हिंदी में हाइकु (१५) माटी की नाव / सुरेन्द्र वर्मा

SHARE:

‘कागज़ की नाव’ हिन्दी में एक प्रचलित मुहावरा है. कागज़ की नाव ज्यादह देर तक तैर नहीं सकती. कागज़ गल जाता है और नाव पानी में डूब जाती है. रामेश...

‘कागज़ की नाव’ हिन्दी में एक प्रचलित मुहावरा है. कागज़ की नाव ज्यादह देर तक तैर नहीं सकती. कागज़ गल जाता है और नाव पानी में डूब जाती है. रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ ने अपने हाइकु संग्रह का नाम “माटी की नाव” (अयन प्रकाशन,नई दिल्ली २०१३) रखकर एक नया मुहावरा गढ़ा है. और इसलिए इस संग्रह को पढ़ते हुए पाठक का ध्यान सबसे पहले संग्रह के शीर्षक पर ही जाता है. आखिर कवि ‘माटी की नाव’ जैसे पदबंध से क्या कहना चाहता है?

सामान्यत: भारत में यह प्रथा है कि किसी भी काम की शुरूआत हम अपने आराध्य देव का स्मरण करके करते हैं. कोई माता सरस्वती का स्मरण करता है, तो कोई राम और / या कृष्ण को याद करता है. कोई सीधे-सीधे प्रभु / ईश्वर का ही नाम लेता है. लेकिन यह ध्यान देने की बात है कि रामेश्वर जी धरती माता की याद करते हैं. वह धरती को वसुंधरा, विश्वम्भरा, प्राणदायिनी, सुमनरूपा, मधुजा, शस्यश्यामला, मां मेदिनी आदि कहकर संबोधित करते हैं और उसके स्नेह निर्झर की कामना करते हैं. लघुकथाकार और हाइकुकार पारस दासोद जिनका हाल ही में असमय निधन हो गया है, भी अपने एक हाइकु संग्रह, ‘आ..गाँव चलें’ में पुस्तक के आरम्भ में अपनी धरती को ही नमन करते हैं. – ‘प्यारी से प्यारी / मां ..गाँव की माटी मां /तुझे नमन”. धरती के पास सिर्फ माटी ही तो है. और यही माटी उसे मां बना देती है.

बच्चन ने अपना परिचय देते हुए एक जगह लिखा है, ‘मिट्टी का तन, मस्ती का मन – क्षण भर जीवन मेरा परिचय’ हम सभी माटी के ही तो बने हैं. माटी नए नए रूप धरती है और अंतत: ये सभी माटी में ही समा जाते हैं. माटी हमें हमारे जीवन की क्षणभंगुरता की और संकेत करती है. जीवन की इसी क्षणभंगुर नौका को लेकर हमें भवसागर पार करना है. यह सोच सोच कर कवि काम्बोज का मन काँप काँप जाता है.

दूर है गाँव

तैरनी है नदिया

माटी की नाव *

गहरा जल

तूफ़ान है उमड़ा

कांपता मन*

अंतत: माटी को घुल कर जल समाधि ले ही लेनी है. ऐसे अंत को कोई रोक नहीं सकता. –

घुली है माटी

ली है जल समाधि

खो गयी नाव *

हमारे क्षण भंगुर जीवन की यही कथा है.

डा. सुधा गुप्ता ने ‘माटी की नाव’ को ‘जीवन का ककहरा’ ठीक ही कहा है. इसमें जीवन के विविध रूपों का काव्यात्मक निरूपण हुआ है. इसमें जहां प्रकृति के म्लान-अम्लान, सोम्य-रौद्र रूप हैं वहीं चिड़ियों का कलरव है, नियाग्रा फाल है और फूलों की गंध-सुगंध भी है. इसमें जहां अनुरागी मन है, वहीं सुधियों की ज्योति भी है. रिश्तों की एक पूरी दुनिया है. बहिन और मां का प्यार है, तो भाल पर बिंदिया सजाए पत्नी का सौभाग्य भी है. रिश्ते खून के ही नहीं, मित्रता और दोस्ती के सम्बन्ध भी हैं. माटी की नाव के अंतर्गत आशा निराशा से खेलता मानव मन है तो बुझी हुई उमंगें भी हैं. मन आँगन भले ही डूबता उतराता रहे कवि का उदात्त भावनाओं से लहलहाता एक सकारात्मक सोच बराबर बना रहता है.

वनस्पति जगत मुख्यत: अपने पुष्प-पत्रों से जाना जाता है, हर मौसम के अपने फूल हैं और अपने ही पत्ते होते हैं. होली के आसपास पलाश के सारे पत्ते झर जाते हैं और पेड़ लाल पुष्पों से लद जाता है. होली रंगों का त्यौहार है और एक दूसरे पर रंग-जल डाल कर खेला जाता है. लेकिन पलाश को देखिए. कवि कल्पना कहती है

आग की पाग

बाँध कर पलाश

खेलता फाग *

सुबह होती है और सूर्य धीरे धीरे धरती पर उतरता है. ज़रा इसकी उतरने की उतावली तो देखिए –

चढी छत पे

छज्जे उतरी धूप

गिरी घास पे *

जो लोग पहाड़ पर या ठण्डे मौसम में रहते हैं उनके लिए धूप नियामत है. जब,

धरती ओढ़े

पूरे बदन पर

बर्फ की शाल (तब)

धूप का रूप

गुनगुना लगता है

हिमपात में *

धूप निकलते ही हिमपात का बर्फ उड़ने लगता है. कवि कहता है,

निकली धूप

उडी हिम-चिड़ियाँ

आँगन गीला *

धूप आवारा

घुमक्कड़ी करती

हाथ न आए *

खेले है धूप

कोहरे के कुञ्ज में

आँख मिचौली *

धूप बिटिया

खेले आँख-मिचौली

हाथ न आए *

सर्दी की धूप

गोदी में आ बैठी

नन्ही शिशु सी *

पल में उडी

चंचल तितली सी

फूलों को चूम *

धूप के ही नहीं, सुबह, शाम के वे चित्र भी जो ‘हिमांशु’ जी की कलम से उतरे हैं, इतने ही मन भावन हैं. भोर की लाली में वह अपनी प्रियतमा की आँखों में आशा की लाली देखते हैं और सांझ गए, सूर्य अपने मेंहदी रचे पाँव (रजनी के) द्वार पर रखता है.

तिरे नैनों में

आशा की रंगत ले

भोर की लाली*

भोर के होंठ

खुले तो ऐसा लगा

तुम मुस्कराए *

नभ अधर

हुए जो मुकुलित

उषा पधारी *

संझा जो आए

मेंहदी रचे पाँव

द्वार लगा *

पाखी चहके

नभ हुआ मुखर

संध्या वंदन *

मानव मन को छूतीं इस प्रकार की उत्तंग, उदात्त कल्पनाएँ काम्बोज जी के काव्य में बिखरी पडी हैं. किन्तु प्रकृति का रौद्र रूप भी अनदेखा नहीं रहा है. सुनामी और भूकम्प जैसी संघटनाएं प्रलय रूप हैं और हाहाकार मचा देती हैं. गरमी की लू-लपट तक कभी कभी जानलेवा हो जाती है.

निगल गई

अजगर-लहरें

उगता सूर्य *

अचानक ही

डूबे कई सूर्य

कुछ पल में*

हुए लापता

कलेजे के टुकडे

कम्पित धरा *

नदी सी बहें

लू लपटें लपेटे

छाँव झुलसे *

यह तो बात रही प्रकृति के अपने नैसर्गिक रौद्र रूप की जिसमें मनुष्य को चकित/ भ्रमित किया है, लेकिन मनुष्य ने भी अपने स्वार्थ के चलते प्रकृति को कोई कम नहीं रौंधा है.

काट ही डाला

छतनार पाकड़

उगी कोठियां*

पेड़ निष्प्राण

सीमेंट के जंगल

उगे कुरूप *

हाइकु काव्य को प्रकृति और प्रेम का काव्य माना गया है. काम्बोज जी के अनुरागी मन ने भी अपनी हाइकु रचनाओं में प्रेम को खासी वरीयता दी है.

झुके नयन

झील में झिलमिल

नील गगन *

तुम अभागे

हम मिले अभागे

तो भाग जागे *

तुम्हारा रूप

निद्रित शिशु हो या

सर्दी की धूप*

सांस कातके

है बुननी चादर

नई नकोर *

बरसों बाद

तुम मिल गए तो

सवेरा हुआ*

भीगा है मन

सुरभित जीवन

तुम चन्दन*

माँ सा मन

आंच मिली किसी की

पिघल गया *

मन बांसुरी

जितना दर्द भरे

उतनी बजे.*

इत्यादि, हाइकु कवि के अनुरागी मन के सहज प्रमाण हैं. यादों में भी काम्बोज जी ने अपने अनुरागी क्षणों को ही सहेज रखा है. क्षण की अनुभूति तो क्षण भंगुर है. अनुभूति के बाद वह पल तो विदा हो जाता है लेकिन यादें उसे टेरती रहती हैं. ठीक ऐसे ही जैसे हम विदा होते अपने किसी प्रिय जन को अपना रूमाल हिला कर प्रेम व्यक्त करते रहते हैं. हम अपनी स्मृतियों को दबा नहीं सकते. वे आवारा हैं, दबे पाँव आती हैं. वे हमारे मनके शजर से लताओं की तरह लिपटी रहती हैं, कसमसाती रहतीं हैं, और सबसे बड़ी बात यह कि मन के किसी भी कोने में प्रकाश की तरह वे आबाद रहती हैं.

टेरती रहीं

हिलते रूमाल सी

व्याकुल यादें*

बंधती नहीं

कभी किसी पाश में /

आवारा यादें*

आहट आई

आँगन में यादों की

दुबके पाँव *

गीली सुधियाँ

लताओं से लिपटी

उर-तरु से*

छोड़ न पाएं

दो पल भी तरु को

कसमसाएं*

तुम्हारी याद

अँधेरे में दीप सी

रही आबाद *

प्रेम का अर्थ ही है दूसरों के लिए हमारा ‘कंसर्न’, हमारी चिंता. प्रेम से ही पराए अपने बन जाते हैं. खून का रिश्ता तो अपना है ही, लेकिन जो खून का रिश्ता नहीं भी है वह मित्रता में बदल जाता और मित्रता कभी कभी खून के रिश्तों से भी बड़ी हो जाती है. रामेश्वर कामबोज ‘हिमांशु अपना प्रेम सभी को बाँटते हैं. बहन का प्यार, पत्नी/प्रेमिका का प्यार, मां का प्यार और इन खून के रिश्तों से अलग दोस्ती का विश्वास और प्रेम. सभी बहुमूल्य हैं. प्रेम एक ऐसी भावना है जिसका

शब्दार्थ – गंध

रचे नवल छंद

प्राणों में बसे *

कच्चे हैं धागे

है प्रेम गाँठ पक्की

खुले न कभी*

कवि वैदिक प्रार्थना, सर्वे भवन्तु सुखिन:, की तरह कामना करता है,

सब हों सुखी

प्यार की वर्षा से हो

आँगन हरा*

बहना मेरी

है नदिया की धारा

भाई किनारा *

मान सिंदूर

भाल पर बिंदिया

आँखों में चाँद*

माँ की याद

ज्यों मंदिर में जोत

जलती कहे *

दोस्ती का रिश्ता तो सबसे अलग ही तरह का रिश्ता है. न तो यह रक्त-सम्बन्ध है और न ही यह कोई कानूनी अनुबंध है. पूरी तरह प्रेम / विश्वास पर टिका यह सम्बन्ध वस्तुत: एक अनोखा ही सम्बन्ध है. खून के रिश्ते तो प्राय: खून के आंसू रुलाते हैं लेकिन

कोई न नाम

इतना रहा ऊंचा

दोस्ती है जैसा*

न अनुबंध

न हिसाब किताब

मैत्री सम्बन्ध*

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ सकारात्मक सोच के कवि हैं. आशावादी हैं. बेशक जीवन में उतार-चढाव आते हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं की हम सदा के लिए मुंह फुला कर बैठ जाएं,चुप. बैठ जाना किसी समस्या का कोई हल नहीं है –

न इनायत

न कोई शिकायत

चुप्पी ने मारा*

चुप से अच्छा

नफ़रत ही करो

दो बातें कहो *

बात तो करनी ही पड़ेगी. हाँ, अपने आंसुओं को ज़रूर बचा कर रखना होगा -

धोना पड़े जो

कभी मन आँगन

आंसू बचाना*

तरल करें

जब जब भी बहें

दर्द के आंसू*

कवि का परामर्श है कि तूफ़ान भी आएं तो भी सर न झुकाएं. उदास होने की कोई आवश्यकता नहीं है. रात में भी किसी न किसी रूप में रोशनी साथ रहती है –

तूफ़ान आएं

नहीं सर झुकाएं

रोशनी लाएं*

न हो उदास

संग चाँद औ’ तारे

होगा ही प्रात:*

रामेश्वर जी हालांकि इस बात से सहमत दिखाई देते हैं कि हाइकु काव्य का मुख्य आग्रह प्रकृति और प्रेम पर है किन्तु वह यह भी जानते हैं की कवि अपने सामाजिक सरोकारों और वस्तुस्थितियों से जिनसे उसकी मुठभेड़ प्रतिदिन होती ही रहती है, मुंह नहीं मोड़ सकता. एक हाइकुकार भी ऐसा नहीं कर सकता. आखिर हाइकुकार भी समाज का ही एक अंग है. वह अनावश्यक रूप से हाइकु और सेंर्यु में भेद नहीं करते. उनके हाइकु जिनमें स्पष्ट: सामाजिक सन्दर्भ है, इसके प्रमाण हैं. वह अपने समाज की स्थिति को देखकर व्यथित होते हैं. –‘चौराहों पर / घूमता सांड–जैसा / बेख़ौफ़ डर’ उन्हें भी डराता है. ‘फूंस का घर / या कि घूस का घर / भक से जलता’ देख उन्हें भी निराशा और अप्रसन्नता होती है और वह इसे बेलाग अपनी हाइकु रचनाओं में अभिव्यक्ति देते हैं. उनके यहाँ कोई भी विषय हाइकु रचनाओं के लिए वर्जित नहीं प्रतीत होता. मुझे प्रसन्न्ता है कि उन्हें इन रचनाओं में हास्य और व्यंग्य परोसने में भी मज़ा आता है. कुछ छुटभइयों की स्थिति का जायज़ा लेते हुए वह कहते हैं,

न बने मूंछ

कुछ तो बनाना था

बने हैं पूंछ

..............................................................................................................................................

डा. सुरेंद्र वर्मा

१०, एच आई जी /१,सर्कुलर रोड इलाहाबाद -२११००१

मो. ९६२१२२२७७८ ब्लॉग – surendraverma389.blogspot.in

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: हिंदी में हाइकु (१५) माटी की नाव / सुरेन्द्र वर्मा
हिंदी में हाइकु (१५) माटी की नाव / सुरेन्द्र वर्मा
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEih47ZXG_VFuuK9mkuclM81GimSu5G-9L7fo01KNw06e0-nr9mJV0h8dP9BDr-ufR6sl__MILxMtZaLkJ0ZXo_SnQUc4gnxd6Vzp4TjysfqZW9BW6tZNlQWxXuZTbaEEktkqlBA/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEih47ZXG_VFuuK9mkuclM81GimSu5G-9L7fo01KNw06e0-nr9mJV0h8dP9BDr-ufR6sl__MILxMtZaLkJ0ZXo_SnQUc4gnxd6Vzp4TjysfqZW9BW6tZNlQWxXuZTbaEEktkqlBA/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/05/blog-post_19.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/05/blog-post_19.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content