सिंहस्थ-२०१६. ( २२ अप्रैल से २१ मई २०१६) (गोवर्धन यादव.) कुम्भपर्व एक महत्त्वपूर्ण और सार्वभौम महापर्व माना जाता है, जिसमें देश-विदेश के ...
सिंहस्थ-२०१६. ( २२ अप्रैल से २१ मई २०१६) (गोवर्धन यादव.)
कुम्भपर्व एक महत्त्वपूर्ण और सार्वभौम महापर्व माना जाता है, जिसमें देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं. इसे यदि विराट मेला कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. विश्व में शायद ही ऎसे विराट मेले का आयोजन कहीं भी नहीं होता, यही तो इसकी विशेषता है. “कुम्भ” का शाब्दिक अर्थ है घट या घड़ा. कुम्भ के एक अर्थ विश्वब्रह्माण्ड भी है. जहाँ पर विश्व भर के धर्म, जाति, भाषा तथा संस्कृति आदि का एकत्र समावेश हो वही कुम्भमेला है. कुम्भ मेले का प्रारंभ कब से हुआ इसका ठीक-ठीक निर्णय करना कठिन है. परन्तु कुम्भपर्व के विषय में पुराणॊं में एक प्रसंग ऎसा आया हुआ है, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि कुम्भ मेले का प्रारंभ बहुत प्राचीन काल में ही हो चुका था. आज केवल उसकी आवृत्तिमात्र होती है.
कुम्भ पर्व को लेकर एक बड़ा ही रोचक प्रसंग पढ़ने को मिलता है –
किसी समय भगवान विष्णु के निर्देशानुसार देवों और दानवों ने मिलकर समुद्र-मंथन किया. मंदराचल पर्वत को मन्थनदण्ड और वासुकि नाग को नेती (मन्थन-रज्जु) बनाकर समुद्र-मंथन किया. मंथन करने से चौदह रत्न निकले, जो इस प्रकार हैं (१) ऎरावत हाथी.(२) कल्पवृक्ष (३) कौस्तुभमणि (४) उच्चैःश्रवा (५) चन्द्रमा (६) धनुष (७) धेनु (कामधेनु), (८) रम्भा (९) लक्ष्मी (१०) वारुणी (११) विष (१२) शंख (१३) धन्वन्तरि और (१४) अमृत.
धन्वन्तरि अमृतकुम्भ लेकर निकले ही थे कि देवों के संकेत से देवराज इन्द्र के पुत्र जयन्त अमृत-कुम्भ को लेकर वहाँ से भाग निकले. दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत-कलश छीनने के लिए जयन्त का पीछा किया. जयन्त और अमृत-कलश की रक्षा के लिए देवगण भी दौड़ पड़े. आकाशमार्ग में ही दैत्यों ने जयन्त को जाकर घेर लिया. तब तक देवगण भी वहाँ पहुँच चुके थे. फ़िर क्या था, देखते ही देखते दोनों में युद्ध छिड़ गया जो बारह दिन तक चलता रहा. दोनों दलों के संघर्ष-काल में अमृतकलश से पृथ्वी पर चार स्थानों पर अमृत की बूंदें छलककर गिर गयी. उस समय सूर्य आदि देवता जयन्त और अमृतकलश की रक्षा के लिए सहायता कर रहे थे. देवों तथा असुरों के कलह को शांत करने के लिए भगवान विष्णु मोहिनीरूप धारणकर प्रकट हुए तो युद्ध तत्काल थम गया और दोनों पक्षों ने तय कि अमृत पिलाने का भार इन्हीं पर छॊड़ दिया जाए. तब मोहिनीरूपधारी विष्णु ने दैत्यों को अमृत का भाग न देकर देवताओं को पिला दिया. इसलिए देवगण अमर हो गए.
अमृत प्राप्ति के लिए बारह दिनों तक देवों और दानवों में युद्ध हुआ था. देवों के बारह दिन मनुष्यों के लिए बारह वर्ष के बराबर होते हैं. इस कारण कुम्भ मेला भी बारह वर्ष के बाद एक स्थान पर होता आया है. जिन स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थी वे स्थान हैं (१) हरिद्वार (२) प्रयागराज (३) नासिक और (४) उज्जैन. इसीलिए इन चार स्थानों में बारह वर्षों के बाद कुम्भ मेला लगता है, जो ढाई महिने तक चलता है. इसे पूर्ण कुम्भ कहा जाता है. हरिद्वार और प्रयाग में छः साल के पश्चात अर्धकुम्भ का मेला भी आयोजित होता है. हरिद्वार के अर्धकुम्भ के अवसर पर नासिक का कुम्भ मेला होता है और प्रयाग के अर्धकुम्भ के समय उज्जैन का कुम्भ होता है.
(१) हरिद्वार- कुम्भराशि पर बृहस्पति का और मेष-राशि पर सूर्य का योग होने पर हरिद्वार में पूर्ण कुम्भ का अयोजन होता है.
(२) प्रयाग- वृषराशि पर बृहस्पति का योग होने पर प्रयाग में पूर्णकुम्भ मेले का आयोजन होता है.
(३) उज्जैन- सिंहराशि पर बृहस्पति का और मेष राशि पर सूर्य का योग होने पर उज्जैन में पूर्णकुम्भ मेले का आयोजन होता है.
(४) सिंहस्थ महापर्व दस महायोगों के उपस्थित होने पर मनाया जाता है. जिन दस महायोगों का उल्लेख शास्त्रों में उल्लेखित किये गए हैं वे इस प्रकार हैं-(१) सिंह राशि में बृहस्पति, (२) मेष राशि में सूर्य (३) तुला राशि में चन्द्र (४) स्वाती नक्षत्र (५) वैशाख मास (६) शुक्ल पक्ष (७) पूर्णिमा तिथि (८) व्यातिपात योग (९) सोमवार और (१०) अवंतीपुरी( उज्जैन.). नासिक- वृश्चिकराशि पर बृहस्पति का योग होने पर नासिक में पूर्ण कुम्भ का योग होता है, जहाँ कुम्भ का मेला लगता है.
इस प्रकार चारों स्थानों में बारह वर्ष के पश्चात एक महाकुम्भ पर्व होता है. कुम्भ मेलों का महत्व बतलाते हुए कहा गया है.
अश्वमेघसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च * लाक्षं प्रदक्षिणा भूमेः कुम्भस्नाने तत्फ़लम
अर्थात- हजार अश्वमेघयज्ञ करने से और लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जो फ़ल मिलता है, वही फ़ल कुम्भस्नान से प्राप्त हो जाता है.
कुम्भपर्व में जाति, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, राज्य, संस्कृति, साहित्य, दर्शन, वेषभूषा आदि सभी संदर्भों में अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं. साधु-संत, धनी, विद्वान, कर्मकांडी, योगी, ज्ञानी, कथा वाचक, तत्वदर्शी, सिद्धपुरुष, सेठ-साहूकार, भिखारी, व्यापारी, गृहस्थ, सन्यासी, ब्रह्मचारी, कल्पवासी, अधिकारी, बूढ़े, जवान, आबालवृद्धवनिता सभी का वहाँ समागम होता है. विभिन्न धर्म, संस्कृति तथा सम्प्रदायों का संगम इन कुम्भ मेलें में होता है, जो सहज आकर्षण का केन्द्र होता है. यही कारण है कि उत्तरभारत के लोग दक्षिण भारत में तिरुपति, रामेश्वर तथा कन्याकुमारी आदि तीर्थस्थानों पर जाकर अपने को कृतार्थ मानते हैं और दक्षिण भारत के लोग उत्तर भारत स्थित बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, जगन्नाथपुरी, काशी तथा प्रयाग आदि तीर्थस्थानों की यात्रा कर अपने को धन्य मानते हैं.
यह बात स्वयं सिद्ध होती है कि हमारे प्राचीन काल के ऋषि-मुनि नितान्त ही दूरदर्शी तथा कुशाग्रबुद्धि के थे. उन्होंने भारतवर्ष के प्राचीन वैदिक सनातन धर्म. संस्कृति, सभ्यता, व्रत, पर्व, त्योहार, साधना तथा उपासना आदि की रक्षा के लिए एवं इस आर्यावर्त देश की एकता, अखण्डता और गौरव-गरिमा को बनाए रखने के लिए इनकी स्थापना की थी.
यह गौरव की बात है कि इस समय महाकुम्भ सिंहस्थ उज्जैन में (२२ अप्रैल से २१ मई २०१६) विश्व का इतना बड़ा और महत्त्वपूर्ण आयोजन मध्यप्रदेश की धरा पर हो रहा है. यहाँ आए हुए संतों-सन्यासियों के अखाड़े अपनी साधना और विद्वत्ता से कोटि-कोटि श्र्द्धालुओं को लाभान्वित कर रहे हैं. साधु-संत अपनी ओजस्वी और दिव्य वाणी से परर्मोधर्म का पाठ पढ़ा रहे हैं. प्रवचन, कीर्तन, भजन, पूजा-पाठ आदि धर्म से जुड़ा शायद ही ऎसा कोई धार्मिक कार्य है, जो यहाँ न हो रहा हो.
इस महाकुंभ तक पहुंचाने के लिए शासन की ओर से बड़े पैमाने पर इंतजामात किए गए हैं. जगह-जगह यात्रियों के ठहरने और मेले तक पहुंचाने के निःशुल्क बसें उपलब्ध होती है. पीने के लिए शुद्ध जल, शौचालय के लिए, बिमार पड़ जाने की स्थिति में मेडिकल की व्यवस्था, स्नान घाट पर फ़्लड लाईट की उत्तम व्यवस्था, सुगंधित जल के छिड़काव ,नदी में शुद्ध जल ही प्रवाहित हो, नदी में गोताखोरों की टीम, इस पार को उस पार से जोड़ने के लिए फ़ौज द्वारा निर्मित दो पुल, पुलिस की उत्तम व्यवस्था आदि यहां देखने को मिलती है. इसके अलावा रेल विभाग ने भी इस व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए अपनी ओर से व्यवस्थाएं की है.
मित्रों-
उज्जैन जाने के कई अवसर मुझे मिले लेकिन कुंभ में जाने का यह प्रथम अवसर था. एक दिन यूंहि मित्रों के बीच कुंभ में जाने की बात चल निकली. सहमति बनते ही मित्र बी,एल.विश्वकर्मा ने पेंचव्हेली फ़ास्ट पैसेंजर से आरक्षण करवा लिया. इस तरह छिन्दवाड़ा से श्री अशोक सक्सेना, के.के.डेहरिया, बी.एल.विश्वकर्मा, राकेश चौबे, एस.एल.पाठेकर, के.एस.माल्या और ए.पी.खंगारे सहित हम १४ मई को उज्जैन के लिए निकले. ट्रेन का नाम भले ही फ़ास्ट पैसेंजर हो लेकिन वह अपनी ही चाल में चलती है. उसे नाम के अनुरुप चलना शायद नहीं आता. अपनी सामान्य चाल में चलते हुए ट्रेन मक्सी जंक्शन दो बजे के करीब पहुंची. अब हमें दूसरी ट्रेन का इन्तजार था. सूरज महाराज के तेवर काफ़ी गर्म थे. किसी तरह अपने आपको धूप से बचते हुए हम अगली ट्रेन का इन्तजार करने लगे. काफ़ी इन्तजार के बाद जब ट्रेन नहीं आयी तो हमें प्रायवेट बस से उज्जैन जाने का निर्णय लिया. किसी तरह उज्जैन पहुंचे. शाम घिर आयी थी और हमें रामघाट के पास अवस्थित रामानुजकोट पहुंचना था,लेकिन किसी भी वाहन को मेला क्षेत्र में घुसने के सक्त मनाही थी. किसी तरह एक लाज में रुकने का इन्तजाम किया और रात्रि में ही क्षिप्रा में स्नान करने का मानस बनाया. रास्ता चलते हम क्षिप्रा के तट पर पहुंचे. चारों तरह अपार भीड़ को देखने का हमारा यह पहला अवसर था. देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालुओं का आगमन आश्चर्य पैदा कर रहा था. आश्चर्य तो इस बात पर भी होता है कि अन्यान्य स्थानों में होने वाले कुंभ का आमंत्रण किसी को नहीं भेजा जाता. इसके आयोजन की खबर पंचागों के अलावा समाचार-पत्रों में हे पढ़ने को मिलती है. बिना किसी आमंत्रण के लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं का आना इस बात की पुष्टि के लिए काफ़ी है जो भारत की विविधता और एकता को दर्शाती है. म.प्र.शासन की ओर से बड़े पैमाने पर किए गए सुरक्षा के इन्तेजामों को देखकर तारीफ़ की जानी चाहिए. जगह-जगह पुलिसमैन तैनात थे. व्हिल्सिंग देते हुए वे भीड़ को आगे बढ़ने का संकेत दे रहे थे. आश्चर्य इस बात पर कि किसी भी पुलिसमैन को हमने तैश में बातचीत करते नहीं देखा. इतनी सज्जनता..नम्रता आदि देखकर आश्चर्य पैदा करने के लिए काफ़ी है अन्यथा बेचारों को बड़ा ही निर्मम-कठोर और अत्याचारी ही माना जाता है.
१६ मई को हम रामघाट के समीप स्थित रामानुजकोट जा पहुंचे. विश्वगीता प्रतिष्ठान का यह पावन केन्द्र समूचे देश के अलावा विश्व में गीता को प्रतिष्ठित करने के लिए भगीरथ प्रयास कर रहा है. इस केन्द्र में वेदपाठी बच्चों को संस्कारित किया जाता है. इस संस्थान के प्रमुख हैं स्वामी रंगनाथाचार्यजी. मंदिर परिसर में भक्तों की भीड़ देखते ही बनती है. भक्तों के लिए आवास तथा निःशुल्क भोजन की उत्तम व्यवस्था भी यहाँ की जाती है.
रामानुजकोट का प्रवेशद्वार स्वामी रंगनाथाचार्य जी.रामानुजकोट प्रवेशद्वार पर मित्रों के साथ उत्तम भोजन व्यवस्था.
कुंभ मेले में प्रवेश करते ही हमें मुख्य द्वार पर एक विशालकाय सिंह के दर्शन होते हैं जो सिंहस्थ कुंभ होने का प्रमाण प्रस्तुत कर रहा होता है. इसी स्थान से होते हुए हम पावन क्षिप्रा के तट पर पहुँचे थे. दो दिन में तीन बार स्नान और महाकाल के दिव्य दर्शनों का पुण्य-लाभ हमने उठाया.
सिंहस्थ २०१६ के कुछ विहंगम दृष्य.
आस्था एव् अध्यात्म का अनूठा संगम
समूची क्षिप्रा फ़्लड लाईट से जगमगा रही है. साधु-संतों के अस्थायी अखाड़ॊं हों अथवा मन्दिर, सभी रंग-बिरंगी रोशनी में जगमगा रहे है. लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ स्नान कर पुण्य लाभ ले रहे हैं. स्नान के लिए पर्याप्त शुद्ध जल उपलब्ध करवाया जा रहा है. पानी की शुद्धता के स्तर को दिखाने और तापमान को प्रदर्शित करने के लिए एक डिस्प्ले लगाया गया है, जो निरन्तर आंकड़े दिखला रहा है. स्नान और डुबकी लगाने के लिए पानी का स्तर चार फ़िट अर्थात १२० से.मी. रखा गया है. कोई श्रद्धालु पानी में न डूब जाए इसके लिए मोटरबोट और गोताखोर के पर्याप्त इंतजाम घाटॊं पर किए गए हैं. नदी का किनारों को सजाया-संवारा गया है. क्षिप्रा के बाएं किनारे पर लाल पुल से लेकर भूखी माता से लेकर दत्त अखाड़े तक एवं दाएं तट पर लाल पुल से लेकर नृसिंह घाट तक खाली जगहों पर भी घाटॊं का निर्माण किया गया है. इस तराह दोनों ओर लगभग ८ किमी.लम्बाई में घाट उपलब्ध है. लबालब बहने वाली क्षिप्रा इस समय जलविहीन है. बिना जल के सिंहस्थ कैसा? जब जल नहीं होगा तो स्नान करना संभव नहीं. शासन ने इस संकट से निजाद पाने के लिए लगभग १९ किमी.लम्बाई में ग्राम पिपल्याराधौ से निकालकर खान नदी को पाइप के जरिए कालियादेह महल के आगे क्षिप्रा से जोड़ा दिया है. हजारों की संख्या में श्रद्धालु पानी में डुबकी लगाकर निकल रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर उतनी ही संख्या में लोग पानी में उतर रहे हैं. न कोई शोर, न कोई शराबा, सब इस ढंग से हो रहा मानो आप कोई दिवास्वपन देख रहे हों. है न आश्चर्य पैदा करने वाली बात ! इस माकूल इंतजाम के लिए शासन की जितनी भी तारीफ़ की जाय, कम ही प्रतीत होगी.
सिंहस्थ बना सामाजिक सरोकारों का महाकुंभ
दुनिया को मानवीय मूल्यों का संदेश देने के मामले में सिहंस्थ २०१६ अतीत में हुए कुंभों से, एकदम हट कर अनूठा और नवेला बना. धर्म और अनुशासन का पाठ पढ़ाने वाले जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंदजी गिरि महाराज, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरू स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने उपस्थित जनसमुदाय को पर्यावरण और प्रकृति संरक्षण के साथ खुले में शौच नही करने का संदेश दिया. वहीं दूसरी ओर भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी होर्डिंग के जरिए जन-जन में संदेश देते नजर आए. होर्डिंग में लिखा गया था- कितनी पावन हैं ये नदियां-चाहे गंगा हो या क्षिप्रा, खुले में शौच न करें. इसके अलावा परमार्थ निकेतन द्वारा संदेश दिया गया कि क्षिप्रा के आंचल को हरियाली की चादर ओढ़ाने के लिए डेढ़ लाख पौधे रोपे जाएंगे जो पीढ़ियों के लिए महाप्रसाद बनेंगे. शनि के उपासक दाती महाराज ने बेटियाँ बचाओ का संदेश देते हुए जनजागरण किया. पूरे सिंहस्थ में बेटियां बचाने के होर्डिग्स लगे हुए थे.
कुंभ मेला तब से आज तक-
संभवतः यह पहला कुंभ है जहाँ सिने जगत की प्रसिद्ध कलाकार, विश्व विख्यात नृत्यांगना एवं सासंद हेमामालिनी ने नाट्य विहार कला केन्द्र मुंबई के कलाकारों के साथ नृत्य वाटिका राधा रास बिहारी की प्रस्तुति दी तो पूरा माहौल राधा-कृष्ण भक्ति में रम गया. पांच मई को अचानक आए तूफ़ान में कई पंडाल धराशायी हो गए. मुख्य मंत्री शिवराज चौहान प्रोटोकाल को न देखते हुए मंगलनाथ जा पहुचे और व्यवस्था बनाने में जुट पड़े. फ़िर क्या था जन-समुदाय उमड़ पड़ा और सहयोग देने में जुट गया. इसी दिन पेशवाई के बाद जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्दजी ने नाराज होकर पंडाल छोड़ दिया और वैशाली नगर स्थित एक यजमान के यहां रुकने पहुंच गए. हादसा गुजर गया..फ़िर नयी सुबह हुई. उसी उमंग और उत्साह के साथ लगभग दस लाख लोगों ने रामघाट, दत्त अखाड़ा ममंगलनाथ, त्रिवेणी समेट अन्य घाटॊं पर स्नान कर पुण्य-लाभ उठाया. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने बुधवार को वाल्मिकि घाट पर क्षिप्रा में डुबकी लगाई और दीनदयालपुरम के संत समागम में शामिल हुए. संतों के पैर छुए और आशीर्वाद लिया. महाकाल के दर्शन किए और उज्जैन से १५ किमी. दूर ग्राम निनौरा में १२ से १४ तक अंतरराष्ट्रीय वैचारिक महाकुंभ पहुंचकर तैयारियों का जायजा लिया और राज्य सरकार की प्रदर्शनी का शुभारंभ किया. ११ मई को तलवार लहराते, सिक्के बांटते किन्नर अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी घोड़े पर सवार होकर निकले. एक पालकी में आद्ध्य शंकराचार्य की तस्वीर और किन्नरों की आराध्य देवी बहुचरा माता की मूर्ति थी. निनौरा में सिंहस्थ का सार्वभौमिक संदेश तैयार करने के लिए हो रहे अंतरराष्ट्रीय विचार कुंभ में कुटीर उद्धोगों को प्रोत्साहित करने, जल-जंगल और जमीन बचाने और मछली पालन, कृषि पद्दति में परिवर्तन करने, नारी-शक्ति को नयी दिशा देने, स्वच्छता एवं पवित्रता की महत्ता एवं परंपरा को स्थपित करने पर जोर दिया गया. १४ मई दिन शनिवार को देश के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने उपस्थित होकर त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय विचार कुंभ के समापन कार्यक्रम में सिंहस्थ के सर्वमौम संदेश को विश्व के लिए जारी किया. इस दौरान श्रीलंका के राष्ट्रपति श्री मैत्रीपल सिरिसेना, लोकसभा अद्ध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन, मुख्यमंत्री श्री शिवराज चौहान, केन्द्रीय इस्पात और खान मंत्री नर्रेद्नसिंह तोमर और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत के अलावा ८५० से अधिक विदेश के विद्वानों ने सहभागिता का निर्वहन किया. उन्होंने साधु-संतो को आव्हान करते हुए साल में एक बार सात दिन भक्तों के बीच समाज के मुद्दों पर चर्चा करने, पेड़ और नदी,प्रकृति-पर्यावरण, बेटी व नारी, धर्म और विज्ञान पर गहनता से चर्चा कर आगे की रणनीति बनाने पर जोर दिया. उन्होंने मंच से ग्लोबल वार्मिंग, आतंकवाद और विस्तारवाद को तीन बड़े संकट बताते हुए उसका निदान खोजने की अपील की. इसी के साथ उन्होंने ५१ सूत्रीय अमृत संदेश जारी किया. १६ मई को भारत साधु समाज अधिवेशन में धर्म से जुड़े १४ प्रस्ताव परित किए गए जिसमें नदियों को आपस में जोड़ने , पर्यावरण को बचाने जैसे अहम मुद्दे शामिल थे.
प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज चौहान ने प्रदेश के साढ़े सात करोड़ नागरिकों को उज्जैन पधारने के लिए आमंत्रित करते हुए स्वयंभू महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन, मोक्षदायिनी क्षिप्रा मे स्नान करने के लिए आमंत्रित किया था. मात्र एक आव्हान पर करोड़ों लोगं ने पुण्य स्न्नान का लाभ उठाया और अपने को धन्य माना. यह वह स्थान है जहा देवों के देव महादेव की तड़के चार बजे भस्म आरती में भस्मी चढ़ाई जाती है तो शाम को ड्रायफ़ुड और भांग की सौम्यता लिए अनूठा श्रृंगार हर किसी को आकर्षित करता है. अमूमन तीन हजार की भांग और देढ़ हजार के ड्रायफ़ूड से भोले का श्रृंगार किया जाता हो, लगभग छः हजार साल पुराना कालभैरव का वाम मार्गी तांत्रिक मन्दिर, जिसमें मांस, मदिरा, मुद्रा जैसे प्रसाद चढ़ाये जाते हों, जहाँ स्वयं गढ़कालिका निवास करती हो, जहाँ रिद्धि-सिद्धि गणेश मंदिर अवस्थित हों, जहाँ हरसिद्धी देवी का भव्य मंदिर हो, जहाँ महान तपस्वी गुरु गोरखनाथ की तपःस्थलि हो,वहाँ भला कौन नहीं जाना चाहेगा.
निश्चित ही वे जन बड़भागी हैं जिन्होंने इस महाकुंभ के अवसर पर पधारकर पुण्य-लाभ कमाया है.
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