आपने कहा है संपादकीय का रंग मैं कई वर्षो से प्राची पढ़ रहा हूं. कविता, कहानी, समीक्षा, आलेख का अपना अलग रंग है. परंतु संपादकीय इस पत्रिका...
आपने कहा है
संपादकीय का रंग
मैं कई वर्षो से प्राची पढ़ रहा हूं. कविता, कहानी, समीक्षा, आलेख का अपना अलग रंग है. परंतु संपादकीय इस पत्रिका की जान है. हर बार संपादकीय एक अलग रंग में नजर आ रही है. मार्च अंक में ‘देश के गद्दार’ संपादकीय में वास्तविक चित्रण किया है. हो सकता है, संपादकीय को पढ़कर समाज में कोई परिवर्तन आ जाये. मई अंक में ‘पाप और पुण्य’ को बहुत ही सुगठित रूप से वर्णित किया है. संपादकीय के माध्यम से जो संदेश पाठकों तक जाता है, वह सराहनीय है.
प्रेम नारायण शुक्ल, नई दिल्ली
प्राची की प्रगति
प्राची प्रगति पर है. इसके पत्र अपनी एक अलग छाप छोड़ते हैं. प्रभात दुबे जी के पत्रों की एक अलग पहचान है.आपने व्यंग्य का कालम बनाया, बहुत अच्छा लगा. कहानियां मार्च, अप्रैल के अंक की एक ही बैठक में पढ़ डालीं. अभी कल ही मई अंक हाथ आया. सरसरी तौर पर पढ़ा. संपादकीय का तो क्या कहना. अशोक अंजुम के दोहे बहुत बढ़िया हैं.साक्षात्कार शुरू किया, अच्छी शुरुआत है.
प्राची दिन दूनी उन्नति करे, यही मनोकामना है. संपादक और संपादक मंडल को बधाई.
उर्मिला शर्मा, बहादुरगढ़ (हरियाणा)
पठनीय एवं स्मरणीय संपादकीय
प्राची का मई, 1016 अंक मिला. संपादकीय में पठनीय एवं स्मरणीय विचारों को जानकर प्रसन्नता हुई. आपके सद्प्रयास एवं मनोयोग के फलस्वरूप पत्रिका के स्तर में उत्तरोत्तर विकास और प्रगति दृष्टिगोचर हो रही है. आप पुराने लेखकों के साथ नए लेखकों को भी पत्रिका में स्थान देते हैं, यह एक सराहनीय कार्य है. प्राची का कथा साहित्य अद्भुत है. कवितायें रोचक होती हैं. प्राची के संपादकीय विभाग को मेरी ओर से बधाई!
जीतेन्द्र कुमार, बहराइच (उ.प्र.)
मेरा दृष्टिकोण
‘‘आखिर हम हैं क्या’’ में लेखक ने भारतीय समाज का जो चित्र खींचा है, वह कड़वी सच्चाई है और इसे हम एक कड़वी दवा के समान पीते जा रहे हैं, फिर भी समाज में कोई सुधार दृष्टिगत नहीं हो रहा है. सामाजिक पतन जारी है. भारतीय समाज का व्यक्ति और कितना नीचे गिरेगा, क्या इसकी कोई सीमा है? कहा नहीं जा सकता. परन्तु इतना सच है कि अगर व्यक्ति और समाज नहीं सुधरेगा, तो इसे इतिहास में एक आदर्श समाज का स्थान कभी प्राप्त नहीं होगा. ऐसा मेरा मानना है.
पत्रिका में प्रकाशित कहानियां, गीत, गजल और कवितायें हमेशा की तरह पठनीय हैं. मेरी शुभकामनायें.
सुधांशु शर्मा, प्रतापगढ़ (उ.प्र.)
संस्कृति की जानकारी देते रहें
प्राची का मई, 2016 अंक प्राप्त हुआ. बहुत समय बाद एक पौराणिक कहानी पढ़ने को मिली. यह मेरी काफी समय से मांग थी, आपने उसे पूरा किया. हार्दिक धन्यवाद! आधुनिक पीढ़ी अपनी परम्पराओं और पुरातन संस्कृति से दूर जा रही है, यह एक दुःखद विषय है; परन्तु प्राची जैसी साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पत्रिकाएं अपनी विरासत को जीवित रखे हुए हैं. इससे आशा बंधती है कि हमारे समाज का जो पतन हो रहा है, वह कभी-न-कभी रुकेगा अवश्य, परन्तु यह कहां जाकर रुकेगा, यह आधुनिक पीढ़ी के हाथों में है. आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें अपने धर्म और संस्कृति की कितनी जानकारी हम दे पाते हैं. समय-समय पर पत्रिका में अपने पौराणिक ग्रंथों के बारे में या उनमें दिए गए आख्यानों को प्रकाशित करते रहें.
इसके अतिरिक्त पत्रिका का नयनाभिराम आवरण पृष्ठ देखकर मन प्रसन्न हो गया. ऐसा लगा, जैसे जेठ की तपती दोपहरी में वर्षा की दो ठंडी बूंदें तन-बदन को सिहरा गयी हों. बधाई!
के. राज आर्य, लाजपत नगर, नई दिल्ली
कहानियां मील का पत्थर
प्राची का नवीनतम अंक प्राप्त हुआ. इस अंक में पुरानी और नई रचनायें पढ़कर मन प्रसन्न हो गया. प्राची में हिन्दी साहित्य की प्रत्येक विधा की सोंधी खुशबू बिखरी हुई है. सच्चे मानो में आप साहित्य की सेवा कर रहे हैं. सभी कहानियां अच्छी हैं और हिन्दी साहित्य में मील का पत्थर साबित होंगी. काव्य जगत में प्रकाशित पद्य रचनाएं उत्तम कोटि की हैं. आपका चयन सुंदर है. इधर व्यंग्य रचनाओं की संख्या में वृद्धि हुई है. इससे लगता है आप समाज के प्रति एक सार्थक दृष्टिकोण रखते हैं.
प्राची एक सुंदर और उत्तम पत्रिका है. इसकी दीर्घायु के लिए मेरी शुभकामनाएं.
राजीव सिंह, सिंगरौली (म.प्र.)
रोचक और ज्ञानवर्धक अंक
प्राची का मई, 2016 अंक अभी-अभी मिला है. कुछ रचनाओं का अवलोकन किया है. प्राची के प्रत्येक अंक में कोई न कोई साहित्यिक आलेख रहता है. पिछले दो-तीन अंकों से आप पुराने साक्षात्कार दे रहे हैं, जो साहित्य की धरोहर हैं. यह साक्षात्कार केवल पाठकों के लिए ही नहीं, नए लेखकों के लिए भी जानकारी से परिपूर्ण हैं. यह दुर्लभ साहित्यिक साक्षात्कार हैं, जो अन्य पत्र-पत्रिकाओं में उपलब्ध नहीं होते. पाठकों के समक्ष इन्हें लाकर आप एक महती कार्य कर रहे हैं.
देखा गया है कि वर्तमान हिन्दी लेखकों में पठन-पाठन के प्रति रुचि लगभग नहीं के बराबर है. ये अपनी रचनओं के अतिरिक्त किसी और की रचना नहीं पढ़ते. जबकि लेखकों के लिए यह परम आवश्यक है. इससे जहां उन्हें यह जानकारी मिलती है कि वर्तमान हिन्दी साहित्य का रुझान कैसा है, वहीं पुराने लेखकों की रचनाओं से हमें यह ज्ञात होता है कि दशकों पूर्व किस प्रकार का साहित्य लिखा जा रहा था. इस मायने में आप एक अच्छा कार्य कर रहे हैं. प्राची के माध्यम से आप पुरानी और धरोहर कहानियां, लेख और साक्षात्कार पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं. आप इतनी उपयोगी रचनाओं को ढूंढ़-ढूंढ़कर पत्रिका में स्थान दे रहे हैं, इसके लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद!
विजय प्रताप वर्मा, इलाहाबाद (उ.प्र.)
(इस बार एक भी पत्र ऐसा प्राप्त नहीं हुआ, जिसे सर्वश्रेष्ठ घोषित किया जा सके.)
वे मूल्य फिर लौटेंगे
बोरिस पॉस्तरनाक
जब मैं ‘डॉ. जिवागो’ लिख रहा था तो मेरे मन में एक बोझ था कि वे अपने समकालीनों के प्रति देनदार हैं. जैसे-जैसे उपन्यास आगे बढ़ता रहा, यह देनदारी की अनुभूति मेरे ऊपर हावी होती चली गयी. इतने सालों तक गीत लिखने और अनुवाद करने के बाद मुझे लगा कि उस युग के बारे में अपना बयान देना भी मेरा कर्तव्य है जो काफी पहले बीत गया है, पर छाया रूप में आज भी हमारे ऊपर छाया हुआ है. समय अपना दबाव डाल रहा था. मैं ‘डॉक्टर जिवागो’ में रूस के उन वर्षों के सुन्दर और संवेदनशील पहलू का लिपिबद्ध करके उसका सम्मान करना चाहता था. वे दिन तो लौटकर आयेंगे नहीं, और न हमारे दादा-परदादा ही लौटेंगे, पर भविष्य के ऐश्वर्य में मैं देखता हूं कि उन्हीं के मूल्य फिर लौटेंगे. मुझे उनका ही वर्णन करना है. मैं नहीं जानता कि ‘डॉक्टर जिवागो’ एक उपन्यास के रूप में सफल रहा है, पर इसकी सारी कमजोरियों के बावजूद, मैं महसूस करता हूं कि यह मेरी प्रारंभिक कविताओं की अपेक्षा अधिक मूल्यवान है. यह मेरी युवावस्था की कृतियों की अपेक्षा अधिक समृद्ध और अधिक मानवीय है.
साहित्य समाचार
मंजिल ग्रुप का अनूठा आयोजन
आगराः रामस्वरूप कॉलोनी आगरा में ‘‘मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच (भारतवर्ष) द्वारा एक अनोखे साहित्यिक रचना पाठ का आयोजन किया गया. जिसमें आगरा के डॉ. शेष पाल सिंह ‘‘शेष’’, डॉ. ओम प्रकाश दीक्षित ‘‘सूर्य’’ श्रीमती श्रुति सिन्हा, डॉ. राजकुमार सिंह (सभी आगरा) डॉ. शशि मंगल (जयपुर) तथा सुधीर सिंह सुधाकर (दिल्ली) ने अपनी रचना की जगह दूसरों की रचना मंच से पढ़ी तथा ‘‘रचना सहृदयता सम्मान’’ भी प्राप्त किया.
डॉ. शशि मंगल की अध्यक्षता तथा श्री राकेश कुमार के मुख्य आतिथ्य में इस अनोखे कार्यक्रम की खास बात यह रही कि 5000 श्रोताओं के ग्रीन कार्ड के आधार पर दिल्ली से आए मंच के राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने आगरा के लघुकथाकार को अंग-वस्त्रम्, मेडलों तथा कई प्रशस्ति पत्र (भारतवर्ष के अन्य सभी शाखाओं द्वारा भेजे गए प्रदान किए.)
श्री किशनलाल शर्मा जी को जब सम्मानित किया जा रहा था तब उनकी पुत्रवधु संगीता शर्मा ने सरस्वती वंदना भी की जो कि उनकी रचना नहीं थी. वयोवृद्ध चांद देवी जी ने मंचासीन अतिथियों को अपने हाथों से सम्मान पत्र प्रदान किया तथा अपना आशीर्वाद भी दिया. इस मंच (एमजीएसएम) की खास बात यह है कि श्रोताओं की ग्रीन कार्ड के आधार पर मंच रचनाकार को उसके शहर में जाकर सम्मानित करती है.
श्रोता समूह में आर.के. भारद्वाज, के.सी. चतुर्वेदी, हरिओम शर्मा, राजकुमार शर्मा, किशन सिंह, सतपाल यादव तथा रामवीर शर्मा महिला श्रोता भी उपस्थित रहे.
कार्यक्रम का मंच संचालन श्रुति सिन्हा ने किया. सभी वक्ताओं ने मंच के अनोखेपन की प्रशंसा की श्रोता को जमकर रचनाकार को (जिन्हें श्रोता न देखे न उनकी रचना सुनी) कार्ड प्रदान किए.
प्रस्तुति पुष्पेंद्र सिंह, आगरा
वैचारिक कवि गोष्ठी सम्पन्न
मीरजापुरः 24.3.2016 को सायं होली के अवसर पर नगर के वरिष्ठ साहित्यकार भवेशचंद्र जायसवाल के अनगढ़ रोड पर स्थित श्रीकृष्णपुरम् कालोनी में आवास पर एक वैचारिक काव्य गोष्ठी वरिष्ठ कवि प्रभूनारायण श्रीवास्तव की अध्यक्षता में आयोजित की गयी. इस गोष्ठी में नगर के प्रमुख वैचारिक कवि एवं प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित थे.
वाणी वंदना के पश्चात् इलाहाबाद बैंक के पूर्व वरिष्ठ प्रबंधक केदारनाथ सविता ने अपनी वैचारिक कविताओं का पाठ किया- ‘‘सुख है एक नर्तकी, जो आज बूढ़ी हो चुकी.’’
‘‘आज’’ दैनिक समाचार पत्र इलाहाबाद संस्करण के पूर्व उप संपादक भोलानाथ कुशवाहा, जिनके अंतिका प्रकाशन से लगातार तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, ने अपनी नई कविता का पाठ किया- ‘‘वर्षों से बनाने के प्रयास में हूं एक चित्र आदमी का, वह कहीं ठीक-ठीक ओरिजनल नहीं मिला.’’
ए.जी. ऑफिस उत्तर प्रदेश इलाहाबाद से सेवानिवृत्त भवेशचंद्र जायसवाल जिनके चार काव्य संग्रह व एक बाल कथा संग्रह और एक बाल एकांकी प्रकाशित हो चुके हैं, ने अपनी सद्यः प्रकाशित समकालीन कविताओं का पाठ किया. तत्पश्चात् उन्होंने होली विषयक दोहे सुनाये- ‘‘बोल, बतकही, मसखरी हवा फुलाए गाल, रंगों भरे कपोल पर फागुन मले गुलाल. सपनों की फुलवारियां, रंगों की बौछार, मिसरी-सा नीका लगे, फागुन का त्यौहार.’’
आदर्श इंटर कॉलेज, बिसुन्दरपुर के पूर्व प्रधानाचार्य बृजदेव पांडेय जो नई कविता में व्यंग्य का मिश्रण करने के लिए प्रसिद्ध है, ने सुनाया- ‘‘मोटापा कम करने के लिए दवा खाने की क्या जरूरत है, एक बार चूम कर देखो, सारा मोटापा झार कर रख दूंगा. क्या सूगर-सूगर चिल्लाते हो, समाज में ऐसी कड़वाहट भर दूंगा, जिंदगी की मिठास चली जाएगी.’’
सबसे अंत में गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे जी.डी. बिनानी स्नाकोत्तर महाविद्यालय, मीरजापुर के अंग्रेजी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रभु नारायन श्रीवास्तव ने विचारोत्तेजक कविता पढ़कर सबको चुप करा दिया. लोग वाह् करना भूल गये. आह भर कर रह गये. उन्होंने पढ़ा- ‘‘पानी जब मुट्ठी बांध लेता है तब बन जाता है बर्फ, असंवेदनशील इतना कि भूल जाता है बहना. अपने आप में सिमट कर बड़ा कठोर हो जाता है, ऐसा पानी भी किस काम का जो बह न सके रगों में.’’
प्रस्तुतिः केदारनाथ ‘सविता’, मीरजापुर
हिंदी ब्लॉगिंग ने पूरे किये 13 साल, 21 अप्रैल को बना था हिंदी का पहला ब्लाग
न्यू मीडिया के इस दौर में ब्लॉगिंग लोगों के लिए अपनी बात कहने का सशक्त माध्यम बन चुका है. राजनीति की दुनिया से लेकर फिल्म जगत, साहित्य से लेकर कला और संस्कृति से जुड़े तमाम नाम ब्लॉगिंग से जुडे हुए हैं. आज ब्लॉग सिर्फ जानकारी देने का माध्यम नहीं, बल्कि संवाद, प्रतिसंवाद, सूचना विचार और अभिव्यक्ति का भी सशक्त ग्लोबल मंच है.
यद्यपि ब्लॉगिंग का आरंभ 1999 से माना जाता है पर हिंदी में ब्लॉगिंग का आरम्भ वर्ष 2003 में हुआ. आजमगढ को जहां साहित्य, शिक्षा, संस्कृति, कला का गढ माना जाता है, वही ब्लॉगिंग के क्षेत्र में भी यहां तमाम उपलब्धियां दर्ज हैं. आजमगढ़ के तहबरपुर क्षेत्र निवासी चर्चित हिंदी ब्लॉगर एवं भारतीय डाक सेवा में निदेशक कृष्ण कुमार यादव बताते हैं कि पूर्णतया हिन्दी में ब्लॉगिंग आरंभ करने का श्रेय आलोक को जाता है, जिन्होंने 21 अप्रैल 2003 को हिंदी के प्रथम ब्लॉग ‘नौ दो ग्यारह’ से इसका आगाज किया. सार्क देशों के सर्वोच्च ‘परिकल्पना ब्लॉगिंग सार्क शिखर सम्मान’ से सम्मानित एवं नेपाल, भूटान और श्रीलंका सहित तमाम देशों में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर्स सम्मेलन में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले श्री यादव जहां अपने साहित्यिक रचनाधर्मिता हेतु ‘शब्द-सृजन की ओर’ब्लॉग लिखते हैं, वहीं डाक विभाग को लेकर ‘डाकिया डाक लाया’ नामक उनका ब्लॉग भी चर्चित है.
वर्ष 2015 में हिन्दी का सबसे लोकप्रिय ब्लॉग ‘शब्द-शिखर’ को चुना गया और इसकी माडरेटर आकांक्षा यादव को हिन्दी में ब्लॉग लिखने वाली शुरुआती महिलाओं में गिना जाता है. ब्लॉगर दम्पति कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव को ‘दशक के श्रेष्ठ ब्लॉगर दम्पति’, ‘परिकल्पना ब्लॉगिंग सार्क शिखर सम्मान’ के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा नवम्बर, 2012 में ‘‘न्यू मीडिया एवं ब्लॉगिंग’’ में उत्कृष्टता के लिए ‘‘अवध सम्मान’’ से भी विभूषित किया जा चुका है. इस दंपती ने वर्ष 2008 में ब्लॉग जगत में कदम रखा और विभिन्न विषयों पर आधारित दसियों ब्लॉग का संचालन-सम्पादन करके कई लोगों को ब्लॉगिंग की तरफ प्रवृत्त किया और अपनी साहित्यिक रचनाधर्मिता के साथ-साथ ब्लॉगिंग को भी नये आयाम दिये. नारी सम्बन्धी मुद्दों पर प्रखरता से लिखने वाली आकांक्षा यादव का मानना है कि न्यू मीडिया के रूप में उभरी ब्लॉगिंग ने नारी-मन की आकांक्षाओं को मुक्ताकाश दे दिया है. आज 80,000 से भी ज्यादा हिंदी ब्लॉग में लगभग एक तिहाई ब्लॉग महिलाओं द्वारा लिखे जा रहे हैं.
ब्लॉगर दम्पति यादव की 9 वर्षीया सुपुत्री अक्षिता (पाखी) को भारत की सबसे कम उम्र की ब्लॉगर माना जाता है. अक्षिता की प्रतिभा को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2011 में उसे ‘राष्ट्रीय बाल पुरस्कार’ से सम्मानित किया, वहीं पिछले वर्ष अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में उसे ‘परिकल्पना कनिष्ठ सार्क ब्लॉगर सम्मान’ से भी सम्मानित किया गया. इसके ‘पाखी की दुनिया’ब्लॉग को 100 से ज्यादा देशों में देखा-पढा जाता है और लगभग 450 पोस्ट वाले इस ब्लॉग को 260 से ज्यादा लोग नियमित अनुसरण करते हैं.
हिंदी ब्लॉगिंग की दशा और दिशा पर पुस्तक लिख रहे चर्चित ब्लॉगर कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि, आज हिन्दी ब्लॉगिंग में हर कुछ उपलब्ध है, जो आप देखना चाहते हैं. हर ब्लॉग का अपना अलग जायका है. यहां खबरें हैं, सूचनाएं हैं, विमर्श हैं, आरोप-प्रत्यारोप हैं और हर किसी का अपना सोचने का नजरिया है. तेरह सालों के सफर में हिंदी ब्लागिंग ने एक लम्बा मुकाम तय किया है. आज हर आयु-वर्ग के लोग इसमें सक्रिय हैं, शर्त सिर्फ इतनी है कि की-बोर्ड पर अंगुलियां चलाने का हुनर हो.
प्रस्तुतिः कृष्ण कुमार यादव, जोधपुर
मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच का कार्यक्रम विवरण देख यहाँ रोमांचित हुआ , जिस माध्यम तक यह रिपोर्ट आप तक पहुंची है सभी को साहित्यिक धन्यवाद ,
जवाब देंहटाएंसुधीर सिंह सुधाकर
राष्ट्रीय संयोजक
मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच , भारतवर्ष