अंगरेजी में एक कहावत है, the small is beautiful. <मन के मनके> (अयन प्रकाशन २०१६) में संग्रहीत डा. सुधा गुप्ता की छोटी- छोटी सुन्दर कव...
अंगरेजी में एक कहावत है, the small is beautiful. <मन के मनके> (अयन प्रकाशन २०१६) में संग्रहीत डा. सुधा गुप्ता की छोटी- छोटी सुन्दर कविताएँ भी अंग्रेज़ी की इस कहावत को चरितार्थ करती हैं | सुधा जी ने इन कविताओं को ‘क्षणिकाएं’ कहा है | लघुकाय कविताओं के लिए ‘क्षणिकाएं’ शब्द अब काफी प्रचलित हो चुका है | हर छोटी कविता हिन्दी में आज क्षणिका कह दी जाती है, फिर भले ही उसमे कविता की चमक हो या न हो. लेकिन सुधा जी ने क्षणिका शब्द को गरिमा प्रदान करते हुए अपने इन नन्हें कविता-‘मनकों’ को उदारतापूर्वक क्षणिका ही कहा है | उनकी ये कवितायेँ कविता-समय के तागे में गुंथी, समय को सार्थक करती और अपनी चमक से चमत्कृत करती वस्तुत: ‘क्षणिकाएं’ ही हैं |
डा. सुधा गुप्ता की इन छोटी छोटी कविताओं में जहां दिल के आतिशदान में चटखती यादों की तपिश है, वहीं स्वीट-पीज़ की महक भी है | जहां हाल ही में रोकर चुप हो गए बच्चे की हिचकियाँ हैं, वहीं किसी की याद की सिसकियाँ भी हैं | इनमे जहां अनमनी सी धूप है तो किसी अनचीन्हे पंछी की टीसती सी आवाज़ भी है | यहाँ बिटुर बिटुर करती काली मखमली मैना की कसकती चीख है, गुलदान में ताज़ा खिला-सजा गुलाब है और फिर भी कवियित्री का मन न जाने क्यों उदास है | ऐसी ऐसी विसंगतियां और ऐसी ऐसी यादें हैं कि मन एक साथ सिंदूरी लाल और वासंती पीला हो जाता है | प्यार की न जाने कितनी अनुभूतियाँ मन पटल पर बिखरी पडी हैं जिन्हें जितना ही भुलाया जाता है उतना ही वे याद आती हैं |
स्मृति की तो पचासों तह हैं |
· सोनाली धूप में अनमनी सी ऊंघ गई खुलता गया स्मृतियों की मलमल का थान खुलता गया.....खुलता गया पचासों तहें (पृष्ठ ३७)
· तुम्हें विदा कर ज्यों ही मुडी देहरी के पार एक साथ यादें आने लगीं कदम ताल (पृष्ठ १६)
· मुद्दत बाद तुम्हारे शहर आना हुआ ...सब कुछ वही था जस का तस सिर्फ तुम न थे (पृष्ठ ११)
कुछ नई कुछ पुरानी यादों के अहसास आज भी कितने सुरक्षित हैं दिल में –
· चालीस साल पुराने माँ के हाथों बुने दस्ताने पहनकर करती हूँ अहसास माँ की नर्म नर्म हथेलियों का (पृष्ठ ७९)
वहीं कुछ ऐसे भी अहसास हैं जिन्हें ‘मृग-जल’ कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | आखिर किसी याद का ही तो भ्रम हुआ है फिल्वक्त | ‘विशफुल थिंकिंग’ (कल्पित इच्छा-पूर्ति) का एक खूबसूरत पल -
· हौले से तुमने तपता मेरा हाथ छुआ...और पूछा- अब कैसी हो ? ....झपकी आई थी ! (पृष्ठ ३१)
हाय, कितनी बेरहमी !
· दिल के आतिशदान में चटखती यादें तपिश तो ठीक है ...मत बनों बेरहम इतनी मेरी दुनिया ही जल जाए (२५)
ऐसे में कौन भला यादों के गलियारे में जाए-
· स्वीट पीज़ की गंध... आती है कोई महक भरी याद हौले हौले दरवाज़ा खटखटाती है- न, नहीं खोलूंगी
खुश हुआ जाए या दुखी, कौन जाने ! सारी स्थितियां विरोधाभासी है, विसंगत हैं |तभी तो “ताज़ा खिले / गुलाब / गुलदान में सजा कर / उदास हो जाती हूँ” (पृष्ठ १०३)
· खुशनुमा शाम फूलों की भीड़ वहशत भरा मन बढ़ती बदहवासी कैसी विसंगति है ! (५६)
यह विसंगति ज़िंदगी का एक ज़रूरी हिस्सा बन चुकी है और शायद समाज का भी जिसमे रहने के लिए हम अभिशप्त हैं-
· ज़िंदगी एक चुइंग गम- शुरू में थोड़ी सुगंध-थोड़ी मिठास बाद में फींकी, नीरस, बेस्वाद बस चबाते रहने का बेमतलब प्रयास (५३)
· हाथों में आरी कुल्हाड़ी लेकर आए हैं - पूछते हैं - कैसे हो दोस्त ? (१०३)
लेकिन कवियित्री को यह रवैया पसंद नहीं है | उनके मन में तो प्यार बसा है | प्रेमानुभूतियों से वे सराबोर हैं | भले ही प्रेमाभिव्यक्ति कितनी ही दूभर क्यों न हो अंतत: किसी भी घायल मन का उपचार सिर्फ प्रेम ही हो सकता है | प्रेम के प्रति विनत होना ही प्रेम को पा जाना है | केवल प्रेम में ही मैं और तुम का द्वेत समाप्त हो सकता है | प्रेम की यात्रा तो सिर्फ तुम से तुम तक है | “मैं” के लिए वहां कोई स्थान ही नहीं है |
· घायल मन लिए फिरी बरसों तेरी एक झलक सारे ज़ख्म पूर गई (६७)
· मैं तुम से मिली ऐसी कि मेरी ज़िंदगी सिर्फ रह गई तुम से तुम तक (८५)
· रूठती हूँ तुमसे (मन ही मन) मान करती हूँ (मन ही मन ) पछाड़ खा, फिर आ गिरती अवश हो तुम तक (८६)
· निवेदिता मैं झुकी रही, झुकती गई तुम मुस्करा दिए... मांगो...जो चाहो ... आह! वह एक क्षण! चेतना खो बैठी ! अभागी मैं क्या और कैसे मांगती ? (९३)
· जितना ही भुलाना चाहती हूँ तुम्हें मैं उतना ही और ज़्यादा याद आते हो मीठे सपने जैसे किसी प्यारी गंध की तरह मेरे मन में बसे चले जाते हो प्राणों में रचे जाते हो... (६०)
· तीन या चार ? हाँ, चार कागज़ लिखकर फाड़ फेंके पर लिख न पाई दो पंक्ति की चिट्ठी आखिर क्या लिखना चाहिती थी मैं ! (४५)
डा. सुधा गुप्ता के इन काव्य-मनकों में प्यार और सिर्फ प्यार लिखा है | प्यार है,प्यार की यादें हैं, प्यार का दर्द है और प्यार की टीस है | प्यार के सोपान हैं, हवा है बरसात है | फूल हैं, गुलाब है | चिड़ियाँ हैं और उनका कलरव और उनकी पहचान है !
सालिम अली बर्ड-वाचिंग (पक्षी अवलोकन) के लिए भारत में प्रसिद्ध हुए हैं | बर्ड-वाचिंग में तो डा. सुधा गुप्ता की भी ज़बरदस्त दिलचस्पी है | लेकिन इस क्षेत्र में वैज्ञानिक अध्ययन का उनका कोई इरादा नहीं है बल्कि उनकी काव्यगत अभिरुचि ने उन्हें इस ओर प्रेरित किया है | वसंत के बहाने न जाने कितनी चिड़ियों की पहचान उन्हों ने की है | शकखोरा, फूलचुही, गुलदुम, दरजिन और पीलक | (इनमें से कितनों के नाम सुने हैं, आपने) ---
आ गए / मौज मस्ती के / दिन / शकर खोरा और / फूलचुही के (दिन)
गुलदुम / ...दम मारने की / फुरसत नहीं / आने वाले मेहमान की / तैयारी में जुटी
दरजिन से पूछों.../चोंच सलामत / सीने में पटु / दो पत्तों को जोड़ /बनाएगी आशियाना
चटक सुनहरी / ..शर्मीली पीलक / हवा में गोते लगाती / पेड़ों पर खोज रही / खिले फूलों में मकरंद (पृष्ठ,८७-८८)
इसी तरह का एक और पक्षी अवलोकन --
नन्हीं गौरैया / अनार की शोख टहनी पर / बैठी / चोंच से पर खुजला / इधर उधर ताका / न जाने क्या सोचा / उड़ गई !... इतनी बड़ी दुनिया में / कितनी / अकेली नन्हीं गौरिया (११८)
डा. सुधा गुप्ता अपनी इन क्षणिकाओं के ज़रिए जगह जगह पर हमें औचक, आश्चर्य में डाल देतीं हैं –बहुत कुछ इस तरह -
अभी भोर थी / दस्तक पडी / खोला जो द्वार / हर्ष का न रहा / पारावार / वसंत खडा था ! (पृष्ठ १४)
बार बार, लगातार / खोला जो द्वार / देखा, / भूली सी हवा / ठिठकी खडी / सांकल बजा रही थी (पृष्ठ ७०)
एक मुट्ठी भर हवा /एक झोंका भर खुश्बू /एक घाव भर दर्द /अंजुरी भर प्यास /थाम कर खडी हो गई बरसात /मेरे दरवाज़े ... (३९)
डा, सुधा गुप्ता की यही खूबी है, वह कविता में नए दरवाज़े खोलती हैं और नए नए दृश्य दिखाती चलती हैं. पाठक अविभूत हो जाता है.
और अंत में | <मन के मनके> की इसी शीर्षक से प्रस्तावना लिखते समय उदारमना कवियित्री ने मुझे स्मरण किया, इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ | उन्हों ने लिखा है, ‘’वरिष्ट कवि /रचनाकार डा. सुरेन्द्र वर्मा का कविता संग्रह ‘उसके लिए’ (प्रकाशन वर्ष २००२) अपने भीतर बहुत ढेर-सी सुन्दर, प्रभावी क्षणिकाएं समेटे हुए है; यद्यपि नाम (पुस्तक का) कवितायेँ ही है |” कोई भी रचनाकार ऐसी टिप्पणी पर ‘धन्यवाद’ कहकर आभार से विमुक्त नहीं हो सकता | मैं भी नहीं होना चाहता |
डा. सुरेन्द्र वर्मा
१०, एच आई जी, १, सर्कुलर रोड इलाहाबाद -२११००१
मो. ९६२१२२२७७८
COMMENTS