डॉ. नन्दलाल भारती MA(Socialogy) LLB(Hons)PG Diploma in HRD विद्यासागर एवं वाचस्पति सम्मानोपाधि चलितवार्ता-09753081066/9589611467/09512...
डॉ. नन्दलाल भारती
MA(Socialogy)
LLB(Hons)PG Diploma in HRD विद्यासागर एवं वाचस्पति सम्मानोपाधि
चलितवार्ता-09753081066/9589611467/09512213565. Email- nlbharatiauthor@gmail.com
सुलोचना को परिन्दों के मल की छानबीन करते हुए देखकर शील बाबू के पांव ठिठक गये।वह पीछे मुड़े और बोले भाग्यवान तुम सुबह की सैर पर आयी हो या परिन्दों का मल साफ करने।
क्या भूषण के बापू तुम्हारी नजरों में हमारी इतनी सी इज्जत,सुलोचना व्यंगबाण छोड़कर बेफिक्र काम में जुटी रही। लाचार को विचार क्या शीलबाबू वही सड़क के किनारे बैठकर तमाशा देखने लगे।कुछ देर बाद हांफते हुए वह आयी और बोली चलो जी भूषण के स्कूल जाने का समय हो रहा है।
शील बाबू- भाग्यवान तुम परिन्दों के मल से कौन से मोती बीन रही थी।
मोती नही मोती से हजार गुना कीमती है सुलोचना बोली।
सुलोचना-क्या अपनी गरीबी इस मोती से दूर हो जायेगी। देश की गरीबी दूर हो जायेगी भूषण के बापू पर अपने नैतिक दायित्वों के प्रति ईमानदारी बरती जाये तब ना।
शील बाबू- मुट्ठी खोलागीे तब तो अलादीन के चिराग के दीदार होगे।
पहले आंख बन्द करो सुलोचना बोली।
क्या आंख बन्द करूं शील बाबू बोले।
सुलोचना-इतना तो अपनी अर्धांगिनी के लिये तो कर ही सकते है।अर्धांगिनी के लिये तो जीवन कुर्बान हो गया,आंखबन्द करना कौन बड़ी बात है लो जी बीच सड़क पर आंख बन्द करवा रही हो कहते हुए शीलबाबू झट से दोनों हाथों से आंखे बन्द का लिये। सुलोचना पांच नीम के बीज उनके हाथ पर रखकर बोली प्राणनाथ आंखें खोलिये।
ये क्या शील बाबू आश्चर्य चकित होकर बोले।
सुलोचना ये मोती बहुत कीमती है भूषण के बापू।
भाग्यवान पांच नीम के बीजों से कितना और कैसे तेल निकालोगी शीलबाबू बोले ।
अरे क्या भूषण के बापू तेल निकालने के लिये थोड़े मल से छांटकर लायी हूं।मानती हूं नीम का तेल भी बहुत कीमती होता है,दवाई के काम आता है पर इस काम के लिये नही हैं ये बींज ।
किस काम के लिये है ये बीज शील बाबू बोले ।
बीज उगाउंगी सुलोचना चहकते हुए बोली।
उगाओगी कहां भाग्यवान ?
घर के सामने सुलोचना बोली।
कहां जगह है ?
हो जायेगी सुलोचना प्रतिउत्तर में बोली।
जगह हो जायेगी से क्या मतलब शीलबाबू पूछ बैठे ?
परमात्मा घर के सामने इतनी जगह तो है कि एक नीम का पेड़ लगा सकते हैं।
भाग्यवान लोग अपना घर सड़क पर बढ़ाये जा रहे है तुम नीम का पेड़ लगा रही हो। पड़ोसियों से क्यों रार मोल लेने का मन बना रही हो ।पड़ोस का मकान देखों, इतनी हवश है कि अपने प्लाट साइज से पांच फीट सड़क पर मकान बढ़ा लिया है,इससे भी पेट नही भरा तो हमारी तरफ खिड़की निकाल लिया है। ऐसे दुष्ट प्रकृति के लोगों के रहते कैसे चैन से रह सकते है।नीम के पेड़ से पत्ते पड़ोसियों के छत पर जायेगी तो बिच्छू की तरह डंक मारने को दौड़ाते रहेगे शीलबाबू बोले।
छुद्र नदी भरि चली इतराई वाली कहावत सिद्ध कर रहा है बाये हाथ वाला पड़ोसी। वह क्या जाने पेड़ के फायदे तीन मंजिला मकान क्या बना लिया जैसे स्वर्ग जाने की सीढी जाड़़ लिया है।हमारे पेड़ पौधों को देखकर कुढ़ता रहता है सुलोचना बोली।
नीम कापेड़ बड़ा होता है पड़ोसी लड़ाई करेंगे कहेगे नीम की जड़ मेरी हवली गिरा देगी शीलबाबू बोले।
सुलोचना-अभी इतनी दूर ना जाओ। लौटा आओ आप तो जहां न जाये रवि वहां जाये कवि जैसी बात करने लगे।अभी धरती की कोख में बीज पड़ा ही नही,आप पेड़ बनने तक चले गये। ये तो वो बात हुई जैसे शादी हुई ना बच्चे के दाखिले की चिन्ता। मैं सब सम्भाल लूंगी। ईंट पत्थरों के जंगल में अपने घर के सामने तो एक नीम का पेड़ तो होगा। ओछे की प्रीति बालू की भीति जैसे पड़ोसियों की क्यों फिक्र कर रहे हो भूषण के बापू।
मैने कहां मना किया भाग्यवान,नीम के पेड़ की छांव में तो हम पले बढ़े है।गांव के घर के सामने कितना बड़ा नीम का पेड़ था,सावन में झूला सजता था। गांव की औरते झूला झूलते हूए क्या कजरी,सोहर,सोरठा गाती थी। सच अपना गांव धरती का स्वर्ग है पर पापी के पेट के सवाल से रोज-रोज गांव खाली होता जा रहा है।काश वह वक्त लौट आता शीलबाबू बोले।
भूषण के बापू वो वक्त तो लौटने वाला नही है पर हां निम्बोली से नीम का पेड़ बन सकता है।चलो जल्दी घर चले।सुलोचना घर पहुंचकर घर के सामने निम्बोली बोने के लिये थाला बनाने में जुट गयी।सुलोचना शीलबाबू को एक लोटा पानी लाने को बोली।
शील बाबू -पीने के लिये ?
नहीं...... थाले में डालने के लिये,मदद करो परमात्मा आपकी मदद के बिना कोई यज्ञ पूरा होगा क्या ?सुलोचना बोली ।
निम्बोली बो रही हो कि यज्ञ कर रही हो शीलबाबू बोले ।
महायज्ञ कहिये भूषण के बाबू।कहते है एक पेड़ सौ पुत्र समाना,जब तक पेड़ तब तक जमाना।कहते हुए सुलोचना कई बाल्टी पानी लायी,थाले के चारो तरफ डालकर,बबूल की डाल से थाले के चारो ओर बांड़ बना दी।इतने में प्रज्ञावती मैडम आ गयी और बोली सुलोचना सुबह सुबह कौन सी फसल लगा कर रही हो।
सुनो शहरी मेमसाहब का, कह रही कौन सी फसल लगा रही हो, शीलबाबू मन नही मन बुदबुदाये, फिर सम्भल कर बोले फसल नही महायज्ञ हो रहा है।पूर्ण आहुति डालकर सुलोचना हाथ धो रही है।
महायज्ञ प्रज्ञावती मैडम चौक कर बोली।
सुलोचना-इनकी बात पर मत जाओ दीदी मजाक कर रहे है। नाम का बीज रोपी हूं ।उग और बच जाएगा तो अपने घर के सामने एक नीम का पेड़ तैयार हो जाएगा ।
प्रोजेक्ट नीम सीटी ग्रीन सीटी को सर्पोट कर रहे हो मियां बीबी प्रज्ञावती मैडम बोली।
वही समझ लीजिये सुलोचना बोली।
अग्रिम बधाई हो नीम के पेड़ की। आज दफतर जल्दी जाना है,चलती हूं ,प्रज्ञावती मैडम कहते हुए नौ दो ग्यारह हो गयी ।
सुलोचना नीम के बोये बीजों से वक्त बेवक्त बात करना शुरू कर दिया।सप्ताह भर के अन्दर ही पांचों बीज अंकुरित हो गये। सुलोचना इतनी खुश हुई कि सोहर गाने लगी थी। धीरे -धीरे पौधे बढ़ने लगे।सुलोचना इन नीम के पौधों की देखरेख बच्चे की तरह करने लगी।ये पौधे तीव्रगति से बढ़ने लगे। अचनाक एक दिन बकरियों का झुण्ड आ गया। सुलोचना पर वज्रपात कर गया।चार पौधों कोबुरी तरह बकरियों ने खा लिया। जैसाकि माना जाता है बकरी के खाये पौधे बढ़ नही पाते।एक पौधा बचा गया था उसको पेड़ बनाने की चिन्ता सुलोचना को सता रही थी।शील बाबू के दफतर से घर लौटते ही सुलोचना रोते हुए बोली भूषण के बाबू मेरा सपना टूट गया।
शीलबाबू- क्या हुआ भाग्यवान।
सुलोचना-नीम के पौधों को बकरियां खा गयी। बस एक बचा है। आप मेरे सपने का उम्र दे सकते है भूषण के बाबू।
शीलबाबू-आंसू बहाना बन्द करो। तुम्हारे और हमारे सपने एक है। बताओ करना क्या पड़ेगा।
सुलोचना-ट्री गार्ड बनवाने में वक्त लगेगा।
शीलबाबू-हां वह तो है।
सुलोचना-गेहूं का ड्रम खाली कर देती हूं,उसी का ट्री गार्ड बना दीजिये।
शीलबाबू-गेहूं के ड्रम का ट्री गार्ड।
सुलोचना-जी परमात्मा । ड्रम में दो चार छेदकर जमीन में गाड़ दीजिये बन गया ट्री गार्ड।
शीलबाबू सुलोचना की खुशी के लिये बिना सोच विचार के काम में जुट गये।अब नीम के पौघे से भेड़बकरियां का खतरा टल चुका था।सुलोचना नीम के पौधे की देखभाल पूरी लगन से करने लगी। कुछ ही महीनों में ही नीम का पौधा भेड-बकरियों की पहुंच से बाहर निकल गया। सुलोचना बहु खुशी थी ।एक दिन कोई शराबी ड्रम चुरा ले गया उस दिन सुलोचना फूटफूट कर रोई थी।सुलोचना को रोते हुए देखकर शीलबाबू ने लकड़ी बांस और लोहे के कंटीले तार से घेराबन्दी कर दिया,अब नीम का पौधा सुरक्षित था।सुलोचना का लगाव दिनप्रतिदिन नीम के पौधे से बढता जा रहा था। वह घर का काम जल्दी-जल्दी निपटा कर नीम के पौधे को अधिक समय देने लगी।अक्सर वह नीम केपौधे को कजरी,सोहर,लचारी,ठुमरी गा-गाकर सुनाने लगी। इसका प्रभाव इतना तीव्र हुआ कि नीम का पौधा कुछ ही बरसों में नीम का पेड़ हो गया।सुलोचना को पौधों से बहुत लगाव था,वह छोटे से अपने घर में बहुत पौधे गमलों में लगा रखा थी,गमलों में जंगल बचाने का उसका यह प्रया निरन्तर जारी था। । उसके गमले फूलों से भरे रहते थे परन्तु गंवार किस्म के पड़ोसी मिस्टर कोढी को ये सब पसन्द नही था।एक पता उड़कर उसकी हद में चला गया तो कुढ़ने लगता था,तानाकशी करता,उलाहना देता,कई बार शिकायत करता था। तम्बूनुमा बादाम के पेड़ से मि.कोढ़ी को एलर्र्जी हो गयी,आखिरकार बादाम के पेड़ की बलि चढ़ गयी।बादाम के तने को भूषण ने कई दिन मेहनत कर मूर्ति का आकार दे दिया था।
नीम का पौधा पेड़ बन चुका था आते जाते आदमी और पशु नीम की छांव में सुस्ताने लगे थे।सुलोचना ने नीम के पास पशुओं के पानी पीने के लिये टंकी रखवा दीा थी।सुलोचना की नीम के पेड़ में जब पहली बार निम्बोली आयी थी तबवह बहुत खुश हुई थी। वह कहती अब हमारी नीम से भी हजारों पेड़ो का जन्म होगा।इन पेड़ो से पर्यावरण की सुरक्षा होगी।जीवों को उम्र मिलेगी।जीते लकड़ी मरते लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का कहते कहते वह भावविभोर होकर मोर की तरह नाच उठी थी।
ठीक कह रही हो भूषण की मां पेड़ है तो जीवन है।वैसे तो सभी पौधे जीवन देते है। नीम के पत्ते से लेकर छाल तक दवाई के काम आते है। फोड़े फुंसी पर छाल पत्थर पर घिस कर लगा दो तो फोड़े फुंसी ठीक हो जाते है।सांस लेने लायक आक्सीजन हमें पेड़-पौधों से ही तो मिलते है।नीम के तेल से रासायनिक खाद उपचारित की जा रही है। नीम की खली फसल के लिये कितनी फायदेमंद है,सब जानते है।पेड़ पौधे हमारे द्वारा छोड़े जहर को पीते है,हमें आक्सीजन,हवा,पानी,रोटी,कपडा और मकान सब कुछ तो पेड़ पौधों से ही मिलता है इसके बाद भी मतलबी आदमी पेड़ों के दुश्मन बनते जा रहे है।मकान तो गगनचुम्बी बनाते जा रहे है,जीवनदायी एक पेड़ नही लगा रहे है।सच बिना पेड़-पौधों के जीवन की कल्पना असम्भव है। सच कहा सुलोचना जीते लकड़ी मरते लकड़ी देख तमाशा लकडी का इसके बाद भी स्वार्थी आदमी पेड़ों को खत्म करने में जुटा हुआ है शीलबाबू बोले।
सुलोचना आदमी पेड़ो का कत्ल कर अपने लिये मौत का चैम्बर बना रहा है। काश अपने पास दो चार एकड जमीन होती तो नीम के पेडों का जंगल लगाती।
शुभ रात्रि,शबा खैर .........भगवान तुम्हारी मनोकामना पूरी करे शील बाबू बोले
समय का पहिया अपनी गति से घूम रहा था । सुलोचना के बच्चे उच्चशिक्षित होकर नौकरी के सिलसिले में शहर चले गये,उच्चशिक्षित बेटी की डोली उठ गयी । सुलोचना और शील बाबू बचे थे। शील बाबू के दफतर चले जाने के बाद सुलोचना नीम के पेड़ से बतियाती रहती,अपना दुख-सुख साझाा कररती ।सुलोचना को जब-जब अकेलापन महसूस होता, चाहे रात हो या दिन वह नीम के पेड़ से बतियाती,नीम का पेड़ कभी बिल्कुल शान्त हो जाता कभी झूमने लगता,सुलोचना को लगता नीम का पेड़ उसके दुख में दुखी खुशी में खुशी का इजहार कर रहा है।
समय बीत रहा था ।अचनाक शीलबाबू को दण्ड स्वरूप स्थानान्तरित कर दिया गया। शीलबाबू तो वैसे बहुत-पढे लिखे थे परन्तु भेदभाव के शिकार हो गये थे।,रूढिवादी,साम्राज्यवादी,सामन्तवादी,नस्लवादी अधिकरीवृन्द ने ऐसा रगड़ा था कि शीलबाबू का कैरिअर खत्म हो गया था बस नौकरी चल रही थीएठीक वैसे ही जैसे मृत शैय्या पर की सांस।शीलबाबू उच्चशिक्षित उसूल के पक्के थे,विभाग के प्रति समर्पित शख्सियत थे।हर खूबी के धनी शीलबाबू जातीय कारणों से अयोग्य थे। नीचले तबके का होना उनका सबसे गुनाह था ।यही उनके बेमौत मारे जा रहे सपनों का कारण भी था ।खैर मरता क्या ना करता शीलबाबू परदेस दर परदेसी होते रहेसुलोचना पति की गाढी कमाई और कर्ज से खड़े घर और घर के सामने सीना ताने नीम के पेड़ के सहारे अकेली होकर गयी थी।
सुलोचना गांव शहर सब दूर जाती पर कहीं टिकती नही थी। वह लौटकर नीम के पेड़ की छांव में आ जाती।नीम के पेड़ की छांव में उतारी गयी अपने परिवार की तस्वीर घण्टों तक निहारती रहती।सुलोचनाकहती हमारी युवा अवस्था और बच्चों का बचपन नीम की छांव तलें बीता।हमारे परिवार के जीवन की यादें इस घर और नीम के पेड़ से जुड़ी हुई है।मैं नीम के पेड़ और कर्ज लेकर पति द्वारा बनाये गये घर को छोड़कर कहीं नहीं जाउंगी।एक दिनहमारा परिवार नीम की छांव और घर में जरूर आयेगाएमेरे नाती-पोतों की किलकारियां गुंजेगी।
समय ने करवट बदला,सुलोचना का सपना सच हो गया। अब लोग सुलोचना से पेड़ लगाने के गुर सीखने आने लगे थे।सुलोचना कहती-खुशहाली और हरियाली लाना है,धरती और जीवन बचाना है तो पेड़ लगाना है। अब सुलोचना के जीवन का मकसद पेड़ लगाना जीवन बचाना हो गया था।
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डां.नन्दलाल भारती
दिनांक07.05.2016
.............
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परिचय
डा.नन्दलाल भारती
कवि, लघुकथाकार, कहानीकार, उपन्यासकार
शिक्षा - एम.ए. । समाजशास्त्र । एल.एल.बी. । आनर्स ।
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट ;च्ळक्भ्त्क्द्ध
जन्म स्थान- जिला-आजमगढ । उ.प्र।
प्रकाशित पुस्तकें अप्रकाशित पुस्तकें......... सम्पादन उपन्यास-अमानत, चांदी की हंसुली उखड़े पांव। लघुकथा संग्रह। उपन्यास-दमन, वरदान, अभिशाप एवं डंवरूआ कहानी संग्रह -मुट्ठी भर आग, हंसते जख्म, सपनो की बारात, अण्डरटेकिंग लघुकथा संग्रह-उखड़े पांव / कतरा-कतरा आंसू काव्यसंग्रह -कवितावलि / काव्यबोध, मीनाक्षी, उद्गार, भोर की दुआ, चेहरा दर चेहरा आलेख संग्रह- विमर्श एवं अन्य इंसा न्यूज मासिक, इंदौर
सम्मान/पुरस्कार विद्यावाचस्पति एवं विद्याासागर विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, हिन्दी भाषा भूषण, साहित्य मण्डल, श्रीनाथद्वारा, विद्यावाचस्पति;च्ीण्क्द्ध विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, वरि.लघुकथाकार सम्मान.2010, दिल्लीस्वर्ग विभा तारा राष्ट्रीय सम्मान-2009, मुम्बई, साहित्य सम्राट, मथुरा। उ.प्र.। विश्व भारती प्रज्ञा सम्मान, भोपल, म.प्र., विश्व हिन्दी साहित्य अलंकरण, इलाहाबाद। उ.प्र.। लेखक मित्र । मानद उपाधि। देहरादून। उत्तराखण्ड। भारती पुष्प। मानद उपाधि। इलाहाबाद, भाषा रत्न, पानीपत । डां.अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान, दिल्ली, काव्य साधना, भुसावल, महाराष्ट्र, ज्योतिबा फुले शिक्षाविद्, इंदौर । म.प्र.। डां.बाबा साहेब अम्बेडकर विशेष समाज सेवा, इंदौर , विद्यावाचस्पति, परियावां। उ.प्र.। कलम कलाधर मानद उपाधि , उदयपुर । राज.। साहित्यकला रत्न । मानद उपाधि। कुशीनगर । उ.प्र.। साहित्य प्रतिभा, इंदौर। म.प्र.। सूफी सन्त महाकवि जायसी, रायबरेली । उ.प्र.। एवं अन्य
आकाशवाणी से काव्यपाठ का प्रसारण । रचनाओं का दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, पत्रिका, पंजाब केसरी एवं देश के अन्य समाचार पत्र-पत्रिकाओ प्रकाशन , अन्य ई-पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन।
सदस्य इण्डियन सोसायटी आफ आथर्स । इंसा। नई दिल्ली
साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी, परियांवा। प्रतापगढ। उ.प्र.।
हिन्दी परिवार, इंदौर । मध्य प्रदेश। अखिल भारतीय साहित्य परिषद न्यास, ग्वालियर, मध्य प्रदेश ।
आशा मेमोरियल मित्रलोक पब्लिक पुस्तकालय, देहरादून । उत्तराखण्ड।
साहित्य जनमंच, गाजियाबाद। उ.प्र.। म.प्र..लेखक संघ, म्रप्र.भोपाल,
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जनप्रवाह। साप्ताहिक। ग्वालियर द्वारा उपन्यास-चांदी की हंसुली का धारावाहिक प्रकाशन
उपन्यास-चांदी की हंसुली, सुलभ साहित्य इंटरनेशल द्वारा अनुदान प्राप्त
नेचुरल लंग्वेज रिसर्च सेन्टर, आई.आई.आई.टी.हैदराबाद द्वारा भाषा एवं शिक्षा हेतु रचनाओं पर शोध ।
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