29 नवम्बर 2015 को जब शनि शिंगणापुर मंदिर में एक महिला ने शनिदेव के चबूतरे पर जाकर पूजा कर तेल चढ़ाया तो मानो मंदिर में कोहराम मच गया है, मं...
29 नवम्बर 2015 को जब शनि शिंगणापुर मंदिर में एक महिला ने शनिदेव के चबूतरे पर जाकर पूजा कर तेल चढ़ाया तो मानो मंदिर में कोहराम मच गया है, मंदिर ट्रस्ट ने उस महिला के पूजा करने की कड़ी आलोचना की इसके बाद जो हुआ उससे हम और आप सभी वाकिफ हैं, पूरे देश में महिलाओं को पूजा करने के अधिकार की मांग के लिए कई महिला सामाजिक संघठन महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने और पूजा करने की मांग पर अड़े रहे। बाॅम्बे हाई कोर्ट के निर्णय ने महिलाओं के मानव अधिकारों के पक्ष में निर्णय देते हुए शनि शिंगणापुर मंदिर के दरवाजे सभी के लिए खोलने का ऐतिहासिक निर्णय कर महिलाओं के मानव अधिकारों को बल दे दिया है।
तमाम विवादों के बीच नवरात्रि के पहले दिन से शनि शिंगणापुर मंदिर में भूमाता ब्रिगेड़ की अध्यक्ष तृप्ति देशाई सहित कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने शनि शिंगणापुर मंदिर में पहुंचकर पूजा अर्चना की। इससे 400 साल पुरानी वह परंपरा ध्वस्त हो गई जिसमें उस चबूतरे पर महिलाओं को जाने की इजाजत नहीं थी। भले ही देश के धर्मगुरूओं के निशाने पर अब भूमाता बिग्रेड़ की अध्यक्ष तृप्ति देशाई आ गई हो पर क्या आगे भी भूमता ब्रिगेड अन्य मंदिरों की इस खोखली परंपरा को ध्वस्त करने आंदोलन करती रहेगीं? धर्मगुरूओं का मानना है कि भूमता बिग्रेड़ की अध्यक्ष ने पूरे विश्व में हिन्दू धर्म को महिलाओं को अधिकार दिलाने की आड़ में बदनाम कर दिया है। मसलन बाम्बे हाई कोर्ट के निर्णय के बाद जो परिणाम सामने आए उससे तो यही लगता है कि अब देश के बाकी मंदिरों में भी महिलाओं के साथ न्याय होगा। देश के जिन मंदिरों में आज भी महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं उन मंदिरों में केरल के पथानामथिट्टा स्थित सबरीमला श्री अयप्पा मंदिर, जिसमें मासिक धर्म वाली 10 से 50 साल आयु की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है।
इसी प्रकार हरियाणा के पेहोवा स्थित मार्तिकेय मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है साथ ही श्राप मिलने का डर है। महाराष्ट्र के सतारा स्थित मंदिर में भी महिलाओं का प्रवेश निषेध है, हालांकि मंदिर से बोर्ड गायब है लेकिन प्रवेश की इजाजत अभी नहीं है।महाराष्ट्र के ही देवस्थान सतारा स्थित सोला शिवलिंग शनैश्वर मंदिर में महिलाओं के आने पर खुला प्रतिबंध दूसरे शनि मंदिरों की तरह ही है। असम के बरपेटा सत्रा स्थित कीर्तन घर मंदिर में तो पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को भी प्रवेश देने से इंकार कर दिया गया था। इसी प्रकार बोकारो झारखंड के मंगल चंडी मंदिर में 100 फीट तक महिलाओं के आने पर रोक है, उल्लधंन करने पर सजा का भी प्रावधान रखा गया है। छत्तीसगढ़ के धमतरी स्थित मवाली माता मंदिर में पुजारी को आए सपने के बाद महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है।
ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर परिसर में बिमाला खांडा शक्ति पीठ में सभी महिलाओं को मां काली का अवतार मानकर दूर्गा पूजा मे उनका प्रवेश निषेध रखा गया है।राजस्थान के पुष्कर में भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का मंदिर, मध्यप्रदेश के बेतूल जिले में मुक्तागिरी का जैन मंदिर और श्योपुर में माता पार्वती के मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है। अब सबाल साफ है क्या शनि शिंगणापुर मंदिर की तरह इन मंदिरों में भी सालों से चली आ रही खोखली परंपरा अपने आप टूट पाएगी? या इन मंदिरों के लिए भी भूमाता ब्रिगेड जैसे संघठनों को फिर से सड़क पर उतरना पडे़गा? बहरहाल शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से पाबंदी हटने के बाद देश में फिर एक नई बहस ने आकार ले लिया है। केरल के सबरीमाला श्री अयप्पा मंदिर में मासिक धर्म वाली 10 से 50 साल आयु की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी की बात जब सुनने को मिलती है तो अपने आप में कई सवाल जन्म ले लेते हैं, आखिर इन मंदिरों पर पाबंदी लगाने वाले कौन से महामानव हैं? क्या उन्होने अपनी मां की कोख से जन्म नहीं लिया यदि उन्होने भी अपनी मां की कोख से जन्म लिया है तो फिर उस मां के साथ ऐसा भेदभाव क्यों?
पाबंदी के नियम भगवान ने नहीं बनाये पाबंदी के नियम तो हम इंसानों ने ही इसी धरती पर बनाये हैं। आस्था और भक्ति पर पाबंदी के ये बेडि़यां महिलाओं बस के लिए क्यों? शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी की परंपरा को तौड़ने की बाहक बनी भूमाता ब्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ति देशाई अब उन धर्मगुरूओं के निशाने पर भले ही आ गईं हो पर देश के अन्य मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी हटाने की आवाजंे आने वाले समय में आती रहेगीं। शंकराचार्य के हालिया बयानों ने तो अब इस बहस को और बड़ा कर दिया है जिसमें उन्होंने कहा था कि शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देना सही नहीं है, इसमें महिलाओं का उत्पीड़न व दुष्कर्म की धटनाएं बढ़ेगी। शनि कोई भगवान नहीं बल्कि एक ग्रह है।ग्रह की शांति होती है पूजा नहीं।
महिलाओं को शनि की पूजा करने से बचना चाहिए। जबकि दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मां सर्वोच्च, फिर सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश क्यों नहीं? क्या परंपरा संविधान से ऊपर है? किस अधिकार से महिलाओं को प्रवेश से रोका गया है? अगर किसी कमरे में मां पिता ओर गुरू बैठे हों तो प्रवेश करते वक्त सबसे पहले मां को पूजा जाता है। भारत में मां को सर्वोच्च माना गया है फिर यहां प्रवेश में रोक क्यों? ये ऐसे प्रश्न हैं जिनका जवाब उन लोगों को देना ही होगा जो लोग सबरीमाला मंदिर सहित कई मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश की इजाजत नहीं दे रहे हैं। बहरहाल जिस प्रकार से सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी हटाने का मामला सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान में है उसी प्रकार देश के अन्य मंदिरों में भी जहां महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है के प्रवेश का मामला संज्ञान में लेगा यह तो वक्त ही बता पाएगा। पर जिस प्रकार से खोखली परंपराओं की बेडि़यों से महिलाओं को सभ्य समाज और देश के धर्मगुरूओं ने बांध के रखा है उन बेडि़यों को सभ्य समाज अखिर कब तोड़ेगा इसका जवाब भी सभ्य समाज के पास नहीं है। जो लोग महिलाओं के प्रवेश की इजाजत नहीं दे रहे हैं आखिर उन्होंने भी तो उसी मां से जन्म लिया जो जगतजननी है।
समाज की खोखली परंपराओं को महिलाओं के ऊपर थोपने का नजरिया किस खान से निकाला गया है, और यदि इस परंपरा को किसी खान से निकाला गया है तो फिर इसे तराशा कहां गया है कि इसकी चमक मिट नहीं पा रही है। लगने को ग्रहण सूर्य और चन्द्रमा को भी लग जाता है पर क्या इस परपंरा को सामाजिक संघठनों की आवाजों का ग्रहण लग पायेगा यह भी वक्त ही बता पाऐगा। सामाजिक संघठनों की रोज उठती आवाजें उन धर्मगुरूओ और समाज के ठेकेदारों तक पहुंच पा रहीं हैं या नहीं ये भी सोचनीय है। बंद दरवाजों के पीछे से इस खोखली पंरपरा को मिलता बल आखिर किस महामानव का है जो समाज और सरकार से भी बड़ा है। क्या इन मामलों में दखल का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय का ही है। जिम्मेदार सरकारें अपंग हो चुकीं हैं। जो देश के तमाम मंदिरों से इस खोखली परंपरा के किले को ध्वस्त नहीं कर पा रहीं हैं? ये ऐसे सवाल हैं जिन पर देश की जिम्मेदार सरकारों को अमल करना ही होगा। और मां से मंदिर को मिलाने वाला ऐतिहासिक कदम उठाने हेतु ठोस निर्णय लेने ही होंगे। ताकि शनि शिंगणापुर मंदिर की तरह महिलाओं को भी देश के सभी मंदिरों में प्रवेश के द्वार खुल सकें।
और इस पाबंदी की खोखली परंपरा का किला घ्वस्त हो सके।
अनिल कुमार पारा,
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