सृष्टि में जागरण हो तभी नवप्रभात का अहसास होता है अन्यथा बहुत सारे लोग हैं जिनके भाग्य में उषाकालीन सूर्य के दर्शन नसीब नहीं हैं। हर इंसान...
सृष्टि में जागरण हो तभी नवप्रभात का अहसास होता है अन्यथा बहुत सारे लोग हैं जिनके भाग्य में उषाकालीन सूर्य के दर्शन नसीब नहीं हैं।
हर इंसान के जीवन में रोजाना नवप्रभात का सुनहरा सूरज उगता है, कुछ लोग इस शाश्वत सत्य को स्वीकार कर उसका लाभ लेते हैं और दूसरे सारे बिना अंधकार के उदासीनता की चादर ओढ़कर भोर के स्वप्नों में खोए रहते हैं।
दुनिया में पैदा हुए हर इंसान का फर्ज है कि खुद भी ओजस्वी-तेजस्वी बनने के लिए आलोकित रहे और दुनिया को भी आलोक प्रदान करे। जबकि अंधेरों के बीच जीने और दुर्गन्धियाई मैली चादर ओढ़कर स्वप्नों में षड़यंत्रों और विध्वंस के ताने-बाने बुनने वाले लोग या तो तटस्थता ओढ़े सोए पड़े रहेंगे या अहिरावणी संस्कृति को अपना कर रक्तबीजों को पनपाते रहेंगे, किसी चोर-डकैत या अपराधी की तरह भूगर्भ की अंधेरी कंदराओं में अपने आसुरी श्रृंगों और नाखूनों की धार तेज करते रहेंगे या कि मलीन मानसिकता लिए किसी न किसी समूह के साथ गुलछर्रे उड़ाते हुए।
सत् और असत् का संघर्ष हर युग में रहता आया है। जात-जात के असुरों से लेकर तमाम प्रकार की बुरी आत्माएं हर युग मेंं पैदा होती हैं और अपने कुकर्मों को सामाजिक सर्वमान्यता का चौला ओढ़ाकर सृष्टि भर में धींगामस्ती करती रहती हैं।
इसी प्रकार सज्जन और अच्छी आत्माएं भी हर युग में और बहुत बड़ी संख्या में पैदा होती हैं और दैवीय कार्यों, सेवा तथा परोपकार के माध्यम से दुनिया का भला करती हैं, कुछ देकर ही जाती हैं जिसे सदियों तक याद किया जाता रहता है।
सत्य और असत्य, धर्म और असत्य, पुण्य और पाप सभी प्रकार की धाराएं उपलब्ध हैं। हर कोई स्वतंत्र है अपने आपको किन धाराओं के हवाले करे। दोनों के मार्ग अलग-अलग हैं, न कोई एक-दूसरे से संबंधित है, न किसी मामले में समानान्तर। फिर भी आम तौर पर देखा यह जाता है कि आसुरी रंग-रस वाले पोखरों की दुर्गन्ध के भभके बदचलन और बिकाऊ हवाओं के साथ चलकर सज्जनों के बाड़ों के आस-पास आ ही जाते हैं।
इसका ईलाज ढूंढ़ने की बजाय अच्छे लोग अपने काम में लगे रहते हैं और उनके श्रेष्ठ कर्मों की सुगंध बहुगुणित होकर परिवेश से लेकर आसमान में छाती रहती है। मनस्वी और कर्मशील लोगों का ध्यान हमेशा अपने कर्मयोग पर टिका रहता है और वे इस बात की कोई परवाह नहीं करते कि कौन उनके बारे में क्या सोच व कर रहा है क्योंकि हर समझदार इंसान अच्छी तरह यह जानता है कि असुरों का स्वभाव कैसा होता है और वे क्या कर सकते हैं।
जो जैसा होगा वैसा ही सृजन कर पाएगा। विलायती काँटेदार बबूलों, बेशर्मी और सत्यानाशी से आम पैदा नहीं हो सकते, न नीम की निम्बोली में आम रस का स्वाद आ सकता है। ऎसे में समझदार लोग बड़ी ही ईमानदारी से इस शाश्वत सत्य को जानते व तहे दिल से स्वीकारते हैं कि इसमें कौनसी नई बात है।
हमारे किसी भी कर्म को लेकर कहीं से भी कोई प्रतिक्रिया आए, तब प्रसन्न होना चाहिए कि हमारे कर्म को मन से स्वीकारा जा रहा है, तभी तो जमाने भर में अनचाही और अयाचित हलचल मचने लगती है। सृष्टि से आरंभ से लेकर अब तक कोई भी श्रेष्ठ कर्म विरोध या विरोधियों से अछूता नहीं रहा।
कोई भी अच्छा कार्य, सकारात्मक सोच या सुखद परिवर्तन उन लोगों के गले कभी नहीं उतर सकता जो कि परिवर्तन लाने या इस जैसा श्रेष्ठतम काम कर पाने में सक्षम नहीं हैं और इसीलिए अकर्मण्यता की खीज ये लोग किसी न किसी तरीके से बेतुका विरोध या शिकायतें करते रहकर उतारते रहने के आदी हो जाते हैं।
हर प्रकार के विरोध और विरोधियों के कुतर्कों को चुनौतियों के रूप में सहजता एवं प्रसन्न्तापूर्वक स्वीकारा जाए तो हमारे कर्म के लिए और अधिक लाभकारी हो सकते हैं। तभी तो कबीर ने इन लोगों को सर्वोच्च सम्मान प्रदान करते हुए कहा है - निन्दक नियरे राखिये....।
इनके द्वारा किया जाने वाला हर विरोध हमें रोशनी दिखाने का काम करता है। बड़े-बड़े युद्धों में महारथियों के आगे-पीछे घूमने वाले इन्हीं मशालचियों और हरकारों की वजह से विजयश्री का वरण हो पाया है।
भगवान के अवतारों से लेकर दुनिया का कोई सा ऎसा महापुरुष नहीं रहा, कोई सा ऎसा अभियान नहीं रहा, कोई सा श्रेष्ठ परिवर्तन ऎसा नहीं रहा, जिसका विरोध न हुआ हो।
न श्वानों की बेवजह भौंकने की प्रवृत्ति रोकी जा सकती है, न गधों को दुलत्ती मारने से मना किया जा सकता है, बिच्छुओं और साँपों को कैसे कहा जाए कि वे काटे नहीं, उल्लू को लाख कहा जाए कि आँखें खोलो, सूरज का उजाला देखो, वह ऎसा कभी नहीं कर सकता। चिमगादड़ों से दिन भर सुहानी झीलों और बाग-बगीचों की सैर नहीं करायी जा सकती, वे रात को ही निकलेंगे और निशाचरों की तरह उड़ते रहेंगे। आधे, पूरे और आंशिक पागलों को समझाने की क्षमता हममें होती तो आज पागलखानों का अस्तित्व नहीं होता।
संसार का सच यही है। जो लोग निर्वीर्य, पुरुषार्थ से जी चुराने वाले, कर्महीन और छिद्रान्वेषी हैं उनके विरोध के प्रति बेपरवाह रहें। इन निम्न कोटि के असुर दूतों से अपनी तुलना कभी नहीं की जा सकती। न ये हमारे मुकाबले श्रेष्ठ, निष्काम और निस्पृह कर्मयोग अपना सकते हैं। और इसी सर्वस्तरीय अक्षमता के कारण हमेशा इस कोशिश में लगे रहते हैं कि किसी न किसी श्रेष्ठ व्यक्तित्व से तुलना करनी शुरू कर दो ताकि लोग इनके कद को भी ऊँचा मानने का आभास करते रहें।
असल में उन मूर्ख और नासमझ लोगों को विरोधी मानने और स्वीकारने की भूल न करें जिनसे हमारा कोई मुकाबला या तुलना नहीं। मजा तो तब है जब ये तथाकथित विरोधी अमर रहें और ढेरों चुनौतियां हमेशा बनी रहें ताकि इन मुफतिया मशालचियों और अवैतनिक सफाईकर्मियों के कारण हमारा मार्ग हमेशा प्रशस्त बना रहे।
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- डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
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