कहानी संग्रह - अपने ही घर में / अब तो वह कुछ भी न थी पोपटी हीरानंदाणी उसकी चमड़ी गोरी थी, पर चेहरे पर अनेक झुर्रियां थीं। उसके गोरे गा...
कहानी संग्रह - अपने ही घर में /
अब तो वह कुछ भी न थी
पोपटी हीरानंदाणी
उसकी चमड़ी गोरी थी, पर चेहरे पर अनेक झुर्रियां थीं। उसके गोरे गालों पर लॉली लगी थी, बावजूद इसके उसमें जवानी की वह ताज़गी न थी। उसके होंठ तो बारीक व लाल थे मगर वो किसी को गुलाब की पंखुड़ियों का धोखा न दे पाए।
वह क़द की नाटी थी मगर गोल चेहरा, बड़ी-बड़ी आँखें और अपनी सही जगह पर स्थित नाक यही साबित कर रहा था कि यह खंडहर किसी आलीशान इमारत का ही था।
वह कोलाबा के मुख्य रास्ते से दाईं तरफ़ वाली दुकानों वाली फुटपाथ पर चल रही थी। फ्राक के साथ मैच एड़ी वाली सैंडिल पड़ी थी, जो काफ़ी पुरानी थी। घिसी हुई एड़ियों के कारण वह ऐसे चल रही थी जैसे वह पैरों को नहीं चला रही थी, बल्कि पैर उसे चला रहे थे। पैरों की एड़ियों के ऊपर टांगों के आगे वाले भाग में कुछ-कुछ नीली शिराएं साफ़ नज़र आ रही थीं।
जहां से भी वह गुज़रती थी, नौजवान राज़ भरे अन्दाज़ से मुस्करा देते। पर कोई भी उसमें दिलचस्पी नहीं लेता। उस औरत ने खुद भी महसूस किया कि जवानों के दिलों को आकर्षित करने वाला जादू उसके बदन में अब नहीं रहा। जो बाक़ी था वह भी इस आई हुई बीमारी ने उससे छीनकर उसे निढाल कर दिया। अब वह अपनी उम्र से ज़्यादा बड़ी लग रही थी।
रास्ते के दोनों ओर दुकानें थीं। मुम्बई में आजकल दुकानों के आगे दुकान खुले हुए हैं। फैक्टरी से माल सीधे लाकर अल्लाह की ज़मीन पर धर देते और इसी तरह नौजवान माल बैठकर बेचते। किसी के पास अपना माल है और कोई दूसरों का माल लेकर, रोज़ाना दस बीस लेकर बेच रहे हैं। फैक्टरी के मालिकों को भी फ़ायदा और लोगों को भी सस्ती चीज़ मिल जाती। तीनों को पर्याप्त फ़ायदा और तीनों खुश।
एक बोरी नौजवान बूट व चप्पलों का ढेर आगे रखकर बैठा था। उसने ज़ोर से आवाज़ देकर कहा.‘मासी! इतना पैदल करने के बाद भी कोई ग्राहक नहीं मिला है क्या?’
पास में ही सेब और संतरा बेचनेवाला मराठी जवानी होंठों में ‘फू...फू...’ करते हुए हंस पड़ा। कुछ ही दूरी पर एक और नौजवान रंग-बिरंगी चूड़ियों को वृताकार में सजा रहा था। उसने जॉनी वॉकर जैसी आवाज़ में कहा.‘अरे! इसे भाभी कहकर कैसे बुला सकते हो? देख नहीं रहे, यह गोरी चमड़ी वाली है? अंग्रेजों की औलाद, यह तो आंटी है आंटी।’
आसपास जो भी आए गए उनमें से जिन्होंने अपनी कमज़ोरी को शराफ़त के नक़ाब से ढांप रखा था, वे वहाँ से तेज़ी से चलते गए। पर जो चीज़ें बेचने के लिये बैठे थे वे सभी हंसने लगे...एक ने सर पर से टोपी आगे खिसका कर उसकी आड़ में कहा.‘अंग्रेज भाग गए, अपनी औलाद छोड़ गए।’
‘औलाद? अरे वह तो हरामज़ादी है हरामज़ादी।’ दूसरे ने मुंह में पान डालकर कहा और चने वाले की बग़ल में बैठ गया।
एक दस साल का लड़का था, जिसके हाथ में चने की पुड़िया थी। उसने हरामज़ादी लफ़्ज का अर्थ तो बिल्कुल नहीं समझा पर यह समझ गया कि उस औरत को चिढ़ाया जा सकता है। मस्ती करने के ख़याल से उसने उस औरत की स्कर्ट को पीछे से खींचा और फिर भाग गया।
एक पाशविक आदमी ने जानबूझकर उस औरत से अपना बदन लगाया। सामने से पुलिस वाला आ रहा था। उस शख़्स ने पुलिस वाले से डरने की बजाय उसे आँख मारी और फिर दोनों हंसने लगे।
औरत ने किसी से कुछ भी नहीं कहा और न ही किसी तरह का आक्रोश दिखाया। हक़ीक़त में उसके चेहरे पर, या उसकी आँखों में कोई भी भाव न था। वे बिलकुल ख़ाली-ख़ाली थीं।
एक शख़्स कंधे पर ट्राजिस्टर लटकाए वहाँ से गुज़रा। उसमें से अनूप जलोटा का गाया भजन सुनने में आया।
‘तन के तंबूरे में दो साज़ों के तार बोले
जय सियाराम, राम...जय राधे श्याम...’
सुनने वालों के सर थोड़े बहुत हिले पर वह सीधे ही सीधे चलती जा रही थी। जैसे इस तरह की दुनिया से उसका कोई संबंध नहीं था।
अचानक एक घर से अंग्रेज़ी गाने की धुन स्टीरियो सिस्टम से ज़ोर-ज़ोर से बजने लगी। वह धुन पहली मंज़िल के एक मकान से आ रही थी। वह जहां थी वहीं ठहर गई। उसके बदन में लर्ज़िश कुछ इस तरह आई जैसे घुटन के बाद हवा के हल्के झोंके से पीपल का पत्ता धीरे-धीरे हिलता है। उसकी ख़ाली आँखें पानी से भर भर गईं।
शायद उसे ‘जॉन’ की याद आ गई। जॉन.जिसे उसने इस दिल के पहले पाक जज़्बे से प्यार किया था। जॉन भी उसे प्यार करता था; पर एक लड़की का मन किसी लड़के के मन से जल्दी विकास करता है। जॉन ने अभी प्यार का मतलब पूरी तरह से समझा भी न था कि एलिज़बेथ ने अपना सब कुछ उस पर निछावर कर दिया।
जब जॉन ‘माइ लिज़’ कहकर उसके होंठों पर अपने होंठ रखता था तब एलिज़बेथ ऐसा महसूस करती थी जैसे वह दुनिया के सबसे ऊंचे स्थान पर पहुंच गई है। स्कूल में उसके सभी सहपाठियों को पता था कि दोनों एक दूसरे के प्यार में गिरफ़्त हैं।
पर कॉलेज में आते ही जॉन रीटा के साथ घूमने लगा। एलिज़बेथ को बहुत दुख हुआ पर जो चीज़ बहुत पास होती है वह पूरी तरह से देखने में नहीं आती है। इसीलिए जॉन भी एलिज़बेथ का दर्द देख नहीं पा रहा था।
वैसे भी अगर इन्सान को कोई चीज़ सहज ही मिल जाती है तो वह उसका मूल्य नहीं जान पाता। पुरुष के सामने भी जो स्त्री ख़ुद को समर्पित कर देती है, वह उसे आकर्षक और लुभाने वाली नहीं लगती। उसे वही औरत आकर्षित करती है जो उससे दूर होती है।
एलिज़बेथ जैक, ब्रायन, थामस, फेरोज़ सबके साथ घूमने लगी। वह जॉन को यह दिखाना चाहती थी कि उसे भी बहुत सारे लड़के चाहते हैं।
मगर एक के पास से दूसरे के और फिर निरंतर साथी बदलने वाली औरत ‘एक चीज़’ बन जाती है। यूं फिरते-फिरते वह जाकर शफ़ी के पास पहुंची। शफ़ी ने उसकी पहचान ग़नी से कराई और ग़नी उसे ‘अपना माल’ समझकर गफ़्फ़ूर को बेच आया।
जैसे कोई चीज़ भंवर के घेराव में आकर गहरी खाई में जा गिरती है, वैसे ही एलिज़बेथ भी ऐसी खाई में जा गिरी जहां से ऊपर उभरना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।
ऊपर खिड़की से उस धुन की आवाज़ को सुनकर एलिज़बेथ को याद आया कि स्कूल के बिदाई के कार्यक्रम में वह और जॉन एकदूसरे से मिलकर इसी धुन पर गोल-गोल घूम रहे थे। एलिज़बेथ के बाल उड़ रहे थे और चारों ओर खड़े शागिर्द तालियां बजा रहे थे। घड़ी पल के लिये वह अपने अतीत में खो गई और उसके होंठों पर मुस्कराहट फैल गई।
उसे मुस्कराता देख, सामने से आते हुए शख़्स पुकार उठा : ‘साली, कुत्ती!’
एलिज़बेथ का बदन थर-थर कांपने लगा। जब उसने पहली बार गफ़्फूर को देखा था, उसे उल्टी आने लगी थी। मैला, गंदा, असभ्य, गफ़्फूर जिसके बदन से पसीने की बदबू आ रही थी। उसके कुर्ते पर दाग़ थे पर वे पान के नहीं लगे। शायद वह घर में मुर्गी का वध करके आया था।
एलिज़बेथ ने उल्टी को अंदर लौटाया, तो थूक बाहर निकल आई। गफ़्फूर को बहुत गुस्सा आया। उसने जमकर एक थप्पड़ एलिज़बेथ को मार दी, ‘साली! कुत्ती!’
फिर लात मारकर उसे खाट पर फेंका और उसके बदन को चीर फाड़ने लगा।
धीरे-धीरे वह सीख गई कि जवानी देकर क्या-क्या पाया जा सकता है। औरत के पास जवानी हो तो पुरुष उसकी ख़ुशामद करता है और अगर जवानी में सौंदर्य भी शामिल हो तो फिर पुरुष उसके सामने सजदा करता है।
जवानी और सौंदर्य देकर, उसके बदले में मुनाफ़ा लेकर एलिज़बेथ हंसती रही और जीती रही। पर अब तो उसके पास जवानी थी ही नहीं। और जवानी के बिना सुन्दरता किस काम की?
एलिज़बेथ ने चाहा कि वह रोए, इतना रोए कि उसके बदन का सारा खून पानी बनकर बाहर बह जाए।
पर इस किस्म की औरत को रोने का हक़ तो मिलता ही नहीं हैः
और एलिज़बेथ हंसने लगी। अपने व्यवसाय करने वाली और औरतों की हंसी की तरह...वही हंसी।
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