मां तुझे प्रणाम डॉ . भावना शुक्ल मां जीवन है तुम्हारा नाम है ईश्वर से पहले तुमको प्रणाम है तेरी याद में अब जीना है धरती और आकाश बिछौन...
मां तुझे प्रणाम
डॉ. भावना शुक्ल
मां
जीवन है
तुम्हारा नाम है
ईश्वर से पहले
तुमको प्रणाम है
तेरी याद में अब जीना है
धरती और आकाश बिछौना है
मन है बहुत बैचेन
बिन तेरे नहीं हैं चैन
मन नहीं करता
कलम उठाने को
लगता है
शब्द
हो गये हैं निर्जीव
लेकिन
यादें हैं सजीव
क्योंकि
जिंदगी नहीं रुकती
जिंदगी चलने का नाम है
चाहता है मन
करना है बहुत से काम
लिखना है मां के नाम
मां तुझे प्रणाम.
सम्पर्कः सह संपादक प्राची
डब्ल्यू जेड 21 हरिसिंह पार्क, मुल्तान नगर पश्चिम विहार
नई दिल्ली-110056
ईमेलः bhavanasharma30@gmail-com
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मां
ज्योति जुल्का
मां थी तो सारे दिन त्योहार थे,
तुम थी मां तो लाड़ दुलार भी थे,
नाज भी थे और लोरी भी,
इकरार भी थे, इंकार भी थे.
जीते तो हम सब आज भी हैं,
खुशियां भी खूब मनाते हैं,
हां, हर पल, हर क्षण, घड़ी-घड़ी,
बस कमी तुम्हारी पाते हैं.
लो एक बरस भी बीत गया,
वैसा सब है जैसा था तब,
दिल अब तक मान नहीं पाया,
तुम साथ हमारे नहीं हो अब.
लगता है फिर किसी कोने से,
आवाज तुम्हारी आयेगी,
और मुस्कान भरी वो प्यारी छवि,
बरबस ही हमें दिख जायेगी.
कई बार हुआ यूं अनायास,
ये हाथ मेरे उठ जाते हैं,
तुमको आलिंगन में भरने को,
मन अंतस तड़पाते हैं.
फिर याद आ जाता है अवसान,
वो क्रूर विधाता का विधान,
संसार को एक सराय मान,
जो आया है वो जायेगा...
पर दिल आज भी
मान न पाता है.
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मेरी मां
अल्पना हर्ष
मेरी मां
थकी थकी सी
हारी सी
अपने आप से
लड़ती
जुगत लगाती
रिश्ते संभालने की
मेरी मां
हैरान सी
परेशान सी
अपनापन ढूंढ़ती
गैरों में
मेरी मां
इन्तजार करती
राह तकती
सोचती कि
कोई तो आयेगा
और कहेगा
कि मां तू
अकेली नहीं
मैं तेरे साथ हूं
निराशा पर भी
आशा की उम्मीद
ले के बैठी
मेरी मां
बेटे की आहट पर
खुश होती
मेरी मां
सम्पर्कः पत्नी डॉ. मनोज हर्ष,
डी-599, हर्ष निवास, एमडीवी नगर,
बीकानेर-334001 (राजस्थान)
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दो गजलें
अहमद जफर
प्यार की रंगत मैंने देखी, दर्द की रंगत देखे कौन
प्यार का गीत सुना है सबने, धुन थी कैसी सोचे कौन
धूप ने तन-मन फूंक दिया तो साये में आ बैठा था
शाख-शाख में आग छिपी है, पेड़ के नीचे बैठे कौन
अपने दर्द को गर्द समझकर मंजिल-मंजिल छोड़ दिया
आईने पर धूल जमी है, आईने में देखे कौन
अंग-अंग से रंग-रंग के फूल बरसते देखे हैं
रंग-रंग से शोले बरसे, कैसे बरसे, सोचे कौन
मेरे कोट का मैला कॉलर और नुमायां1 होता है
पागल सजधज रखने वाले, तेरे सामने बैठे कौन
1. स्पष्ट
ताबिश देहलवी
3.
4. धूम मचायें, सब्बा रौंदें, फूलों को पामाल1 करें
5. जोशे-ए-जुनूं2 का ये आलम है, अब क्या अपना हाल करें
6. जान से बढ़कर दिल है प्यारा, दिल से जियादा जान अजीज
7. दर्द-ए-मोहब्बत का इक तोहफा किस-किस को इर्साल3 करें
8. रूह की एक-इक चोट उभारें दिल का एक-इक जख्म दिखाएं
9. हम से हो तो नुमायां4 क्या-क्या अपने खदूद-ओ-खाल5 करें
10. कर्ज भला क्या देगा कोई भीक भी मिलनी मुश्किल है
11. नादारों6 की इस बस्ती में किस से जाके सवाल करें
12. इर इक दर्द को अपना जाने, इर इक गम को अपनाएं
13. ख्वाह7 किसी की दौलत-ए-गम8 हो दिल का मालामाल करें
14.
15. 1.पद दलित 2. उन्माद का आवेग, 3. प्रेषण, 4. स्पष्ट, 5. कपोल और दिल, 6. निर्धनों, 7. चाहे, 8. कष्ट की सम्पत्ति
केशव शरण की दो कवितायें
तब तक
रात का कंबल
उतार फेंकता हूं
जरा रेल की सीटी सुनायी तो दे
जरा चिड़िया तो बोले
फिर पांव जमीन पर टेकता हूं
रोजमर्रा की जिंदगी को देखता हूं
तब तक...
कुछ आलस का आनंद भी हो ले
तब तक...
कुछ उजाला भी हो जायेगा
प्रश्न यहां है
वह मुझे अपना समझता है
और सब जानते भी हैं
इसलिए वह मेरा पक्ष नहीं लेगा
नहीं बनेगा पक्षपाती दुनिया की नजर में,
यहां वह नैतिक था
पूरी दृढ़ता से
आज उसे आदेश हुआ है
मुझ पर तीर छोड़ने का
और तीर उसने छोड़ दिया
नैतिकता न छोड़ी किंचित
ऐसी नैतिकता लिये वह खड़ा कहां है
प्रश्न यहां है?
सम्पर्कः एस 2/564 सिकरौल, वाराणासी-221001
गजल
हरदीप ‘बिरदी’
सीखे नहीं सबक भी किसी दास्तां से हम
आगे कभी न बढ़ सके अपने निशां से हम
तू एक बार हमको लगाता तो इक सदा
आ जाते लौट कर भी किसी आसमां से हम
दुनिया के साथ चलके वो आगे निकल गये
लिपटे हुए हैं आज भी अपने मकां से हम
मांगा जो उसने हमने वो वादा तो कर दिया
सोचा नहीं निभायेंगे इसको कहां से हम
ईमां भी बेच दूं मैं मगर यह तो सोचिये
जायेंगे खाली हाथ ही इक दिन जहां से हम
अपना पता है हमको न अपनी कोई खबर
गुजरे ये राहे-इश्क में कैसे मकां से हम
कहने को उनके साथ में ‘बिरदी’ जी चल रहे
गुजरे कदम-कदम पे किसी इम्तिहां से हम
सम्पर्कः म. सं. 6826, स्ट्रीट 10, न्यू जनता नगर, दाबा रोड, लुधियाना (पंजाब)
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अकेली उदास मां
रमा शर्मा
एक टूटी दीवार
जिसके साये में
बीता बचपन
एक सूखा हुआ पेड़
जिसकी घनी छाया में
प्यारे खेल खेले
एक मुरझाया हुआ फूल
जिसकी खूशबू से
महका जीवन सारा
एक लंगड़ा घोड़ा
जिसने सिखाया
जिंदगी की दौड़ जीतना
खांसी की बेसुरी आवाजें
जिसकी मीठी बोली ने
सुनाई कितनी लोरियां
कांपती लड़खड़ाती टांगें
जिनके सहारे ने
कदमों को चलना सिखाया
दवाइयों की दुकान
जो थी कभी
ताकत की दवाई
क्या कभी सोचा है
अगर वो दीवार न होती
अगर वो पेड़ न होता
अगर वो फूल न होता
अगर वो घोड़ा न होता
अगर वो ताकत की दवा न होती
कैसे बड़े होते
कैसे सपने देखते
कैसे खिलता जीवन सारा
कैसे जिंदगी की दौड़ जीतते
लेकिन ये सब करने वाली कौन है
वो है हमारी बूढ़ी मां...
लेकिन आज वो
इतनी अकेली क्यों
इतनी उदास क्यों
इतनी बीमार क्यों
इतनी उपेक्षित क्यों
सिर्फ एक दिन ही
मां के लिये क्यों?
सम्पर्कः प्रधान सम्पादक,
हिन्दी की गूंज अंतराष्ट्रीय ई पत्रिका,
जीएच 13/34, पश्चिम विहार,
नई दिल्ली
ईमेल - editor.hindikigoonj@gmail.com
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मां...
अनिता सिंह राज
कभी गुनगुनाती सुबह होती है,
कभी सुरों में ढलती शाम बन जाती है,
ममता की ठंडी छांव बनकर,
नग में बिखेरती कभी
शबनमी चांदनी बन जाती.
कभी दर्द छलकाती रागिनी,
कभी बेबसी की खामोश कहानी
मां वो पाकीजा इबादत है,
जो खुशियों का मंजर समेटे,
हसरत का जहां लिए,
जन्नत का सुकून
दे जाती है मां
सम्पर्कः जमशेदपुर, (झारखण्ड)
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तरुण कुमार सोनी ‘तन्वीर’
1. कर्जदार हैं हम...
कर्जदार हैं हम
उसके
जिसने हमारा सर्जन किया
जिसके गर्भ में
अज्ञातवास लिया था हमनें
नौ माह तक
जिसने हमें जन्म दिया
कर्जदार हैं हम उसके,
उसकी निश्चल ममता के
जिसने अपने आंचल तले
हमें नया संसार दिया
कर्जदार हैं हम उसके
दौड़ रहा है जिसका दूध
हमारे जिस्म में
लहू बन कर खौल रहा है
जो हमने
उसकी छाती से पिया था
कर्जदार हैं हम
उस मां के
जिसने अनगिनत पीड़ाएं
सह कर भी
हमें जीवन दिया
और असीमित स्नेह का
ममता मयी स्रोत
न्यौछावर किया
कर्जदार हैं हम उसके!
2. ममता
एक नन्हीं चिडिया
उडना चाहती है
उन्मुक्त आकाश में
अपने ही परों से
दुनिया नापना चाहती है.
पर बेबस
उसे उड़ने नहीं देती
वो बड़ी चिड़िया
ममता की खातिर,
शंका है
उसके मन में
कही कोई कुत्ता या बिल्ली
नन्हीं चिङिया पर
घात न लगा दे.
3. मां
आंचल तले जिसके
नव-सर्जन है,
प्रेम जिसमें
निश्छल है.
हंसी-खुशी-अपनत्व
और जीवन के हर
सुख-दुःख में
जो सम्बल है.
जग में जिसका अस्तित्व
सर्वस्व है
ईश्वर की वो
अनमोल कृति
ही मां है...
4. ममता की प्यासी आँखें
जब से छोड़ गयी है मां!
तब से
टुकुर-टुकुर निहारती हैं
हर आने जाने वाले को
ममता की प्यासी आंखें.
जब भी कोई मां!
गोद में लिए निकलती है
अपने लाल को
तब देख उन्हें
अश्रुओं से तर हो जाती हैं
ममता की प्यासी आंखें.
इन प्यासी आंखों में बसी है
एक ही सूरत
‘मां’ की.
किन्तु ये नहीं जानती है
कौन है?
कहां है इनकी मां?
क्योंकि!
खोली हैं जब से
उसने अपनी नन्हीं आंखें
तब से
खड़ा पाया है खुद
अनाथालय के उसी झरोखें में
जहां भटकती हैं,
अश्रुओं से तर रहती हैं
ऐसी अनगिनत
ममता की प्यासी आंखें!!!
सम्पर्कः द्वारा धर्मवीर जी सोनी,
जुगनू टेलर्स, सदर बाजार, जैतारण (जिला-पाली) राजस्थान, पिन-306302
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मैं मां बन गई!
डॉ. सुचिन्ता कुमारी ‘आनन्द’
मां!
मैं मां बन गई
जब मिला प्रेम का अनंत सौभाग (सौभाग्य)
और खिला गोद में पुलकित भाग (भाग्य)
तब समझ आई ये बात..
तुमने दी मुझे जीवन की सौगात.
मां!
मैं मां बन गई.
जब आंचल से बही आज श्वेत धार,
नए कोंपल को मिल गया उसका आधार,
तब समझ आई ये बात,
दिया तुमने मुझे स्वछन्द
अमृतरूपी संसार..
मां!
मैं मां बन गई.
जब नन्हे हाथों का छुअन,
हृद्धय में भरता अद्भुत स्पन्दन,
नित किलकारी और क्रन्दन,
जीवन में हर्ष का गुंजन,
तब समझ आई ये बात...
सदैव तेरी पलकों के ओट
क्यों करते थे उल्लास का अभिनंदन.
मां!
मैं मां बन गई.
जब हर परिस्थिति में डटकर
रही बनकर उसकी ढाल,
प्यार, स्नेह, ममता को कर
न्यौछावर हुई निहाल,
तब समझ आई ये बात...
सदैव स्वयं को सूना रखकर
अगाध प्रेम को क्यों रखा था संभाल..
मां!
मैं मां बन गई.
जब गलतियों को क्षमा,
नादानी को माफी देना सीखा,
स्वयं रुदनकर, नित पौधे को
अनुभव से सींचा,
तब समझ आई ये बात...
तेरी चंचल आंखों में क्यों
अनायास आती लालिमा की रेखा...
मां!
मैं मां बन गई.
जब बढ़ा या मेरा मान-अभिमान,
गौरव दिया वंश को,
निढाल हुई मैं अंक में
लेकर अपने अंश को,
तब समझ आई ये बात...
क्यों रो पड़ी थी तुम मेरी
उपलब्धि पर भरकर अंक को..
मां!
मैं मां बन गई.
आज हृदय से नत मस्तक
करूं तुम्हें प्रणाम!
देह का कण कण समर्पित तेरे नाम
मां तुझे सलाम!
मां तुझे सलाम!
सम्पर्कः पटेल नगर, रोड नम्बर-8
निट के सामने, हटिया रांची (झारखण्ड) पिन-834003
ईमेल-suchinta1608@gmail-com
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मां प्रेरणा देती है
सीमा शाहजी
रसोई में चूल्हे पर
रोटियां सेंकती
मेरी मां का
लाल लाल चेहरा
मुझे साहस
मेहनत, और
विश्वास देता है.
अंधेरों में
टिमटिमाती ढिबरियों में
मेरी मां की
चमकती दो आंखें
टपरियों (झोंपड़ी) में
आने वाले
तूफानों के
आघात व्यवघात से
भयमुक्त होने का
मुझे आश्वासन देती हैं.
कुत्ते भौंकते हैं
बिल्लियां लड़ती हैं
ताले टूटते हैं
चीखें हवाओं में तैरती हैं
नदियां लाल होती हैं
आकाश फटता है
धरती रोती है
मेरी मां के चौकन्ने कान
हरदम मुझे चौकस
कर देते हैं.
हृदय के अन्तःस्थल पर
मेरे बचपन के डर को
जब वह
कस कर दबोच लेती है
स्नेह का बहता अमृत
एक पुष्ट होता संस्कार
मुझे चमकते भविष्य का
आभास देता है
परिवार के किनारों को
सुघड़ता से संवारते
मेरी मां के सधे हुये
ठोस हाथ
उसकी कसी हुई मुट्ठियां
उत्ताल तरंगों में
कुछ न कुछ
करने की तमन्ना
मुझे विराट सत्य से
स्थापित होने के
तादात्म्य को
सायास देते हैं
प्रेरणा
अद्भुत प्रेरणा!!
सम्पर्कः 325, महात्मा गांधी मार्ग, थांदला
जिला-झाबुआ (म.प्र.) 257777
ईमेलः seemashahji07@gmail-com
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ममता बनर्जी
मदर्स डे
मां आज ‘मदर्स डे’ है,
चलो आज तुम्हें मन्दिर लेकर चलता हूं...
अरे! तुम्हें तो तेज बुखार है!
अभी डॉक्टर बुलाता हूं मैं.
तुम तब तक चुपचाप यूं ही लेटी रहो.
मां, आंखें खोलो...?
आंखें खोलो न मां...
अपनी आंखें क्यों नहीं खोल रही हो तुम?
मां, पानी पियो न दो घूंट.
मां...मां...मत जाओ मुझे छोड़ कर मां.
मां...मां...मां...मां...!!
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ना जाने कब
अनिता सिंह राज
आहिस्ता आहिस्ता
ना जाने कब
एक ख्वाब
मेरी पलकों पर छाया
और चुपके से
दिल के आंगन में
उतर आया
धड़कन ने हौले से
जब दिल पर दस्तक दी
तो बन्द आंखों में
एक अक्स उभर आया
सुबह हुई, आंखें खुलीं
तो वो ख्वाब
हकीकत में नजर आया
जिसके अहसास से
हर सुबह
खुशबुओं से भर उठी
हर शाम
मदहोशी में खो गई
आहिस्ता आहिस्ता
ना जाने कब
वो ख्वाब
मेरा हमसाया हो गया
मेरी जिन्दगी में प्यार भरा
नजराना हो गया....
आहिस्ता आहिस्ता...
सम्पर्कः जमशेदपुर, (झारखण्ड)
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मां के हाथ
मोना पाल
जो रहते हरदम साथ हैं वो मेरी मां के हाथ हैं
जो करते दुआओं की बरसात दिन-रात हैं,
वो मेरी मां के हाथ हैं
जो सुख-दुःख की हर घड़ी में,
हिम्मत बन देते साथ हैं
वो मेरी मां के हाथ हैं
मेरी हर गल्ती को जो क्षमा कर,
करते प्यार की बरसात हैं,
वो मेरी मां के हाथ हैं
जिनको दिखते हैं, उन्हें कद्र नहीं,
जब किसी को दिख जायें,
उनके लिये ये जन्मों-जन्मों की सौगात हैं,
वो मेरी मां के हाथ हैं
भगवान ने तो केवल हमें जन्म दिया
पर जो जीवन में हमें निरन्तर चलना सिखाते,
वो मेरी मां के हाथ हैं.
वैसे तो हमारा भाग्य विधाता भगवान है,
पर अपनी सन्तान को
संघर्षों से जूझ कर
जो फर्श से अर्श पर बिठाते,
वो मेरी मां के हाथ हैं.
भगवान को मैंने देखा नहीं,
ना ही भगवान के हाथ को देखा है
मैं कितनी किस्मत वाली हूं,
मेरे हाथ में मां की रेखा है,
मां तो एक फरिश्ता है,
इसके जैसा ना कोई रिश्ता है,
भगवान भी जिसे पाने के लिये,
खुद धरती पर आते हैं,
वो मेरी मां के हाथ हैं.
सम्पर्कः एसिस्टैंट लाइब्रेरियन, ए.सी. जोशी लाइब्रेरी
पंजाब यूनीवर्सिटी, चण्डीगढ़
House No: 1733, Sector:&33&D, Chandigarh
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व्यंग्यिकाएं
अविनाश ‘ब्यौहार’
1. किस्मत
वे,
अपने क्षेत्र में
छा गये!
चपलूसी की
बदौलत मंत्री
पद पा गये!
उनकी किस्मत
जग गई!
किसी ने
कटाक्ष किया-
अन्धे के हांथ
बटेर लग गई!!
2. कथनी-करनी
नेता जी
स्वदेशी चीजें
अपनाने को
जनता से
कहते हैं!
और खुद
साल में
छः महीने
विदेशी दौरे
पर रहते हैं!
मैंने कहा-
यह तो
अन्धेर है!
आधा तीतर
आधा बटेर है!!
3. चमचागिरी
वे पहाड़
क्या ठेलेंगे
उनमें राई
बराबर भी
नहीं है बूता!
लेकिन,
चमचागिरी की
बदौलत उन्हें
नेता जी से
वरदान में मिला
चांदी का जूता!!
4. संकट
एक आदमी
आधी रात को
जरूरी काम से
कहीं जा रहा था!
सामने से
पुलिस का अमला
आ रहा था!!
चौराहे पर
थानेदार ने
उसे रोका!
पुलसिया अंदाज
में उसे टोका!!
इतनी रात गये
कहां जा रहा है!
क्या चोरी,
डकैती,
राहजनी की योजना
बना रहा है!!
तो वर्दी के रौब
और पुलिस के
खौफ से वह
आदमी थर-थर
कांपने लगा!
और उस
संकट से
उबरने के लिये
वह मन ही मन
हनुमान चालीसा
बांधने लगा!!
संपर्कः 86, रॉयल एस्टेट कालोनी, माढ़ोताल, कटंगी रोड, जबलपुर-482002
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याद
शगुन अग्रवाल
बारिश के पड़ते ही जैसे
फूट पड़ती है धरती में
छुपी सोंधी खुशबू
जैसे बस जाती है
भुनते हुए आटे की महक,
घर के हर कोने में
जैसे भर देती है आह्लाद से
सूने बंजर मन को
खुश होते, मचलते बच्चे की किलकारी
जैसे सज जाती है दुल्हन
सपनों के सजीलेपन से
मिलती है राहत कॉफी के पहले घूंट से
सर्दी और थकन से ठिठुराये शरीर को
गर्मी से झुलसे तन-मन को
जैसे हहरा देता है
सड़क किनारे लगा कोई दरख्त
वैसे ही तुम्हारी याद कभी खुशबू,
कभी सपना कभी बादल
कभी किलकारी तो कभी दरख्त
कभी इन्द्रधनुष बनकर
मेरे बदरंग होते, बुझते, झुलसते
मन पर बिखेर देती है तमाम रंग,
और आवेगों के नर्म, गुनगुने एहसास...
साथ
कभी कभी किसी के साथ
हम इतने सहज होते हैं
जितना सहज होता है
पानी का धरती में समा जाना
किरकिरी पड़ने पर
आंख का झपक जाना...
सम्पर्कः (असोसिएट प्रोफेसर)
5 अनुपम अपार्टमेंट, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली-110096
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