हादसा बंद कमरे में अपनों के बीच वह सारी रात विचलित मनोस्थिति में करवटें लेता रहा। साथ सो रही पत्नी की उपस्थिति भी उसे किसी प्रकार से सहज नह...
हादसा
बंद कमरे में अपनों के बीच वह सारी रात विचलित मनोस्थिति में करवटें लेता रहा। साथ सो रही पत्नी की उपस्थिति भी उसे किसी प्रकार से सहज नहीं कर पा रही थी। किसी प्रकार की उत्तेजना भी उसने आज महसूस नहीं की। लगभग आधी रात बीत जाने के बाद कब उसकी आँख लगी ,उसे पता ही नहीं चला। फिर यकायक वो नींद से हड़बड़ा कर उठा जैसे कोई सपना देखा हो। कमरे के अन्धकार में केवल बाहर जल रही ट्यूब लाइट का प्रकाश छिटक कर आ रहा रहा था। कही दूर सड़क पर किसी वाहन के हार्न ने इस रात की नीरवता को तोडा। उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगा इस सन्नाटे का टूटना। इससे वह फिर एक बार विचलित हो गया। जीवन की सावधानियों की निस्सारता और क्षण में मृत्यु का बोध उसे जीवन के प्रति उचाट कर रहा था। शायद सिद्धार्थ इसी मनोस्थिति में बुद्ध बनने की राह पकड़ बैठे।
वह चाहता था कि इस रात के अन्धकार में हर आवाज मौन हो जाये। आधी रात को गुजरने वाली ट्रेन की धड़धड़ाती आवाज़ और इंजन की सीटी उसे ऐसा आभास करवा रही थी जैसे वो ट्रेन उसी की तरफ बढ़ी चली आ रही हो। वो लपक कर बिस्तर से उठा और कमरे की खिड़की से जाकर सात गया जैसे चुप रहा हो। उसने बाहर की और देखा। छत बार बने इस कमरे से उसे बाहर टयूब लाइट की रौशनी में एक कुत्ता ऊंघता हुआ नजर आया। तभी कालोनी का चौकीदार लाठी पटकता हुआ गुजरा और उसने एक लम्बी सीटी बजाई। उसका मन किया कि चौकीदार को एक गन्दी सी गाली दें। पर वो अपनी मुट्ठियाँ भींच कर और दांत रगड़ कर चुप रहा। उसे लगा कि ये आदमी सावधान कर रहा है या डरा रहा है। कितनी अनिश्चितता पैदा कर दी है इस आदमी ने ,काम से काम इस बात का ध्यान तो रखे कि शांति का मूल्य क्या है।
वह बार बार आज की उस घटना का वीभत्स और हृदय विदारक दृश्य याद कर के परेशान था। इस घटना ने उसकी मनोस्थिति में भूचाल ला दिया था। शायद पेशे से वह साहित्य का अध्यापक था और मानवीय संवेदनायें अभी भी इस भूमंडलीय वातावरण में उसके भीतर जीवित थी। पंजाब के काले दिनों के दौरान जब उसकी उम्र महज सात आठ साल रही होगी तब एक बार उसके शहर में हुए गोली कांड में उसने पहली बार मांस और चर्बी की उस गंध को महसूस किया था जो लम्बे समय तक उसकी स्मृति से मिट नहीं पायी . जब भी अकेले बैठे उसे उस घटना की जरा सी याद आती उस दिमाग और फेफड़े उस बदबू से भर जाते। आज फिर लगभग वैसी ही स्थिति उसके सामने पुनः प्रकट हो गयी थी।
वह बार बार आज घटी उस वीभत्स घटना से परेशान था। इसने उसकी मनोस्थिति को वैराग्य और असुरक्षितता की भावना से भर दिया था।
दफ्तर से छुट्टी होते ही जब वह मुख्य प्रवेश द्वार से बाहर निकला तो सड़क पर सब कुछ जैसे रोज की तरह सामान्य था। . वह उस परिचित सड़क पर मुक्त भावना के साथ घर की और लौट रहा था। बाहर सड़क के एक कोने में विज्ञापन का बड़ा बोर्ड बदला हुआ था। जीवन बीमा निगम का विज्ञापन देती सुन्दर सी दंपत्ति की खिलखिलाती हुयी तस्वीर बड़ी ताजा लग रही थी। विज्ञापन बोर्ड के नीचे पनवाड़ी की दुकान और बगल में सोडा बेचने वाला रोज की तरह अपने काम में व्यस्त थे।
'क्यों भाई कैसा चल रहा है ?" उसने पनवाड़ी की दुकान पर जाकर सिगरेट खरीदते हुए पूछा।
'बस बाबू जी आप लोगों की मेहर बानी है ,रात दिन यहाँ पल का काम चल रहा है ,पहले मेरी दुकान भी यहाँ से उठने वाली थी लेकिन ठेकेदार को पटा लिया ,अपने ही गाँव का है ,चाय पानी पिला दिया करता हूँ। "। उसने पास के रेलवे फाटक के ऊपर बन रहे फ्लाईओवर की और इशारा करते हुए कहा।
फ्लाईओवऱ बनने के कारण आस पास की कितनी ही दुकानों के भविष्य पर प्रश्न खड़ा हो गया था।
सड़क के एक किनारे पड़े लोहे के सरियों के ढेर उसे भयभीत नहीं करते थे।
अचानक उसके फ़ोन की घंटी बजी। मोबाइल का नंबर देखे बिना ही उसने काल रिसीव किया। वह जानता था की यह उसकी पत्नी का फ़ोन था। आज उसके बेटे का जन्मदिन है और उसे जाते समय रास्ते की बेकरी से ही केक लेकर जाना है।
"हेलो ,हाँ सुषमा,ठीक है ,मुझे याद है ,अरे भाई चॉक्लेट वाला काके ही लाउंगा,बिना अंडे का केक भी कोई केक होता है ,अच्छा चलो ठीक है ,मैं आ रहा हूँ।,रास्ते में हूँ। " उसने जल्दी जल्दी बात निपटाई।
रोज की तरह शाम पांच बजे वाली ट्रेन अपने निर्धारित समय पर निर्माणाधीन पुल के नीचे से गुजरती हुई लम्बी सीटी बजा रही थी। ट्रेन गुजरने के कारण रेलवे फाटक बंद था। गाड़ियों की लम्बी क़तार के बीच वह भी शामिल हो गया। आधी सड़क नए बन रहे फ्लाईओवर के कारण रुकी हुई थी भीमकाय मशीनें और बुलडोजर तेज शोर के साथ काम कर रहे थे। सड़क पर अवरोध लगाकर आधी सड़क को घेरा हुआ था।
ट्रैन गुजरते ही फाटक खुला और सब गाड़ियां आगे और जल्दी निकलने की होड़ में हार्न पर हार्न बजाने लग गयी। फाटक के पास एक तरफ सीमेंट का बीम बनाने के लिए बोरिंग मशीन लगी हुई थी जिसके साथ एक लम्बा भीमकाय पाइप धरती की गहरायी को भीषण आवाज के साथ नाप रहा था। उस के पास से गुजरते हुए ऐसा लगता जैसे धरती काँप रही हो। बाकी गाड़ियों के पीछे पीछे वह भी उसके पास से निकल कर फाटक के पार आ गया। अचानक बड़ी जोर से 'धड़ाम ' की आवाज आई। जैसे बम फटा हो। उसने अपना मोटर साइकिल रोक लिया। लोग बाग़ इधर उधर भागने लगे। उसने पीछे मुड़ के देखा तो फाटक के पास ही जहाँ बोरिंग मशीन गड्ढा खोद रही थी अपने स्थान से टेढ़ी हो गयी थी उसके ऊपर लगा भीमकाय लोहे का पाइप नीचे गिर पड़ा था जिस कारण कोई घटना घटी थी। उसने मोटर साइकिल एक तरफ लगाया और उस जगह की तरफ और लोगों की तरह भागा।
"क्या हुआ भाई ,कोई घायल तो नहीं हुआ है ?"
" पता नहीं ,पर कुछ हुआ जरूर है ,भगवान भला करे ,सब ठीक ठाक हो। "
इस तरह की बाते करते हुए लोग घटनास्थल की और बढ़ रहे थे।
उसने भी भीड़ के बीच से आगे निकल कर जो दृश्य देखा तो उसका हृदय काँप उठा।
दो लोग जो मोटर साइकिल पर ही सवार थे ,लोहे की पाई की चपेट में आ गए थे। आगे वाले का केवल धड़ दिख रहा था और उसका सर कुछ दूरी पर शांत आंखें खोले आसमान की और देखता हुआ पड़ा था। पीछे बैठा आदमी आगे वाले के धड़ के ऊपर औंधा बेसुध पड़ा था। यह दृश्य देखकर उसे उबकाई सी लगी पर वह एकदम उस दृश्य से आँखें हटा पीछे की और हो गया।
एम्बुलेंस की पीं-पीं उसके कानों में बज रही थे बाकी सब आवाजें जैसे सुनना बंद हो गयी थी रह रह कर उसके सामने वो दो मृत शरीर और कटा हुआ सर याद आ रहा था।
खून का बना हुआ तालाब और फैली चर्बी की गंध ने जैसे बरसो पहले की घटना जो कही उसके अंतर्मन में छुपी पड़ी थी ,ताजा हो गयी। एक आदमी उससे टकराया तो वो कुछ वर्तमान की स्थिति में आया। उसने अपनी मोटर साइकिल की चाबी जेब से निकाली और मोटर साइकिल,अरे वो मोटर साइकिल से तो वो कुछ आगे निकल आया था। वह कुछ कदम वापिस लौटा और अपनी मोटर साइकिल पर बैठ कर किक मारने लगा।
वापिस घर लौटते हुए उसकी नजर सड़क के दोनों और लगे खम्बों और ऊँचे पेड़ों को देखती रही। वो वर्षों से अपने स्थान पर ही टिके हुए थे और वो वर्षों से उस सड़क पर चलने का अभ्यस्त था। बड़ी परिचित सी सड़क थी ये उसके लिए। पर आज वो अजनबियों की तरह व्यवहार कर रहा था जैसे कोई नवागुन्तक किसी अपरिचित शहर में कोई पता ढूंढ रहा हो। उसे प्रतीत हो रहा था मानो सब खम्बे और पेड़ सड़क की और गिर रहे हों। वह भयभीत था कि यह सब उसके ऊपर गिर पड़ेंगे और उसे अभी रोजाना की तरह घर जाना है / अपनी पत्नी और अपने प्यारे बेटे की फरमाइशें सुननी है। क्या वो इन सब के लिए सही सलामत आज घर पहुँच पायेगा ? क्या हादसे में मरने वालों के परिजन भी उनकी प्रतीक्षा इसी प्रकार नहीं कर रहे होंगे ? क्या उन्हें इस प्रकार की अनहोनी का कोई आभास होगा ? शायद ऐसा कोई आभास तो मरने वाले को भी नहीं होता होगा ? लोग कहते हैं कि आत्मा अमर होती है शरीर झूठ होता है ,पर क्या वाकई ? घर लौटता हुआ तो शरीर ही है इसके बिना आत्मा का क्या ? सभी सम्बन्ध तो शरीर के साथ ही लक्षित है। ये सारी बातें उसके दिमाग में लौटते हुए कौंध रही थी।
वो कब घर पहुँच गया उसे पता ही नहीं चला। बेटा और पत्नी ने खली हाथ लौटते देख उसे पूछा।
"केक कहां है जी ?"
"भूल आये क्या?"
"मैंने फोन पर इसी लिए याद करवाया था ,फिर भी आप पता नहीं कहा खोये रहते हैं ?"
"आज गुड्डे का जन्म दिन है ,वह तो याद है ,आस पड़ोस के बच्चे घंटे भर में आने वाले हैं ,अब आप जल्दी से इन्तेजाम कीजिये। मुझे बहुत से काम करने हैं। "
पत्नी की बात वो जैसे सुनता हुआ भी नहीं सुन रहा था। बस एक तक पत्नी और बेटे को देखता हुआ सोफे पर बैठ गया। बेटा उसकी गोद में बैठ गया था। उसने उसे बेतहाशा चूमा और गोद में उठा लिया .
वह जैसे कुछ सहज सा हुआ और घर से बाहर निकलता हुआ बोला।
"अच्छा बस अभी सारा सामान लेकर लौटता हूँ। "
सड़क पर चलते हुए अभी भी कुछ चीजें उस के लिए सामान्य नहीं थी। ऐसे असामान्य स्थिति में ही वह दुकान पर पहुंचा। केक लिया तो पैसे देना भूल गया। पैसे दिए तो ज्यादा दे दिए।
"अरे आज बेटे के जन्मदिन की ख़ुशी बहुत ज्यादा है बाबू जी ,ये लो आपने पैसे ज्यादा दे दिए है ,बकाया ले जाइए ". दूकानदार बोला।
वह अनमना सा मुस्कराया और वापिस घर लौट आया।
सारा प्रोग्राम निपट चूका है। बेटा खा पीकर सो गया है।
पत्नी भी शायद थक कर सो गयी थी और वो निपट अकेला कमरे की खिड़की के साथ रात की नीरवता में उसके शांति में डूब जाना चाहता था।
अगले दिन वह सुबह उठा लेकिन जैसे नींद बाकी थी। पत्नी उसके सिरहाने चाय रख कर कबसे रसोई के काम में लग चुकी थी।
"ओहो ,आज दफ्तर जाने का विचार नहीं है क्या ,देखो कितना टाइम हो गया है। चाय तो बिलकुल पानी हो गयी है। अजी उठ जाओ अब। "पत्नी ने उसे झिंझोड़ा।
वह उठ कर बैठा तो वाकई समय बहुत हो चूका था। उसने शीघ्रता से ठंडी चाय पी और बाथरूम की तरफ बढ़ गया।
समाचार पात्र मेज पर पड़ा था। उसने सरसरी निगाह ब्रेकफास्ट करते हुए उस पर डाली। अपना शहर वाले पेज पर कई हादसों की खबरें थी। रेलवे फाटक के ओवर ब्रिज वाली घटना भी मुख्य पृष्ठ पर थी। उसे थोड़ा गौर से उसने पढ़ा फिर बाकी पन्ने शीघ्रता से पलट दिया। गुड्डे की स्कूल वन का हार्न बजा तो वह अपने बेटे को "बाय बाय " पुकारता हुआ हाथ हिलाने लगा। उसे भी दफ्तर के लिए निकलना था। पत्नी ने लंच बॉक्स टेबल पर उसके सामने रख दिया।
रेलवे फाटक के पास बने ओवर ब्रिज वाला रास्ता कुछ और ज्यादा रोक लिया गया है। छोटे वाहनों के निकलने की जगह छोड़ दिया गया हैं। वह भी वही से गुजर रहा है। सरिये के ढेर और जाल एक भयानक शांति में पड़े हैं। आज उसे दफ्तर में पहुंचकर कई अहम फाइल निपटानी हैं। वो कल वाले हादसे के बारे में कोई बात नहीं करना चाहता। उसे रोजाना की तरह वही से गुजरना है।
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संपर्क:
डॉ. हरीश कुमार
गोबिंद कालोनी ,गली न0 २
नजदीक विजय क्लॉथ मर्चेंट ,बरनाला (पंजाब)
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