भागो - भागो शेर खा गया / रहस्य रोमांच की कहानी / रामकिशोर पंवार

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रहस्य रोमांच से भरपूर एक दिल को दहला देने वाली कहानी भागो - भागो शेर खा गया........ कहानी - रामकिशोर पंवार दिसंबर का महीना था. आज दिन ...

रहस्य रोमांच से भरपूर एक दिल को दहला देने वाली कहानी

भागो - भागो शेर खा गया........

कहानी - रामकिशोर पंवार

दिसंबर का महीना था. आज दिन भर से कड़ाके की ठंड पड़ रही थी . इस बीच किसी ने कलेक्टर के बंगले पर आकर दस्तक दी. आने वाला किसी गांव का कोटवार जान पड़ता था. सुबह से लोगों को वैसे भी इस कड़ाके की ठंड ने आग के अलावे के सामने एकत्र कर रखा था . कलेक्टर का बंगला भी इस ठंड से अछूता नहीं था . सोमवार 21 दिसंबर 1931 की शाम कलेक्टर बंगले पर आने वाले उस व्यक्ति ने अपना परिचय धाराखोह ग्राम के कोटवार के रूप में देते हुए उसने अपने बुढ़े जिस्म को झुका वह वह बोला मुझे कलेक्टर साहब से मिलना है . धाराखोह गांव का वह बूढ़ा कोटवार आज कुछ ज्यादा ही परेशान दिखाई पड़ रहा था . गांव के आसपास एक तो घनघोर जंगल जिसमें से अकेले पैदल निकल पाना जान को जोखिम में डालने जैसा था फिर भी पिछले चार - पाँच दिनों से एक आदमखोर शेर के आतंक ने आसपास का पूरा माहौल कंप- कंपा रखा था . इस समय शेर के आतंक से बुरी तरह थर्रा उठा धाराखोह का जंगल तो इस बार इस शेर के आतंक से कुछ ज्यादा ही हैरान एवं परेशान था. कई किसानों के जानवरों को खा चुका शेर कहीं नरभक्षी न बन जाए बस इसी बात की चिंता गांव कोटवार को धाराखोह से कलेक्टर के बंगले तक खींच लाई थी. वैसे भी उस जमाने में तो धाराखोह का जंगल और ऐसे में पैदल बदनूर तक आना हर किसी के बस की बात नहीं थी. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ग्रामीण लोग बैतूल को बदनूर के नाम से ही पुकारते थे .

जब भी किसी गांव वाले को बदनूर आना होता था तो वह अपने चार पाँच साथियों के साथ हाथ में लाठियाँ , कुल्हाड़ी , तीर कमान , बलम्ब, तथा आते समय रात्रि हो जाने पर आते समय के लिए मशाल साथ लेकर आते थे ताकि लौटते समय जला कर रास्ते से आ सके . गांव से मशाल जला कर निकले गांव कोटवार के साथ आये कलेक्टर बंगले के बाहर खड़े गांव वालों के हांफने और कांपने की मनोदशा साफ दिखाई दे रही थी. इस कड़ाके की ठंड में भी पसीने से लथपथ गांव वालों ने कलेक्टर बंगले के चौकीदार को अपने आने की खबर देते हुए कलेक्टर साहब से मिलने की अपनी इच्छा जतलाई. बंगले के चौकीदार ने अंदर जाकर कलेक्टर साहब को खबर दी कि सर धाराखोह गांव का कोटवार अपने कुछ साथियों के साथ आपसे मिलने के लिए आया है . नई उम्र का कलेक्टर बैतूल शायद पहला या दुसरा जिला रहा होगा ऐसे में कलेक्टरी की जवाबदेही वास्तव में जोखिम भरी होती है पर उत्साह में कोई कमी नहीं हमेशा चुस्त - दुरुस्त रहने वाले इस खूबसूरत - हैंडसम कलेक्टर को देख कर नहीं लगता था कि वे एक अच्छे शिकारी और निशाने बाज भी होंगे , लेकिन जबसे बैतूल आये उन्होंने कई बार जंगलों में अपनी जान कों जोखिम में डाल कर शिकार किये . इस बार भी उन्हें जब धाराखोह में शेर के आतंक की खबर मिली तो वे अपने आप को रोक नहीं पायें उस रोज का मंगलवार बैतूल कलेक्टर के लिए उनकी जिंदगी का सूरज डूबा देगा यह उसने कभी सपने में नहीं सोचा था.

बैतूल कलेक्टर के जीवन का सूरज नहीं डूबता यदि वे अपनी जवानी के प्रति इतने दीवाने नहीं होते हालांकि उन्हें बताया जा चुका था कि सर शेर आदमखोर हो चुका है उसने धाराखोह के जंगल में शेर ने एक गोंड कृषक पर हमला कर किया...गले पर दांत गड़ा... कर उसे कई मील दूर तक ऐसा घसीटा कर वह मर गया . कुछ देर बाद शेर ने पहाड़ी ढलान पर ले जाकर उसे ‘ बुरी- तरह नोंच - नोंच कर खा’ गया...लहूलुहान उस गोंड़ किसान की धोती से मालूम कि पड़ता था कि शेर ने उसका क्या हाल का बेहाल किया होगा . सारा हाल- चाल जानने के बाद भी जवानी तो होती ही दीवानी है...कुछ करने की इच्छा ने बैतूल कलेक्टर को मौत की आगोश में धकेल ही दिया. कलेक्टर साहब का ‘दिल आखिर माना नह होगा इसलिए उन्होंने उक्त दुस्साहस पूर्ण कार्य करने का दम भर होगा. कहना नहीं चाहिए पर सच्चाई है कि ऐसी ही लालसा - ललक...इस तरह के हादसों को जन्म देती है. बैतूल कलेक्टर मिस्टर बोर्न को धाराखोह गांव कोटवार से जैसे ही यह जानकारी मालूम हुई . मिस्टर बोर्न ने बैतूल के तहसीलदार को अपने दरबार में बुलवा भेजा . इसके अलावा उन्होंने यह भी पता कि क्या बैतूल जिले में कुछ अच्छे निशानेबाज शिकार है.......? उनकी इस अभिलाषा के तहत कुछ स्थानीय शिकारियों को भी कलेक्टर ने अपने बंगले पर बुलवा भेजा . लगभग आधा दर्जन से भी अधिक लोगों की टीम को अपने साथ लेकर मिस्टर बोर्न गांव कोटवार और कुछ गामीणों तथा स्थानीय शिकारियों के दल को अपने साथ लेकर धाराखोह के जंगलों की ओर निकल पड़े . उस समय कलेक्टर के साथ ‘देश के जाने-माने शिकारी चिचोली ग्राम के पटेल स्वतंत्रता संग्राम सैनिक, जमींदार स्व. शिवदीन पटेल जिन्होंने अनेक ‘आदम खोर’ शेर का शिकार किया...अनेक मर्तबा शासन-प्रशासन ने उन्हें सम्मानित किया वे भी शामिल थे .

22 दिसंबर 1931 युवा कलेक्टर खूबसूरत हेण्डसम-गोरा चिट्टा उम्र यही कुछ 35-40 मिस्टर बोर्न जो पहले भी कुछेक शेर मार चुके थे... के लिए अवसर था कि धाराखोह के इस आदमखोर (आदमी को खाने वाले) शेर को वे मारे. उन्होंने 2 दिन पहले मुझसे कहा था... ‘पटेल सा’ बड़े दिन के त्यौहार पर अपन नांदा वनग्राम चलेंगे...आज भिनसारे उनकी खबर आ गई है कि आदमखोर शेर के शिकार पर धाराखोह चलना है... अनहोनी कौन टाल सकता था? मेरा जाना नहीं हो पाया. 8 बजे सुबह, तारीख 22 दिसंबर 1931 कलेक्टर साहब धाराखोह के जंगल पहुंच गए...शेर ने एक बैल का भी शिकार किया था. जिस स्थान पर शेर ने बैल को मारा था...जिसे शिकारियों की भाषा में ‘गाला’ कहते हैं...उसी स्थान पर, एक पेड़ पर ‘साहब बहादुर’ के लिए ‘मचान’ (खटिया-पेड़ की साखो में बांधकर बनाया गया बैठने का स्थान) बनाया गया. बोर्न साहब के साथ तहसीलदार मचान पर बैठे. कोटवार भी उसी पेड़ की एक साख पर बैठा... हांका शुरू हुआ (हांके का मतलब.... संभावित शेर के स्थान वाले जंगल को दूर से.... बड़ी संख्या में लोगों के द्वारा घेरकर चिल्लाते.... हल्ला करते, आगे बढऩा, जिससे शेर-आवाज शोर सुन, वहां से आगे की ओर बढ़े) और शेर उस ओर बढ़ा भी... जिस स्थान पर...उसने बैल का शिकार किया था...जैसे ही शेर शनै:शनै: चौकस निगाह से अधखाए बैल की ओर पहुंचा.... कलेक्टर भी दम साधे...निशाना साध ही रहे थे...जैसे शेर-उनकी एवं बंदूक की रेंज में आया...कलेक्टर सा ने ट्रिगर दबा दिया...धॉय...गोली चली... गोली लगी या नहीं, कुछ मालूम नहीं हो पाया...शेर आगे बढ़ गया...

कलेक्टर बोर्न साहब बोले गोली लग गई है...तहसीलदार-कोटवार बोले-‘सर’ गोली नहीं लगी है. तय यह हुआ कि नीचे उतरकर देखा जाय कि गोली लगी या नहीं...अगर खून गिरा होगा... मतलब गोली लगी है... तीनों नीचे उतर गए...उन्हें खून भी दिखलाई दिया... बोर्न साहब पर जवानी का नशा चढ़ा था... वे खून देखते आगे बढ़ते गए...साथ में तहसीलदार एवं कोटवार भी...अचानक भयानक गर्जना के साथ शेर टूट पड़ा घायल शेर भयावह होता है... पहले उसकी पकड़ में कोटवार आ गया... उसने कोटवार का सीना चबा डाला... खून के फव्वारे छूट पड़े... साहब ने गोली चलाई...वह साहब बहादुर पर टूट पड़ा.

स्वतंत्रता संग्राम सैनिक, जमींदार स्व. शिवदीन पटेल चिचोली की हस्तलिखित डायरी के पन्नों में अंकित इस सत्यकथा के अुनसार कलेक्टर साहब मिस्टर बोर्न ने अपने को, बचाने पहले हाथ आगे बढ़ाया...शेर ने हाथ चबा डाला, पैर आगे बढ़ा तो पैर ‘चकनाचूर’ हो गया फिर शेर सीने पर टूट पड़ा...और बोर्न साहब को चबाता रहा... खून के डबरे भर गए... स्व. पटेल की डायरी आगे कहती है... तहसीलदार वहां से जो भागा... तो नजदीक एक झाड़ पर चढ़ गया बंदूक नीचे ही फेंक दी...कपड़े पूरे गंदे कर चुका था. दूर झाड़ पर बैठे एक आदिवासी शिकारी को कुछ आभास हुआ कि-बड़े साहब की तरफ कुछ गड़बड़ है...वह वहां पहुंचा...कोटवार एक ओर पड़ा था.

दूसरी ओर बोर्न सा पड़े थे. धरती खून से सनी थी...कुछ ही दूर ‘निढाल’ शेर पड़ा था, क्योंकि वह भी ‘कमर’ में गोली लगने से घायल था. गोंड शिकारी ने पहले अपनी भरमार बंदूक से शेर पर गोली चलाई... वह वही ढेर हो गया. उक्त सारे हादसे को देख कर तो बैतूल तहसीलदार की सिट्टी - पिट्टी गुम हो गई . वह थर- थर कांपने लगा. जब उनकी घबराहट कुछ कम हुई... वे पेड़ से उतरे... ‘आनन-फानन में खटिया का इंतजाम किया गया...’ एक पर कलेक्टर, एक पर कोटवार... बैतूल लाया गया...मुख्य चिकित्सालय टिकारी जो (जो अब नर्सेज हास्टल है) लाया गया .

दोनों की स्थिति बहुत नाजुक थी... कलेक्टर साहब होश आने पर बचाओ-दौड़ो शेर आया चिल्लाते रहे... उन्हें कलेक्टर बंगला ले जाना ही उचित समझा गया... नागपुर से भी डाक्टर आए...परंतु उन्हें नहीं बचाया जा सका... बीच-बीच में चिल्लाते थे-दौड़ो-दौड़ों शेर आया-शेर आया. और कलेक्टर बंगले में उनके प्राण पखेरू उड़ गए... शाम हो रही थी सूरज ढल रहा था... एक जवान युवा कलेक्टर-‘विवेक’ के अभाव में मारा गया था. जब यह जानकारी घायल कोटवार तक पहुंची... तो वह भी ‘शाक’ नहीं झेल पाया...उसकी भी मौत हो गई.

बोर्न सा की मेम साहब को विलायत उनके स्वदेश तार से बोर्न साहब की इस हादसे में हुई मौत की खबर दी गई लेकिन वे नहीं आई बल्कि उनका जवाब आ गया वह भी एक ऐसा तार था जिसमें लिखे शब्दों ने पति - पत्नी के रिश्तों को तार - तार करके रख दिया . तार का जवाब था...उनका जो भी सामान हो नीलाम कर पैसा यहां भिजवा दो...

डायरी आगे कहती है... बोर्न सा को माचना नदी के किनारे कब्रस्तान में दफनाया गया. कलेक्टर बंगले में काफी दिनों तक बोर्न सा की आवाज दौड़ो-दौड़ों शेर आया शेर आया.... आती थी . अब वह आवाज तो लोगों को सुनाई नहीं देती पर माचना नदी के किनारे बने ईसाईयों के कब्रिस्तान से आज भी काली अंधियारी अमावस्या की रात हो या फिर उजियारी पूर्णिमा की रात में एक पैंतीस छत्तीस साल का विलायती स्मार्ट गोरा - नारा युवक जहाँ - तहाँ खून से सना उसके शरीर से खून की बूंद टपकती दिखाई पड़ती थी . वह अपने हाथों में बंदूक लिए बदहवास सा चीखता हर आने - जाने वाले राहगीरों से यह कहता है दिखाई पड़ता कि ‘‘ भागो नहीं तो शेर खा जाएगा ..................! परतवाड़ा रोड़ पर स्थित ईसाई कब्रिस्तान के पास अकसर कई लोगों को दिखाई पड़ा तथा अभी भी उसके दिखाई देने के किस्से सुनाई पड़ते हैं . यह विलायती युवक उस रास्ते से आने - जाने वाले लोगों से कहता है कभी - कभी तो यह भी कहता है कि दौड़ो.................! दौड़ों ..............! शेर आया ..............! शेर आया..................! मुझे बचाओ ...............! मुझे बचाओ................! भागो नहीं तो शेर खा जाएगा ...................

इति,

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कथाकार हैं. संपर्क - ramkishorepawar@gmail.com )

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भागो - भागो शेर खा गया / रहस्य रोमांच की कहानी / रामकिशोर पंवार
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