कश्मीरी लाल चावला पंजाबी भाषा के कवि हैं और वह पंजाबी कविता में हाइकु विधा को प्रतिष्ठित करना चाहते हैं. वह पंजाबी में हाइकु लिखने वाले पहल...
कश्मीरी लाल चावला पंजाबी भाषा के कवि हैं और वह पंजाबी कविता में हाइकु विधा को प्रतिष्ठित करना चाहते हैं. वह पंजाबी में हाइकु लिखने वाले पहले कवियों में से एक हैं. उन्होंने अपनी पंजाबी हाइकु रचनाओं का स्वयं ही हिन्दी में अनुवाद भी किया है. ‘हाइकु यात्रा’ (अमर ज्योति प्रकाशन, मुक्तसर) उनका एक ऐसा ही हाइकु संग्रह है जिसमें उन्होंने अपने आठ सौ से ऊपर पंजाबी हाइकुओं के साथ उनका हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत किया है. मैं पंजाबी भाषा नहीं जानता लेकिन कोई यदि पंजाबी में बात करता है तो आधा-परदा समझ लेता हूँ. किन्तु गुरुमुखी लिपि में लिखा पढ़ नहीं पाता. चावला जी ने अपने इस संग्रह में पंजाबी हाइकुओं के लिए गुरुमुखी का ही इस्तेमाल किया है. इसलिए वे मेरी पहुंच के बाहर हो गए. उनका हिन्दी अनुवाद क्योंकि देवनागरी लिपि में है इसलिए हिन्दी में अनुवादित हाइकु रचनाओं का आस्वादन ही मैं कर सका हूँ.
चावला जी अपने इस संग्रह की भूमिका में कहते हैं कि हाइकु अन्दर मौसम का कुदरती हवाला होता है. वह (हाइकु) शब्दों की दुनिया ज़रिए कुदरत की महायात्रा के दर्शन कर लेता है; कि हाइकु कवि कुदरत का आशिक होता है. वह दु;खी मानवता का मित्र होता है. वह कुदरत के बीच बोलता है, कुदरत उस बीच बोलती है. इस तरह हाइकुकार एक ही समय कुदरत और मानवी ज़िंदगी बीच प्रवेश करता है. चावला जी ने यह एक बड़ी बात कही है. इससे कविता के प्रति उनका दृष्टिकोण स्पष्ट हो जाता है.
अपने इस संग्रह में उन्होंने ‘दो रातें एक सवेर’ शीर्षक से भूमिका लिखी है. शायद वह कहना चाहते हैं कि ‘दिन’ दो ‘रातों’ के बीच स्थित एक संघटना हैं. अपने अपने देखने का फर्क है. हम ‘रात’ को दो ‘दिनों’ के बीच स्थित देख सकते हैं. दृष्टिकोण का अंतर है. किन्तु यह एक महत्वपूर्ण अंतर है. कश्मीरी लाल जी के पहली कुछ रचनाओं में ज़िंदगी के स्याह पहलू की चर्चा करते हैं. –
काले वक्त के
काले लेख लिखती
काली- ज़िंदगी *
काला आकाश
काले चाँद सितारे
काली –ज़िंदगी *
काले बादल
चढ़ चढ़ आवन
घटा –ज़िंदगी *
किन्तु ज़िंदगी सिर्फ स्याह नहीं है, ज़िदगी के और भी पहलू हैं. उसमें केवल अन्धकार ही नहीं है. कोई पूछे, ज़िंदगी क्या है? अजीब सवाल है. क्या इसका कोई जवाब दिया जा सकता है? ज़िंदगी बहुत जटिल है और इसका जवाब बहुत कठिन है. इसीलिए चावला जी कहते हैं,
कैसा सवाल
जाल के अन्दर है
जाल –ज़िंदगी *
कश्मीरी लाल चावला की यह ‘हाइकु यात्रा’ पूरा एक ज़िंदगी-नामा है. उन्होंने इसमें ज़िंदगी के पहलू दर पहलू को उजागर करने की कोशिश की है और चाहा है कि जीवन का हर पक्ष सुरक्षित रहे –
करें प्रार्थना
सृष्टि का हर अंग
बचे –ज़िंदगी *
ज़िंदगी में बेशक बहुत अन्धकार है, लेकिन अन्धकार है इसीलिए रोशनी की दरकार भी है. रोशनी के लिए आर्त्र पुकार सुन कर ही ईश्वर ने प्रकाश की व्यवस्था भी की है.
सुन पुकार
जोत रब्ब ने भेजी
जोत –ज़िंदगी *
हम खाली हाथ आए हैं और खाली हाथ ही चले जाएंगे –
खाली आए हैं
खाली हाथ चलना
सत्य –ज़िंदगी
इसलिए यह ज़रूरी है कि हम जितने दिन भी रहें, प्यार-मुहब्बत से रहें.
मन मेरे पे
छम छम बरसे
प्रेम –ज़िंदगी *
करो प्यार कि
दुश्मन निभाए
साथ ज़िंदगी
जब प्रेम नहीं होता तो ज़िंदगी का मज़ा ही ख़त्म हो जाता है. प्रेम के बिना तो ज़िंदगी मुहब्बत के घाट पर जार जार रोती है –
दिलों बिसारी
रोती है मोहब्बत
घाट –ज़िंदगी *
और ज़ाहिर है ऐसा तभी होता है जब आदमी आत्म केन्द्रित होकर अपने में सिमट कर रह जाता है –
सिमट गई
मतलबी घेरे में
मुट्ठी –ज़िंदगी *
जब नफ़रत की हवा बहती है तो ज़िंदगी भी हवा हो जाती है. –
देख अंधेरी
हवा नफ़रत की
हवा –ज़िंदगी *
क्या किया जाए? ज़िंदगी है तो मुहब्बत भी है और नफ़रत भी; रात भी है और प्रभात भी; कांटे भी हैं और फूल भी हैं; कभी ज़िंदगी बड़ी चौड़ी, बड़ी लम्बी और पहाड़ सी दिखाई देती है तो कभी राई बराबर हलकी और छोटी हो जाती है; ज़िंदगी अगर बहार है तो पतझड़ भी है; ज़िंदगी कभी एक-सी नहीं रहती, उसका रूप बनता - बिगड़ता रहता है. ज़िंदगी विरोधाभास है, उसमे एक प्रकार की द्वैध-वृत्ति है और ज़िंदगी का यह द्वैध शायद ज़रूरी भी है –
रात न होती
प्रभात भी न होती
न ही ज़िंदगी *
कांटे देता
कभी देती खुशबू
फूल –ज़िंदगी *
लम्बी चौड़ी है
कभी पहाड़ बने
राई –ज़िंदगी *
पतझड़ भी
कभी खिला जाती
फूल –ज़िंदगी *
रूप तो मेरा
बनता बिगड़ता
रूप –ज़िदगी *
कभी ज़हरी
कभी मीठी सलूनी
मेरी –ज़िंदगी *
फूल रखते
खुशबू, साथ कांटे
दुखी –ज़िंदगी *
लेकिन इस सबके बावजूद कवि को यह भी
अहसास है
दुखों बीच पला है
गीत –ज़िंदगी’ *
कश्मीरी लाल चावला, ज़िंदगी कितनी ही विरोधाभासी क्यों न हो, तरजीह प्यार और मुहब्बत को ही देते है. वह ज़िंदगी का भरपूर आनंद उठाने के लिए कहते हैं.
खुद नाचता
हमें भी नचा जाता
मोर –ज़िंदगी *
ऐसे में आत्मविश्वास के साथ जीना ही वास्तविक जीना है. कभी कभी ऐसा ज़रूर लगता है कि मानो आदमी को ज़िंदगी सिर्फ नाच नचा रही है और डोर किस्मत के हाथ में है, या कभी ऐसा भी लगता है कि सारी मेहनत और मशक्कत के बावजूद हम रोटी तक से महरूम रह जाते हैं-
मेहनत भी
जब रोटी ना देती
धोखा –ज़िंदगी *
नाच रहे हैं
हाथ किसी के आए
डोर –ज़िंदगी *
तो इन परिस्थितियों में भी आदमी को धैर्य खोना नहीं चाहिए. चावला जी कहते है, -
कर रोशन
दिमाग तू अपना
जगे ज़िंदगी *
ज़िंदगी के तजुर्बे इंसान को फौलाद बना देते हैं. मेहनत का कोई विकल्प नहीं है. –
है मेहनत
हाथ हतौड़े साथ
बनी ज़िंदगी *
फौलाद बनी
तजुर्बों में ढली
यह –ज़िंदगी.*
गिडगिड़ाना
रुकना या झुकना
नहीं –ज़िंदगी*
सब जिओ जी
मान अभिमान में
जीना ज़िंदगी*
हार मानकर ठहर जाने का तो सवाल ही नहीं है. चरैवेति चरैवेति.-
चल सो चल
मौत से बुरी लगे
खडी ज़िंदगी * और कि
मेरा प्रवाह
दिल बीच उतरे
धारा –ज़िंदगी *
सब कुछ कह लेने के बाद मुझे लगता है कि कश्मीरी लाल चावला की हाइकु यात्रा का जो सार है वह अंतत: प्रेम और मुहब्बत का पैगाम ही है. प्रेम ही (उसका) नाम है. प्रेम कहो या नाम, बात एक ही है. –
ख़त्म ना घटे
प्रेम अमृत नाम
प्रेम –ज़िंदगी *
पी ले अमृत
नाम प्याला तू अब
नाम –ज़िंदगी
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