संपूर्ण महाभारत - आदि पर्व - 1

SHARE:

इंटरनेट के पन्नों पर संपूर्ण, समग्र महाभारत संस्कृत, हिंदी पीडीएफ ईबुक / स्कैन रूप में तथा अंग्रेज़ी भाषा में उपलब्ध है, परंतु यूनिकोडित दे...

इंटरनेट के पन्नों पर संपूर्ण, समग्र महाभारत संस्कृत, हिंदी पीडीएफ ईबुक / स्कैन रूप में तथा अंग्रेज़ी भाषा में उपलब्ध है, परंतु यूनिकोडित देवनागरी में अब तक नहीं है. विकिपीडिया में संक्षिप्त महाभारत है, जिसमें बहुत से आख्यानों का वर्णन नहीं है. रचनाकार.ऑर्ग का एक छोटा सा प्रयास है संपूर्ण वृहद समग्र महाभारत को यूनिकोडित देवनागरी हिंदी में प्रस्तुत करने का. अनुवाद डॉ. रामचन्द्र वर्मा शास्त्री, एम.ए. हिन्दी व संस्कृत, एम ओ एल, पी-एच.डी, दिल्ली विश्वविद्यालय का है, जिसे साभार, सिलसिलेवार प्रस्तुत किया जा रहा है:

image
महाभारत युद्ध - चित्र -साभार  विकिपीडिया

महाभारत

' आदि पर्व
कुलपति शौनक के साथ बारह वर्षों के सत्संग सत्र से निवृत्त होकर लोमँहर्षण के सुपुत्र स्वनामधन्य उग्रश्रवा नैमिषारण्य पहुंचे तो उन बहुश्रुत महामुनि से विचित्र कथायें सुनने की इच्छा से उस क्षेत्र के आश्रमवासी मुनियों ने उन्हें घेर लिया। नमस्कार तथा कुशल - मंगल आदान -प्रदान के उपरान्त जब सब ऋषि मुनि अपने - अपने आसनों पर सुखपूर्वक बैठ गये तो ऋषियों ने श्रद्धा विनयपूर्वक पूछा - महात्मन्। आप कहां से पधार रहे हैं '
सूत जी बोले -विप्रो! मैं महाराज परीक्षित् के पुत्र जनमेजय द्वारा किये गये सर्प- यज्ञ में गया था। वहां मुझे वैशम्पायन जी के मुख से महाभारत जैसे दिव्य ग्रन्थ को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वहां मैं अनेक तीर्थों पवित्र आश्रमों तथा वनों में घूमता हुआ समन्तपन्चक क्षेत्र में जा पहुंचा। आप लोग जानते ही हैं कि उसी स्थल पर कौरवों और पाण्डवों का युद्ध हुआ था। वहीं से सीधा इधर आप लोगों के यहां आया हूं। आप लोग सिद्ध तपस्वी हैं मुझसे आप क्या सुनना चाहते हैं ? जो आप चाहेंगे वही मैं आप लोगों को सुनाऊंगा

ऋषि बोले- मुनिवर सूतनन्दन हम लोग आपके मुखारविन्द से वैशम्पायन जी द्वारा जनमेजय जी को सुनाये - व्यास जी द्वारा रचित वेद-शास्त्रों के सारभूत तथा तत्त्वज्ञान से परिपूर्ण - महाभारत ग्रन्थ-रत्न को सुनने को उत्सुक हैं।
उग्रश्रवा ने ऋषियों की उदात्त इच्छा के लिये उनका अभिनन्दन करते हुए सर्वप्रथम भगवान् श्रीकृष्ण को प्रणाम किया तथा तीनों लोकों में प्रतिष्ठित शुभ मंगलमय शब्दावली वाले देवों और मनुष्यों की मर्यादा को स्पष्ट करने वाले महर्षि कृष्ण द्वैपायन द्वारा रचित महाभारत के आविर्भाव के इतिहास का वर्णन इस प्रकार किया
श्रुतियों स्मृतियों एवं उपनिषदों के सारभूत सुर - मुनिदुर्लभ इस ग्रन्थ के लोकसुलभ होने का इतिहास बताते हुए सूतपुत्र उग्रश्रवा जी बोले - विप्रो। महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास जी ने तप और ब्रह्मचर्य की शक्ति से प्राप्त ऊर्जा से वेदों का विभाजन करके सभी वेदों शास्त्रों तथा ज्ञान -विज्ञान के अन्यान्य ग्रन्थों से सारतत्त्व को लेकर महाभारत ग्रन्थ की रचना की -

इस ग्रन्थ को अपने शिष्यों को सुनाने के सम्बन्ध में वे सोच ही रहे थे कि ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर उन्हें इस सर्वज्ञानपरिपूर्ण ग्रन्थ को लिखने के लिये श्री गणेश जी का आह्वान करने को कहा। व्यास जी ने ब्रह्मा जी के प्रीत आभार प्रकट करके गणेश जी का ध्यान किया और गणेश जी के दर्शन देने' पर व्यास जी ने अपनी समस्या उनके समक्ष रखी। गणेश जी ने लोककल्याण के लिये व्यास जी की प्रतिभा के सर्वोत्तम निदर्शन महाभारत को लिपिबद्ध करने का दायित्व संभाल लिया।

विप्रो! यह दिव्य ग्रन्थ अज्ञानरूपी अन्धकार को नष्ट करने वाला पुरुषार्थ - चतुष्टय – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष -को देने वाला, ताप - त्रय - अधिभौतिक अधिदैविक और आध्यात्मिक - को नष्ट करने वाला तथा इहलौकिक अभ्युदय और पारलौकिक निः श्रेयस् को प्रदान करने वाला है। आचार्यप्रवर श्रीकृष्ण .द्वैपायन का यह उद्‌घोष है -
इस ग्रन्थ में जिस धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष विषयों से सम्बन्धित ज्ञान का समावेश हुआ है। उसकी स्थिति अन्यत्र दुर्लभ ही नहीं असम्भव है। इस् रूप में यह ग्रन्थ सर्वथा अप्रतिम अद्वितीय एवं अनुपम है।

देवों ने जब सभी अन्य वेदादि ग्रन्थों को एक तुला पर और महाभारत को दूसरी तुला पर रखा तो इस ग्रन्थ वाले पलड़े के भारी पड़ जाने से ही इसे महा-भार वाला ग्रन्थ-महाभारत -नाम दिया। इसमें कुरुवंशी राजाओं के साथ -साथ अनेक ऋषियों महात्माओं तथा देवों के चरित्रों के अतिरिक्त भारत के पवित्र वनों पर्वतों, सरोवरों और तीर्थों आदि का बड़ा ही मनोरम वर्णन है।

इस दिव्य ग्रन्थ को सर्वप्रथम व्यास जी ने अपने पत्र .शुकदेव को और पुनः अन्यान्य योग्य शिष्यों को पढ़ाया। व्यास जी के ही एक शिष्य से यह ग्रन्थ नारद जी को प्राप्त हुआ जिन्होंने देवों को सुनाया। उनसे ही प्राप्त ग्रन्थ असित मुनि ने पितरों को और .शुकदेव जी ने गन्धर्वों, यक्षों और राक्षसों को सुनाया। इस प्रकार यह ग्रन्थ सभी योनियों –देव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और मानव आदि -के प्राणियों के लिये समान रूप से उपकारक सिद्ध हुआ है। सत्य तो यह है कि इस ग्रन्थ की सहायता के बिना वेदों का तत्त्वज्ञान स्पष्ट ही नहीं होता, तभी तो व्यास जी का परामर्श है-
वेदों के तत्त्वज्ञान के इच्छुक व्यक्ति के लिये इतिहास (महाभारत) और पुराण की जानकारी अनिवार्य है।
सृष्टि की उत्पत्ति का संक्षिप्त परिचय देते हुए सूत जी बोले-जिस समय यह संसार अज्ञान और अन्धकार से आवृत था उस समय एक दिव्य एवं स्वर्णमय अण्ड उत्पन्न हुआ। उसी अण्ड से प्रजापति ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए। उसी अण्ड से दस प्रचेता दक्ष, दक्ष के सात पुत्र, चौदह मनु, विश्वेदेव, आदित्य, वसु, अश्विनीकुमार, यक्ष, साध्य, पिशाच गुह्यक, पितर, ब्रह्मर्षि, राजर्षि, सप्तलोक, चौदह भुवन, पांच भूत, दिशायें, संवत्सर, ऋतु, मास, पक्ष, दिन, रात तथा अन्यान्य विभिन्न पदार्थ उत्पन्न हुए।

विप्रो। जिस प्रकार ऋतु आने पर पत्र पुष्प तथा फल आदि प्रकट हो जाते हैं तथा ऋतु के व्यतीत हो जाने पर वे सब लुप्त हो जाते हैं उसी प्रकार यह संसार सृष्टिकाल में ब्रह्म से प्रकट होता है तथा प्रलयकाल में ब्रह्म में ही लुप्त अथवा समाविष्ट हो जाता है। सृष्टि और प्रलय का यह चक्र अनादिकाल मेँ अनन्तकाल तक निरन्तर प्रवर्तित होता रहता है।

विवस्वान् के बारह पुत्रों में एक मन के दो पुत्र हुए - देवभ्राट और सुभ्राट्। देवभ्राट् के तीन पुत्र हुए-दशज्योति, शतज्योति और सहस्रज्योति।

सहस्रज्योति से कुरु, यदु, भरत, ययाति तथा इसाक आदि -राजर्षियों के वंश चले।
ऋषियों। कुरुवंशी राजा जनमेजय कुरुक्षेत्र में एक यज्ञ कर रहे थे कि उनके तीन भाईयों ने यज्ञ में आये एक कुत्ते को बिना उसके अपराध के पीट कर भगा दिया। इससे क्रुद्ध होकर उस कुत्ते की मां सरमा ने जनमेजय पर अचानक किसी विपत्ति के आने का उसे शाप दिया। जनमेजय ने भावी उपद्रव की शान्ति के लिये श्रुतश्रवा के पुत्र सोमश्रवा को पुरोहित के रूप में वरण करके मन्त्रियों को उनके किसी भी आदेश के पालन का निर्देश दिया।
सोमश्रवा का परिचय देते हुए सूत जी बोले-कुलपति धौम्य के तीन प्रधान शिष्य थे- आरुणि, उपमन्यु और वेद। एक बार गुरुदेव ने मूसलाधार वर्षा में आरुणि को अपने खेत के बांध की रक्षा के लिये भेजा तो मिट्टी से पानी रुकता न देखकर वह स्वयं तख्ते के समान वहां लेट गया इससे पानी का प्रवाह रुक गया था। महर्षि धौम्य ने उसकी एकनिष्ठ भक्ति पर प्रसन्न होकर उसे वेद-वेदांग के पण्डित होने का वरदान दिया।

उपमन्यु महर्षि धौम्य की गायों की देखभाल करता था। एक बार दिनभर गायें चराने के उपरान्त जब वह लौटा तो धौम्य ने उससे उसके उत्तम स्वास्थ्य का रहस्य पूछा। उपमन्यु ने भिक्षा मांग कर खाने की बात कही। गुरु ने उसे बिना आचार्य को निवेदन किये उसके द्वारा भिक्षा-सेवन को अनुचित बताया। फलतः उपमन्यु उस दिन से भिक्षा गुरु को देने लगा और महर्षि धौम्य सारी भिक्षा अपने पास रखने लगे। कुछ दिनों के उपरान्त जब उपमन्यु पूर्ववत् स्वस्थ दिखाई दिया तो धौम्य ने पूछा-वत्स। अब तुम क्या खाते-पीते हो? उसने बताया कि वह दूसरी बार भिक्षा मांगता है। धौम्य ने दूसरी बार भिक्षा-याचना को धर्मनीति और लोकाचार के विरुद्ध होने से अनुचित कृत्य बता कर उपमन्यु को ऐसा करने से रोक दिया।

कुछ दिनों के उपरान्त उपमन्यु को पुनः पूर्ववत् हृष्ट-पुष्ट पाकर महर्षि धौम्य- ने उससे पूछा तो उपमन्यु ने गौदुग्ध के सेवन की बात कही। आचार्य ने बिना अपनी अनुमति के उसके इस कृत्य को चोरी बताते हुए उसे दूध के सेवन की मनाही कर दी। उपमन्यु ने इस आज्ञा का भी यथावत् पालन किया। कुछ दिन बीतने पर गुरु ने शिष्य को फिर भी पूर्ण स्वस्थ पाया तो उनकी जिज्ञासा जाग उठी। शिष्य ने बताया वह बछड़ों द्वारा दूध पीने के उपरान्त उनके द्वारा उगले फेन का सेवन करता है। गुरु बोले- वे दयालु बछड़े स्वयं भूखे रह कर तुम्हारे लिये सारा दूध उगल देते होंगे यह तो उनके प्रति तुम्हारा अन्याय है। उसने आचार्य की आज्ञा करते हुए बछड़ों की फेन का सेवन भी बन्द कर दिया। फलतः निरन्तर भूख से व्याकुल होने पर उपमन्यु वृक्षों के पत्ते खाने लगा और इसी प्रक्रिया में उसने एक दिन आक के पत्ते खा लिये, जिससे वह नेत्रज्योति खो बैठा। गायें चराता हुआ वह एक दिन कुएं में गिर पड़ा और बाहर न निकल सकने के कारण घर नहीं लौटा। महर्षि धौम्य उसकी खोज में वन को गये और उसे ढूंढ कर बाहर निकाला। गुरु ने अश्विनीकुमारों से उसे नेत्रज्योति दिलाई तथा उसकी गुरुभक्ति पर प्रसन्न होकर उसे वेद-शास्त्रों का निष्णात पण्डित होने का वर दिया।

धौम्य का तीसरा निष्णात शिष्य वेद था, जिस पर गुरु प्रतिदिन अधिक से अधिक भार लाद कर उसे व्यथित करने के रूप में उसकी परीक्षा लेते थे, परन्तु उसने कभी उफ तक नहीं की थी। बहुत दिनों के उपरान्त उस पर प्रसन्न होकर आचार्य महोदय ने उसे भी सर्वज्ञ होने का वरदान दिया। इसी वेद के तीन शिष्यों में एक का नाम उत्तंक था। वेद अपने शिष्यों को गुरु-सेवा का कभी कोई आदेश नहीं देते थे क्योंकि वे इस परीक्षा का कटु अनुभव रखते थे। वे जब कभी पौरोहित्य कार्य के लिये बाहर जाते थे तो घर की देखभाल का काम उत्तंक पर छोड़ जाते थे। एक बार जब जनमेजय ने वेद को पुरोहित के रूप में वरण किया तो वेद ने उत्तंक को घर की देखभाल करने का और विशेषतःः गुरुपत्नी को प्रसन्न रखने का निर्देश दिया। उत्तंक ने गुरुपत्नी से जाकर पूछा तो उसने राजा पौष्य की रानी के कुण्डल लाने को इच्छा प्रकट की। उत्तंक ने राजा पौष्य के पास पहुंच कर अपनी इच्छा प्रकट की तो रानी ने सहर्ष अपने कानों से कुण्डल उतार कर उत्तंक को दे दिये। ऋषि को सावधान करते हुए रानी ने कहा कि नागराज तक्षक इन कुण्डलों को पाने के लिये अत्यन्त उत्सुक रहा है अतः सावधानी से इनकी सुरक्षा अपेक्षित है।
उत्तंक जब कुण्डल लेकर चला तो थोड़ी दूर जाने पर उसे अपना पीछा करता हुआ एक नग्न क्षपणक दिखाई दिया। उत्तंक ने एक स्थान पर कुण्डल रखकर जल पिया तो क्षपणक वेशधारी तक्षक ने कुण्डल चुरा लिये। इन्द्र के वज्र की सहायता से तक्षक का नागलोक तक पीछा करते हुए उत्तंक ने तक्षक से कुण्डल तो ले लिये, परन्तु वह उसे क्षमा न कर सका। फलतः कुण्डल यथासमय गुरुपत्नी को देकर उत्तंक राजा जनमेजय के पास जाकर बोला- राजन्! तक्षक ही आपके पिता का वास्तविक हत्यारा है। जब महर्षि कश्यप आपके पिता को सर्पदंश से बचाने के लिये राजधानी को आ रहे थे तो इसी दुष्ट तक्षक ने उन्हें प्रचुर धन देकर वापस भेज दिया था। आप उस दुष्ट से प्रति-शोध लेने के लिये यज्ञ कीजिये, मैं आपका पुरोहित बनूंगा और आपके तथा अपने अपकार का उससे बदला लूंगा। यही उत्तंक श्रुतश्रवा का पुत्र था जो कालान्तर में सोमश्रवा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

ऋषियों की उत्सुकता पर उन्हें सर्पों की उत्पत्ति की कथा सुनाते हुए उग्रश्रवा जी बोले-विप्रो! दक्ष प्रजापति की दो कन्याओं का विवाह महर्षि कश्यप से हुआ तो उन्होंने अपनी दोनों पत्नियों पर प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने को कहा। कद्रू ने महर्षि से एक सहस्र तेजस्वी पुत्र मांगे और विनता ने कद्रू के पुत्रों से अधिक श्रेष्ठ केवल दो पुत्र मांगे। 'महर्षि कश्यप द्वारा तथास्तु ' कहे जाने पर यथासमय कद्रू ने तो एक सहस्र बच्चों को जन्म दे दिया परन्तु विनता के दो' बच्चे नहीं निकले। विनता ने आतुर होकर एक अण्डा फोड़ डाला। शिशु का आधा शरीर पुष्ट और आधा अपुष्ट था। शिशु ने अपनी मां को दूसरा अण्डा न फोड़ने के लिये सचेत करते हुए अपने प्रति किये अपराध के दण्डस्वरूप उसे पांच सौ वर्षों तक उसकी सपत्नी कद्रू की दासी बन कर रहने का शाप दिया। यही बालक बड़ा होकर अरुण नाम से विख्यात हुआ और आकाशलोक में सूर्य का सारथि बना।

एक समय देवतागण मेरु पर्वत पर इकट्‌ठे होकर अमृत-प्राप्ति के लिये परस्पर विचार-विमर्श करने लगे। नारायण ने देवों से कहा-देव और असुर मिलकर समुद्र -मन्थन करें तो सिद्धि मिल सकती है। फलतः देवों ने असुरों से सम्पर्क स्थापित कर उन्हें इस कार्य में अपना सहयोगी बनाया। मन्दराँचल को मथानी, कच्छप. को आधार तथा वासुकि नाग को डोरी बनाकर मन्थन प्रारम्भ किया गया। देवों ने वासुकि कीँ पूंछ को पकड़ा और असुरों को वासुकि का मुख पकड़वाया गया। असुर बेचारे सांप की फुंकारों से झुलस गये और उधर देवता थोड़ी- थोड़ी देर में अपने ऊपर होने वाली वृष्टि से स्वस्थ बने रहे। वृक्षों के दूध और औषधियों के चुए रस के समुद्र में गिरने से उसका जल दूध बन गया और दूध के मथने से घी 'बनने लगा। सुदीर्घ काल तक समुद्र के मन्थन के फलस्वरूप उससे क्रमशः चौदह रत्न प्रकट हुए - ( १) चन्द्रमा, ( २) लक्ष्मी, ( ३) सुरा ( ४) उच्चैःश्रवा नामक अश्व ( ५) कौस्तुभ मणि, ( ६) कौमोदकी गदा, ( ७) कामधेनु ( ८) कल्पवृक्ष ( ९) अमृत-कलश ( १०) सुदर्शन चक्र ( ११) धन्वंतरि ( १ २- ऐरावत गज, ( १३) कालकूट विष तथा ( १४) वैजयन्ती माला। इन चौदह रत्नों में
चार- चन्द्र, कामधेनु, कल्पवृक्ष तथा उच्चैःश्रवा अश्व- आकाश मार्ग से देवलोक को चले गये। पांच- सुदर्शन चक्र, लक्ष्मी, कौस्तुभमणि वैजयन्ती माला तथा कौमोदकी गदा को विष्णु जी ने ग्रहण किया। ऐरावत गज इन्द्र को मिला तथा विषपान कर शिवजी नील-कंठ कहलाये। सुरा दैत्यों को तथा अमृत देवों को मिला। धन्वन्तरि रोगनिदान के पण्डित होने से देवों के स्वास्थ्य रक्षक बने।

' अमृत पीन के लिये देवों और दानवों में संघर्ष छिड़ गया। विष्णु नारायण ने मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को छल कर देवों में अमृत बांट दिया। इसी चाल को भांप कर असुर राहु देवता के रूप में सूर्य और चन्द्र के बीच आकर बैठ गया। मोहिनी रूपधारी विष्णु ने ज्यों ही राहु की हथेली पर अमृत डाला त्यों ही सूर्य और 'चन्द्र को -उस पर सन्देह हो गया और वे शोर करने लगे। विष्णु जी जब तक सुदर्शन चक्र निकाल कर उसका सिर धड़ से अलग करें तब तक अमृत उसके कंठ से नीचे उतर गया और इससे वह अमर हो गया। पुनरपि विष्णु जी ने अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिशा। उसके विच्छिन्न शरीर के दो भागों के दो नाम प्रसिद्ध हुए -राहु और केतु। सिर का नाम राहु और धड़ का नाम केतु पड़ गया। सूर्य और चन्द्र से प्रतिशोध लेने के लिये तभी से अवसर पाकर राहु सूर्य, और चन्द्र को ग्रसने की चेष्टा करते हैं। इसे ही सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण नाम दिया जाता है।
सर्पों की उत्पत्ति का और समुद्र-मन्थन से प्राप्त अमृत का वृत्त सुनाने के उपरान्त मूल वृत्त की ओर लौटते हुए उग्रश्रवा जी बोले-

तपोधन विप्रो! समुद्र-मन्थन से निकले अश्व उच्चैःश्रवा को दख कर कद्रू ने विनता से पूछा कि बताओ इसका रंग कौन-सा है? विनता ने कहा कि यह अश्व .श्वेत वर्ण का है। तुम्हारा विचार क्या है? कद्रू ने कहा मेरे विचार में इस अश्व का रंग यूं तो श्वेत है, परन्तु इसकी पूंछ काली है। विनता ने इस पर असहमति प्रकट की तो दोनों में शर्त लग गई कि देखें क्या सत्य है और क्या असत्य। यह निर्णय हुआ कि हारने वाली जीतने वाली की दासी बनकर रहेगा। दोनों में बात पक्की हो गई और दूसरे दिन घोड़े की पूंछ देखने और निर्णय करने की कह कर दोनों अपने- अपने निवास को चल दीं।

कद्रू ने अपने पुत्रों को बुला कर उन्हें आदेश दिया कि तुम काला रूप धारण करके उच्चैः श्रवा की पूंछ में अदृश्य रूप में इस प्रकार लिपट जाओ कि जिससे उसकी पूंछ काली ही दिखाई दे ताकि मुझे सपत्नी की दासी न बनना पड़े। जिन पुत्रों ने छल-कपट से भ्रम उत्पन्न करने से इन्कार किया, कद्र ने उन्हें जनमेजय के नागयज्ञ में भस्म हो जाने का शाप दिया।

दूसरे दिन जब कद्रू और विनता अश्व की पूंछ देखने गईं तो बाल बन कर लिपटे सर्पों के कारण पूंछ काली ही जान पहने लगी। फलतः विनता को कद्रू की दासी बनना पड़ा।

समय पर विनता के गर्भ से गरुड़ उत्पन्न हुआ। उसे बड़ा होने पर यह देख कर आश्चर्य हुआ कि उसे और उसकी माता को सर्पों की और उनकी माता की आज्ञा का सदैव दास-भाव से पालन करना पड़ता है। विनता ने अपने पुत्र की उत्सुकता पर उसे सारी कथा सुनाई तो गरुड़ ने कद्रू से निवेदन किया कि मैं आपका कौन-सा उपकार करूं, जिससे कि मेरी माता आपकी दासता से सदा के लिये मुक्त हो जाये? इस पर कद्रू ने गरुड़ से अमृत लाने को कहा तो गरुड़ इसके लिये तत्काल तैयार हो गया।

उग्रश्रवा जी बोले-शौनकादि ऋषियो! गरुड़ जब अमृत लाने के लिये चलने लगा तो विनता ने अपने पुत्र को किसी भी ब्राह्मण को न खाने की कठोर चेतावनी दी। विनता ने कहा-वत्स!

ब्राह्मण अग्नि के समान तेजस्वी होने के कारण सभी प्राणियों के लिये अवध्य हैं, अतः तुम क्षुधा से कितनी भी विषम व्याकुलता क्यों न अनुभव करो, परन्तु सुलभ होने पर भी किसी ब्राह्मण को अपना आहार न बनाना।

गरुड़ की क्षुधा मार्ग में मिलने वाले निषादों को खाने से तृप्ति हुई तो उसने कश्यप जी के पास जाकर अपने लिये उपयुक्त भोजन पूछा। कश्यप जी ने गरुड़ को समीप के एक सरोवर पर हाथी और कछुआ बने पूर्वजन्म के दो ऋषियों को खाकर अपनी क्षुधा निवृत्त करने का सुझाव दिया।

गरुड़ ने उस सरोवर पर जाकर एक पंजे से गज को और दूसरे से कछुए को उठा कर आकाश में उडान भरी और वहां एक वृक्ष पर बैठ कर उन दोनों को उदरस्थ किया। तृप्त होकर गरुड़ स्वर्ग की ओर उड़े तो उधर इन्द्र ने अमृत के रक्षकों को सावधान कर दिया परन्तु गरुड़ ने वहां पहुंचते ही अपने पंखों से इतनी अधिक धूल उड़ाई कि रक्षक आँखें खुली ही न रख सके। इसके अतिरिक्त गरुड़ ने अपनी चोंच और डैनों के प्रहार से समीप आने वाले देवों को क्षत-विक्षत करके सर्वत्र आतंक फैला दिया। देवताओं को पीछे धकेल कर गरूड़ ने अमृत-कलश की सुरक्षा के लिये धधकती आग को बुझाया और उन्होंने वहां निरन्तर घूमते लौहचक्र से बचाव के लिये सूक्ष्म शरीर धारण किया तथा रक्षक रूप में अवस्थित दो भयंकर सर्पों को व्यथित करके अमृतपात्र उठा लिया। गरुड़ जी ने अमृत-कलश को लेकर एकदम ऊंची उड़ान भरी।

(क्रमशः जारी…)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: संपूर्ण महाभारत - आदि पर्व - 1
संपूर्ण महाभारत - आदि पर्व - 1
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhmne6WKcGa07ZtS8g8dCBEscg5WJ6CmnrB3y9a0RSnt2jY3AoQ5TKux9N_4yTymPA0cf_EujteCZRAUdGUbYOcbGRHImSVttsukD5o8tL3UfACS54U4-GXaLsjMcGyPLrEg1A7/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhmne6WKcGa07ZtS8g8dCBEscg5WJ6CmnrB3y9a0RSnt2jY3AoQ5TKux9N_4yTymPA0cf_EujteCZRAUdGUbYOcbGRHImSVttsukD5o8tL3UfACS54U4-GXaLsjMcGyPLrEg1A7/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/05/1.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/05/1.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content