर मेरा विश्वास नहीं टिक पाता. लेकिन, मिस खरे, आप व्यर्थ में इस-सबमें क्यों उलझ रही हैं?

अबकी बार वह मौन रहीं. शायद यह उनके लिए ईश्वर की एकदम नयी व्याख्या थी.

वह बड़ी देर तक योंही स्थिर बैठी रहीं. मैं उनके चेहरे के उतार-चढ़ाव देखती रही. अब वह दोनों हाथ मुंह के आगे लगाकर सिसक रही थीं. मैंने चाहा कि उन्हें चुप कराऊं, पर मेरी निगाह उनके हाथों से आगे बढ़ती हुई उनके अंगूठे पर ठिठक गयी. मेरी हिम्मत न पड़ सकी कि उनसे कुछ कहूं. मैं केवल उनके चेहरे को ढंकनेवाले उनके दोनों हाथों को देखती रह गयी.

अपने-आप ही उनका रोना जब कम हुआ, तो उठकर वह चुपचाप कमरे से बाहर चली गयीं. उनके जाते ही मुझे लगा कि सर्दी अचानक बढ़ गयी है और मैंने कम्बल को अपने चारों ओर कसकर लपेट लिया.

दूसरे दिन जब वह दवा देने आयीं, तो उनका चेहरा सूजा हुआ था. लग रहा था, रोकर आ रही हैं. कोई भी भाव उनके मुख पर न था. मैंने दवा लेकर रख ली. वह मौन ही कमरे से वापस हो गयीं. उनके जाते ही मैंने दवा एक ओर फेंक दी और डॉक्टर से कहला दिया, कोई दूसरी नर्स मेरे लिए नियुक्त की जाय तो बेहतर है.

मिस खरे को न आते आज तीसरा दिन था. मैं दोपहर की धूप-सेंक कर कमरे के भीतर आयी, तो सामने मेरे बिस्तर के पास वह खड़ी थीं.

उनको देखते ही मेरे पैर जहां-के-तहां रुक गये. मैं ऊपर से नीचे तक सिहर उठी. फिर भी सारा साहस बटोरकर मैंने कहा-बैठिए.

वह एकदम से मेरे पैरों के पास बैठकर बड़ी जोर से रो पड़ीं. मैंने पीछे हटते हुए अपने पैर छुड़ाने को कोशिश करते हुए पूछा-अरे, यह क्या करती हैं, मिस खरे? आपकी तबीयत तो ठीक है न? उठिए!

पर वह जोर से रो रही थीं और अस्फुट स्वर में कह रही थीं-देखिए, मैं वही-सब तो करती हूं, जो आप कहती हैं. सबसे प्रेम करती हूं. पर सच बताइए, क्या प्रेम पाप है? आज मुझे एकदम सच-सच बताइए!

मैंने घबराते हुए कहा-अरे, आज आपको हो क्या गया है? यह सब आपसे किसने कह दिया?

-आप कहती हैं, आप! मैंने अपनी बेद को आप में पाना चाहा था. पर आपने भी तो मेरे प्रेम पर शक किया!

ड्यूटी बदला दी. सच बतलाइए. क्या आप भी मुझसे डर गयीं?-उनका रोना और बढ़ता गया.

मेरा मन ग्लानि से भर उठा. मैंने कह दिया-अरे, यह नहीं, आप क्या कह रही हैं? मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आ रहा. भगवान के नाम पर थोड़ी देर के लिए चुप होइए.

वह चीख पड़ीं-फिर आपने भगवान का नाम लिया? अब मैं भगवान को नहीं मानती. प्रेम को भी नहीं मानती. प्रेम झूठ है, पाप है. ईर्ष्या, घृणा और बदला! मैं बस यही जानती हूं!-बोलते-बोलते उनका चेहरा क्रोध से लाल हो उठा.

मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था. फिर भी मैंने कहा-आप क्या कह रही हैं, स्पष्ट कीजिए न! प्रेम तो झूठ नहीं, पाप नहीं; वह तो स्वयं है. पर आप कहना क्या चाहती हैं, यह बताइए!

अबकी मुझसे एकदम सटकर मिस खरे बोलीं-तो फिर आप मुझसे डर क्यों गयीं? सच, आपने कैसे जाना कि...मैंने अमर से प्रेम किया और उसकी पत्नी बेद को दवा में धीरे-धीरे विष देती रही? सच बताइए, आपने कैसे जाना?

अब वह मेरे और निकट आ गयीं. मैं एकदम सहम और उनको छोड़ अलग खड़ी हो गयी. वह एकदम बिलख कर रो दीं-फिर...आपने मुझ पर विश्वास क्यों खो दिया? कैसे समझा कि मैं आपको भी...

वह सिसकती हुई रोये जा रही थीं मैं मौन ग्लानि और भय से उनके दाहिने हाथ के अंगूठे के दाग को देख रही थी, जिसके बारे में किसी ने कभी मुझसे कहा था कि यह हत्यारे के अंगूठे पर होता है.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची - जून 2016 / धरोहर कहानी / अंगूठे का दाग / स्नेहमयी चौधरी
प्राची - जून 2016 / धरोहर कहानी / अंगूठे का दाग / स्नेहमयी चौधरी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjG-6-ZiJekGMD56WDDCWX2jKJ03Xbl-K3vYHMA6z1-c0Ar_oSYaVWhD_XRHvdrt8ijZuEVM8PBImLYFNxQlDxLZtawaGBQryMPDCHOjFIkcFiaKtE5EgybfbVXPXuDPIRALc8l/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjG-6-ZiJekGMD56WDDCWX2jKJ03Xbl-K3vYHMA6z1-c0Ar_oSYaVWhD_XRHvdrt8ijZuEVM8PBImLYFNxQlDxLZtawaGBQryMPDCHOjFIkcFiaKtE5EgybfbVXPXuDPIRALc8l/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/06/2016_32.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/06/2016_32.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content