(१) आयी हिस्से एक कटोरी धूप......! कैसा पश्चात्ताप करे अब - कैसे माँगे सारी धूप ! अपनों ने मैली कर डाली - सहज...
(१)
आयी हिस्से एक कटोरी धूप......!
कैसा पश्चात्ताप करे अब -
कैसे माँगे सारी धूप !
अपनों ने मैली कर डाली -
सहज सलोनी गोरी धूप !
नई सुबह जब हुई, चमकती -
आँखों में सौ रंग हुए ;
उम्मीदों पे बिजली टूटी -
औचक ,सारे दंग हुए ;
झोली भर तो भूल, न आयी -
हिस्से एक कटोरी धूप !
आपाधापी मची , कि कुछ ने -
कर ली क़ैद तिजोरी में ;
कुछ ने रूई समझ के भर ली -
ठूँस - ठूँस के बोरी में ;
कुछ ने खुल्लम खुल्ला, कुछ ने -
छुप कर करली चोरी धूप !
राजतंत्र ने प्रजातंत्र से जब -
अपना रूख मोड़ लिया ;
गाँधी ने अपने चरखे से -
अपना माथा फोड़ लिया ;
कभी न लौटी , प्रेमचन्द के -
नायक वाली होरी धूप !
उमर झोपड़ी की कटती है -
बस काले अँधियारों में ;
भूखा पेट फ़र्क़ कया समझे -
रोज़ों में , त्यौहारों में ;
बिना लखे जब उसे चिढ़ाये -
हर दिन हर पल कोरी धूप !
(२)
तल्ख़ी दिखला दो इस भोर से..........!
बूढी एक पीढ़ी थी डरी हुई आतंकित ,
गंदी इस सियासत घनघोर से !
तू तो नयी पीढ़ी का प्रतिनिधि है !
धूप क़ैद है तेरी , जिन भी दरवाज़ों में -
मार वहीं लात एक ज़ोर से !
एक एक पत्थर सब फेंको
अँधियारों पर -
कुछ तो प्रतिरोध अब दिखाएँ ;
गहराई नींदों पर मिल कर
सब चोट करें -
ताकि ये जगें , हड़बड़ायें ;
गोलबन्द होकर अब -
काले तम के ख़िलाफ़ ,
तल्ख़ी दिखला दो इस भोर से !
देशभक्त बन के ही पानी है
गद्दी तो -
दंभ छोड धरती पर आओ ;
शामिल हो हम सब के दु:ख सुख के
जीवन में -
ऐसे कुछ काम कर दिखाओ ;
खादी वो पहनों , जिसका -
नाता था सतयुग से ,
ना कि था किसी बडे चोर से !
अब काले कामों की दुकानें
बन्द करो -
मत छेड़ो सपनों के छन्द ;
गद्दी पर रहना है तो सबका
दर्द सुनो -
मेहनत से कर लो अनुबन्ध ;
पावन सी संसद में ,
प्रतिनिधि सब सच्चे हों -
ना कि मक्कार रिश्वतख़ोर से !
(३)
मन के बाग बग़ीचे ...........!
मन के बाग बग़ीचे -
सबके कोमल मुरझाये !
हर क्यारी में -
तरह तरह के कैक्टस उग आये !
फूल फलों की मादक मीठी -
खुशबू रूठ गयी ;
प्यारी गुलकंदी भाषा की -
डोरी टूट गयी ;
बातचीत में काँटों वाले -
जंगल उग आये !
रिश्तों वाले तटबंधों में -
ठँडी नदियाँ हैं ;
पत्थर दिल से सिर फूटी सी -
कितनी सदियाँ हैं ;
सौंधी मिट्टी वाले रस्ते -
पत्थर तक आये !
मन का भोलापन खो बैठा -
रोज़ बनावट में ;
सादापन लुट गया चमकती -
हुई दिखावट में ;
सगे खून से मिले कि जैसे -
अनजाने आये !
नयी सोच में सोचो तो हमने -
क्या पाया है ;
अपना यश से भरा पुरा परिवेश -
गँवाया है ;
जैसे गद्दा छोड सड़क पर -
कोई सो जाये !
(४)
बच्चे हमारे................!
हर सुबह पाये मरे , जो स्वप्न नींदों में निहारे !
अब कभी भी चैन से , बच्चे नहीं सोते हमारे !
रात में जब स्वप्न परियां -
ले गयी उनको घुमाने ;
हर सुबह वो लग गये -
दिल में छुपी मंशा जताने ;
हूक सी बस एक साँसों में लगी फँसने हमारे !
लोरियाँ माँ की उन्हें अब तो -
डराने लग गयी हैं ;
माँ समझती है कि नींदें क्यों -
सताने लग गयी हैं ;
बचपने की मौत कितने अब मरें बच्चे हमारे !
फूल से कोमल दिलों पर -
क्या असर होगा व्यथा का ;
यों दुखद तो अन्त ना कर -
फूल सी कोमल कथा का ;
क्या सुनायेंगे , बडे होकर , डरे बच्चे हमारे !
इस सरल मन को हमारी -
भ्रान्तियाँ का बोध क्या हो ;
ये विषय कितना कठिन है -
सोचिये तो शोध क्या हो ;
क्या विषय अब शोध के बन जायेंगे बच्चे हमारे !
(५)
नागफनियों की शरारत है.............!
अब कहाँ नरमी हवाओं में ,
नागफनियाँ की शरारत है -
आजकल इन फूलगाहों में !
मालियों ने दूधिया परिवेश -
चालबाज़ी में उतारे हैं ;
सब्ज़बागों के बहाने से -
फूल कुछ बेमौत मारे हैं ;
फूल वाली रोशनी है क़ैद -
नागफनियों की निगाहों में !
अब किनारों में नहीं बँधती -
खौलते जल की व्यवस्थायें ;
हर समय पेशानियों पर हैं -
ज्वार-भाटे की अवस्थायें ;
खून की नदियाँ उबलती हैं -
दोस्तों ! अब नर्म बाहों में !
(६)
अब तो राजा चाह रहा है....सूरज आये !
अब तो राजा चाह रहा है -
सूरज आये !
धूप अँधेंरे के कचरे पर -
झाड़ू मारे ;
लेकिन ढीठ अँधेरा भी तो -
ये स्वीकारे ;
उसकी सत्ता गयी , भरम की -
धूल हटायें !
आसमान पर जब सूरज का -
ढेरा होगा ;
बहुत दिनों के तम के बाद -
सवेरा होगा ;
घूम घूम कर सबको ये मौसम -
समझाये !
साठ साल की पसरी खिजा -
बाग में,डर लो ;
इस माली पर , भी तुम एक -
भरोसा कर लो ;
बंजर में हरियाली शायद फिर -
खिल आये !
संशय की काली बदली सब -
मिलो हटाओ ;
बूँद-बूँद जुड़ ,वर्षा के बादल -
बन जाओ ;
फूल खिलें फिर बाग़ों में-
तितली मुस्काये !
(७)
जीवन है बहुरंगी...............!
ज़ीवन है बहुरंगी : जाने कितने रूप !
जिसका पेट भरा है उसकी -
थाली फ़ुल ;
भूखे की थाली से , उसकी -
रोटी गुल ;
झारखंड अब पिये घास का असली सूप !
कहीं न चुकते क़र्ज़ ,खेत -
घर सब बिक के ;
है धाकड , तो खूब चले -
खोटे सिक्के ;
मिले प्यास को महज सफ़र में अंधे कूप !
गर्म घरों में ठंड करे -
कैसे आघात ;
कहीं अलावों में ठिठुरी सी -
कटती रात ।
लो ! दिन में ड्यूटी से अपनी ग़ायब धूप !
(८)
धूप लाड़ली बेटी जैसी............!
सर्द हवा , कोहरा , सन्नाटा -
आयी घर से धूप निकल के !
ठिठुर रहे थे बूढ़े बाबा, ठंड मगर -
क्यों रहम दिखाये ;
भली धूप ने घबरा करके , गरम -
धूप के शाल उड़ाये ;
आयी तब बूढ़े बाबा को -
राहत की कुछ साँस निकल के !
धूप कूद , छज्जे पर बैठी , चौके में -
अम्माँ को देखा ;
काँप काँप वो बाँच रही थी ,पूरे घर का -
लेखा जोखा ;
धूप लाड़ली बेटी जैसी -
चहकी उससे ख़ूब लिपट के !
तभी नकचढ़ी भाभी के मन ,गरम धूप की -
चाहत जागी ;
झट से धूप कूद कर उतरी , मचा हड़बड़ी -
घर से भागी ;
धूप उसे नफरत से देखे -
जो रहते हों बड़ी अकड़ के !
(९)
लो शहर धुल गया.............!
बूँदों की इक सुखद सी झडी क्या लगी -
लो शहर धुल गया !
भागती दौड़ती हर सड़क -
भीग कर , मुस्कुराने लगी ;
आग से तप रही हर फ़िज़ा -
खिल गयी ,गुनगुनाने लगी ;
हाँपते से शहर में झंडी क्या लगी ,चैन का -
इक पहर घुल गया !
घर दड़बेनुमा , खिड़कियाँ -
खोल कर , मुस्कराने लगे ;
चुस्कियाँ चाय की हँस पड़ी -
कप ताली बजाने लगे ;
बन्द कमरों को बूँदों की बौछार में -
अपना घर मिल गया !
भागती ज़िन्दगी थम गयी -
क्या करे , आज मजबूर है ;
यों तो पल चैन का आदमी से -
सदा , कोस तक दूर है ;
ज़िन्दगी को नहाकर सहज चैन का -
आवरण मिल गया !
(१०)
सर्द रात.........!
रमुआ के दो प्यारे बच्चे और लुगाई !
सर्द रात ,और पूरे घर में एक रज़ाई !
ठंड लगे , तो रमुआ खींच -
बदन को ढाँपे ;
बच्चे खींचें थोड़ी सी , तो -
रमुआ काँपे ;
ढाँप ढाँप सब रात ,बिचारो जगी लुगाई !
मिल में प्रोफ़िट हुआ , तो मिल -
मालिक हरषाये ;
सभी मजूरा ख़ुश हैं , बोनस के -
दिन आये ;
रमुआ के हिस्से में , पतली चद्दर आई !
ठंड निगोड़ी बड़ी बेरहम -
मारे चाँटे ;
हवा छुरे सी तन की -
हड्डी हड्डी काटे ;
भोली गइया पे सवार हो क्रूर कसाई !
OO
परिचय :
नाम : कृष्ण भारतीय
जन्म : १५ जुलाई,१९५०
स्थान : एटा (उत्तर प्रदेश )
प्रकाशित : धर्मयुग, कादिम्बनी , साप्ताहिक हिन्दुस्तान,
मधुमती मासिक, दिल्ली व विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में !
प्रकाशित संग्रह : दो नवगीत संग्रह प्रकाशनार्थ तैयार !
सम्प्रति : एस डी-३८२, शास्त्री नगर ( ग्राउण्ड फ़्लोर ),
ग़ाज़ियाबाद -२०१ ००२ (उत्तर प्रदेश )
संपर्क : ०९६५००१०४४१
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