देशभक्त: एक लुप्त होती प्रजाति / व्यंग्य / शशिकांत सिंह ’शशि’

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         चूंकि मंत्री जी ने जनता से सलाह मांगी है तो देश का सजग नागरिक होने के नाते हम अपनी सलाह उन्हें सौंप रहे हैं। सजगतापूर्वक, निरंतर च...

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         चूंकि मंत्री जी ने जनता से सलाह मांगी है तो देश का सजग नागरिक होने के नाते हम अपनी सलाह उन्हें सौंप रहे हैं। सजगतापूर्वक, निरंतर चिंतन करने से, हमें यह ज्ञान प्राप्त हुआ है कि देश में फिलवक्त सबसे बड़ी कमी देशभक्ति की है। बिजली, पानी , रोजी, रोटी, रोजगार आदि की कमी को तो हम झेल सकते हैं क्योंकि इसके आदी रहे हैं। परन्तु देशभक्ति की कमी यह राष्ट्र नहीं झेल सकता। देशभक्ति के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर प्रयास हो भी रहे हैं लोग गाफिल नहीं है। पार्ट टाईम देशभक्त तो सड़कों पर लाठी लेकर निकलने के लिए सर्वदा तैयार बैठे ही हैं। कर कमलों में स्याही धारण किये, जीभ को जूते की तरह चलाने को आतुर एक फुल टाईम देशभक्तों की टोली भी है जो फेसबुक, टिविट्रादि सोशल साईटस पर पाई जाती है।


           असली देशभक्त वह है जो अपने अलावा किसी और देशभक्त माने ही नहीं। वह एक हाथ में सांचा और दूसरे हाथ में बंदूक लेकर बैठे। उसके सांचे में जो फिट नहीं बैठे उसे गोली मार दे। कम से कम स्याही से मुंह ही काला कर दे। एक वर्ग और धर्म विशेष के अलावा सबको देशद्रोही मानें। आजादी के सत्तर सलों के बाद, लगा कि लोगों के दिमाग का विस्तार हो गया है। देश में सबको अपने ढ़ंग से देशभक्त होने का अधिकार मिल गया है। तभी आरिजनल देशभक्तों ने तांडव करना शुरू कर दिया। अंग्रेजी राज की बात और थी। उन दिनों देशभक्ति की कापीराइट किसी के  पास नहीं थी। देशभक्तों के घराने नहीं हुआ करते थे। अंग्रेजों का यह देश ही नहीं था सो उन्हें भला इस लड़ाई से क्या लेना-देना। आज तो चुनी हुई सरकार है अतः यह फर्ज सरकार का ही बनता है कि देशभक्तों की लूप्त होती प्रजाति को बचाये। लोकतंत्र में सबकुछ सरकार ही करती है। न्यायालय की लापरवाही देखिये कि देशद्रोह वाले मामलों में तुरंत जमानत भी दे रही है। यह अलग बात है कि जबतक जमानत मिले तब तक देशभक्त चैनल उस आदमी और उसके पूरे परिवार को देशद्रोही साबित कर चुका होता है। कई चैनल तो और उनके एंकर तो बकायदा ट्रायल चला रहे होते हैं। अत्यंत फुर्सतीय बहसबाज उनके पास सीन में मौजूद रहते हैं। ऐसी स्थिति में यह सरकार की जिम्मेवारी बनती है कि वह नवयुवकों को प्रशिक्षित करके देशभक्ति की बुनियाद मजबूत करे।


         सरकार के पास एक से बढ़कर एक देशभक्त हैं। अनुपम खेर जी से लेकर योगी आदित्यनाथ जी तक। उनके ज्ञान और अनुभव को नमन करते हुये हम चंद सुझााव पेश करते हैं। सर्वप्रथम यदि संभव हो तो एक देशभक्ति मंत्रालय बनाया जाये जो देश के एक-एक आदमी को पकड़कर सरकारी स्तर पर देशभक्त बनाये। स्वर्गीय संजय गांधी जी ने यही प्रयास नशबंदी के लिए किये थे। बाद में कहानी इमरजैंसी तक गई थी। आवश्यकता पड़ने पर, राष्ट्रहित में इमरजैंसी भी लगानी पड़े तो लगाई जाये। सरकारी विज्ञापनों के माध्यम से , देशभक्तों के लिए आदर्श आचार संहिता तय की जाये मसलन उसे क्या खाना है ? क्या नहीं खाना है ? क्या पहनना है ? क्या नहीं पहनना है ? किसकी जय और किस प्रकार बोलनी है। भाषा कौन-सी बोलनी है ? पूजा किसकी करनी है ? वोट किसको देना है ? जय-जयकार किसकी करनी है ? गालियां किसको देनी है ? देशद्रोही किसे बताना है। ये तमाम तकनीकी प्रश्नों को हल करके ही देशभक्तों की प्रजाति को बढ़ाया जा सकता है। गांव-गांव, गली-गली में शिवीर लगाकर नौजवानों को पोस्टर फाड़ने, पुतले जलाने, इंटरनेट पर गालियां देने, स्याही सटीक जगह पर लगाने या उड़ेलने, लाठियां मारने और अंत में गोली मारने तक का प्रशिक्षण दिया जाये। इतिहास गवाह है,  उचित प्रशिक्षण का ही नतीजा था कि तीन बार असफल होने के बावजूद चौथी बार में गांधी जी को गोली मारी गई और देशभक्तों की काली रात कटी। बेशक आज गांधी को गले लगाने की होड़ मची हो लेकिन उन दिनों उनको गोली मारने की होड़ थी। गोडसे, आप्टे आदि प्रशिक्षित नौजवान थे। 


        देशभक्ति की राह में सबसे बड़ा रोड़ा तो संविधान ही है। यह सबको बराबरी का अधिकार देता है। धर्मनिरपेक्षता की बात करता है। इससे देशभक्ति कमजोर होती है। सर्वप्रथम संविधान के इन स्पीड बे्रकरों को हटा देना चाहिए। जरूरत पड़ने पर और संसद में वोट नहीं होने की स्थिति में हिटलरी तरीको को उपयोग किया जाना चाहिए। हिटलर ने अपने ही संसद भवन में आग लगा दी थी ओर प्रचारित किया कि कमन्युस्ट देशद्रोही हैं। उन्हें मौत की सजा मिलनी चाहिए फिर खोज-खोज कर विपरीत विचारधारा वालों को मारा जाने लगा। यहूदी आज तक याद करते हैं। हिटलर की देशभक्ति पर तो कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता। वोट नहीं देने वाले सांसद निश्चित तौर पर देशद्रोही होंगे। उनपर दफायें लगाकर अंदर कर दिया जाये नहीं तो डंडा-दल को सौंप दिया जाये। डंडा दल से याद आया कि सबसे पहले तो देशभक्तों की सेना बनाई जाये जो कि पुलिस और आर्मी के समांनातर हो। सैनिकों की देशभक्ति केवल सीमाओं तक ही सीमित हो। देशभक्त सेना उधर न जाये क्योंकि वहां विरोधियों के हाथों में भी संगीन होती है। देश के अंदर के दुश्मनों को निपटायें क्योंकि वे निहत्थे होते हैं- मसलन दाभोलकर, कलबुर्गी आदि। पुलिस को स्पष्ट निर्देश हो कि देशभक्त-सेना के सदस्यों को किसी भी हालत में गिरफ्तार न करें। पुलिस में भी देशद्रोही हो सकते हैं इसलिए पुलिस का काम देशभक्त सेना को दिया जाये। सबसे अधिक जरूरी है शिक्षा में परिवर्तन। सिलेबस बदलना। बच्चों को पढ़ाया जाये कि आज विज्ञान ने जितनी भी तरक्की कर ली है वह तो वैदिक युग में ही भारत ने कर ली थी। महाराजा चंद्रगुप्त के कारखाने में तो मिसाइलें मारी-मारी फिरती थीं। राजा शिवी ने जो मंगलयान बनाया था। उसपर चढ़कर वे अक्सर चांद पर जाया करते थे और चांद तक भारत का ही शासन था। रावण जो स्वर्ग में सीढ़ी लगाने वाला था दरअसल उसका फार्मुला उसने अयोध्या से ही प्राप्त किया था। राम-रावण युद्ध का मूल कारण सीता-हरण नहीं बल्कि स्वर्ग की सीढ़ी का विवाद था। संस्कृत पहले संसार भर की भाषा थी। आज भी जर्मन भाषा के शब्दों में संस्कृत के शब्द पाये जाते हैं। छद्म प्रगतिशीलों की वजह से संस्कृत को यह दिन देखने पड़ रहे हैं। संस्कृत को देश की अनिवार्य भाषा घोषित की जाये।


             देशभक्ति की शिक्षा देना विद्यालयों के लिए अनिवार्य कर दिये जाये। सत्र के अंत में एक पेपर देशभक्ति का भी हो जिसमें आर एस एस के इतिहास को जानने के बीस अंक हों। भारत माता की जय कहने वाले बच्चों को दस अंक अतिरिक्त दिये जायें। अयोध्या में राम का मंदिर था ; सागर पर सेतू था ; ताजमहल पहले शिवमंदिर था। काबा में भी शिव का मंदिर था, आज भी वहां के पत्थर को चूमने की रिवाज है। इस प्रकार के विवादरहित तथ्यों की शिक्षा विज्ञान और कला दोनों के छात्रों को दिये जाये ताकि वे बड़े होकर प्रातःकालीन शाखाओं में जा सकें। गीता-पाठ करने वालो छात्रों को डाक्टर इन साईंस मान लिया जाये। उन्हें प्राणायम और सूर्य नमस्कार की शिक्षा देने के लिए गांव-गांव भेजा जाये। देशभक्ति के लिए इतने प्रयास यदि किये जायें तो निश्चित ही देश अमेरिका बन जायेगा। आई आई टी को बंद कर दिया जाये या फिर फी इतनी बढ़ा दी जाये ताकि कोई पढ़ ही न पाये। ऐसी संस्थायें देश के विकास में बाधक हैं। बच्चे पढ़कर विदेश चले जाते हैं। क्या फायदा धन खर्च करके ? जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में तो आतंकवादी पढ़ते हैं। वहां पठन-पाठन बंद करके स्थायी तौर पर सेना की एक टुकड़ी रखा जाये तथा वहां के छात्र-छात्राओं पर देशद्रोह की दफा लगाकर जेल में डाल दिया जाये। जमानत मिले तो मिले, सरकार तो अपना काम करेगी। मुझे पूरी उम्मीद है कि सरकार मेरी सलाह माने तभी देश में देशभक्तों की तादाद बढ़ेगी। देश रहे न रहे देशभक्त रहेंगे।

शशिकांत सिंह ’शशि’
                                                            जवाहर नवोदय विद्यालय शंकरनगर नांदेड़ महाराष्ट्र, 431736
मोबाइल-7387311701
इमेल- skantsingh28@gmail.com

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रचनाकार: देशभक्त: एक लुप्त होती प्रजाति / व्यंग्य / शशिकांत सिंह ’शशि’
देशभक्त: एक लुप्त होती प्रजाति / व्यंग्य / शशिकांत सिंह ’शशि’
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