मानव मन सदा से प्रकृति का साथ चाहता है इसीलिए तमाम व्यस्तताओं से बचकर वह जा पहुँचता उस छाँव में जहाँ वह खुद को पुनर्ववा कर सकता है। इस प्र...
मानव मन सदा से प्रकृति का साथ चाहता है इसीलिए तमाम व्यस्तताओं से बचकर वह जा पहुँचता उस छाँव में जहाँ वह खुद को पुनर्ववा कर सकता है। इस प्रक्रिया में वह कभी नदियों को जीता है ,कभी पर्वतों को लांघता है तो कभी मरूस्थलों को टोहता है।
भारतीय परंपरा में परिव्राजक का स्थान प्राचीन काल से ही है। संन्यासी को किसी स्थान विशेष से मोह न हो, इसलिए परिव्राजक के रूप में पर्यटन करते रहना होता है। ज्ञान के विस्तार के लिए अनेक यात्राएँ की जाती थीं। आदि शंकर और स्वामी विवेकानन्द की प्रसिद्ध भारत यात्राएँ इसी उद्देश्य से हुईं। बौद्ध धर्म के आगमन पर गौतम बुद्ध के संदेश को अन्य देशों में पहुँचाने के लिए अनेक भिक्षुओं ने लम्बी यात्राएँ कीं। अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को इसी उद्देश्य से श्रीलंका भेजा। सामान्यजन के लिए ज्ञान के विस्तार और सामूहिक विकास के लिए तीर्थ यात्राओं की व्यवस्था भी प्राचीन भूपर्यटन का ही एक रूप था।
जिस तरह शब्दों का आलोपन, विलोपन चेतना को झंकृत करता है उसी तरह ऋतुओं का नर्तन और ऐतिहासिक स्थापत्य मन को वीतरागी तो कभी मयूर कर देता है. पर्यटन खुद से पुनः पुनः जुड़ने का अवसर तो है ही साथ ही सांस्कृतिक धरोहर और विरासत से जुडने का मौका भी.
भारत का पर्यटन और स्वास्थ्यप्रद पर्यटन मुहैया कराने की दृष्टि से विश्व में पाँचवा स्थान है. भारत जैसे विरासत के धनी राष्ट्र के लिए पुरातात्विक विरासत केवल दार्शनिक स्थल भर नहीं होती वरन् इसके साथ ही वह राजस्व प्राप्ति का स्रोत और अनेक लोगों को रोजगार देने का माध्यम भी होती है|
पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार की वार्षिक रिपोर्ट वर्ष 2014-15 के आंकड़ों के अनुसार, 2010 में भारत में पर्यटन से विदेशी मुद्रा आय 64889 करोड़, 2011 में 77591करोड़ , 2012 में94487 करोड़, 2013 में 107671 करोड़ एवं 2014 में 120083 करोड़ रही है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 में विदेशी पर्यटकों की संख्या में 10.6 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। पर्यटन से जुड़े और भी कई अन्य स्रोत हैं जो आर्थिक विकास में अपना योगदान देते हैं। सकल घरेलू उत्पाद में इस क्षेत्र की 6 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी पर्यटन के आर्थिक महत्त्व को दर्शाता है।
पर्यटक शोध अथवा अनुसंधान के उद्देश्य से पर्यटक की श्रेणी में आते हैं। मुख्यत: ये छोटे-छोटे समूहों में विभिन्न प्रजातियों और जातियों का अध्ययन करते हैं। यहाँ पर्यटक मानव के संदर्भ में स्थानीय रूप से जन्म-मृत्यु दर, स्वास्थ्य, आवास,धर्म, त्यौहार, रीति-रिवाज़, शिक्षा, भोजन, मानव बस्तियों की बनावट आदि संबन्धित आँकड़ों को एकत्रित करते हैं। विभिन्न स्कूलों, विश्वविद्यालयों एवं समाज सेवी संस्थाओं द्वारा इसी प्रकार की यात्राएँ आयोजित करवाई जाती हैं। पर्यावरण पर्यटन मानव, प्रकृति और संस्कृति के बीच एक रचनात्मक सम्पर्क स्थापित करता है और पूर्वोत्तर क्षेत्र के पर्यटन स्थलों तक लोगों को आकर्षित करने की इनमें अपार क्षमता है। पर्यावरण पर्यटन का विचार सन् 2001 में भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने शुरू किया और इस उद्देश्य से उसने 26 जिओपार्क चिन्हित किए। जिओपार्कों को उन राष्ट्रीय संरक्षित क्षेत्रों के रूप में परिभाषित किया गया है जहाँ अनेक भौगोलिक दाय वाले स्थल मौजूद हैं। इन स्थलों में विशेष महत्व वाले दुर्लभ और सौन्दर्यशास्त्र की दृष्टि से विशेष अपील वाली वस्तुएँ और जीव-जन्तु होते हैं।
पर्यटकों के लिए भारतीय बाजार विविधताओं भरा स्थान है। इन विविधताओं के आर्थिक पहलुओं को देखते हुए शिल्प आदि क्षेत्रों के संवर्धन हेतु ठोस सरकारी प्रयासों का परिणाम एक नई आर्थिक संभावना के रूप में देखा जा सकता है तथा नए चिन्हित पर्यटन स्थलों पर ढांचागत सुविधाओं का विकास कर न केवल शहरी बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसरों की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है।
पर्यटकों के लिए कैम्पिंग स्थलों के संचालन करने से भी स्थानीय युवकों को काम मिल सकता है। इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित जनशक्ति की जरूरत पड़ेगी। खान-पान के लिए भी कुछ विशेषज्ञों की सहायता लेनी पड़ेगी। खान-पान की सूची में स्थानीय पकवान, स्थानीय फल और सब्जियाँ, मीट, दूध, पोल्ट्री, अण्डे, तथा मछलियाँ स्थानीय रूप से प्राप्त की जा सकती हैं। कुछ ग्रामवासी प्रयास करके इन चीजों की आपूर्ति कर सकते हैं।
कुछ स्थानीय युवकों को गाइड के रूप में काम करने के अवसर मिल सकते हैं। ये आने वाले पर्यटकों को अड़ोस-पड़ोस की पहाडि़यों और जंगलों की सैर करा सकते हैं और स्थानीय वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं तथा ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों की तरह अपने समुदाय और लोक जीवन का परिचय दे सकते हैं।
स्थानीय पर्यटन स्थलों को रोचक ढंग से प्रस्तुत करके ये नाम कमा सकते हैं। स्थानीय बुनकर और कारीगर अपने उत्पाद प्रदर्शित करके पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं। इन कारीगरों को अपने हस्तशिल्प और बनाए गए परिधानों को पर्यटकों के सामने प्रस्तुत करने के अवसर दिए जा सकते हैं।
पर्यटन गरीबी दूर करने, रोजगार सृजन और सामाजिक सद्भाव बढ़ाने का सशक्त साधन है। 27 सितंबर, 2003 को दुनिया भर में विश्व पर्यटन दिवस मनाया गया जिसका मुख्य विषय यही था। इस विषय से ही पता चल जाता है कि पर्यटन विकासशील देशों के लिए कितना सार्थक और महत्वपूर्ण है। हालांकि पर्यटकों को अनेक विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है लेकिन संयुक्त राष्ट्र की रोम में सन् 1963 में आयोजित अन्तरराष्ट्रीय यात्रा एवं पर्यटन सम्मेलन में बहुत सरल शब्दों में इसका वर्णन किया गया है। . मोटी कमाई के चलते पर्यटन क्षेत्र एक फलता-फूलता उद्योग बन गया है। इससे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को बल मिलता है और इसमें स्थानीय पर्यावरण में सुधार लाने तथा परिवहन, होटल, खान-पान और हस्तशिल्प जैसे क्षेत्रों में सेवाओं और माल की गुणवत्ता बेहतर करने की शक्ति निहित है।
पर्यटन से स्थानीय युवकों को नए-नए क्षेत्रों में रोजगार के अवसर मिलते हैं। पर्यटन से सांस्कृतिक गतिविधियों में तेजी आती है और पर्यटकों तथा उनके मेजबानों के बीच बेहतर और समझदारी पूर्ण सम्बन्ध विकसित होते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर इससे विदेशी मुद्रा की मोटी कमाई होती है जो किसी भी देश के लिए महत्वपूर्ण है। सच्चाई यह है कि दुनिया के 83 प्रतिशत विकासशील देशों में पर्यटन विदेशी मुद्रा अर्जित करने का प्रमुख साधन है।
पर्यटन, सेवा क्षेत्र का एक ऐसा उभरता हुआ उद्योग है जिसमें अपार संभावनाएं निहित हैं। भारत अतुलनीय प्राकृतिक स्थलों के साथ ही वैश्विक स्तर पर एक बड़े जैविक आयामों के क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, जो पारिस्थिकीय पर्यटन की दृष्टि से सकारात्मक पक्ष है। पर्यटकों के लिए भारतीय बाजार विविधताओं भरा स्थान है। इन विविधताओं के आर्थिक पहलुओं को देखते हुए शिल्प आदि क्षेत्रों के संवर्धन हेतु ठोस सरकारी प्रयासों का परिणाम एक नई आर्थिक संभावना के रूप में देखा जा सकता है तथा नए चिन्हित पर्यटन स्थलों पर ढांचागत सुविधाओं का विकास कर न केवल शहरी बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसरों की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है। पर्यटन संसाधनों, सुविधाओं, और सेवाओं आदि प्राथमिकताओं को बढ़ाकर पर्यटन क्षेत्र के सामने आ रही प्रतिस्पर्धात्मक बाधाओं को दूर कर इस उद्योग में विकास की और अधिक संभावनाओं की तलाश की जा सकती है।
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