कलम छूट गई, कहानी बनती रही / प्रियदर्शन / रचना समय - मार्च 2016 / कहानी विशेषांक 2

SHARE:

रचना समय - मार्च 2016 / कहानी विशेषांक 2 प्रियदर्शन कलम छूट गई, कहानी बनती रही किताबों के अतीत और भविष्य को लेकर कुछ साल पहले आई किताब...

रचना समय - मार्च 2016 / कहानी विशेषांक 2

प्रियदर्शन

कलम छूट गई, कहानी बनती रही

किताबों के अतीत और भविष्य को लेकर कुछ साल पहले आई किताब ‘दिस इज़ नॉट दि एंड ऑफ द बुक’ में उपन्यासकार उंबेर्तो इको पटकथाकार और लेखक जां क्लाद केरिअर से अपनी उस मुश्किल का ज़िक्र करते हैं जो कंप्यूटर पर लेखन की वजह से पैदा हुई है। वे बताते हैं कि वे अपने उपन्यासों के कई ड्राफ्ट करते रहे हैं और हर ड्राफ्ट के बाद कृतियां कुछ और निखर कर आती रही हैं। वे कहते हैं कि कंप्यूटर पर लेखन ने यह सुविधा खत्म कर दी है। अब उन्हें पता ही नहीं चलता कि उनके कितने ड्राफ़्ट हो रहे हैं। हो सकता है, वे और ज्यादा होते हों, और उनमें कृति की संपूर्णता का पता नहीं चलता। जवाब में जां क्लाद केरियर बताते हैं कि वे अपने पन्नों को आमने-सामने रखकर अपनी पटकथाओं में पंक्तियों का संतुलन तौलते रहे हैं। यह सहूलियत कंप्यूटर ने खत्म कर दी है।

दो लेखकों के बीच की इस बातचीत से उस दुविधा का कुछ सुराग मिलता है जो तकनीक ने लेखकों के सामने पैदा की है। वे अपनी कृतियों के शिल्प और विन्यास की स्पष्टता को लेकर असमंजस में रह जाते हैं। कागज पर कलम से लिखने का पुराना अभ्यास इतना सधा हुआ है कि कंप्यूटर बहुत सारे मामलों में कागज की नकल होने के बावजूद अलग सा लगता है। उसमें किसी भी शब्द को मिटा कर दूसरा शब्द लिखने की सुविधा भी लेखक को मंज़ूर नहीं है।

लेकिन क्या एक लेखक के लिए वाकई कागज और कंप्यूटर की स्क्रीन इतनी दूर की चीज़ें हैं? यहीं किताब इस बात की ओर भी हमारा ध्यान खींचती है कि दरअसल लिखने में बाएं से दाहिने चलने की जो परंपरा है, उसी ने हमारी कंप्यूटर स्क्रीन भी बनाई है और उसी के अनुशासन में हमारी फिल्मों के दृश्य भी रचे जाते हैं। यह भले अनायास हो, लेकिन बाएं से दाहिने जाने के इस अभ्यास ने हमारी उंगलियों और हमारी आंखों को अलग ढंग से ढाला है। जिन लिपियों को दाहिने से बाएं लिखा जाता है, उनके मामले में

स्क्रीन और सिनेमा के दृश्यों में भी ठीक उल्टा होता है। ईरानी सिनेमा इसकी एक मिसाल है।

बहरहाल, बात रचनात्मक लेखन पर केंद्रित रहे। यह अक्सर जैसे मान लिया जाता है कि रचनात्मक लेखन सिर्फ़ कलम की चीज़ है। करीब 30 बरस पहले जब रांची के रेडियो नाटककार डॉ सिद्धनाथ कुमार ने एक कार्यक्रम में यह बताया था कि वे अपने नाटक या अपनी कविताएं सीधे टाइपराइटर पर लिखते हैं तो यह हमें अचरज में डालने वाली बात लगी थी? आखिर कोई लेखक सीधे कलम और कागज़ के अलावा किसी और माध्यम से कैसे लिख सकता है? बरसों बाद किसी ने बताया कि अशोक वाजपेयी भी सीधे टाइपराइटर पर लिखते हैं।

बहरहाल, यह 1996 का साल था जब मैंने लिखने के लिए कंप्यूटर पर हाथ आज़माया। ‘जनसत्ता’ में सहायक संपादक के तौर पर काम करते हुए मैंने वहीं कंप्यूटर पर टाइपिंग सीखी और शुरुआत संपादकीय लिखने से की। उस शुरुआती दौर की एक पीड़ा साझा कर सकता हूं। अभ्यास के उस दौर में कीबोर्ड पर अक्षरों की जगह खोजते हुए अक्सर विचार प्रक्रिया टूट जाती थी। मुझे रुक कर याद करना पड़ता था कि मैं क्या लिखना चाहता था। लेकिन एक बार जब यह बाधा दूर हो गई, जब अंगुलियों ने अपने अभ्यास से जान लिया कि कौन सा शब्द कैसे लिखा जाएगा तो लिखने की प्रक्रिया मेरे लिए बहुत आसान हो गई।

यहां एक छोटा सा विषयांतर उचित लग रहा है। मैं खूब लिखता रहा हूं। तरह-तरह से लिखता रहा हूं। सबसे पहले मैं पंक्तियों के हिसाब से लिखता था- यानी डेढ़ सौ पंक्तियों या ढाई सौ पंक्तियों या 300 पंक्तियों के लेख। इसके बाद मैंने पन्नों के हिसाब से लिखे। यानी पांच पृष्ठ या छह पृष्ठ या दस पृष्ठ की टिप्पणियां। इसके बाद शब्दों का दौर आया- यानी 750 या हज़ार शब्दों का लेख। इसके बाद अखबार में काम करते हुए कॉलम में लिखना सीखा- यानी दो कॉलम, तीन कॉलम या चार कॉलम की खबर। जब रांची एक्सप्रेस में संपादकीय लिखने का मौका मिला, तो पहली बार सेंटीमीटर के हिसाब से लिखा। संपादकीय की पूरी जगह ऊपर से नीचे तक 49 सेंटीमीटर की होती थी। हम एक या दो या तीन संपादकीयों के हिसाब से लिखते थे कि 49 सेंटीमीटर की एक टिप्पणी होगी या 24-25 सेंटीमीटर की दो टिप्पणियां या फिर 17-17 और 15 सेंटीमीटर की तीन टिप्पणियां।

जब कंप्यूटर आया तो फिर मैंने कैरेक्टर्स के हिसाब से लिखना शुरू किया। कैरेक्टर- यानी कंप्यूटर के कीबोर्ड पर एक पंच- इसे एक तरह से वर्ण के हिसाब से भी लिखना कह सकते हैं। उन दिनों जनसत्ता के संपादकीय चार हज़ार से पांच हज़ार कैरेक्टर के हुआ करते थे। लेख 9000 कैरेक्टर का होता था। फिर वे दिन भी आए जब मैंने सेकेंड्स के हिसाब से लिखा- टीवी के लिए लिखते हुए 90 सेकेंड की स्टोरी या आधे घंटे की स्कि्रप्ट।

यह विस्तृत चर्चा बस यह समझाने के लिए कि लेखन की जो ढेर सारी प्रविधियाँ इन तमाम वर्षों में विकसित हुई हैं, उन सबसे अपने परिचय के बावजूद बहुत विश्वासपूर्वक यह कह पाना मेरे लिए मुश्किल है कि इन तमाम प्रविधियों का मेरे लेखन पर क्या असर पड़ा है। यह सच है कि यह फ़र्क सिर्फ प्रविधियों का नहीं रहा है, मूलत: उन माध्यमों का है जो अपनी-अपनी शर्तों से मेरे लेखन को बदलती रही हैं। इसके अलावा एक ही माध्यम के भीतर उसके अलग-अलग प्रारूपों ने भी लेखन में फर्क पैदा किया है। जैसे अखबार के लिए खबरें, विश्लेषण, संपादकीय या समीक्षाएं लिखते हुए, या फिर राजनीति, फिल्म, अर्थनीति या क्रिकेट पर लिखते हुए मेरी भाषा भी बदलती रही है और उसका विन्यास भी एक-दूसरे से काफ़ी भिन्न रहा है। इसी तरह टेलीविजन में 30 सेकेंड के पैकेज की लेखन प्रक्रिया आधे घंटे की डॉक्युमेंटरी की लेखन प्रक्रिया से कतई भिन्न रहा करती है।

मगर असली सवाल यह है कि जब मैं रचनात्मक लेखन की दुनिया में आता हूं- जब कविता या कहानी लिखने की कोशिश करता हूं तो तकनीक मेरे ऊपर क्या असर डालती है? क्या कंप्यूटर मेरे लेखन को कुछ बदलता है? इस सवाल का बहुत ठोस जवाब देना संभव नहीं है। बेशक, जब हम लिख रहे होते हैं तो बहुत सारी प्रक्रियाएं चुपचाप हमारे साथ चल रही होती हैं, हमारा मन और लेखन दोनों बदल रही होती हैं। मिसाल के तौर पर मुझे याद है कि मैं आम तौर पर नीली स्याही से लिखा करता था जो कुछ हल्की हुआ करती थी- शायद सुलेखा की। लेकिन अचानक कैमलिन की कुछ चमकती-तीखी नीली स्याही आ गई तो अचानक एक तरह की उत्फुल्लता शुरुआती दिनों में लेखन का हिस्सा बन गई। इसी तरह पहली बार काली स्याही का इस्तेमाल करते हुए एक अलग पुलक सी हुई। क्या इस उत्फुल्लता या पुलक या इसके बाद के दौर की उदासीनता का कुछ असर लेखन पर पड़ता होगा? उजले कागज पर सावधानी से उकेरे जाते नीले या काले अक्षर सोचने की प्रक्रिया को भी कुछ सावधान करते- कविता लिखते हुए एक-एक शब्द को मंथर गति से गढ़ने का कुछ प्रिय लगता सा काम चलता। यह तेजी से पत्रकारिता के लिए की जाने वाली कलम घसीट लिखाई से अलग हुआ करता और एक तरह का तोष देता। कहानी लिखते हुए भी घटनाओं के वर्णन की एक मंथर गति होती जिसमें एक-एक दृश्य को सहेज कर रचने-रखने की प्रक्रिया चुपचाप चलती रहती थी।

बेशक, कंप्यूटर ने मेरे लिए इस रचनात्मकता को एक रफ़्तार और सहजता दी। मेरे लिखने की रफ़्तार बहुत तेज़ है। शायद इसलिए कि सोचने की प्रक्रिया जैसे किसी लहर की तरह होती है। एक कड़ी दूसरी कड़ी से इस तरह जुड़ी होती है कि उसे जब हम लिखने बैठते हैं तो बीच की कुछ कड़ियां टूट जाती हैं। लेकिन कंप्यूटर ने हाथों को वह रफ़्तार दी कि अचानक अपनी भाषा की मैंने एक नई लय हासिल की। जिसे भाषा का प्रवाह कहते हैं उसे मेरे लिए कंप्यूटर ने आसान बनाया। अपनी कविताओं और कहानियों को देखते हुए कई बार मैं यह महसूस करता हूं कि शायद कलम से लिखी गई होतीं तो ये कुछ भिन्न रचनाएं होतीं। बेशक, उनमें कोई मौलिक भिन्नता नहीं होती, उनका मूल आस्वाद यही रहता लेकिन शायद कुछ परतें बदल गई होतीं। इसके अलावा कुछ कहानियां लिखने में भी मुझे कंप्यूटर से मदद मिली। मेरी पूरी लेखन-प्रक्रिया- यहां तक कि कहानी लेखन की प्रक्रिया भी- बहुत कुछ स्वत:स्फूर्त रही है। बहुत सुनियोजित-सुविचारित ढंग से मैं नहीं लिखता हूं। ऐसी कम कहानियां हैं जिनका कोई ढांचा पहले से मेरे दिमाग में तय रहा होगा। ‘उसके हिस्से का जादू’ और ‘पेइंग गेस्ट’ जैसी कहानियां भी इसी स्वतःस्फूर्तता का नतीजा रहीं। इनके लेखन में मुझे कंप्यूटर से मदद मिली। मैंने कई किस्तों में ये कहानियां लिखीं। शायद पन्नों पर इस तरह लिखना संभव नहीं होता। चूंकि कंप्यूटर पर एक फाइल थी जिसे अचानक खोज कर बढ़ा देना बहुत आसान था, इसलिए कहानियां बढ़ती रहीं। जब भी वे अटकतीं, मैं छोड़ देता। बाद में किसी दिन अनायास शुरू करता। ‘खोटा सिक्का’ नाम की कहानी भी मैंने इसी तरह लिखी। उसके अंत के लिए तो मुझे महीनों इंतज़ार करना पड़ा।

क्या ये सारी कहानियां वाकई उतनी बिखरी हुई हैं जितने बिखरे हुए ढंग से लिखी गईं? यह शिकायत किसी से नहीं मिली। शायद हम सबके सोचने का, चीज़ों को महसूस करने का, उनकी कल्पना करने का ढंग सरल रैखिक नहीं होता। उसमें कई तरह की वक्रताएं होती हैं। हम बिल्कुल अंधेरे बीहड़ में उतर कर रास्ता खोजते हैं। इस बिखराव की भी अपनी एक संगति होती है। बहुत सारे लेखकों की तरह-तरह की पर्चियों पर, इघर-उधर पड़े कागजों पर लिखने की जो दास्तानें आती हैं, वे भी शायद इसी बिखराव के बीच की संगति की ओर इशारा करती हैं। कंप्यूटर ने मेरा यह काम आसान बनाया। मेरे भीतर के बिखराव शायद गुम हो जाते, कई कहानियां अधूरी छूट जातीं, लेकिन वे बनी रहीं, बची रहीं और एक दिन मुकम्मिल हो गईं तो इसलिए भी कि मेरे पास एक कंप्यूटर था।

हो सकता है, इसमें कोई अतिशयोक्ति हो। नई तकनीक के आगे मेरा समर्पण हो। मेरे अपने अभ्यास से निकला तर्क हो। संभव है, मैं अब भी कलम से लिख रहा होता तो भी ऐसा ही अच्छा या बुरा लेखक होता। लेकिन मैं पिछले 20 बरस से कंप्यूटर पर ही लिख रहा हूं। कहानी-कविता और उपन्यास तक मैंने सीधे इस पर लिखे हैं। मुझे नहीं मालूम कि तकनीक ने मेरे लेखन में कोई गुणात्मक प्रभाव डाला है या नहीं, लेकिन इसमें शक नहीं कि मैं जैसा चाहता था, ठीक वैसा ही लेखक हूं।

--

संपर्क:

ई-४, जनसत्ता, सेक्टर ९,

वसुंधरा, गाजियाबाद,

उत्तर प्रदेश

मो. - ०९८११९०१३९८

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कलम छूट गई, कहानी बनती रही / प्रियदर्शन / रचना समय - मार्च 2016 / कहानी विशेषांक 2
कलम छूट गई, कहानी बनती रही / प्रियदर्शन / रचना समय - मार्च 2016 / कहानी विशेषांक 2
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgjN32yr8e6K7UGN7uI3LI_csyMfLXYmtC8gKCXPKC0U5xuA0j_37Ccvw3hqTjna-j0CV7ugKQXTj9WERSIqkUTDLQnRP1DmO0t_utOKoSgfwBYTUvMkT5b99SgoaabUpHUtcDE/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgjN32yr8e6K7UGN7uI3LI_csyMfLXYmtC8gKCXPKC0U5xuA0j_37Ccvw3hqTjna-j0CV7ugKQXTj9WERSIqkUTDLQnRP1DmO0t_utOKoSgfwBYTUvMkT5b99SgoaabUpHUtcDE/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/06/2016-2_11.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/06/2016-2_11.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content