संस्कृति सिंहस्थ महाकुंभ 2016 उज्जैन (संक्षिप्त विवेचन) डॉ . प्रभु चौधरी भा रत के हृदय स्थल मध्यप्रदेश में क्षिप्रा नदी के तट पर उज्जै...
संस्कृति
सिंहस्थ महाकुंभ 2016 उज्जैन
(संक्षिप्त विवेचन)
डॉ. प्रभु चौधरी
भारत के हृदय स्थल मध्यप्रदेश में क्षिप्रा नदी के तट पर उज्जैन (विजय की नगरी) स्थित है. यह भारत के पवित्रतम शहरों तथा मोक्ष प्राप्त करने के लिए पौराणिक मान्यता प्राप्त सात पवित्रा या सप्त पुरियों (मोक्ष की नगरी) में से एक माना जाता है. मोक्षदायिनी अन्य पुरियां (नगर) है- अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी (वाराणसी), कांचीपुरम् और द्वारका. पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव ने उज्जैन में ही दानव त्रिपुर का वध किया था. 22 अप्रैल से 21 मई 2016 के बीच उज्जैन के प्राचीन और ऐतिहासिक शहर में कुंभ आयोजन शुरू होंगे. सिंहस्थ कुंभ उज्जैन का महान स्नान पर्व है. यह पर्व बारह वर्षों के अंतराल से मनाया जाता है. जब बृहस्पति सिंह राशि में होता है, उस समय सिंहस्थ कुंभ का पर्व मनाया जाता है.
पवित्रा क्षिप्रा नदी में पुण्य स्नान का महात्म्य चैत्र मास की पूर्णिमा से प्रारंभ हो जाता है और वैशाख मास की पूर्णिमा के अंतिम स्नान तक भिन्न-भिन्न तिथियों में सम्पन्न होता है. उज्जैन के प्रसिद्ध कुंभ महापर्व के लिए पारम्परिक रूप से दस योग महत्वपूर्ण माने जाते हैं.
पूरे देश में चार स्थानों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है- प्रयाग, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन. उज्जैन में लगने वाले कुंभ मेलों को सिंहस्थ के नाम से पुकारा जाता है. जब मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरू आ जाता है, तब उस समय उज्जैन में महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे सिंहस्थ के नाम से देशभर में कहा जाता है.
सिंहस्थ महाकुंभ के आयोजन की प्राचीन परम्परा है. इसके आयोजन के विषय में अनेक कथाएं प्रचलित हैं. समुद्र मंथन में प्राप्त अमृत की बूंदें छलकते समय जिन राशियों में सूर्य, चंद्र, गुरू की स्थिति के विशिष्ट योग होते हैं, वहीं कुंभ पर्व का इन राशियों में गृहों के संयोग पर ही आयोजन किया जाता है. अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरू और चंद्रमा के विशेष प्रयत्न रहे थे. इसी कारण इन ग्रहों का विशेष महत्व रहता है और इन्हीं गृहों की उन विशिष्ट स्थितियों में कुंभ का पर्व मनाने की परंपरा चली आ
रही है.
प्रत्येक स्थान पर बाहर वर्षों का क्रम एक समान है अमृत-कुंभ के लिए स्वर्ग की गणना से बारह दिन तक संघर्ष हुआ था जो धरती के लोगों के लिए बारह वर्ष होते हैं. उज्जैन के पर्व के लिए सिंह राशि पर बृहस्पति, मेष में सूर्य, तुला राशि का चंद्र आदि ग्रह योग माने जाते हैं.
महान सांस्कृतिक परम्पराओं के साथ-साथ उज्जैन की गणना पवित्रा सप्तपुरियों में की जाती है. महाकालेश्वर मंदिर और पाावन क्षिप्रा ने युगों-युगों से असंख्य लोगों को उज्जैन यात्रा के लिए आकर्षित किया. सिंहस्थ महापर्व पर लाखों की संख्या में तीर्थ यात्री और भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों के साधु-संत पूरे भारत का एक संक्षिप्त रूप उज्जैन में स्थापित कर देते हैं, जिसे देखकर सहज ही यह जाना जा सकता है कि यह महान राष्ट्र किन अदृश्य प्रेरणाओं की शक्ति से एक सूत्र में बंधा हुआ है.
उज्जैन धार्मिक आस्थाओं और परंपरा के सम्मेलन का एक अनूठा शहर जो कि न केवल अपितु समस्त संसार की धार्मिक आस्थाओं का केन्द्र कहा जा सकता है. यह वह पवित्र नगरी है जहां 84 महादेव, सात सागर, 9 नारायण, शक्तिपीठ के साथ विश्व में 12 ज्योतिर्लिंग में से एक राजाधिराज महाकालेश्वर विराजमान हैं. यह वह पावन नगरी है जिसमें गीता जैसे महान् ग्रंथ के उद्घोषक श्रीकृष्ण स्वयं शिक्षा लेने आए. अपने पैरों की धूल से पाषाणों को भी जीवित कर देने वाले प्रभु श्रीराम स्वयं अपने पिता का तर्पण करने क्षिप्रा तट पर आए. यही वह स्थान है जो कि रामघाट कहलाता है. इस प्रकार विश्व के एकमात्र राजा जिसने कि संपूर्ण भारतवर्ष के प्रत्येक नागरिक को कर्ज मुक्त दिया. वह महान् शासक विक्रमादित्य उज्जैन की ही पावन भूमि पर जन्म पावन सलिला मुक्तिदायिनी मां क्षिप्रा यही पर प्रवाहित होती है एवं विश्व का सबसे बड़ा महापर्व महाकुंभ/सिंहस्थ मेला विश्व के विभिन्न स्थान में से एक उज्जैन नगर में लगता है. इस नगरी का महात्म्य वर्णन करना उतना ही कठिन है जितना कि आकाश में तारागणों की गिनती करना.
विद्वानों के अनुसार सिंह राशि पर बृहस्पति के होने तथा मेष राशि पर सूर्य के होने पर सिंहस्थ होता है. स्कन्द पुराण के अनुसारः-
सिंह राशि गते जीवे मेष स्थेच दिवाकरे तुला राशि गतश्चन्द्रे स्वाति नक्षत्रा संयुते. सिद्धि योगे समायाते पंचात्मा योग कारका एवं योगे समायाते स्नान दाना दिका क्रिया...
एक दूसरा उदाहरण है-
मेष राशिगते सूर्ये सिंह राश्यां बृहस्पतौ।
अवन्तिकायां भवेत्कुंभः सदा मुक्ति प्रदायकः।।
उज्जैन का सिंहस्थ पर्व में स्नान का विशेष महत्व है, इसका कारण है दस योग जैसे- (1) वैशाख पक्ष (2) शुक्ल पक्ष (3) पूर्णिमा (4) मेष राशि पर सूर्य का होना (5) सिंह राशि पर बृहस्पति का होना (6) चन्द्र का तुला राशि पर होना (7) स्वाति नक्षत्र (8) व्यतिपात योग (9) सोमवार (10) स्थान उज्जैन. श्री देशमुख के अनुसार उज्जैन में सिंहस्थ स्नान के उक्त दस कारण हैं.
विष्णु पुराण, श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार समुद्र मन्थन के समय धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए. देव-दानव के संघर्ष में यह अमृत चार स्थानों पर गिरा- हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन.
उज्जैन का महत्व अन्य तीर्थों से तिलभर अधिक माना जाता है. स्कन्द पुराण के आवन्त्य खण्ड में अवन्ती अर्थात् उज्जैन का विस्तृत वर्णन है. श्री महाकालेश्वर जहां स्थित हैं उस स्थान को महाकाल वन कहते हैं. कुरूक्षेत्र तीनों लोकों में उत्तम कहा जाता है. कुरूक्षेत्र से दस गुना पुण्यमयी काशीपुरी मानी गयी है और काशी से भी दस गुना महाकाल वन है. इस वन में भगवान महाकाल का निवास है. भगवान महाकाल के पीछे रुद्र सरोवर जहां कभी कमल खिलते थे. भगवान महाकाल बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं. दूसरे किनारे पर देवी हरसिद्धि का निवास है. बावन शक्तिपीठों में एक देवी हरसिद्धि है. देवी के ठीक पीछे पतित पावनी क्षिप्रा नदी बहती है. स्कन्ध पुराण के अनुसार वैकुण्ठ में इसका नाम क्षिप्रा है. देवलोक में ज्वरघ्नी यम द्वार में पापघ्नी पाताल में अमृत सम्भवा के नाम से प्रसिद्ध है. यह नदी साक्षात् कामधेनु से प्रकट हुई है और भगवान वराह के शरीर से उत्पन्न हुई है. वैशाख मास में क्षिप्रा नदी में स्नान का विशेष महत्व है. बारह वर्ष में सिंहस्थ पर्व वैशाख मास में ही आता है. उज्जैन मंदिरों की नगरी है.
सिंहस्थ महापर्व धार्मिक व आध्यात्मिक चेतना का महापर्व है. धार्मिक जागृति द्वारा मानवता, त्याग, सेवा, उपकार, प्रेम, सदाचरण, अनुशासन, अहिंसा, सत्संग, भक्ति-भाव अध्ययन-चिंतन परम शक्ति में विश्वास और सन्मार्ग आदि आदर्श गुणों को स्थापित करने वाला पर्व है. हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन की पावन सरिताओं के तट पर कुंभ महापर्व में भारतवासियों की आत्मा, आस्था, विश्वास और संस्कृति का शंखनाद करती है. उज्जैन और नासिक का कुंभ मनाये जाने के कारण सिंहस्थ कहलाते हैं. बारह वर्ष बाद फिर आने वाले कुंभ के माध्यम से उज्जैन के क्षिप्रा तट पर एक लघु भारत उभरता है.
‘कुंभा नभति नान्यथा’
विशिष्ट योग में सूर्य, चन्द्र एवं गुरू की स्थिति से हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में ज्योतिष के मान से ग्रहों की स्थिति के अनुसार कुंभ पर्व माने जाने का उल्लेख विष्णु पुराण में भी मिलता है. उज्जैन में सिंहस्थ महापर्व के संदर्भ में सिंहस्थ महात्म्य में इस प्रकार का प्रमाण मिलता है.
कुशस्थली तीर्थवरम देवानामपिदुर्लभ में
माधवे धवले पक्षे सिंहे जीवेत्वजे रवौं
तुला राशौ निशाना थे स्वतिभे पूर्णिमा
तीर्थों व्यतिपाते तु संप्राप्ते चन्द्रवासरसमयतें
एतेन दश महायोगा+स्नानामुक्तिः फलप्रदों
(1) अवन्तिका नगरी (2) वैशाख मास (3) शुक्ल पक्ष (4) सिंह राशि में गुरू (5) तुला राशि में चन्द्र (6) स्वाति नक्षत्र (7) पूर्णिमा तिथि (8) व्यातिपात (9) सोमवार आदि ये दस पुण्य प्रद योग होने पर क्षिप्रा नदी में सिंहस्थ पर्व में स्नान करने पर मोक्ष प्राप्ति होती है.
गऊघाट से लेकर मंगलनाथ तक विशाल घाटों की श्रृंखला, अनेक नये सेतु, रामघाट पर लाल पत्थर, नई-नई सड़कें, चौड़े मार्ग, प्रकाश की उत्तम व्यवस्था, क्षिप्रा-नर्मदा लिंक योजना, मंगलनाथ, महाकालेश्वर, रुद्र सागर, त्रिवेणी आदि का जीर्णोद्धार आदि अनेक योजनाओं पर कार्य हुए हैं और हो रहे हैं. केन्द्र एवं मध्यप्रदेश शासन ने दिल खोलकर पैसा खर्च किया है. उज्जैन का यह सिंहस्थ पर्व आश्चर्यजनक एवं अद्भुत आयोजन है.
सम्पर्कः 15, स्टेशन मार्ग, महिदपुर रोड, उज्जैन (म.प्र.)
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