तीन जोड़ी आँखें / कहानी / लक्ष्मी यादव

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  उदास और सहमी हवाओं ने घर में एक बार फिर डेरा डाल दिया। घर में सन्नाटा है, तूफ़ान से मची तबाही के मंज़र बीती रात के बाद बासी होकर सुस्ताने ल...

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उदास और सहमी हवाओं ने घर में एक बार फिर डेरा डाल दिया। घर में सन्नाटा है, तूफ़ान से मची तबाही के मंज़र बीती रात के बाद बासी होकर सुस्ताने लगे हैं ये तूफ़ान किसी प्राकृतिक आपदा का हिस्सा नहीं था ये तो मानवीय आपदा का हिस्सा था जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान तो उन तीन जोड़ी आँखों का हुआ था जो रात से अब दोपहरी तक रो रोकर पथरा गयी थी , किसी डरावनी आशंका की छाप लिए तीन जोड़ी आँखें खिड़की झरोखों पर गड़ी हुई उम्मीद के एक टुकड़े को तलाश रही हैं। रात भर जागी आँखें, पलकें झपकती तो हैं लेकिन नींद का अंश मात्र भी पलक के किसी मुहाने को छूकर नहीं गुज़रता, अंजाना डर पल भर भी सुस्ताने नहीं देता। तीनों दिलों में कुछ सवाल धड़क रहे हैं .....माँ कहाँ होगी ? किस हाल में होगी ? रात को टूटी चूड़ियों से घायल उसके हाथों में किसी ने मरहम लगाया होगा या नहीं ? माँ वापस आएगी ? या फिर कही ....? कई सवालों से घिरी आँखें एक दूसरे की पुतलियों में झांककर आशा की बूँद खोजने लगती हैं और अपने मन चाहे प्रतिउत्तर न मिलने पर एक दूसरे से आँखें चुराने लगती हैं।

14 साल की बड़ी वाली कनिका की आँख से फिर एक बूंद बरसी और उसकी अंगुलिओं के पोरों पर गिर पड़ी, बूंद के नमक से घायल अंगुली सिहर उठी... उसे याद आया अभी अभी ही तो वो माँ के कमरे से उसकी टूटी चूड़ियाँ बुहार कर आई थी शायद माँ की उन लाल हरी चूड़ियों का कोई नन्हा टुकड़ा होगा जो ममता वश कनिका की अँगुलियों के पोरों में गड़ गया था और अब उसका अहसास उसे हुआ था। कनिका ने हाथ पानी से धोया और फिर आकर अपनी आंखें इंतजार करती दो जोड़ी आँखों में शामिल कर दी। 7 साल का बबलू इस बार अपने सब्र के बांध को टूटने से रोक नहीं पाया। रात और सुबह की तरह अब फिर से बबलू बिलख कर रो पड़ा,कनिका ने बबलू को सीने से लगा लिया जब बबलू की सिसकी बंद हुई तो 5 साल की पूर्वी ने रोना शुरू कर दिया कनिका ने उसको भी बड़ी मुश्किल से चुप कराया। बबलू ने इस बार आँखों से नहीं बल्कि कहकर साफ़ साफ़ अपनी दीदी से पूछ ही लिया .... बबलू – दीदी, माँ कब आएगी ? सुबह से दोपहर हो गयी अब शाम होने को आई,आखिर माँ आती क्यूँ नहीं? कहां गयी है माँ ?

भाई के सवालों पर पूर्वी के चेहरे के भाव ऐसे थे जैसे वो खुद भी कनिका से यही सवाल पूछ रही हो।

कनिका भाई के सवालों का क्या जवाब देती उसका मन तो खुद ही इन सवाल में खोया था और जवाब तो कही ढूँढने से भी नहीं मिल रहा था। जवाब की उम्मीद में तकते बबलू और पूर्वी को कनिका ने कह दिया कि “माँ बस आती होगी,गुस्से में बहुत दूर तक चली गयी थी न! बबलू तुमको तो याद है हम तुम उनके पीछे कितनी दूर तक गये थे, उनको मनाने .. बात बीच में काटते हुए बबलू बोला- लेकिन दीदी माँ ने तुमको और मुझे पत्थर दिखाकर क्यूँ भगाया ? अपने साथ चलने क्यूँ नहीं दिया ?अगर हम साथ जाते तो उनको मनाकर ले आते न ?मै उनको शक्तिमान के गंगाधर की एक्टिंग करके दिखाता और वो हंस देती अगर हंस देती तो मान जाती न ? हमारे साथ आ जाती माँ या हमको अपने साथ ले जाती, अब कहाँ जाकर ढूँढूं?

कनिका – माँ बहुत गुस्से में थी इसलिए उसने हमको पत्थर दिखाया और तेरे गंगाधर बनने से भी माँ नहीं हंसती पागल। बबलू – लेकिन दीदी, माँ तो पापा से गुस्सा थी न तो हमको क्यूँ पत्थर दिखाया ,और रोज़ ही तो मेरे गंगाधर बनने पर जोर से हंस देती थी तो फिर आज क्या हो जाता। तुम बुद्दू हो दीदी तुम कुछ नहीं जानती। सब मेरी गलती है मुझे तुम्हारी बात सुननी ही नहीं चाहिए थी अगर मैं आज माँ को हँसा लेता न, तो माँ का गुस्सा दूर हो जाता और वो मेरे पास होती तुम गन्दी हो दीदी .....इतना कहकर बबलू फिर रोने लगता है... और पूर्वी भी ...

कनिका जानती थी कि इसबार माँ का गुस्सा पिछली कई बार के गुस्से से अधिक था इस बार हुई माँ पापा की लड़ाई भी हर बार की लड़ाई से बड़ी थी ...... कुछ घंटों पहले सब कुछ कितना अच्छा था कि 24 घंटे के बाद समय का ये रूप होगा। कनिका और उसके भाई बहन आज स्कूल भी नहीं गये थे उसके पिता कुछ देर अपने कमरे में चुपचाप लेटे रहे फिर बिना कुछ खाए पिए कही चले गये थे उन्होंने भी गुस्से में आज अपनी फर्नीचर की दुकान नहीं खोली थी सब मजदूर घर आकर लौट गये थे।। कनिका सोच में डूब गयी ,बीते लम्हों की तहें उसके दिमाग में एक के बाद एक खुलती चली गयी वो सोचने लगी कि कैसे उसके पिता कल ही तो हंस हंस कर माँ से बात कर रहे थे और नए घर में जाने को लेकर माँ पापा दोनों उत्साहित थे माँ के चेहरे और आँखों में तो जैसे नई ख़ुशी चमक रही थी। किसी को क्या मालूम था कि हंसी से गूंजने वाला दिन रात को मातम में बदल जायेगा। .. रात को कनिका के माँ -पापा प्रवीण और ममता में देर से आने के कारण तकरार बढ़ी। वैसे तो हर रोज़ ही कुछ न कुछ होता ही रहता था लेकिन कल जब बात बढ़ी तो घर का बहुत सामान टूटा... लड़ाई की कुछ हदें भी साथ ही में टूट गयी प्रवीण ने ममता को खूब पीटा। ममता ने भी प्रवीण की शर्ट फाड़ दी उनको धक्का दे दिया जब पूर्वी चिल्लाते हुए जाकर माँ से लिपट गयी तो गुस्से में पापा ने उसको भी एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया ...पूर्वी जब चिल्लाकर रोने लगी तो उसके साथ साथ कनिका और बबलू को भी कमरे में बंद कर दिया ..कमरे के दोनों ओर दरवाज़े थे जिसका पिटाई के शोर में बस तीनों भाई बहन आवाजें सुनकर ही आभास कर रहे थे कि बंद दरवाज़े के उस ओर क्या हो रहा होगा एक पिछला दरवाज़ा घर के पिछले हिस्से का निकास द्वार था। तीनों उससे निकल कर आस पास पड़ोसियों से मदद मांगने के लिए हर दरवाज़े पर गये लेकिन रात के 1 बजे किसी ने घर का दरवाज़ा नहीं खोला। बड़े घरों में रहने वाले छोटे मन के लोगों का असली चेहरा तीनों ने कल रात ही देखा पड़ोस की ठाकुराइन और उनके बड़े बेटे और बेटियां जो घर में पले कुत्ते की एक आवाज़ पर उठ जाती थीं आज बबलू और पूर्वी के रोने बिलखने और चिल्लाकर मदद के लिए पुकारने में नहीं उठे थे या शायद सोने का नाटक कर रहे थे। किदवई अंकल के घर में रातभर रतजगा होता था लेकिन जैसे आज कनिका के घर के शोर में उन्होंने कोई लोरी सुनी हो और नींद के आगोश में चले गये हो मेरे इतनी बार बेल बजाने पर भी किसी का कोई जवाब नहीं आया। श्रीवास्तव अंकल को तीनों ने जाने कितनी आवाजें दी लेकिन कोई नहीं आया हम तीनों कान लगाये आंखें बिछाए बस दरवाज़े के सीखचों से देखते रहे की शायद कोई आ जाये, लेकिन जब कोई नहीं आया तो तीनों अपने घर के सामने के मुख्य दरवाज़े पर लोहे के बड़े दरवाज़े के पास आकार खड़े हो गये और बेबस होकर उस तबाही के तूफ़ान के थमने का इंतजार करने लगे। तभी चौकीदार की सीटी में तीनों को एक उम्मीद सुनाई दी और वो उस सीटी की आवाज़ के अपने करीब आने का इंतजार करने लगे। जब चौकीदार अंकल घर की गली में आये तो वो उनसे भी मदद की गुहार लगा सकें। चौकीदार ने तीनों को देख सवाल किया,चौकीदार –अरे तुमलोग घर के बाहर क्यूँ हो बच्चों ?

बबलू – अंकल हमारे माँ पापा लड़ाई कर रहे हैं..प्लीज़ अंकल मेरी माँ को बचा लो पापा उनको मार रहे हैं। बबलू अपनी बात कहते हुए चौकीदार के पैरों से लिपट कर रोने लगा।

चौकीदार – लेकिन तुम्हारे माँ पापा क्यूँ लड़ रहे हैं?

पूर्वी – अंकल वो तो रोज़ रोज़ लड़ते है कभी कभी मारपीट भी होती है लेकिन आज .....कहते हुए पूर्वी रोने लगी कनिका ने उसे चुप कराया

कनिका – अंकल हमने आस पास लोगों को जगाने की कोशिश की लेकिन कोई नहीं आया ..आप प्लीज़ कुछ कीजिये मेरी माँ बीमार रहती है पापा ने बहुत मारा है उनको। माँ –पापा ने घर का सारा सामान बिखेर दिया है। घर की हालत बहुत बुरी हो गयी है और हम अंदर नहीं जा सकते दरवाज़ा बंद है आप कुछ कीजिये न प्लीज़ ...

तीनों की बातों को सुन चौकीदार सोच में पड़ गया और मामले से पल्ला झड़ने के अंदाज़ में बबलू को को खुद से अलग कर दिया और बोला –मैं एक चक्कर लगाकर आता हूं फिर देखता हूं पहले अपनी ड्यूटी कर लूं फिर तुम्हारे माँ पापा से बात करता हूं तुम तींनो यहीं बैठकर हमारा इंतजार करना ...बबलू और पूर्वी के सर पर हाथ फेरकर चौकीदार चला गया। तीनों वापस अपनी जगह पर जाकर बैठ गये और घर के अंदर से रह रह आती माँ पापा की लड़ने की आवाज़ों और मारपीट पर तीनों चौकीदार के आ जाने की राह देखते लेकिन 4 बजे के बाद भी न तो चौकीदार आया न ही उसके जाने के बाद से उसकी है कोई सीटी सुनाई दी थी। तीनों पिछले कमरे में चले गये जहां बंद दरवाज़ा खुल चुका था। माँ पापा के कमरे का दरवाज़ा अंडर से बंद था तीनों ने राहत की साँस ली कि शायद अब सब कुछ ठीक हो गया है तभी माँ पापा एक ही कमरे में है। तीनों की सिसकियाँ रात से जारी थी लेकिन उनपर काबू कर माँ के कमरे के दरवाज़े पर कान लगाकर तीनों खैरियत जानने की कोशिश करने लगे। सब शांत था कोई आवाज़ नहीं थी जब शांति पूर्वी से बर्दाश्त नहीं हुई तो उसने माँ माँ कहकर रोना शुरू कर दिया। बबलू ने दोनों के हाथ उसके मुंह पर रखकर उसकी आवाज़ दबा दी और कहा – पागल हो क्या तुम ...तुम्हारे रोने की आवाज़ से माँ –पापा जाग जायेंगे और फिर लड़ने लगेंगे चुप रहो बिलकुल चुप।

भोले बबलू और पूर्वी को देख कनिका को रोना आ गया और वो सिसक कर रोने लगी तो बबलू दबी आवाज़ में बोला – क्या दीदी तुम भी तुम्हारे मुंह पर भी हाथ रखना पड़ेगा क्या ?कनिका की सिसकियाँ बढ़ गयी और वो अपने कमरे में बिस्तर पर जा गिरी और जोर जोर से रोने लगी और अपने भगवान से मन ही मन पूछने लगी कि क्यूँ उसके माँ पापा यूँ लड़ते हैं ...अपने बच्चों के बचपन के साथ खिलवाड़ करने का उनको किसने हक दे दिया अगर उनको आपस में लड़ना और ऐसे ही जीना था तो क्यूँ तीनों को पैदा किया ....।रहते अकेले और लड़ते उम्र भर।

बबलू और पूर्वी, कनिका को चुप कराने लगे कि तभी ममता ने दरवाज़ा खोला और अपनी बिखरी साड़ी ठीक करने लगी सुबह के 5:30 बजे थे। तीनों बच्चे माँ डर के मारे माँ के पास नहीं आ रहे थे दूर से अपनी माँ को देख रहे थे।

ममता ने साड़ी ठीक की और गेट खोल, घर से बाहर निकल गयी। कनिका माँ के पीछे चल दी साथ में बबलू भी था पूर्वी को कनिका ने डांट घर में ही रोक दिया था।

बहुत दूर तक तेज़ क़दमों से चलती माँ का दोनों बच्चों ने पीछा किया। जब अपने आपे में खोयी ममता ने हफ्ते बबलू की आहट सुन ली तो दोनों को पीछा करने से इशारे से मना किया डांट पीसे डाँटते हुए पत्थर दिखाया तब एक पत्थर बबलू के पास आ गिरा तो दोनों बच्चे वही छिप गये और ममता जाने किस गली में कहाँ गुम हो गयी। बबलू कनिका ने बहुत आगे तक जाकर ढूंढा लेकिन उन्हें माँ कही नहीं दिखी ,दोनों आंसू बहते हुए घर लौट आये।

बहुत देर रोने बिलखने के बाद जब कनिका ने घर की सुध ली तो उससे घर की हालत देखी न गयी माँ के कमरे में आइना टूटा था चूड़ियाँ टूटी हुई बिखरी पड़ी थीं सब सामान बिखरा हुआ कनिका ने घर किया रात का खाना जिसे किसी ने नहीं खाया था उसे फेंका और किचन भी साफ़ किया।

किसी ने न तो रात खाना खाया था न ही आज दिन में दोपहर बीत चुकी थी और कनिका की बनाई खिचड़ी भी कुकर में वैसी ही पड़ी थी। शाम ढले दरवाज़े पर दस्तक हुई ,कनिका ने बड़ी उम्मीद से दरवाज़ा खोला तो देखा सामने प्रवीण था जो नज़रे चुराए सीधा अपने कमरे में चला गया। कनिका चाहकर भी पिता से माँ के बारे में कुछ नहीं पूछ पाई ...दिल से निकली आवाज़ हलक तक आकर ही खामोश हो गयी और होंठ कुछ न कह पाए।

पिता से मन के सवालों के जवाब जानने के इरादे से जब कनिका प्रवीण के लिए कप में चाय लेकर गयी तो पिता से सुनकर की उसकी माँ नानी के घर भी नहीं गयी है ..,कनिका के हाथ में चाय का कप ट्रे में  लड़खड़ाने लगा और चाय की कुछ बूंदे कनिका के खुद को और ट्रे दोनों को सँभालने की पूरी कोशिश के बावजूद भी गिर ही गयीं।

प्रवीण ने खुद को कमरे में बंद कर रखा था। तीनों बच्चे अपने अपने ढंग से भगवान से मिन्नतें कर रहे थे की किसी तरह उनकी माँ वापस आ जाये। बबलू ने अपना शक्तिमान का ड्रेस घर के मंदिर के सामने रख दिया था ..पूर्वी ने अपनी प्यारी गुड़िया सिंड्रेला भगवान की मूरत के पास रख दी थी और दोनों भगवान से कह रहे थे की उनको बस माँ चाहिए और कुछ नहीं ....कनिका ने एक चिट्ठी लिखकर भगवान् के पास रख दी थी ... रात हो चुकी थी घर में उदासी थी सभी खामोश थे कि तभी डोरबेल बजी तीनों बच्चे एक साथ दरवाज़े पर पहुंचे ... दरवाज़ा खुलते ही नानी के साथ माँ को देख बबलू पूर्वी माँ से लिपट गये कनिका के मन की ख़ुशी भी चेहरे पर उतर आई। माँ के हाथ और सर में पट्टी बंधी देख कनिका हैरान थी कि माँ को इतनी सारी चोट कैसे आई।

सास ने दामाद को डाँटते हुए बताया की उनकी बेटी जान देने गयी थी वो तो भला हो उनके घर के किरायेदार का जिसने शाम को घर आते हुए ममता को रेलवे ट्रैक की ओर जाते देखा और पीछा करके इसकी जान बचाई। नानी के आने से घर में उनकी ही आवाज़ गूंज रही थी कभी बेटी -दामाद को डांटने के लिए कभी नातियों को प्यार से पुचकारने के लिए तो कभी ममता दवा समझाने के लिए। रात का खाना भी बच्चों की नानी ने ही बनाया और खाना खिलते हुए बेटी दामाद के झगडे को सुलझाने की कोशिश भी की जो फ़िलहाल के लिए कुछ हद तक कामयाब भी हुई। प्रवीण अपने कमरे में सोने चला गया बाकी सब एक कमरे में थे नानी से बात करते हुए तीनों बच्चों को जब माँ ने सोने को कहा तो बबलू ने कहा की अगर हम सो गये और तुम फिर कहीं चली गयी तो ?

जब बबलू के गंगाधर की एक्टिंग से माँ हंस पड़ी तो उसे यकीन हुआ की अब उसकी माँ का गुस्सा उतर गया है। और उसने माँ से कहा कहा की अब कभी भी वो माँ को गुस्सा आने ही नहीं देगा ..और जब गुस्सा आएगा ही नहीं तो माँ कभी हमें छोड़कर नहीं जाएगी”

देर रात कनिका बबलू पूर्वी सो गये। अगले दिन नानी भी अपने घर चली गयी। तूफ़ान आकर चला गया था घर अब बिलकुल शांत था। प्रवीण और ममता गुस्सा भुलाकर एक हो चुके थे लेकिन कनिका बबलू और पूर्वी के लिए सब कुछ भूलना इतना आसान न पहले था न अब था। रह रह कर तीन दिल जोर से धड़क उठते और सोचने लगते कि कहीं फिर से माँ को पापा की किसी बात पर गुस्सा न आ जाये फिर से पापा की तेज़ आवाज़ से घर की दीवारें न सहम जाएँ कही फिर से माँ के हाथों की नई चूड़ियाँ न टूटें.....कहीं फिर से पापा के चेहरे पर डराने वाली ख़ामोशी न हो ....कहीं फिर आँखें सबकुछ ठीक होने के इंतज़ार में न रोयें..कहीं फिर पापा से कुछ पूछते न बने कही फिर माँ को हँसाना मुश्किल न हो जाये। ...... तीन जोड़ी आँखें जब कब माँ पापा के चेहरे के भाव पढ़ते हुए न जाने कितने सवालों में खो जाते और जवाब मुठ्ठी में रेत की तरह कही फिसल कर गिर जाते।

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लक्ष्मी यादव

110092 दिल्ली

Email- laxmiyadav.44@gmail.com

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रचनाकार: तीन जोड़ी आँखें / कहानी / लक्ष्मी यादव
तीन जोड़ी आँखें / कहानी / लक्ष्मी यादव
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