एक बार मुझे एक सरकारी कार्य के लिये मेरठ जाना पड़ा । मेरठ बस स्टैंड पर उतरते ही मैंने घड़ी की ओर देखा । आठ बजे थे । ऑफिस में मीटिंग दस बजे...
एक बार मुझे एक सरकारी कार्य के लिये मेरठ जाना पड़ा । मेरठ बस स्टैंड पर उतरते ही मैंने घड़ी की ओर देखा । आठ बजे थे । ऑफिस में मीटिंग दस बजे की थी । बस स्टैंड पर लगे सरकारी नल से चेहरा धोते हुये लगा कि दाढ़ी उग आई है । सोचा , क्यों न सामने की दुकान से दाढ़ी बनवा ली जाये । टाइम का टाइम पास हो जायेगा और चेहरे पर भी ज़रा रौनक आ जायेगी । कई दुकानों से गुजरता हुआ सहसा मैं एक दुकान के साइन बोर्ड से बहुत प्रभावित हुआ । लिखा था - ‘ बैकुंठ हेयर ड्रेसेज़ ’ । दीवारों पर चिपके आजकल के फिल्मी देवता व अप्सराओं के चित्र दिल खोल कर स्वागत के लिये तैयार खड़े थे । पूरा इंद्र दरबार सजा था । मैं दुकान के भीतर पहुंचा । सामने लगभग 45-50 वर्ष का एक अधेड़ गत्ते से हवा ले रहा था ।
मैंने पूछा - ‘क्या बैकुंठ हेयर ड्रेसेज यही है ? ’ वह गला खंखारते बड़े अदब से बोला - ‘ आइये हुज़ूर . . यही है आपका बैंकुठ धाम ।‘ मैंने चौंकते हुये कहा - ‘ . . क़् . क्या मतलब । ’ वह बोला - ‘अजी हुज़ूर , मतलब को मारो गोली । मैं ही हूँ आपका बैकुंठ । सब लोग प्यार से मुझे बैकुंठवा कहते हैं । ‘ वह हाथ जोड़ कर बोला - ‘बताइये क्या सेवा करुं । ‘ उसके सविनय निवेदन से मैं अभिभूत हुआ . . . लगा कि सचमुच स्वर्ग आ गया हूँ । मुझे पसीना आ रहा था ।
सामने लगी कुर्सी पर बैठते हुये मैंने कहा ‘भई , ज़रा ए़़. सी . तो चला दो । गर्मी के मारे दम निकला जा रहा है । बैकुंठ मेरे चेहरे से लगातार चूते हुये पसीने से बिल्कुल भी विचलित नहीं हुआ । कहने लगा - ‘हुज़ूर , यहां बिजली नहीं है । . . अब क्या बताउं । ये बिजली वाले भी बहुत परेशान करते हैं । 6 - 6 घंटे का कट रहता है । कंपलेंट करने पर अफसर कहते हैं कि तुम झूठ बोल रहे हो । हमारा शहर ‘र्स्माट शहर‘ की कैटेगरी में जाने के लिये तैयार खड़ा है । ऐसे में बिजली कैसे जा सकती है ? हम चौबीसों घंटे बिजली भेजते हैं । . . . हाँ अगर रास्ते में कोई लपक लेता है तो हम क्या करें । यह फौजदारी मामला है । हम कुछ नहीं कर सकते । . . खैर छोड़ो . . हम ठहरे सीधे - सादे आदमी । ज्यादा कानूनी पचड़े में पड़ते नहीं । हम तो सौ बातों की एक बात जानते हैं हुज़ूर कि जब बिजली को आना ही नहीं हैं तो क्यों हाथी पालें । इसलिये न तो हमने बिजली का कनैक्शन लिया और न ही ‘ए़़. सी़‘ लगवाया । . . हंसता है । हमारा काम तो दिन का ही रहता है। सांझ ढ़लते ही हम अपनी राधा के पास चल देते हैं ।‘
मैंने कहा - ‘ओहफ . . ओे . कहां फंस गया । तुम बातें बहुत करते हो ।‘ बैकुंठ - ‘ अह़ . ह़ ह़ हंसता हुआ - यही तो हमारा पेशा है हुज़ूर । अच्छा आप कहते हैं तो नहीं बोलते । अच्छा बताइये क्या खिदमत करूं ।‘ मैंने कहा - ‘जल्दी से शेव कर दो । ऑफिस जाना है ।‘ बैकुंठ - ‘अभी लो हुज़ूर । ऐसी हज़ामत बनाउंगा कि सीधे बैकुंठ पहुंच जाओगे ।‘ मैं चौंका - ‘क्या मतलब ?‘ बैकुंठ मेरे गले के चारों ओर एक गंदा सा तौलिया लपेटते हुये बोला - ‘ मतलब ई कि हुज़ूर , हमारे हाथों से शेव कराने के बाद धरती की अप्सरायें आपके कातिल रूप पर लटटू हो जायेंगी । ‘ ‘छी . . छी . . यह कौन सा साबुन है ? . . और यह तौलिया भी कितना गंदा है । बदबू के मारे नाक फटी जा रही है । मैंने गंदा तौलिया झटकते हुये कहा ।
‘ बैकुंठ -‘मैं गांधी भक्त हूँ हुज़ूर । स्वावलंबी भी हूँ । केवल अपने हाथों पर विश्वास रखता हूँ । बड़ा बेटा साबुन बनाना सीख रहा है । यह उसका ही बनाया हुआ साबुन है । हर जगह काम आता है । देखो कितना झाग दे रहा है ।‘ मैंने कहा - ‘ठीक है । ठीक है । जल्दी करो । आफिस जाना है ।‘ बैकुंठ उस्तरे को हथेली पर घुमा - फिरा कर तेज़ करता हुआ - ‘अभी गालों पर रंगत ला देते हैं ।‘ शेव करने लगता है कि सहसा गाल कट जाता है । ‘उई . . उई . . दर्द से चिल्लाते हुये मैंने कहा - ये क्या कर दिया ?‘ बैकुंठ - ‘गलती हो गई हुज़ूर । अब आप से क्या छिपाउं . . . कल इसी उस्तरे से मुन्नी ने पेंसिल छील ली थी । बहुत समझाता हूं हुज़ूर . . . . लेकिन क्या करूं आजकल के बच्चे तो . . . ही . . ही हंसते हुये - मानते ही नहीं . . लेकिन हुज़ूर , इसमें आपका भी तो फायदा है । मैं एक कटट के पच्चास पैसे छोड़ता हूँ । जितने कटट लगेंगे उतने ही पच्चास पैसे आप एक ही झटके में हासिल कर लेंगे । . . . हुआ न फायदा । आम के आम गुठलियों के दाम । ही . ही . ही . । हंसता है ।‘
मैंने झल्लाते हुसे कहा - ‘तू अपना फायदा अपने पास ही रख । . . . बस जल्दी से हाथ चला ।‘ हाथ चलाते - चलाते फिर कटट लग जाता है । ‘उफ़ . . फ . सी . . सी . फिर काट डाला । मैं कराहने लगा ।‘ बैकुंठ पर मेरे कराहने का कोई असर नहीं हुआ । वह मुस्कराते हुये बोला - ‘मैं क्या हाथ चलाउंगा हुज़ूर । हाथ तो हमारे पिता जी चलाते थे । हज़ामत बनाते - बनाते तुरंत उस्तरा ग्राहक की गरदन पर रख देते थे । . . . मज़ाल है कि कोई बाल कटवाने से मना कर दे ।‘ उसने अचानक उस्तरा मेरी गरदन पर रखते हुये कहा - . . ‘तो बाल कटवायेंगे न हुज़ूर ।‘ मैंने डरते हुये कहा - ‘बाप रे बाप . . दूर करो यह उस्तरा ।‘ बैकुंठ ने उस्तरा दूर करते हुये कहा - . . ‘तो मैं क्या कह रहा था हुज़ूर । . . . अरे हाँ . . . तो कटवायेंगे न बाल हुज़ूर ।‘ मैंने बालों पर हाथ फेरते सहमे हुये कहा - . . ‘हाँ . . हाँ काफी बढ़ गये है। काट ही दो ।‘ बैंकुंठ ने उपर अलमारी से एक मटमैला कपड़ा निकाला और मेरी गरदन पर बांधते हुये कहा - ‘अभी लो हुज़ूर ।‘ . . . ‘छी . छी़ छी. हटाओ इस गंदे बदबूदार कपड़े को . . . मैंने सिर झटकते हुये कहा ।‘
उसके आत्मस्वाभिमान को चोट लगी - ‘यह क्या कह रहे हैं आप ! यह कपड़ा देश का अभिमान है । देश की पहचान हैं । शत - प्रतिशत असली खादी है हुज़ूर । गाँधी बाबा का असली चेला हूँ . . और कोई कपड़ा इस्तेमाल नहीं करता ।‘ मुस्कराते हुये - . . ‘दरअसल हुज़ूर , यह बड़े कमाल का कपड़ा है । गरमी के दिनों में यह आइस का काम करता है । . . . यानी जितना गीला होगा , ठंडक उतनी ही बढ़ेगी । . . ही. ही. ही. हँसता है ।‘ देश का नाम सुनकर मैं कुछ शांत हुआ - ‘ठीक है । तुम बाल काटो ।‘ छोटी कैंची से बाल काटना आरम्भ करते हुये - ‘ऐसा कटट काटूंगा कि ये फिल्मी हीरो क्या कहते हैं वो . . सलमान - वलमान , शाहरूख - वाहरूख सब आपके सामने पानी भरते हुये नज़र आयेंगे ।‘
मैं मंद - मंद मुस्कराया - . . ‘अच्छा . . यह बताओ बैकुंठ . . ये दुकान कितनी पुरानी है ?‘ वह बड़े गर्व से बोला -‘ दादा - परदादा के ज़माने की है हुज़ूर । हमारे दादा , श्री विष्णु बिहारी खानदानी हज़ामती थे । बड़े - बड़े राजा - महाराजा उन्हें अपनी हज़ामत के लिये विशेष रूप से बग्घी से बुलाते थे । बड़ा रोब था उनका । हवेली के सभी कर्मचारी उन्हें सलाम ठोंकते थे । लखनउ के नवाब ने दादा जी के काम से खुश होकर यह दुकान उन्हें उपहार स्वरूप दी थी । उस समय इस दुकान पर हज़ामत बनवाने वालों की एक लंबी कतार लगी रहती थी । कूपन सिस्टम लागू था । मेरे पिता, श्री हरिमिलाप और भी घाकड़ थे । दादा जी ने उन्हें खूब बादाम पिलाया था । फुल्ल टाइम पहलवानी करते थे दादा जी के बाद उन्हें यह खानदानी बिज़नेस अपनाना पड़ा । रोब उनका भी काफी था ।
जो ग्राहक एक बार इस दुकान पर आ जाता था वह शेव से लेकर बालों और बालों से लेकर मालिश तक का काम करवाये बिना नहीं जाता था । फेशियल और मसाज़ तो अब चले हैं । पिता जी की इस मोहल्ले में इतनी धाक थी कि कोई चूँ तक नहीं करता था । उस्तरा तो सदा हाथ में लिये रहते थे। उसके बाद मैं। मेरी माँ कहती थी कि मेरी चाल - ढ़ाल हूबहू मेरे पिता जी से मिलती है । मुझे बचपन से ही हज़ामत का शोक था । एक बार मैंने गुस्से में आकर , सोते हुये अपने पिता जी की हज़ामत कर दी थी । उस दिन मैं बहुत पिटा था । खैर , दुकान पर मैं पिताजी का हाथ बंटाता था । मरते - मरते पिताजी इस व्सवसाय के सारे दांव - पेंच मुझे सिखा गये ।‘ उस्तरा हाथ में ले लेता है ।
मैंने डरते- डरते कुछ सोचते हुये कहा - ‘देखो भाई बैकुंठ , . . मालिश भी कर ही दो । कई दिनों से कमर में दर्द है । . . लेकिन , पहले शीशा दिखा दो ।‘ बैकुंठ पतलून की पिछली जेब से शीशा निकाल कर देता है - ‘ये लो हुज़ूर । अपने लिये रखा है । आप भी देख लो । . . वैसे यहाँ शीशे की ज़रूरत नहीं पड़ती । यहाँ हर काम तसल्ली बख़्श किया जाता है ।‘ छोटे - बड़े बेढ़गे कटे बाल देखकर मैं गुस्से से पागल हो उठा - . . ‘ये बाल काटे हैं या घास चराई है। कोई भी बाल बराबर नहीं है ।‘ बैकुंठ - ‘एकदम नया इस्टाइल है हुज़ूर ! हबीब भी मेरे ही इस्टाइल चुराता है । उस पर तो मैं केस करने वाला हूँ । कल देखना , यही इस्टाइल फिल्मी एक्टरों में पॉपुलर हो जायेगा । अभी शैंपू कर देता हूँ . . . बाल एकदम निखर जायेंगे ।‘ गैंडा छाप शैंपू की पूरी बोतल बालों पर उड़ेल देता है ।
मैं रुआंसा हो उठा - ‘ये क्या कर दिये तुमने ? . . जल्दी से इसे धोओ । शैंपू आँखों में आ रहा है ।‘ बैकुंठ कुछ सोचता हुआ - ‘ओफ़ हो ! अरे हुज़ूर , मैं तो यह बताना ही भूल गया कि पानी का बिल न जमा कराने के कारण पानी वाले पानी का मीटर काट गये हैं। . . ठहरो मैं साथ वाली दुकान से पानी लेकर आता हूँ ।‘ मैंने लगभग चीखते हुये कहा - ‘रहने दो । . . मैं ऐसे ही चला जाउंगा । तुम फ़ौरन अपने पैसे बताओ ?‘। बैकुंठ - ‘जैसी आपकी मर्ज़ी , पर मैं तो कह रहा था . . ।‘ कुछ नहीं . . बस तुम पैसे बताओ . . मेरी आँखें शैंपू के झाग से जली जा रही थीं ।‘ बैकुंठ - . . ‘ठीक है । जब आपकी यही ज़िदद है तो बता देता हूं। शेव के 50 रूपये , हेयर कटिंग के 100 , शैंपू के 50 रूपये , मालिश के 500 और कुल मिलाकर 1396 रूपये और 50 नये पैसे ।‘ मैं गुस्से से तिलमिला उठा - ‘क्या . . ! 1396 रूपये । क्या लूट मचा रखी है । होश में तो हो । . . कभी स्कूल का मुंह भी देखा है या नहीं !‘
बैंकुंठ - ‘ये तो हमारी तौहीन है हुज़ूर । पहली से दसवीं तक फर्स्ट आने में कोई कर तो लेता हमारा मुकाबला ! वो तो पिता जी की आकस्मिक मौत के बाद अचानक मुझे यहाँ बैठना पड. गया । वरना . . हम भी आज आपकी तरह ही सूट - बूट में होते ।‘ मुझे और गुस्सा आने लगा । मैं एक पल के लिये भी वहां रूक पाने में असमर्थ था - ‘अच्छा - अच्छा , जल्दी से हिसाब बता ।‘ बैकुंठ - ‘शेव के 50 रूपये , हेयर कटिंग के 100 , शैंपू के 50 रूपये , मालिश के । 500 रूपये । आपको इस हालत में दुकान से बाहर जाते देखकर मेरे कम से कम 5 - 7 ग्राहक तो भागेंगे ही । इसलिये 100 रूपये प्रति ग्राहक के हिसाब से यह रकम भी आपको ही देनी होगी । कुल मिलाकर हुये 1400 रूपये ।
. . और हाँ , कटट तो मैं भूल गया । . . आपके गाल पर सात कटट भी लगे हैं । तो 50 पैसे प्रति कटट के हिसाब से 1400-3.50 । कुल मिलाकर हुये 1396 रूपये और 50 नये पैसे । यहाँ ईमानदारी का सौदा होता है हुज़ूर । बेईमानी हमारे बाप - दादा ने नहीं की तो हम क्या करेंगे ।‘ मैंने झुझंलाते हुये कहा - ‘पर , मालिश तो मैंने करवाई नहीं ।‘ ‘पर आर्डर तो दिये थे न ! बैठिये अभी कर देता हूँ । उसने सिर झटकते हुये कहा ।‘
‘नहीं - नहीं . . मुझे कुछ नहीं करवाना । ये लो अपने 1396 रूपये । मैंने उसे 1500 रूपये देते हुये कहा । बाकी का बैलेंस जल्दी दो । . . . हाय . . आँखें जली जा रही हैं । ‘ ‘छुटटे तो नहीं हैं फिर ले लीजियेगा ।‘ मैंने झल्लाते हुये कहा - . . ‘फिर ! फिर यहाँ कौन मरने आयेगा ।‘ बैकुंठ - ‘फिर मैं यह समझूंगा कि बाकी के पैसे आपने मेरे काम से खुश होकर टिप्प दी है । ही . ही . ही़ हंसता है ।‘ मेरी जेब कतरी जा चुकी थी । स्थानीय सरकारी नल का पानी सूख गया था । मीटिंग खतम हो गई थी ।
मैं सचमुच ‘अच्छे दिन आने का अर्थ‘ समझने लगा था । . . लिहाज़ा मैं बढ़ती महंगाई , छोटी बचतों पर ब्याज दर कटौती व टैक्सों की मार झेल रहे आम आदमी की तरह कराहता हुआ बस स्टैंड की ओर चल पड़ा ।
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परिचय
नाम डॉ. नरेंद्र शुक्ल
पिता का नाम श्री देवता प्रसाद शुक्ल
जन्म तिथि 20.01.1969
शिक्षा एम.ए, पी.एच.डी, एल.एल.बी, एम.बी.ए., स्नातकोत्तर डिप्लोमा अनुवाद , स्नातकोत्तर डिप्लोमा गाँधीयन स्टडीज़ , स्नातकोत्तर डिप्लोमा कम्प्यूटर विज्ञान , स्नातकोत्तर डिप्लोमा हायर एजुकेशन , सर्टिफिकेट कोर्स कार्यकारी हिंदी ।
साहित्यिक प्रकाशित पुस्तकें ः
1- मरो मरो जल्दी मरो ; व्यंग्य संग्रह
2- ही ही ही ; व्यंग्य संग्रह
3- गागर में सागर ; हिंदी व्याकरण साहित्य
4- धूप अभी बाकी है ; काव्य संग्रह
5- गधे ही गधे ; प्रकाश्य द्ध ; व्यंग्य संग्रह
6- लड़कियाँ लिपस्टिक
क्यों लगाती हैं ; प्रकाश्य ; व्यंग्य संग्रह
7- तलाश जारी है ; प्रकाश्य ; कहानी संग्रह
पत्र - पत्रिकायें
दैनिक ट्रिब्यून, द ट्रिब्यून , दैनिक जागरण , दैनिक भास्कर , दैनिक सवेरा टाइम्स , उत्तम हिंदू , पंजाब केसरी , नीरज टाइम्स आदि उत्तर भारत के सभी प्रमुख अखबारों में 250 के लगभग व्यंग्य लेख , कहानियाँ व कवितायें ।
नाटक
1- स्वर्ग में इलैकशन ;मंचितद्ध
2- उजाले की ओर
3- बैंकुंठ हेयर ड्रैसेज़
4- आधुनिक रामलीला कमेटी
सम्मान
चंडीगढ़ साहित्य अकादमी अवार्ड - 2013
सम्पर्क
मकान नंबर 124
सेक्टर 35- ए
चंडीगढ़ - 160022
दूरभाष मोबाइल ः 09316103436
लैंड लाइन 09988323436
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