दिनभर की दौड़धूप के बाद मोहन एक रेस्टोरेंट में थोड़ा सुस्ताने के लिए रूका। उसे भूख लग रही थी। चाय समोसे का आर्डर देकर वह दीवार के सहार...
दिनभर की दौड़धूप के बाद मोहन एक रेस्टोरेंट में थोड़ा सुस्ताने के लिए रूका। उसे भूख लग रही थी। चाय समोसे का आर्डर देकर वह दीवार के सहारे टिककर बैठ गया और आँखें बंद कर ली। अभी कुछ मिनट ही बीते थे कि फोन की घंटी बज उठी। उसने फोन उठाया और बात करने लगा। हेलो! हाँ मैनेजर साहब! बताइये क्या बात है?... हाँ क्या कहा? बड़ी पार्टी है। पाँच बजे तक रहेंगे। ठीक है। तुम उन्हें अच्छी तरह चाय नाश्ता कराओ मैं अभी आधा घंटे में पहुँचता हूँ। देखो पार्टी हाथ से जाने न पाए। तभी बैरा चाय समोसा लेकर आ गया। मोहन ने फोन जेब में रख लिया और जल्दी-जल्दी नाश्ता करने लगा। मोहन पाँच मिनट में खा-पीकर खड़ा हो गया। काउन्टर पर पैसे दिए और मोटर साइकिल पर सवार हो तेजी से अपने शहर की ओर चल पड़ा।
मोटर साइकिल रफ्तार पकड़ रही थी साथ ही मोहन का दिमाग भी। वह सोच रहा था किस तरह पार्टी को प्रभावित करना है? कम्पनी के कौन से बेहतर उत्पाद हैं जो उन्हें दिखाए जा सकते हैं? रेट किस आधार पर तय किया जाय? यदि माल छः माह बाद बनकर तैयार होगा तो उस समय तक लेबर, कच्चे माल और ट्रान्सपोर्ट की कीमतें कितनी बढ़ सकती हैं? इन सभी का ख्याल रखना पड़ेगा। सहयोगियों से परामर्श का समय बहुत कम है। चार पाँच मिनट में संकेतों से ही उनकी सलाह लेनी होगी। खैर जो भी हो यह सब तो उन्नीस बीस तय हो ही जाएगा सबसे बड़ी बात तो है कि वह समय से पहुँच जाय। यदि आधा घंटे में न पहुँच पाया तो पार्टी न मिलेगी और एक पार्टी जाने का मतलब लाखों का नुकसान। यह ख्याल आते ही उसका हाथ मोटरसाइकिल के एक्सीलेटर को घुमाने लगा। गाड़ी की रफ्तार साठ से पैंसठ और पैंसठ से सत्तर हो गई। सड़क ऊबड़-खाबड़ और गड्ढेदार थी। वह मन ही मन प्रशासन को गालियाँ देता दाएं-बांए बचता तेजी से आगे बढ़ने लगा। मोहन कस्बे से निकल कर मुख्य सड़क पर आ गया। यहाँ सड़क की स्थिति कुछ ठीक थी। मोटरसाइकिल ने और रफ्तार पकड़ ली। सड़क के दोनो ओर हरे-भरे खेत और बाग-बगीचे थे। कोई और समय होता तो वह रूककर इस हरियाली का आनंद लेता। परन्तु इस समय तो उसे एक-एक सैकेंड भारी पड़ रहा था। यदि किसी तकनीक से मोटरसाइकिल में पंख फिट किए गए होते तो वह इस समय उन्हीं का इस्तेमाल करता और उड़कर पाँच मिनट में शहर पहुँच जाता। उसने एक गाँव पार किया, फिर दूसरा और तीसरे में पहुँच गया। अब वह अपनी मंजिल के बहुत करीब था मात्र दस बारह मिनट की दूरी पर। पार्टी से बात करने की पूरी योजना उसके दिमाग में तैयार हो चुकी थी। साथ ही मन में यकीन भी कि यह आर्डर निश्चित ही उसे मिल जाएगा।
सड़क के दोनों ओर छितरी सी बस्ती थी। घरों के सामने कच्चे चबूतरों पर बैठे लोग धूप सकते हुए बतिया रहे थे। घरों से बेतरतीब बहते पानी ने सड़क को उखाड़ दिया था। जिससे चौड़े व पानी भरे गड्ढे बन गए थे। सड़क की हालत बद से बदतर थी। न चाहते हुए भी मोहन को बाइक की रफ्तार कम करनी पड़ी। सड़क पर अधनंगे बालकों के झुंड बिना ब्रेक की गाड़ी से इधर से उधर दौड़ रहे थे। कुछ बीच सड़क में गोलियां खेल रहे थे। कुछ पतंगबाजी में मशगूल थे। उनका कोई भरोसा नहीं था कि किस पल सड़क पर दौड़ पड़े। यूं तो मोहन दो तीन बाद महीने में इधर से गुजरता था परन्तु जितनी झुझलाहट आज महसूस कर रहा था उतनी पहले कभी महसूस नहीं हुई थी। उसका दिल चाहा कि उतर कर दो चार को चपत लगा दे। परन्तु चुप रहा और किसी तरह आगे बढ़ने की कोशिश करने लगा। तभी एक बालक सड़क पार करने के लिए दौड़ता हुआ उसकी मोटरसाइकिल के सामने आ गया। मोहन ने ब्रेक लगाने की भरपूर कोशिश की पर बालक मोटर साइकिल की चपेट में आकर लुढ़क गया। बालक के मुँह से हल्की सी चीख निकली और वह बेहोश हो गया। मोटरसाइकिल के शोर व अपनी बातों की व्यस्तता में आस-पास बैठे लोगों का ध्यान तुरंत उधर न गया।
मोहन ने मोटर साइकिल रोक ली। वह अपने कार्य को कुछ देर के लिए भूल गया और मोटर साइकिल खड़ी कर बालक को उठाने लगा। तभी एक सफ़ेद लम्बी दाढ़ीवाला बूढ़ा, जिसने सिर पर गोल टोपी, चूड़ीदार पायजामा और कुर्ता पहना हुआ था। तेजी से उधर झपटा। बूढ़े ने आगे बढ़कर बालक को गोद में उठा लिया। बालक बेहोश था। उसके सिर में चोट लगी थी। कुछ पल के लिए बूढ़े ने मोहन को घूरा। तभी कुछ दूरी पर चारपाई पर बैठे पाँच छः पहलवाननुमा लोग जो ताश खेल रहे थे। उनकी निगाह उधर पड़ी। वे सभी सिर पर जालीदार गोल टोपी लगाए थे। वे ऊँचा कुर्ता और लुंगी पहने थे। उनमें से एक चिल्लाया- “अरे चाचा क्या हुआ?” बूढ़े ने और साथ ही मोहन ने भी उधर देखा। बूढ़ा कातर आवाज में चीखा- “मार डाला।” वे सब अचानक खड़े हो गए। उनकी आवाज सुनकर बाकी का भी बूढ़े की ओर ध्यान गया। एक साथ कई आवाजें उठी- “क्या हुआ?”, “क्या हुआ?” बूढ़े ने बालक को कसकर गोद में पकड़ लिया। मोहन जड़वत खड़ा था। बूढ़े की आँखें अंगारे से दहक उठी। चारपाई पर बैठे लोग तेजी से घरों में घुसे। घरों से तेज शोर उठा। दो पुरुष मोहन की ओर दौड़े। बूढ़े ने उधर देखा फिर उसकी निगाह बाइक सवार पर टिक गई। बूढ़े ने सिर से पैर तक उसके भरे पूरे जिस्म और नौजवान देह को एक बार गौर से देखा। बूढ़े की आँखों के अंगारे कुछ शांत हो गए। उसकी बड़ी आँखें अचानक नम हो गई। वह मोटर साइकिल वाले को आँखों से भागने का इशारा करते हुए बोला- “यह क्या किया तूने? और अपनी कब्र खुदवाने को अभी तक यहीं खड़ा है। चल भाग।”
मोहन ने मोटर साइकिल में किक मारी और तेजी से दौड़ा दी। एक आदमी ने झपट कर मोहन को गिराने की कोशिश की पर वह सम्भलकर किसी तरह भाग निकला। पकड़ो मारो की आवाजें आने लगी। मोहन को लगा बहुत से लोग लाठी लिए उसका पीछा कर रहे हैं। पकड़ो मारो की आवाजें लगातार तेज हो रही थीं। उसने मोटर साइकल की रफ्तार बढ़ा दी। कुछ मिनट बाद उसे लगा कि दो तीन दुपहिया वाहन उसका पीछा कर रहे हैं। वह मोटर साइकिल को तेज और तेज दौड़ाने लगा।
मोहन शहर पहुँच गया। पार्टी से डीलिंग की बात वह भूल गया था। वह सीधा अपने घर की ओर मुड़ गया। आड़ी-टेढ़ी तंग गलियों से होता हुआ वह घर पहुँच गया और बेतहासा दरवाजा पीटने लगा। दरवाजा खुलते ही वह तेजी से घर में घुसा। उसने झट से सांकल बंद की और जोर से एलान करता हुआ कि कोई दरवाजा न खोले, घर के अंतिम अंधेरे कमरे में चला गया।
वह चारपाई पर धम्म से लेट गया। बालक का बेहोश चेहरा जो शायद बाद में मर गया हो और बूढ़े का सफेद दाढ़ी व शोले उगलती आँखों वाला चेहरा मोहन की आँखों के सामने घूमने लगा। वह कुछ देर यूं ही बेसुध सा पड़ा रहा। तभी उसकी बीवी ने आकर उसके माथे पर हाथ रख दिया। वह बोली- “क्या बात है? आपकी तबियत तो ठीक है?” मोहन ने आँखे खोली और मुँह से निकला “पानी लाओ।” बीवी पानी का गिलास भर लाई। पानी पीने के लिए मोहन ने गिलास मुँह के करीब किया तो पानी में सफेद दाढ़ी वाला फरिश्ता तैरने लगा। मोहन हाथ में गिलास लिए देर तक उसे देखता रहा।
---
परिचय:
लेखिका
डॉ. (श्रीमती) अपर्णा शर्मा ने मेरठ विश्वविद्यालय, मेरठ से एम.फिल. की उपाधि 1984 में, तत्पश्चात् पी-एच.डी. की उपाधि 1991 में प्राप्त की। आप निरंतर लेखन कार्य में रत् हैं। डॉ. शर्मा की एक शोध पुस्तक - भारतीय संवतों का इतिहास (1994), एक कहानी संग्रह खो गया गाँव (2010), एक कविता संग्रह जल धारा बहती रहे (2014), एक बाल उपन्यास चतुर राजकुमार (2014), तीन बाल कविता संग्रह, एक बाल लोक कथा संग्रह आदि दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साथ ही इनके शोध पत्र, पुस्तक समीक्षाएं, कविताएं, कहानियाँ, लोक कथाएं एवं समसामयिक विषयों पर लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। आपकी बाल कविताओं, परिचर्चाओं एवं वार्ताओं का प्रसारण आकाशवाणी, इलाहाबाद एवं इलाहाबाद दूरदर्शन से हुआ है। साथ ही कवि सम्मेलनों व काव्यगोष्ठियों में भागेदारी बनी रही है।
शिक्षा - एम. ए. (प्राचीन इतिहास व हिंदी), बी. एड., एम. फिल., (इतिहास), पी-एच. डी. (इतिहास)
प्रकाशित रचनाएं - भारतीय संवतो का इतिहास (शोध ग्रंथ), एस. एस. पब्लिशर्स, दिल्ली, 1994
खो गया गाँव (कहानी संग्रह), माउण्ट बुक्स, दिल्ली, 2010
पढो-बढो (नवसाक्षरों के लिए), साहित्य संगम, इलाहाबाद, 2012
सरोज ने सम्भाला घर (नवसाक्षरों के लिए), साहित्य संगम, इलाहाबाद, 2012
जल धारा बहती रहे (कविता संग्रह), साहित्य संगम, इलाहाबाद, 2014
चतुर राजकुमार (बाल उपन्यास), सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, 2014
विरासत में मिली कहानियाँ (कहानी संग्रह), सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, 2014
मैं किशोर हूँ (बाल कविता संग्रह), सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, 2014
नीड़ सभी का प्यारा है (बाल कविता संग्रह), सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, 2014
जागो बच्चो (बाल कविता संग्रह), सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, 2014
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेख पुस्तक समीक्षाएं, कविताएं एवं कहानियाँ प्रकाशित । लगभग 100 बाल कविताएं भी प्रकाशित । दूरदर्शन, आकाशवाणी एवं काव्यगोष्ठियों में भागीदार।
सम्पर्क -
डॉ. (श्रीमती) अपर्णा शर्मा, “विश्रुत”, 5, एम. आई .जी., गोविंदपुर, निकट अपट्रान चौराहा, इलाहाबाद (उ. प्र.), पिनः 211004, दूरभाषः + 91-0532-2542514 दूरध्वनिः + 91-08005313626 ई-मेलः draparna85@gmail.com
(अपर्णा शर्मा)
बहुत सुन्दर कहानी...कथा का प्रवाह प्रसंशनीय...
जवाब देंहटाएं