“माँ जी नमस्ते।” कांता ने मुख्य द्वार से घर में प्रवेश करते हुए सामने बरामदे में व्हीलचेयर पर बैठी बुजुर्ग महिला को अभिवादन किया। उन्होंने स...
“माँ जी नमस्ते।” कांता ने मुख्य द्वार से घर में प्रवेश करते हुए सामने बरामदे में व्हीलचेयर पर बैठी बुजुर्ग महिला को अभिवादन किया। उन्होंने सहर्ष उसका स्वागत किया और पास पड़ी कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए शिकायत भी कर दी- “कभी बगैर बुलाए भी आ जाया करो कांता। क्या हमसे कोई नाराजगी है?”
“नहीं, नहीं आपसे कैसी नाराजगी। बस बच्चों के काम में पूरा दिन बीत जाता है। कहीं नहीं जा पाती।”
“कहीं जाओ न जाओ इनके पास जरूर आ जाया करो। चार छः रोज तुम्हारी खबर न मिले तो ये परेशान हो जाती हैं,” कमरे से निकलते हुए बाबूजी बोले।
कांता से माताजी का स्नेह कई कारणों से है। माताजी की दृष्टि में वह शिक्षित, सुगृहणी, धार्मिक और ब्राह्मण परिवार से है। वे अपने बड़ों के दिए संस्कारों के कारण इन गुणों का सम्मान करती हैं और कांता को खिलाकर उन्हें विशेष आत्मिक संतोष प्राप्त होता है। कांता भी माताजी का आदर करती है। क्योंकि वे शरीर से अस्वस्थ और अस्सी वर्ष की आयु होने पर भी कितने सुचारू रूप से गृहस्थ की समस्याओं को सुलझा लेती है। भोर में स्नान, नियमित पूजन, ठाकुर जी का भोग लगाना, वर्ष में कोई न कोई बड़ा धार्मिक अनुष्ठान पूरा करवाना और सभी रिश्तेदारों, पड़ौसियों व परिवार के सदस्यों का ख्याल रखना जैसे माताजी के गुण कांता के लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं। मौका पाते ही वह उनके पास बेझिझक चली आती है। आज माताजी ने उसे कुछ विशेष सलाह के लिए बुलाया है। इनके यहाँ कल दुर्गा पाठ है। बड़ा आयोजन होगा। सुबह हवन जिसे चार पण्डित मिलकर कराएंगे और शाम को करीब पाँच सौ लोगों का भोज। माताजी कांता को कल आने वाले मेहमानों के विषय में बता रही थीं। साथ ही राहुल को सामान इकट्ठा कर देने को कह रही थी। वे बता रही थीं कि कौन सामान कहाँ मिलेगा? क्या अभी बाजार से आना है और किसको निमंत्रण नहीं जा पाया है। राहुल दौड़-दौड़ कर सामान जुटा रहा था। राहुल ने आवाज लगाकर पूछा- “माँ जी पूजा का घी नहीं मिल रहा है। बाकी सब सामान रख दिया है।”
“घी आया तो था। देखो रसोई में न रखा हो।”
“नहीं वहाँ तो खाने वाला घी है। पूजा का नहीं है।”
कांता का ध्यान बरबस ही उधर खिंच गया। उसकी समझ में न आया कि पूजा के घी से क्या तात्पर्य है। घी तो घी है और पूजा में शुद्ध घी के हवन की परम्परा है। तब पूजा के लिए अलग से घी कैसा? कुछ देर में उसे याद आया कि गौ घृत को हवन के लिए विशेष रूप से अच्छा माना गया है। माता जी ने निश्चय ही कहीं से गौ घृत की व्यवस्था की होगी। करें भी क्यों न, जिस प्रभु ने उन्हें इतनी समृद्धि और योग्यता दी है कि अस्सी की उम्र पार कर चुके बाबूजी आज भी करोडों के टेंडर भरते हैं। तब उसके अनुष्ठान में भला कमी क्यों? माताजी फिर कांता से बातें करने लगी। परन्तु कांता के मन में अभी भी पूजा के घी का अर्थ साफ नहीं हो पाया था। मन को समझाने के बाद भी उसकी जिज्ञासा बार-बार जोर पकड़ रही थी। बात मुँह तक आती और लौट जाती। तभी कांता का ध्यान घड़ी पर गया। दोपहर के दो बजने वाले थे। बच्चों का स्कूल से लौटने का समय हो गया था। वह एक साथ खड़ी हो गई और माताजी से आज्ञा मांगी। माताजी ने उसे कल आने का अपनी ओर से निमंत्रण दे दिया। परन्तु कांता के मन की जिज्ञासा ने फिर जोर पकड़ा और उसके मुँह से बरबस ही निकल गया- “माताजी पूजा का घी कहाँ से मंगाया आपने?”
“यहीं किराना से।”
“अच्छा, यहाँ गौ घृत मिलता है?”
“अरे नहीं। पूजा के लिए कुछ कम्पनियों ने सस्ता घी बनाया है। तुमने सुना नहीं था। कुछ दिनों पहले नकली घी का कारोबार चला था। तो लोग अब जान गए हैं। वे अपने खाने के लिए घर में घी निकालना ठीक समझते हैं या महंगा शुद्ध घी लेते हैं और सस्ता घी पूजा पाठ के लिए लेते हैं।”
“पर पण्डितजी एतराज नहीं करते?”
“अरे पगली, वे क्यों एतराज करेंगे। पिछली बार पण्डितजी ने ही बताया था कि पूजा का घी अलग आता है।”
कांता घर लौट आई। बच्चे आ गए थे वही रोज की भागदौड़ शुरू हो गई। पूरा दिन बीत गया। कांता थक कर चारपाई पर लेटी तो पूजा के घी ने उसे घेर लिया। पूजा में नकली सस्ता घी...। करोड़ों की सम्पत्ति, लाखों का भोज, इतना बड़ा अनुष्ठान...। बचपन में जब गर्मी में दूध की खपत बढ़ती थी और घर में गाएं दूध देना कम करती थीं तो माँ घी गर्माते समय पूजा का घी का डिब्बा भरकर अलग रख देती थी। वह कहती थी- “तुम थोड़ा कम भी खा लो तो कोई बात नहीं। जोत बत्ती का घी जरूरी है।” यही सब सोचते कांता सो गई।
सुबह उठकर कांता घर का काम जल्दी-जल्दी निबटाने लगी। अभी माताजी के यहाँ से कोई बुलाने आ गया और उसका काम न निबटा तो खराब लगेगा। यही सोचकर वह और तेजी से काम समटने लगी। उसने बच्चों को जल्दी नहला खिला दिया। स्वयं नहाकर तैयार हुई। जाने के कपड़े निकालने लगी कि तभी पूजा के घी ने उसके मन पर डेरा जमा लिया। कांता ने कपड़े जहाँ के तहाँ रख दिए। अचानक उसके मन ने फैसला लिया- “जहाँ हवन की ही शुद्धता नहीं ऐसे धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होने का क्या लाभ? प्रसाद मेवायुक्त और भोज मे चार मिठाई पर हवन में अशुद्ध घी। यह कैसा अनुष्ठान?” कांता ने बच्चों को स्कूल भेज दिया। स्वयं एक साधारण साड़ी पहनकर तैयार हुई। वह जल्दी-जल्दी घर का ताला बंद करने लगी। तभी राहुल ने आवाज दी- “दीदी चलो। माँजी बुला रही हैं।” कांता ने रिक्शे की ओर बढ़ते हुए राहुल से कहा- “माँजी से कहना मेरी बहन की तबियत ठीक नहीं है। मैं उसे देखने जा रही हूँ। पूजा में शामिल नहीं हो पाऊंगी।”
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डॉ. (श्रीमती) अपर्णा शर्मा ने मेरठ विश्वविद्यालय, मेरठ से एम.फिल. की उपाधि 1984 में, तत्पश्चात् पी-एच.डी. की उपाधि 1991 में प्राप्त की। आप निरंतर लेखन कार्य में रत् हैं। डॉ. शर्मा की एक शोध पुस्तक - भारतीय संवतों का इतिहास (1994), एक कहानी संग्रह खो गया गाँव (2010), एक कविता संग्रह जल धारा बहती रहे (2014), एक बाल उपन्यास चतुर राजकुमार (2014), तीन बाल कविता संग्रह, एक बाल लोक कथा संग्रह आदि दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साथ ही इनके शोध पत्र, पुस्तक समीक्षाएं, कविताएं, कहानियाँ, लोक कथाएं एवं समसामयिक विषयों पर लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। आपकी बाल कविताओं, परिचर्चाओं एवं वार्ताओं का प्रसारण आकाशवाणी, इलाहाबाद एवं इलाहाबाद दूरदर्शन से हुआ है। साथ ही कवि सम्मेलनों व काव्यगोष्ठियों में भागेदारी बनी रही है।
शिक्षा - एम. ए. (प्राचीन इतिहास व हिंदी), बी. एड., एम. फिल., (इतिहास), पी-एच. डी. (इतिहास)
प्रकाशित रचनाएं - भारतीय संवतो का इतिहास (शोध ग्रंथ), एस. एस. पब्लिशर्स, दिल्ली, 1994
खो गया गाँव (कहानी संग्रह), माउण्ट बुक्स, दिल्ली, 2010
पढो-बढो (नवसाक्षरों के लिए), साहित्य संगम, इलाहाबाद, 2012
सरोज ने सम्भाला घर (नवसाक्षरों के लिए), साहित्य संगम, इलाहाबाद, 2012
जल धारा बहती रहे (कविता संग्रह), साहित्य संगम, इलाहाबाद, 2014
चतुर राजकुमार (बाल उपन्यास), सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, 2014
विरासत में मिली कहानियाँ (कहानी संग्रह), सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, 2014
मैं किशोर हूँ (बाल कविता संग्रह), सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, 2014
नीड़ सभी का प्यारा है (बाल कविता संग्रह), सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, 2014
जागो बच्चो (बाल कविता संग्रह), सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, 2014
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेख पुस्तक समीक्षाएं, कविताएं एवं कहानियाँ प्रकाशित । लगभग 100 बाल कविताएं भी प्रकाशित । दूरदर्शन, आकाशवाणी एवं काव्यगोष्ठियों में भागीदार।
सम्पर्क -
डॉ. (श्रीमती) अपर्णा शर्मा, “विश्रुत”, 5, एम. आई .जी., गोविंदपुर, निकट अपट्रान चौराहा, इलाहाबाद (उ. प्र.), पिनः 211004, दूरभाषः + 91-0532-2542514 दूरध्वनिः + 91-08005313626 ई-मेलः <draparna85@gmail.com>
(अपर्णा शर्मा)
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