कहा गया है जल ही जीवन है। लेकिन, यह चिंता से अधिक चिंतन का विषय है कि जीवन के वरदान जल की घोर उपेक्षा आखिर क्यों की जा रही है ? हममें से ...
कहा गया है जल ही जीवन है। लेकिन, यह चिंता से अधिक चिंतन का विषय है कि जीवन के वरदान जल की घोर उपेक्षा आखिर क्यों की जा रही है ?
हममें से ज्यादातर लोग यह सोचते हैं कि पानी बचाने के लिए एक अकेला आदमी क्या कर सकता है। इस तरह के विचार से हम लोग रोज पानी नष्ट कर देते हैं। आज की दुनिया में सभी लोग इस दौड़ में लगे हैं कि हम अपने घरों में बड़े-बड़े गुसलखाने बनवायें, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि पानी के बिना वे सब बेकार हैं। हम अपनी जरूरत से ज्यादा पानी का इस्तेमाल करते रहते हैं। कम से कम हममें से हर व्यक्ति अपने घरों और कार्यस्थलों में पानी का उचित इस्तेमाल तो कर ही सकता है।
कई बार ऐसा देखा जाता है कि सड़क किनारे लगे हुए नलों से पानी बह रहा है और बेकार जा रहा है, लेकिन हम वहां से गुजर जाते हैं और नल को बंद करने की चिन्ता नहीं करते। हमें इन विषयों पर सोचना चाहिए और अपने रोज के जीवन में जहां तक संभव हो पानी बचाने की कोशिश करनी चाहिए। बिजली का इस्तेमाल भी जरूरत के हिसाब से करना चाहिए न कि इच्छा के अनुसार। बिजली के उपकरणों को भी जब जरूरत हो तभी इस्तेमाल करना चाहिए।
एक बल्ब से ही हमें पर्याप्त रोशनी मिल जाती है, तो इस बात की क्या जरूरत है कि हम कई लाइटें जलाएं। हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि जब जरूरी न हो तब लाइट और बिजली के अन्य उपकरणों को कम से कम इस्तेमाल किया जाए। ऐसा करके हम न सिर्फ बिजली बचाएंगे, बल्कि पानी भी बचाएंगे।
कारगर कदम उठने होंगे जैसे हम देश के प्रत्येक गांव में छोटे-छोटे तालाब बनाकर वर्षा जल को संग्रहित कर सकते हैं जिससे हमें खेतों में सिंचाई के लिए पानी मिलेगा और भूजल स्तर भी सुधरेगा। शहरों में भी प्रत्येक इमारतों की छतों से वर्षा जल संग्रहण के लिए रेन वॉटर - रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना चाहिए। इस सिस्टम में वर्षा का जल छतों से पाइप लाइन के द्वारा सीधे जमीन के भीतर चला जाता है। इस विधि से भूजल स्तर में सुधार होता है। अगर हमें भविष्य में होने वाले जल संकट को रोकना है तो इसके लिए प्रत्येक स्तर पर जल संग्रहण करना होगा। जल संरक्षण के अभियान में समाज के प्रत्येक वर्ग के प्रत्येक व्यक्ति को ख़ास तौर पर युवा वर्ग को शामिल होना होगा। युवा लोगों को बताएं कि पानी से जुड़ी ये दस समस्याएँ आज मुंह बाए खडी हैं -
1- प्रति व्यक्ति उपलब्धता की कमी
2- विशेष कामों के लिए खराब गुणवत्ता
3- फ्लोराइड प्रदूषण
4- विभिन्न प्रकार के स्थानीय प्रदूषण
5- जैविक प्रदूषण
6- खारापन
7- मौसमी जल संचय क्षमता
8- भौगोलिक स्थिति के कारण बर्बादी
9- तटीय इलाकों में नुकसान
10- सिलिका और सल्फर से प्रदूषण
जल संरक्षण के मद्देनज़र कुछ सुझाव साझा करना चाहता हूँ -
1.सबको जागरूक नागरिक की तरह `जल संरक्षण´ का अभियान चलाते हुए बच्चों और महिलाओं में जागृति लानी होगी। स्नान करते समय `बाल्टी´ में जल लेकर `शावर´ या `टब´ में स्नान की तुलना में बहुत जल बचाया जा सकता है। पुरूष वर्ग ढाढ़ी बनाते समय यदि टोंटी बन्द रखे तो बहुत जल बच सकता है। रसोई में जल की बाल्टी या टब में अगर बर्तन साफ करें, तो जल की बहुत बड़ी हानि रोकी जा सकती है।
2. टॉयलेट में लगी फ्लश की टंकी में प्लास्टिक की बोतल में रेत भरकर रख देने से हर बार `एक लीटर जल´ बचाने का कारगर उपाय गया बताया है। इस विधि का तेजी से प्रचार-प्रसार करके पूरे देश में लागू करके जल बचाया जा सकता है।
3. पहले गाँवों, कस्बों और नगरों की सीमा पर या कहीं नीची सतह पर तालाब अवश्य होते थे, जिनमें स्वाभाविक रूप में मानसून की वर्षा का जल एकत्रित हो जाता था। साथ ही, अनुपयोगी जल भी तालाब में जाता था, जिसे मछलियाँ और मेंढक आदि साफ करते रहते थे और तालाबों का जल पूरे गाँव के पीने, नहाने और पशुओं आदि के काम में आता था। दुर्भाग्य यह कि स्वार्थी मनुष्य ने तालाबों को पाट कर घर बना लिए और जल की आपूर्ति खुद ही बन्द कर बैठा है। जरूरी है कि गाँवों, कस्बों और नगरों में छोटे-बड़े तालाब बनाकर वर्षा जल का संरक्षण किया जाए।
4. नगरों और महानगरों में घरों की नालियों के पानी को गढ्ढे बना कर एकत्र किया जाए और पेड़-पौधों की सिंचाई के काम में लिया जाए, तो साफ पेयजल की बचत अवश्य की जा सकती है।
5. अगर प्रत्येक घर की छत पर ` वर्षा जल´ का भंडार करने के लिए एक या दो टंकी बनाई जाएँ और इन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढ़क दिया जाए तो हर नगर में `जल संरक्षण´ किया जा सकेगा।
6. घरों, मुहल्लों और सार्वजनिक पार्कों, स्कूलों अस्पतालों, दुकानों, मन्दिरों आदि में लगी नल की टोंटियाँ खुली या टूटी रहती हैं, तो अनजाने ही प्रतिदिन हजारों लीटर जल बेकार हो जाता है। इस बरबादी को रोकने के लिए नगर पालिका एक्ट में टोंटियों की चोरी को दण्डात्मक अपराध बनाकर, जागरूकता भी बढ़ानी होगी।
7. विज्ञान की मदद से आज समुद्र के खारे जल को पीने योग्य बनाया जा रहा है, गुजरात के द्वारिका आदि नगरों में प्रत्येक घर में `पेयजल´ के साथ-साथ घरेलू कार्यों के लिए `खारे जल´ का प्रयोग करके शुद्ध जल का संरक्षण किया जा रहा है, इसे बढ़ाया जाए।
8. गंगा और यमुना जैसी सदानीरा बड़ी नदियों की नियमित सफाई बेहद जरूरी है। नगरों और महानगरों का गन्दा पानी ऐसी नदियों में जाकर प्रदूषण बढ़ाता है, जिससे मछलियाँ आदि मर जाती हैं और यह प्रदूषण लगातार बढ़ता ही चला जाता है। बड़ी नदियों के जल का शोधन करके पेयजल के रूप में प्रयोग किया जा सके, इसके लिए लगातार सक्रिय रहना होगा।
9. जंगलों का कटाव होने से दोहरा नुकसान हो रहा है। पहला यह कि वाष्पीकरण न होने से वर्षा नहीं हो पाती और दूसरे भूमिगत जल सूखता जाता हैं। बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण के कारण जंगल और वृक्षों के अंधाधुंध कटान से भूमि की नमी लगातार कम होती जा रही है, इसलिए वृक्षारोपण लगातार किया जाना जरूरी है।
10. पानी का `दुरूपयोग´ हर स्तर पर रोका जाना बेहद जरूरी है। अब समय आ गया है कि `जल संरक्षण´ को अनिवार्य विषय बना कर प्राथमिक से लेकर उच्च स्तर तक नई पीढ़ी को जागरूक किया जाये।
लोगों में ऎसी समस्याओं की समझ और उन्हें दूर करने के लिए सरोकार पैदा करना बड़ी चुनौती भी है। फिर भी स्मरणीय है कि जल और स्वच्छता पर निवेश हमेशा और हर तरह से फायदे का सौदा होगा। हमारा मत है कि बारहवीं पंचवर्षीय योजना में अपशिष्ट जल के प्रशोधन की अहमियत और एकीकृत जल और अपशिष्ट जल योजना बनाने पर जोर दिए जाना प्रशंसनीय है, लेकिन उसे ज़मीनी तौर पर अमल में लाना उतना ही जरूरी है। राष्ट्रीय विकास में जल की महत्ता को देखते हुए अब हमें `जल संरक्षण´ को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में रखकर पूरे देश में कारगर जन-जागरण अभियान चलाने की आवश्यकता है।
अंत में बस यही कि अब
धरती पर मनमानी की कहानी नहीं,
जल प्रबंधन का महाकाव्य लिखा जाना चाहिए।
और इसके लिए हमारे युवाओं को आगे आना चाहिए।
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राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़ )
मो 9301054300
पाठ्यक्रम में भी जल संरक्षण के प्रति सजगता और जानकारी होनी चाहिये ।
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