<धूप कुंदन> (हाइकु रचनाएं) /डा. सुरेन्द्र वर्मा /उमेश प्रकाशन, इलाहाबाद /२००९ /पृष्ठ ११२ / मूल्य रु. १५०/- | मन लुभाता संग्रह डॉ. सुध...
<धूप कुंदन> (हाइकु रचनाएं) /डा. सुरेन्द्र वर्मा /उमेश प्रकाशन, इलाहाबाद /२००९ /पृष्ठ ११२ / मूल्य रु. १५०/- |
मन लुभाता संग्रह
डॉ. सुधा गुप्ता
डॉ. सुरेन्द्र वर्मा हिन्दी साहित्य जगत में एक जाना-माना नाम है | आप दर्शन-शास्त्र के गंभीर अध्येता तथा व्यवसाय / आजीविका के सन्दर्भ में भी उसी से जुड़े हैं | हाइकुकार के रूप में ‘हाइकु-भारती’ के माध्यम से उनकी पहचान बनी थी | इस सबके अतिरिक्त उनका समीक्षक रूप मुखर है |
डॉ, वर्मा से मेरा परिचय दशकों पुराना है | मुझे याद है, अपनी नवीन प्रकाशित कृति जब भी उन्हें भेजती, अल्प समय के भीतर ही उसे पढकर पत्र द्वारा अपनी टिप्पणी भेजते.... बीच में यह क्रम भंग हो गया, मुख्य कारण तो मेरी शारीरक अस्वस्थता एवं तज्जन्य अकर्मण्यता ही रहा | हाइकु-दर्पण के किसी अंक में “धूप-कुंदन” के प्रकाशन की सूचना एवं संक्षिप्त समीक्षा पढी तो मैं प्रतीक्षा करती रही किन्तु निराश होना पडा.... मैंने आहात अनुभव किया... फिर बहुत समय बीत गया,,,,न कोई पत्राचार न कोई संवाद | २०१४ में किसी सन्दर्भ में फोन पर बात हुई तो मैंने अपनी शिकायत और उलाहना उनके सामने स्पष्ट रूप में रख दिया | सुनकर डा वर्मा अचंभित हुए |’क्या आपको धूप-कुंदन नहीं मिली? मैं तो यह सोच कर दुखी रहा की सुधा जी ने पुस्तक प्राप्ति-स्वीकार भी नहीं भेजी | कुछ रुककर फिर कहा, “तुरंत भेझता हूँ |” सब धूल साफ़ हो गई | देखा, गलत-फहमियाँ कितनी बेबुनियाद (भी) हुआ करती हैं |
एक सप्ताह के भीतर दो पुस्तकें प्राप्त हो गईं | <धूप-कुंदन> और <उसके लिए> | कविता संग्रह <उसके लिए> में बहुत छोटी, मार्मिक क्षणिकाएं हैं और स्वयं डा. सुरेन्द्र वर्मा द्वारा किया हुआ रेखांकन है | निश्चय ही इस कविता-संग्रह पर पृथक से विस्तार में लिखने की आवश्यकता है | पर फिलहाल, बात <धूप कुंदन> की |
जैसा की पूर्व में कहा गया, डा. सुरेन्द्र वर्मा अनेक विधाओं के रचनाकार हैं | एक ओर दर्शन एवं नीति- शास्त्र पर गंभीर गद्य-लेखन (निबंध) दूसरी ओर व्यंग्य, कविता, हाइकु जैसी विधाएं | एक नया शौक़, चित्रकारी का विकसित हुआ है | हाइकु-लेखन में पर्याप्त प्रसिद्धि है | सर्वप्रथम श्री कमलेश भट्ट “कमल” द्वारा संपादित <हाइकु-१९९९> में मैंने पढ़े थे मैंने सात हाइकु, जिनमें उनका ‘दर्शन’ झिलमिलाता है |
० मौत पर है /
एक तीखी टिप्पणी /
यह ज़िंदगी
० सुख हमारे /
भागती-सी शाम की /
परछाइयां
यथार्थ से जुड़ा यह हाइकु भी मुझे बहुत अच्छा लगा –
० धरती पर /
यदि टिके रहे तो /
नभ छू लोगे ||
उस समय तक उनकी हाइकु छंद में रची श्रमण-सूक्तियां “सूक्तिकाएं” प्रकाशित हो चुकी थीं जो काफी चर्चित रहीं |
<धूप-कुंदन> ११२ पृष्ठ की आकर्षक आवरण वाली सजिल्द पुस्तक है | “प्राक्कथन-हिन्दी हाइकु” में हाइकुकार ने संक्षेप में इस विधा पर अपने सुलझे हुए विचार प्रस्तुत किए हैं | धूप-कुंदन विविध वर्णी रचना है जिसमें अनुक्रम इस प्रकार है – (१) हाइकु रचनाएं (२) हास्य-व्यंग्य हाइकु (३) हाइकु पहेलियाँ (४) सुखन हाइकु (५) हाइकु जापानी गूँज |
प्रथमत: हाइकु रचनाएं शीर्षक में ६४६ हाइकु हैं | तत्पश्चात, ३२ हास्य-व्यंग्य, १५, पहेलियाँ, ०८ सुखन हाइकु तथा २७, जापानी गूँज – कुल संख्या ७२८ |
हाइकु रचनाओं के कुछ खूबसूरत हाइकु –
१)
उगता चाँद /
संग डूबता सूर्य /
जीवन-मृत्यु
२)
करकते हैं /
जो पूरे नहीं होते /
आँखों में स्वप्न
३)
कितनी मौतें /
भोगी मैंने, जीवन /
एक इसी में
हाइकुकार अकेलेपन की पीड़ा को इस प्रकार अंकित करता है –
४)
घिरती सांझ /
घिरता सूनापन /
जान अकेली
५)
कभी डराता /
कभी तसल्ली देता /
अकेलापन
६)
फरनीचर /
भरा हुआ है घर /
कितना खाली
७) मिट न पाया /
भीड़ में रहकर /
अकेलापन
हाइकुकार की यही दार्शनिक वृत्ति उसे जीवन के विभिन्न पक्षों को तटस्थ रहकर एक दृष्टा की भाँति देखने को प्रेरित करती है |
डा, वर्मा को प्रकृति से प्रेम है | और उनकी कूची ने सुन्दर प्रकृति दृश्यों का चितांकन किया है |
८)
पहने साड़ी /
सरसों खेत खड़ी /
ऋतु वासंती
९)
फूले पलाश /
कोयल बोले बैन /
चैट उत्पाती
१०)
लुटाती मस्ती /
बयार ये वासंती /
फगुनहट (वसंत)
११)
तपे आग में /
अमलतास टेसू /
उतरे खरे
१२)
दस्तक देती /
महक मोगरे की /
खोलो कपाट {ग्रीष्म)
१३)
दबी धरा में /
मुक्त हो गई गंध /
स्वागत वर्षा (पावस)
१४)
नाचती हुई /
आती हैं धरा पर /
पीली पत्तियाँ
१५)
पग पग पे /
पापड सी टूटतीं /
पीली पत्तियाँ (शिशिर)
एक शालीन साहित्यकार अपनी प्रणय-भावना भी परिष्कृत रूप में अभिव्यक्त करता है, डा,वर्मा इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं –
१६)
तुम्हारा आना /
दो पल रुक जाना /
दो-दो वसंत
१७)
तुम आईं तो /
धूप खिली आँगन /
ऋतु बदली
प्रिया की स्मृतियाँ भी सुखद हैं –
१८)
याद तुम्हारी /
सर्दियों में धूप सी /
आती सुखद
१९) पन्नों में दबी /
पीली पांखुरी गिरी /
हो गई ताज़ी
प्राय: प्रत्येक संवेदनशील रचनाकार के जीवन में कभी न कभी ऐसा होता है की यदि कोई विचार या भाव मन में आ जाए, जबतक अभिव्यक्त न हो जाए तो मन बेचैन हो उठता है, नींद नहीं आती, आदि | डा, वर्मा ने इसे यूं कहा है –
२०)
जगता रहा /
हाइकु सारी रात /
उचटी नींद
प्रतीकों के सुन्दर प्रयोग इस काव्य संग्रह की विशेषता है | प्रतीकार्थ ध्वनित होते हैं, अभिधार्थ बहुत पीछे छूट जाता है और वास्तविक अभिप्रेत अर्थ पूरी तरह पाठक को बाँध लेता है ---
२१)
लड़े जा रही /
अपने ही बिम्ब से /
मूर्ख चिड़िया
२२) शिशु चिड़िया /
को मोह रहा कब /
फूटे अंडे से
२३) प्यासा परिंदा /
भरे घट तक आ /
गिरा बेसुध
२४) दबंग दिया /
जलते रहने की /
जिद में बुझा
‘हास्य-व्यंग्य हाइकु’ पाठक का मनोरंजन करने में समर्थ हैं | “शब्द’ से उत्पन्न चमत्कार दर्शनीय है ---
२५)
मनहूसियत /
ओढ़ कर पड़े हैं /
श्री बोरकर
२६)
श्रीमती गंधे /
उचकाती हैं कंधे /
डालती फंदे
राजनीति के सन्दर्भ में श्लेषार्थ प्रकट होते ही ‘साहित्य’ का सौन्दर्य खिल उठा है | ---
२७)
गाय को मिली /
रोटी अनुदान में /
खा गया कुत्ता
२८)
सर्प नाचते /
भैंस बजावे बीन /
ऋतु रंगीन
२९)
कुत्ता उसका /
पूर्व जन्म का मित्र /
पूंछ हिलाता
पहेलियाँ और सुखन हाइकु पढ़कर पाठक निश्चय ही अपने बचपन में लौट जाता है | हाइकु –जापानी गूँज, के अंतर्गत जो हाइकु दिए गए हैं, वे सीधे अनुवाद न होकर छायानुवाद / भावानुवाद हैं | अत: अनुगूँज की सा- र्थकता सिद्ध हो जाती है |
शीर्षक हाइकु से समापन करती हूँ –
३०)
लुभावे मन /
जाड़े की सर्दी में /
धूप कुंदन
<धूप कुंदन> हाइकु संग्रह सचमुच मन लुभाता है | अशेष शुभकामनाएं |
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डा. सुधा गुप्ता
१२० बी /२, साकेत, मेरठ (उ, प्र.)
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